महत्वपूर्ण बिन्दु
- तालाब को नियमानुसार पट्टे पर प्राप्त कर मत्स्यपालन करें नीलामी में न लें यह नियम के विपरीत हैं।
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इस अाशय का सूचना पट लगायें कि इस तालाब में मछली पालन किया जा रहा है, कृपया इस तालाब में विषैली वस्तु, बर्तन या स्प्रेयर न धोयें।
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मत्स्य पालन आय का उत्तम साधन है इसलिए इसे समूचित ढंग से व्यापार की तरह करें।
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मत्स्य बीज, संचयन, मत्स्याखेट आदि मत्स्य अधिकारी की सलाह लेकर करें।
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बीज डालने के पूर्व तालाब की तैयारी साफ-सफाई से पूर्ण संतुष्ट हो लें।
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शासकीय या शासन से मान्यता प्राप्त मत्स्य बीज उत्पादन केंद्रों से ही मत्स्य बीज, क्रय कर संचित करें।
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लीज राशि समय पर पटाकर पक्की रसीद प्राप्त करें तथा मत्स्य बीज क्रय की रसीदें भी रखें।
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मत्स्य बीज संचयन प्रति हेक्टर संखया के आधार पर करें वनज के आधार पर नहीं।
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एक ही प्रकार का मत्स्य बीज संचित न करें, मिश्रित मत्स्य बीज संचित करें।
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किसी ठेकेदार या बिचौलियों के उधार में मिले तब भी मत्स्य बीज न लें अन्यथा उसे उसके निर्धारित दर पर मछली बेचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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ज्यादा अच्छा हो नर्सरी बनाकर स्पान सवंर्धित करें तथा अंगुलिकायें बनाकर तालाब में संचित करें।
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कतला, रोहू, मृगल के साथ बिगहेड संचित न करें अन्यथा कतला की बाढ़ प्रभावित होगी।
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तालाब से जितनी मछली निकाले पुनः उतना मत्स्य बीज संचित करें।
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मत्स्य बीज का प्रतिमाह एवं बाढ़ को आधार मानकर निरीक्षण करें।
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केन्द्र शासन द्वारा थाईलैण्ड मागुर एवं बिगहेड पालन प्रतिबंधित है अतः ये मछलियां न पाले।
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वर्षा ऋतु में ज्यादा मात्रा में मछली निकालें।
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दो वर्ष पुरानी परिपक्व मछलियां बाजार में विक्रय न करें, उसे मत्स्य बीज उत्पादन हेतु मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्र में उपलब्ध करायें।
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मछली निकलवाने के पूर्व अधिकतम दर में मछली विक्रय सुनिश्चित करें, बेहतर होगा स्वयं मछली बाजार जायें
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तालाब में15-20 जगह पेड़ों की बड़ी घनी डालियां डाल दे ताकि गिलनेट से मछली न चुराई जा सके।
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तालाब के आय-व्यय का हिसाब रखें।
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जिन तालाबों में ग्रामवासी निस्तार करते हैं, मवेशियों को धोते हैं एवं गलियों का निस्तारी जल बहकर आता है, ऐसे तालाबों मेंकच्चा गोबर एवं रासायनिक खाद डालने की आवश्यकता कम होती है।
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तालाब की नियमित चौकीदारी करें।
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तालाब में किए जाने वाले कार्यों को दिनांकवार पंजीबद्ध करें तथा संबंधित अधिकारियों के मांगने पर अवश्य दिखायें
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ग्रामीण तालाबों में मत्स्याखेट के लिए ऐसे समय का चुनाव करना चाहिये ‘जब उसमें जल स्तर ज्यादा हो। प्रायः अक्टबूर से फरवरी तक सम्पूर्ण मत्स्याखेट करा लें इससे तालाब का पानी गंदा नहीं होगा, ग्रामीणों को निस्तार में असुविधा नहीं होगी तथा विक्रय राशि अच्छी मिलेगी।
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16 जून से 15 अगस्त तक मत्स्याखेट बंद रखें। इस अवधि में परिपक्व मछलियां अंडे देती हैं, इस अवधि में नदियों नालों एवं इनसे जुड़े जलक्षेत्रों में मत्स्याखेट करने पर 5000 रूपये तक जुर्माना तथा एक वर्ष करावास की सजा का प्रावधान है।
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प्रति वर्ष दुर्घटना बीमा करायें मछुओं के दुर्घटनाग्रस्त होने, विकलांग होने अथवा मृत्यु होने पर तत्काल मत्स्य विभाग के अधिकारी को सूचित करें।
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विकटतम मत्स्य अधिकारी से सतत सम्पर्क बनाये रखे।
मत्स्य पालन-क्या करें और क्या न करें
क्या करें
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मत्स्य बीज संचयन के पूर्व तालाब की पूर्ण तैयारी।
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पानी के आगम एवं निर्गम द्वार पर जाली लगावें।
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तालाब की अवांछित एवं मांसाहारी मछलियां/खरपतवार का सफाया।
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तालाब में खाद, चूना डालने के (15 दिन) बाद मत्स्य बीज संचय।
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मत्स्य बीज संचय माह जुलाई से सितम्बर के बीच ही करें।
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मत्स्य बीज संचय प्रातः काल करें।
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मत्स्य बीज कतला, रोहू और मृगल सही अनुपात मेंसचं य करें।
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समय-समय पर तालाबों में जाल चलाकर बीज की बढ़त देखते रहें,
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मछलियों की बीमारी ज्ञात होने पर तुरन्त विभागीय अधिकारियों से सपंर्क कर उपचार करें।
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मत्स्य बीज को मत्स्य विभाग या अधिकृत विक्रेता से ही खरीदें।
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अधिक वीड्स (खरपतवार), वनस्पति वाले तालाबों में ग्रास कार्य मछली का संचय करें।
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अधिक उत्पादन हेतु तालाब मेंएरिएटर का उपयोग करें।
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ग्रीष्म ऋतु मेंजल स्तर बनाये रखे कुंए ट्यूबवेल, नहर, नदियाँ, पम्प द्वारा।
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छोटे तालाबों में मछली पालन के साथ अन्य उत्पादन जैसे-मछली सह बत्तख पालन, मुर्गी, सुअर एवं फलोउद्यान का समन्वित कार्यक्रम लें.
क्या न करें.
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तलाब में मत्स्य जीरा संचयन न करें।
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निर्धारित मात्रा से अधिक मत्स्य बीज संचय न करें।
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मछलियों की बीमारी का उपचार तकनीकी निर्देद्गा के बिना न करें।
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एल्गल ब्लूम (काई) अधिक होने पर तालाब में खाद न डालें।
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अवांछनीय/खाऊ मछली का संचय तालाब में न करें।
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कीड़ों जीव जन्तु/पानी का बिच्छु आदि को निकाल बाहर फेकें एवं मार डालें।
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खरपतवार के उन्मूलन हेतु बिना तकनीकी सलाह के दवाओं का उपयोग न करें।
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मछलियां मारने में जहर का उपयोग वर्जित है।
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बड़े तालाबों सें 1 कि.ग्रा. से छोटी मछली न निकालें।
मलेरिया रोग के जैविक नियंत्रण में गम्बुसिया मछली का महत्व
गम्बुसिया मछली मलेरिया, फाईलेरिया आदि बीमारियों के नियंत्रण के लिए अत्यधिक उपयोगी एवं लाभप्रद सिद्ध हुई है, गम्बुसिया मछली उत्तरी अमेरिका लेबिस्टीस मछली दक्षिण अमेरिका की निवासी है, गम्बुसियां मछली सन् 1928 में भारत लाई गई थी, इसका वैज्ञानिक नाम गम्बुसिया एफिनिस है यह 24 घंटे में 27 से 100 मच्छरों के लार्वा को खाती है एवं प्रतिवर्ष कम से कम 10 बार प्रजनन करती है, इसके प्रतिकुल परिस्थितियों में भी जीवित रहने की क्षमता के कारण इसे रोग की रोकथाम हेतु रूके हुए पानी में एवं नालों मे संचित किया जाता है। लेबिस्टीस मछली भी उक्त रोगों के रोकथाम के लिए उपयोगी हैं, जो लार्वा का भक्षण करती है, इसका वैज्ञानिक नाम बारबेडोस मिलियन्स है इसमें भी लाखों की संखया में अंडे देने की क्षमता होती है इसे साधारण भाषा में गप्पी मछली भी कहते हैं। गम्बुसियां मछली छोटे-छोटे जलीय कीड़े, मच्छरों के लार्वा एवं इल्लीभोजी स्वभाव होने के कारण मलेरिया, फायलेरिया रोग की रोकथाम के लिए जैविक नियंत्रण में लाभप्रद है। इस मछली को बारहमासी एवं बरसात में रूके हुए छोटे-छोटे गड्डो के पानी एवं गन्दे पानी के नालों में डालते हैं जहां पर मच्छर अपने अंडे देते हैं, ऐसे स्थानों में रूके हुए पानी के ऊपर मच्छर अपने अंडे, प्यूपा, लार्वा देते है जिन्हें गम्बुसिया मछली अपना भोजन बनाती है, जिससे रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है।
स्त्रोत – मछुआ कल्याण और मत्स्य विकास विभाग,मध्यप्रदेश सरकार
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