परिचय
मत्स्य पालन के पुरे चक्र में काई चरण होते हैं – जैसे प्रेरित प्रजनन द्वारा मत्स्य बीज (स्पान) उत्पादन या प्राकृतिक श्रोत्रों से मत्स्य बीज एकत्रीकरण, स्पान को पोना (फ्राई) अवस्था तक एवं फ्राई अवस्था तक एक फ्राई अवस्था से अंगुलिकाओं तक एवं अंगुलिकाओं से खाने योग्य आकर तक पालन आदि | स्पान का पालन भारते में काफी पुरानी प्रथा है | मत्स्य पालकों द्वारा अपने अनुभव के आधार पर विकसित तकनीक में वैज्ञानिक तकनीक को भी शामिल कर लिया गया है | अब पुरे देश में तीन चरण वाली वैगेनिक प्रणाली प्रचलित है | जैसे –
प्रथम चरण – नर्सरी तालाबों में तीन दिन आयु वाले जीरों का पालन,
दूसरा चरण – फ्राई को अंगुलिकाओं तक पालन
तृतीय चरण – अंगुलिकाओं को खाने योग्य आकार की मछली तक पालन | सभी कार्प प्रजातियों के स्पान की पालन विधि एक जैसी ही है | मत्स्य अंगुलिकाओं के उत्पादन के लिए मौसमी तालाब सबसे उपयुक्त होते हैं |
फ्राई का अंगुलिकाओं तक पालन
नर्सरी तालाबों में पाली गयी फ्राई मछलियाँ बड़े तालाबों में संग्रहित करने के लिए काफी छोटी होती है क्योंकी बड़े तालाबों में बड़ी परभक्षी मछलियाँ भी होती है | अत: फ्राई रियरिंग तालाबों में अंगुलिकाओं के आकार तक (4 इंच से 6 इंच ) पाला जाना आवश्यक है | रियरिंग तालाब नर्सरी तालाब से कुछ बड़ी 0.25 एकड़ से 3.00 एकड़ क्षेत्रफल वाली हो सकती है | रियरिंग तालाबों का प्रबन्धन लगभग नर्सरी तालाबों का प्रबन्धन जैसा ही होता है | प्राथमिक तौर पर जलीय वनस्पतियों का नियंत्रण, अवांछित मछलियों का उन्मूलन और कार्बनिक खाद देना आदि कार्य है | चूँकि रियरिंग तालाबों में बड़े फ्राई को संग्रहित किया जाता है अत: जलीय कीड़े मकोड़ों का उन्मूलन बहुत आवश्यक नहीं है | नर्सरी तलाबों के विपरीत रियरिंग तालाबों में मत्स्य बीजों का पालन विभिन्न प्रजातियों को एक साथ वैज्ञानिक अनुपात में किया जाता है | यदि मत्स्य बीज नदिय स्रोतों से प्राप्त किया गया हो तो इन्हें प्रजाति अनुपात छांट लिया जाना चाहिये |
कतला, रोहू और मृगल के पोनों को कॉमन कार्प या सिल्वर कार्प के फ्राई के साथ संग्रहित किया जा सकता है, परन्तु अधिक प्रजातियों का मिश्रण वांछनीय नहीं हैं | चार परजतियों के मिश्रण को अधिक सफलता मिलती है |
रियरिंग तालाबों की सफाई एवं मरम्मती
बरसात का मौसम प्रारंभ होने के पहले तालाब के बाँध को मजबूत कर लेना तथा पानी के आने और निकलने का रास्ता ठीक कर लेना आवश्यक है | यदि तालाब सदाबहार है तो तालाब की मरम्मत के साथ-साथ उसके जलीय खर –पतवार की सफाई भी अति आवश्यक है और इसे गर्मी के मौसम में जब पानी का स्तर सबसे कम होता है तो सफाई कर लेना सहज होता है |
जलीय खरपतवार
तालाब/टैंक में खरपतवारों का अत्यधिक जमाव मत्स्य पालन के लिए काफी नुकसानदायक है क्योंकि ये खरपतवार पोषक तत्वों का उपभोग करते हैं जिससे जल निकाय की उत्पादन क्षमता घट जाती है | इसके अलावा ये खरपतवार जंगली मछलियों को आश्रय देती हैं एवं मत्स्य बीज पालन में अवरोध तथा सूर्य की किरणों को निचली सतह तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न करती है जिससे पारिस्थितिकीय संतुलन प्रभावित होती है |
मात्स्यिकी जल क्षेत्रों में सामान्यत: तैरने वाले, जलमग्न एवं जड़ वाले खरपतवार पाये जाते हैं | जलकुम्भी (एकोरनिया प्रजाति), वाटर लेटटूस (पिस्टिया प्रजाति), वोल्फिया, लेम्ना, एजोला, एपोमिया जुसिया, सेल्वेनिया आदि सामान्य खरपतवार हैं | जलमग्न खरपतवारों में हाईड्रिला, नाजा, सेरोफाइलम, पोटोमोजिटोन , वैलिंसनेरिया, कारा और यूट्रीकुलेरिया आदि सामान्य है | जल सतह के ऊपर रहने वाले खरपतवारों में वाटर लिली (निम्फिया), कमल और निम्फ़ोइडस प्रमुख है | अत: इन खरपतवार पौधों का निष्कासन आवश्यक है |
शैवाल प्रस्फुटन (ब्लूम)
मात्स्यिकी जलक्षेत्रों में शैवाल प्रस्फुटन काफी खतरनाक होता है जो कभी-कभी तालाब की पूरी मछलियों को मार देता है | माइक्रोसिस्टस और एनाबीना शैवाल प्रस्फुटन कार्बनिक खाद से प्रदूषित तालाबों में वर्ष भर रहता है, जिससे कभी-कभी अचानक ऑक्सीजन की कमी से मछलियों की मृत्यु हो जाती है |
शैवाल प्रस्फुटन का नियंत्रण
शैवाल प्रस्फुटन को जैविक रूप से या फिर मानवजनित पद्धतियों से पूरी तरह नियंत्रण करना संभव नहीं है | मैक्रोसिस्टस और एनाबीना प्रस्फुटन तथा नील हरित शैवाल का नियंत्रण सीमाजईन रसायन के उपयोग से किया जा सकता है | 1 एकड़ जलक्षेत्र के लिये 3-4 किग्रा सीमाजाईन की आवश्यकता होती है |
खरपतवार का नियंत्रण
खरपतवार का नियंत्रण के लिए बाजार में कई खरपतवार नाशक रसायन मिलते हैं परन्तु खरपतवारों को मजदूरों की सहायता से साफ़ कराया जाना सबसे उत्तम तरीका है |
जैविक नियंत्रण
यह देखा गया है की कुछ जलमग्न खरपतवार जैसे हाईड्रिला, नाजा आदि के नियंत्रण के लिए ग्रास कार्प मछलियों का पालन अत्यन्त लाभदायक है | ग्रास कार्प मछलियाँ इन जलीय खरपतवारों को आहार के रूप में लेती है जिससे इनका तेजी से विकास होता है और इसका अनुकूल प्रभाव मत्स्य उप्तादन पर भी पड़ता है | ग्रास कार्प मछलियां अपनी शारीरिक भार का 50 प्रतिशत वजन का खरपतवार प्रतिदिन खा लेती है | इन कार्प मछलियों की आहार लेने की क्षमता उपलब्ध खरपतवारों के प्रकार एवं जलीय तापमान पर निर्भर करता है | 400-600 ग्राम की 300-400 ग्रास कार्प मछलियाँ 1 हेक्टेयर जलीय क्षेत्र से खरपतवार एक माह में पूरी तरह साफ करने में सक्षम है |
परभक्षी एवं जंगली (अपतृण) मछलियों का नियंत्रण
तालाबों में सामान्यत: परभक्षी एवं अपतृण मछलियाँ मौजूद रहती है | बोआरी, टेंगरा, सिंघी, मांगुर, चीतल , मोय , मोला, पोठिया, गरई, सौरा, बुल्ला आदि जैसी परभक्षी मछलियाँ मत्स्य पलान के लिए हानिकारक है क्योंकि ये मछलियाँ न केवल आहार व् स्थान के लिए स्पर्धा करती हैं, बल्कि संग्रहित छोटी कार्प मछलियों को खा जाती है | जंगली मछलियाँ तथा पोठही, चेल्हवा, धनेरी आदि संग्रहित मछलियों से आहार एवं स्थान के लिए स्पर्धा करती है | अधिकतर परभक्षी मछलियों की संख्या बड़ी तेजी से बढती है, जो संग्रहित मछलियों से स्पर्धा करती हैं | इन प्रजातियों का मत्स्य पालन तालाबों में मौजूद रहना संग्रहित मछलियों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है | अत: यह आवश्यक है कि संग्रहण से पूर्व इन परभक्षी एवं जंगली मछलियों का नियंत्रण या उन्मूलन नर्सरी तालाब प्रबन्धन में अपनायी गई विधि के अनुरूप ही किया जाता है |
तालाबों में खाद (उर्वरक) का प्रयोग
तालाबों में उर्वरक देने का मुख्य उदेश्य है इनमें आवश्यक पोषक तत्वों में वृद्धि करना तथा मछलियों के प्राकृतिक आहार (प्लावक) को बढ़ाना | भारतीय उपमहाद्वीप में मतस्य तालाबों में खाद की आवश्यकता की जानकारी के लिए निचली सतह की मिटटी एवं पानी की जांच अति आवश्यक है | तालाब में पर्याप्त मात्रा में मत्स्य आहार के रूप में सूक्षम जीवों अर्थात प्लवक को बनाए रखने के लिए खाद का देना आवश्यक है |
अकार्बनिक (जैविक) खाद के रूप में गोबर का प्रयोग किया जाता है | यह भी जगह आसानी से उपलब्ध एवं उपयुक्त खाद है | एस खाद को सम्पूर्ण उर्वरक माना जाता है क्योंकि इसमें तीनों प्रकार के मुख्य पोषक तत्व – नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाशियम के अतिरिक्त अन्य आवश्यक पोषक तत्व भी पाए जाते है | इसके अलावा इसमें मौजूद कार्बनिक कार्बन, सूक्ष्म जीव आदि भोजन चक्र में सहायक होते हैं | तालाब में गोबर 5000 किग्रा / एकड़ / वर्ष की दर से दिया जाना चाहिये | यदि गोबर 500-1000 किग्रा/ एकड़/ माह डाला जाए तो बेहतर परिणाम होते हैं | इससे प्लवकों को सतत अधिक उत्पादन होता है | इस खाद का उपयोग करते समय यह ध्यान देना आवश्यक कि तालाब में अधिक खाद के प्रयोग के कारण कहीं आक्सीजन की कमी न हो जाए |
यदि तालाब में पूर्व में महुआ खल्ली का प्रयोग किया गया है तो उसे तालाब में कच्चा गोबर की आधी मात्रा ही प्रयोग की जाती है |
अकार्बनिक (रासायनिक) खाद के रूप में यूरिया 10-12 किग्रा सिंगल सूपर फास्फेट 10 – 12 किग्रा एवं म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 2 किग्रा / एकड़ / माह की दर से किया जा सकता है | जिससे वनस्पति प्लवक का उत्पादन अच्छा होता है |
तालाबों में चूना का प्रयोग
तालाब में चूने का महत्त्व सर्वविदित है, आवश्यक पोषक तत्वों को देने के अलावा चूने में और भी कई महत्वपूर्ण गुण हैं | जैसे – यह मिटटी एवं जल की अम्लीयता को दूर कर एक स्वस्थ पी.एच. को स्थापित करता है तथा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में तेजी आती है | तालाबों में ग्राउंड लाईम स्टोन, स्लेक लाईम (भाखरा चूना) तथा क्विक लाईम (कली चूना ) का उपयोग किया जाता है | तालाब में मच्लिओं को संग्रहित करने के उपरान्त अंतिम दोनों प्रकार के चुने का उपयोग आवश्यकतानुसार छोटे किश्तों में किया जाना चाहिये | चूने की मात्रा का निर्धारण तालाब की मिटटी एवं जल के पी.एच. 7 के आस-पास हो तो सामान्यत: 200 किग्रा / एकड़/मी. की दर से चूना दिया जाना चाहिये |
फ्राई का संचयन दर
तालाब में कार्बनिक उर्वरक देने के 7-10 दिन के पश्चात मत्स्य फ्राई को संचित किया जा सकता है | मिश्रित कार्प मत्स्य पालन सर्वप्रथम रियरिंग तालाबों में ही प्रारंभ होता है | रियरिंग तालाब में 80 हजार से 1 लाख / एकड़ / मी. की दर से फ्राई का संचयन चाहिये | संग्रहित फ्राई 3 महीने की अवधि में वांछित अंगुलिकाओं के आकार तक बढ़ सकती है | अच्छी तरह प्रभंधन किये गये तालाब में इनकी उत्तरजीवी दर 80 प्रतिशत तक हो सकती है |
इयर लिंग
एक साल के लिए मत्स्य अंगुलिकाओं को रियरिंग तालाब में संवर्धन किया जाता है, तो वैसे मत्स्य अंगुलिकाओं को इयरलिंग कहा जाता है | इयरलिंग को सदाबहार / मौसमी तालाबों में पालन करने पर तेजी से बढ़ती है एवं मछली का उत्पादन प्रति एकड़ बढ़ जाता है | इयरलिंग का संचयन 2000 से 2500 एकड़ करना चाहिए एवं पूरक आहार का प्रयोग करना चाहिए |
संग्रहण के पश्चात् प्रबन्धन कार्य
संग्रहित मत्स्य बीजों की कुल शारीरिक भार का 2-3 प्रतिशत पूरक आहार दिया जाता है | पूरक आहार के रूप में सरसों, मूंगफली या सोयाबीन की खल्ली और चावल का कोढ़ा बराबर मात्रा में मिला कर प्रयोग किया जाता है इसमें अलग से मिनरल मिक्चर (पूरक आहार का 1%) का प्रयोग लाभदायक होता है | अब तो बड़े कारखानों से उत्पादित संतुलित पैलेटेड फिश फीड भी बाजार में उपलब्ध है |
उपज प्राप्ति
तीन महीने की पालन अवधि के उपरांत संग्रहित फ्राई मछलियाँ अंगुलिकाओं की अवस्था तक पहुंच जाती है | जिन्हें तालाबों से निकाल कर बड़े सदाबहार तालाबों एवं जलाशयों में संचित किया जा सकता है |
रियरिंग तालाब का प्रबंधन कैसे करें? जानें अधिक जानकारी, इस उपयोगी विडियो को देखकर
स्त्रोत: मत्स्य निदेशालय, राँची, झारखण्ड सरकार
Source