सूक्ष्म कृषि क्या है?
- सूक्ष्म कृषि सही चीज, सही स्थान पर व सही समय पर करने के लिए क्षेत्रों से सूचना संग्रह एवं नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग की अवधारणा है। संग्रहित किये गये सूचना का उपयोग अधिक सूक्ष्म तरीके से अधिकतम बुआई घनत्व, खाद प्रयोग का आकलन करने एवं अन्य जरूरी वस्तु के प्रयोग तथा अधिक शुद्धता के साथ फसल उत्पादन का आकलन करने में किया जा सकता है।
- यह स्थानीय मिट्टी एवं मौसम शर्तें जैसी अनचाही कृषि गतिविधियों से छुटकारा दिलाता है। यह श्रम, जल, खाद एवं रोगाणुनाशक जैसे पदार्थों के प्रयोग को घटाता है तथा गुणवत्तायुक्त उत्पाद का भरोसा दिलाता है।
सूक्ष्म कृषि परियोजना- तमिलनाडु
योजना के बारे में जानकारी :
- सूक्ष्म कृषि तमिलनाडु के धर्मापुरी जिले में वर्ष 2004-05 में शुरू किया गया। प्रारंभ में इसे वर्ष 2004-05 में 250 एकड़ भूमि में, वर्ष 2005-06 में 500 एकड़ भूमि एवं वर्ष 2006-07 में 250 एकड़ भूमि में शुरू किया गया था। तमिलनाडु सरकार ने इस परियोजना को क्रियान्वित करने की जिम्मेवारी तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय को सौंपी है।
- इसके अंतर्गत ड्रीप सिंचाई के लिए 75 हजार रुपये एवं फसल उत्पाद उद्देश्य के लिए 40 हजारे रुपये किसानों को दिये गये थे। पहली फसल पूरी तरह विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की देखरेख में रोपा गया। उसके बाद किसानों द्वारा तीन साल में 5 फसल उपजाया गया।
- किसान प्रारंभ में इस परियोजना को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे क्योंकि वर्ष 2002 से चार वर्षों के सूखा से वे निराश हो गये थे। लेकिन प्रथम 100 किसानों की सफलता एवं इस योजना के अंतर्गत उत्पादित की गई उत्पाद के उच्च बाजार भाव देखने के बाद बड़ी संख्या में किसान दूसरे वर्ष (90 प्रतिशत सब्सिडी) और तीसरे वर्ष (80 प्रतिशत सब्सिडी) के लिए अपना पंजीकरण कराना शुरू कर दिया।
प्रौद्योगिकी
1.उपग्रह आधारित मिट्टी का चित्रण :
उपग्रह आधारित मिट्टी चित्रण के आधार पर खादों का प्रयोग एवं मिट्टी प्रबंधन किया जाता है। इस प्रौद्योगिकी ने खास क्षेत्र की भूमि के लिए वास्तविक पोषक स्थिति की पहचान करने में मदद की है।
2.चिजेल जोत :
वर्षों से ट्रैक्टर की सहायता से खेतों की जुताई एवं बहते पानी से फ्लड सिंचाई के कारण जमीन का ऊपरी हिस्सा 45 सेंमी की गहराई तक कड़ा हो गया था। यह पानी के उचित बहाव या आवागमन एवं वायु संचरण प्रक्रिया को प्रभावित कर दिया था। चिजेल जुताई ने इस समस्या से निजात पाने में किसानों की मदद की। साल में दो बार इस तरह की जुताई जरूरी है।
3. ड्रीप सिंचाई :
- यह प्रति एकड़ जल एवं खाद जरूरत को घटाता है।
- ऊपरी मिट्टी के सूखने पर बीज के कम खराब होने की संभावना।
- उचित आर्द्रता एवं भूमि में वायु संचरण फूल एवं फल गिरने की संभावना को कम करता है।
- सापेक्षिक आर्द्रता को 60 प्रतिशत से कम स्तर तक बनाये रखने के कारण बीमारी एवं रोगाणु का कम असर
- 40 प्रतिशत तक बढ़ा वायु संचरण जड़ की वृद्धि में मदद करता है।
4.सामुदायिक नर्सरी :
सामुदायिक नर्सरी सूक्ष्म कृषकों द्वारा 100 प्रतिशत स्वस्थ सब्जी बीज उत्पादन के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मार्ग- निर्देशन में विकसित किया गया है।
5. रोगाणु व बीमारी नियंत्रण :
मौसम एवं जरूरत आधारित रोगाणुनाशक एवं फफूँदनाशी का उपयोग एक-तिहाई तक खर्च घटाने में मदद करता है।
सूक्ष्म कृषक संघ
प्रत्येक 25 से 30 लाभुक किसानों ने संयुक्त रूप से पंजीकृत कृषक संघ की स्थापना की है। ये संस्थाएं विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में शामिल हैं, जैसे-
- कृषक व्यापारियों के साथ विभिन्न सामग्रियों की खरीद में मोल-भाव
- सब्जी के ठेका खेती की संभावना पर बातचीत करना
- विभिन्न बाजारों का दौरा करना एवं बाजार सूचना प्राप्त करना
- सदस्य सहयोगियों के बीच उनकी खेती के अनुभवों को आपस में बाँटना
- तमिलनाडु के अन्य जिले से आने वाले किसानों के साथ सूक्ष्म कृषि के अनुभवों को आपस में बाँटना।
बिक्री समझौता
- वैज्ञानिक, किसानों को उच्च कीमत पर अपने उत्पाद बेचने में मदद करते हैं। बाजार की माँग पर आधारित फसल का चयन कर सही मौसम में उसकी खेती।
- तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के सहयोग से सूक्ष्म कृषि क्षेत्र से बिक्री की जाने वाली उत्पाद के लिए एक विशेष चिह्न या लोगो विकसित किया गया है।
गुणवत्ता के कारण सूक्ष्म खेती क्षेत्र के सभी उत्पाद बाजारों में आकर्षक प्रीमियम प्रदान करता है।
सूक्ष्म कृषि पर अधिक जानकारी हेतु यहाँ क्लिक करें
या नीचे दिये पता पर लिखें-
Dr. E. Vadivel,
Nodal Officer and Director of Extension,
Tamil Nadu Precision Farming Project
Tamil Nadu Agricultural University,
Coimbatore – 641003, Tamil Nadu.
फोन नंबर : 0422-6611233
ई मेल : dee@tnau.ac.in
Source