प्रमुख रोग
पर्ण/गलन रोग
यह फंफूद जनित रोग है, जिसका मुख्य कारक “फाइटोफ्थोरा पैरासिटिका” है। इसके प्रयोग से पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो वर्षाकाल के समाप्त होने पर भी बने रहते हैं। ये फलस को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
रोकथाम के उपाय
1 रोग जनित पौधों को उखाड़कर पूर्ण रूप से नष्ट कर देना चाहिये।
- इस रोग के मुख्य कारक सिंचाई है। अतः शुद्व पानी का प्रयोग करना चाहिये।
-
वर्षाकाल में 0.5 प्रतिशत सान्द्रण वाले बोर्डोमिश्रण या ब्लाइटैक्स का प्रयोग करना चाहिये।
तनगलन रोग
यह भी फंफूद जनित रोग है, जिसका मुख्य कारक “फाइटोफ्थोरा पैरासिटिका” के पाइपरीना नामक फंफूद है। इससे बेलों के आधार पर सडन शुरू हो जाती है। इसके प्रकोप से पौधो अल्पकाल में ही मुरझाकर नष्ट हो जाता है।
रोकथाम के उपाय
1 बरेजों में जल निकासी की उचित व्यवस्था करना चाहिये।
- रोगी पौधों को जड से उखाडकर नष्ट कर देना चाहिये।
-
नये स्थान पर बरेजा निर्माण करें।
-
बुवाई से पूर्व बोर्डोमिश्रण से भूमि शोधन करना चाहिये।
-
फसल पर रोग लक्षण दिखने पर 0.5 प्रतिशत बोर्डोमिश्रण का छिडकाव करना चाहिये।
ग्रीवा गलन या गंदली रोग
यह भी फंफूदजनित रोग है, जिनका मुख्य कारक “स्केलरोशियम सेल्फसाई” नामक फंफूद है। इसके प्रकोप से बेलों में गहरे घाव विकसित होते है, पत्ते पीले पड़ जाते हैं व फसल नष्ट हो जाती है।
रोकथाम के उपाय
1 रोग जनित बेल को उखाडकर पूर्ण रूप से नष्ट कर देना चाहिये।
- फसल के बुवाई के पूर्व भूमि शोधन करना चाहिये।
-
फसल पर प्रकोप निवारण हेतु डाईथेन एम0-45 का 0.5 प्रतिशत घोल का छिडकाव करना चाहिये।
पर्णचित्ती/तना श्याम वर्ण रोग
यह भी फंफूद जनित रोग है, जिसका मुख्य कारक “कोल्लेटोट्राइकम कैटसीसी” है। इसका संक्रमण तने के किसी भी भाग पर हो सकता है। प्रारम्भ में यह छोटे-काले धब्बे के रूप में प्रकट होते हैं, जो नमी पाकर और फैलते हैं। इससे भी फसल को काफी नुकसान होता है।
रोकथाम के उपाय
1.0.5 प्रतिशत बोर्डोमिश्रण का प्रयोग करना चाहिये।
2.सेसोपार या बावेस्टीन का छिडकाव करना चाहिये।
पूर्णिल आसिता या;च्वूकतल डपसकमूद्ध
रोग यह भी फंफूद जनित रोग है, जिसका मुख्य कारक ”आइडियम पाइपेरिस“ जनित रोग हैं। इसमें पत्तियों पर प्रारम्भ में छोटे सफेद से भूरे चूर्णिल धब्बों के रूप में दिखयी देते हैं। ये फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
रोकथाम के उपाय
1 फसल पर प्रकोप दिखने के बाद 0.5 प्रतिशत घोल का छिडकाव करना चाहिये।
- केसीन या कोलाइडी गंधक का प्रयोग करना चाहिये।
जीवाणु जनित रोग
पान के फसल में जीवाणु जनित रोगों से भी फसल को काफी नुकसान होता है। पान में लगने वाले जीवाणु जनित मुख्य रोग निम्न है:-
लीफ स्पॉट या पर्ण चित्ती रोग
इसका मुख्य कारक ”स्यूडोमोडास बेसिलस“ है। इसके प्रकोप होने के बाद लक्षण निम्न प्रकार दिखते हैं। इसमें पत्तियों पर भूरे गोल या कोणीय धब्बे दिखाई पडती है, जिससे पौधे नष्ट हो जाते हैं।
रोकथाम के उपाय
1 इसके नियंत्रण के लिये ”फाइटोमाइसीन तथा एग्रोमाइसीन-100“ ग्लिसरीन के साथ प्रयोग करना चाहिये।
तना कैंसर
यह लम्बाई में भूरे रंग के धब्बे के रूप में तने पर दिखायी देता है। इसके प्रभाव से तना फट जाता है।
रोकथाम के उपाय
1 इसके नियंत्रण के लिये 150 ग्राम प्लान्टो बाईसिन व 150 ग्राम कॉपर सल्फेट का घोल 600 ली0 में मिलाकर छिडकाव करना चाहिये।
- 0.5 प्रतिशत बोर्डोमिश्रण का छिडकाव करना चाहिये।
लीफ ब्लाईट
इस प्रकोप से पत्तियों पर भूरे या काले रंग के धब्बे बनते हैं, जो पत्तियों को झुलसा देते हैं।
रोकथाम के उपाय
1 इसके नियंत्रण के लिये स्ट्रेप्टोसाईक्लिन 200 पी0पी0एम0 या 0.25 प्रतिशत बोर्डोमिश्रण का छिडकाव करना चाहिये।
कीटों का प्रकोप
पान की खेती को अनेक प्रकार के कीटों का प्रकोप होता है, जिससे पान का उत्पादन प्रभावित होता है। पान की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीटो का विवरण निम्न है:-
बिटलबाईन बग
जून से अक्टूबर के मध्य दिखायी देने वाला यह कीट पान के पत्तों को खाता है तथा पत्तों पर विस्फोटक छिद्र बनाता है। यह पान के शिराओें के बीच के ऊतकों को खा जाता है, जिससे पत्तों में कुतलन या सिकुडन आ जाती है और अंत में बेल सूख जाती है।
उपचार
- इसके नियंत्रण के लिये तम्बाकू की जड का घोल 01 लीटर घोल का 20 ली0 पानी में घोल तैयार कर छिडकाव करना चाहिये।
-
0.04 प्रतिशत सान्द्रता वाले एनडोसल्फान या मैलाथियान का प्रयोग करना चाहिये।
मिली बग
यह हल्के रंग का अंडाकार आकार वाला 5 सेमी0 लंबाई का कीट है, जो सफेद चूर्णी आवरण से ढ़का होता है। यह समूह में होते हैं व पान के पत्तों के निचले भाग में अण्डे देता है, जिस पर उनका जीवन चक्र चलता है। इनका सर्वाधिक प्रकोप वर्षाकाल में होता है। इससे पान के फसल को काफी नुकसान होता है।
उपचार
- इसको नियंत्रित करने के लिये 0.03-0.05 प्रतिशत सान्द्रता वाले मैलाथिया्रन घोल का छिडकाव आवश्यकतानुसार करना चाहिये।
श्वेत मक्खी
पान के पत्तों पर अक्टूबर से मार्च के बीच दिखने वाला यह कीट 1-1.5 मिमी0 लम्बाई व 0.5-1 मिमी0 चौड़ाई के शंखदार होता है। यह कीट पान के नये पत्तों के निचले सतह को खाता है, जिसका प्रभाव पूरे बेल पर पडता है। इसके प्रकोप से पान बेल का विकास रूक जाता है व पत्ते हरिमाहीन होकर बेकार हो जाते हैं।
उपचार
- इसके नियंत्रण हेतु 0.02 प्रतिशत रोगार या डेमोक्रान का छिडकाव पत्तों पर करना चाहिये।
लाल व काली चीटियां
ये भूरे लाल या काले रंग की चीटियां होती है, जो पान के पत्तों व बेलों को नुकसान पहुंचाती है। इनाक प्रकोप तब होता है जब माहूं के प्रकोप के बाद उनसे उत्सर्जित शहद को पाने के लिये ये आक्रमण करती है।
नियंत्रण व उपचार
- इनको नियंत्रित करने के लिये 0.02 प्रतिशत डेमोक्रॅान या 0.5 प्रतिशत सान्द्रता वाले मैलाथियान का प्रयोग करना चाहिये।
सूत्रकृमि
पान में सूत्रकृमि का प्रकोप भी होता है। ये सर्वाधिक नुकसान पान बेल की जड़ व कलमों को करते हैं।
नियंत्रण व उपचार
- इनको नियंत्रित करने के लिये कार्वोफ्युराम व नीमखली का प्रयोग करना चाहिये। मात्रा निम्न है:-
कार्बोफ्युराम 1.5 किग्रा. प्रति है. या नीमखली की 0.5 टन मात्रा में 0.75 किग्रा. कार्वोफ्युराम का मिश्रण बनाकर पान की खेती में प्रयुक्त करना चाहिये।
स्त्रोत- अनिल कुमार श्रीवास्तव जिला उद्यान अधिकारी, महोबा,पत्र सूचना कार्यालय,नई दिल्ली
Source