परिचय
आज यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि स्वयं पर निर्भर जैविक खेती से साल भर की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है और अनके प्राकृतिक प्रकोपों के बावजूद भूखमरी की स्थिति से बहुत हद तक बचा सकता है| इन तथ्यों पर अमल करके बहुत से किसानों ने आज अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं जो पहले धान व गेहूं उगाकर जीवनयापन के अन्य सभी आवश्यकताओं हेतु बाजार पर निर्भर रहते थे, आज दलहन, तिलहन, मसालें, चारा, जलौनी, साग-सब्जी, फल आदि अनेक आवश्यक वस्तुएँ उगाकर सम्पूर्ण भोजन के साथ- साथ अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं|
जैविक खेती: खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चित
अन्नदाता अन्न न पाता, माटी में जीवन है बिताता|
यह तस्वीर बदलनी होगी, अब तकदीर संवरनी होगी|
सच्चाई यही है कि दुनिया का पेट भरने वाला किसान आज खुद दो वक्त की रोटी का मोहताज बना हुआ है| आकाल, बाढ़, सूखा जैसी अनेक प्राकृतिक आपदाओं ने उसकी कमर तोड़ दी है| देश के 30 करोड़ किसान कर्जों के जल में फंसकर बदहाली का शिकार हैं| आंकड़ों बताते हैं कि 1987 से लेकर अब तक 16000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं और कोई आठ करोड़ किसान खेती छोड़कर शहरों में मजदूरी कर रहे हैं| किसानों की इस हालत के कारणों में एक प्रमुख कारण है खेती में बढ़ती लागत और घटता लाभ| किसान अपने खेत में जो श्रम अथवा पूँजी लगाता है, उतना उत्पादन उसे नहीं मिलता और जो मिलता है उसका उचित मूल्य नहीं मिलता| इस प्रकार साल भर खाद्यान्न की पूरी तो दूर, लागत के लिए लिया गया कर्ज भरने में ही सारा धन चला जा रहा है|
राजस्थान में इस वर्ष लगातार तीसरी बार आकाल पड़ा है और वहां के ग्रामीणों से जब इसके कारण व उपायों पर चर्चा की गई तो उनका कहना था कि हम छोटी जोत के किसान हैं, नकदी फसल लगाकर कमाई करने को सोचा था लेकिन वह टमाटर 50 पैसे किलो बिका जिससे माल ढुलाई का खर्च भी नहीं निकल सका| रासायनिक खाद, xसिंचाई, बीज, उपकरण, ट्रैक्टर, थ्रेसर आदि का खर्च बढ़ता चला जा रहा है और साथ ही हमारी बाजार व कर्जदारी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है इन सारी परिस्थितियों में हम पूरी तरह असहाय हो चुके हैं|
जहाँ कुछ जगहों पर ऐसी स्थितियां है वहीँ कुछ गांवों के जागरूक किसान विकल्प की तलाश में लगे हैं और यह महसूस कर रहे हैं की खेती में आत्मनिर्भरता ही एक ऐसा रास्ता है जो उन्हें ऐसी समस्याओं से बाहर लाकर भरपेट भोजन मुहैया करा सकता है|
जैविक व आत्मनिर्भर खेती के कुछ कदम
बीज उत्पादन व भंडारण
किसानों को बाजार पर निर्भरता समाप्त करके आधारीय बीजों का उत्पादन करना होगा जिससे आगामी तीन साल तक उन्हें खेती में बीज न खरीदने पड़े| साथ ही इनके भंडारण की उचित व्यवस्था भी करनी होगी| गेहूं व धान के साथ – साथ साग-सब्जी व अन्य बीजों को भी संरक्षित करना होगा जिससे बीजों पर लगने वाली लागत कम अथवा समाप्त हो जायें और उत्पादन में गुणवत्ता बनी रहे| खेती व अच्छे उत्पादन का सारा दारोमदार बीज पर ही होता है| अत: इनके चयन में बहुत सतर्कता की आवश्यकता है|
खाद निर्माण
विभिन्न प्रकार की जैविक खादों, कंपोस्ट नाडेप, केंचुए की खाद, सी. पी. पी. आदि में से अपने उपलब्ध संसाधनों व आवश्यकताओं के अनुसार खाद स्वयं तैयार करना होगा जिससे भरपूर पौष्टिकता बिना किसी विशेष लागत के जमीन को दिया जा सके| यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्रकार के खादों का एक साथ निर्माण किया जाए, यह खेत के आकार और उसकी पोषण संबंधी जरूरतों पर निर्भर होगा कि कौन- सी खाद उपयुक्त होगी| साथ ही लगाई जाने वाली फसलों व उपलब्ध जमीन के ऊपर भी निर्भर होगा|
जैविक कीटनाशक
घर अथवा खेत में उपलब्ध संसाधनों (गोमूत्र, लहसुन, सूर्ती, नीम आदि) द्वारा कीटनाशकों का निर्माण व उनका नियमित प्रयोग करना होगा| किन्हीं विकट परिस्थितियों में कुछ आवश्यक कीटनाशक बाजार से लाकर भी डाले जा सकते हैं परन्तु जहाँ तक हो सके घर पर निर्मित कीटनाशक प्रयोग किए जाएँ तो फसल स्वस्थ रहेगी| यदि भूमि शोधन व बीज अथवा पौध-शोधन की क्रिया समुचित रूप से की जाए तो कीट व रोग के लगने की संभावनाएँ स्वयं ही कम हो जाएगी|
इनके साथ- साथ भूमि की उर्वरा शक्ति व खाद्य सुरक्षा हेतु फसल पद्धति व मिश्रित फसलों के उत्पादन के महत्त्व को भी समझना होगा| फसलों के साथ बागवानी व छोटे जानवरों को समन्वित करना होगा जिससे यह सभी तंत्र एक दुसरे पर निर्भर होकर उत्पादन में वृद्धि बी करते रहें और नुकसान की संभावनाएँ भी कम होती जाए| आज की खेती में खतरे बहुत ज्यादा हैं जिसका कारण एकल नकदी फसल व उसमें लगने वाली बड़ी लागत हैं ऐसे खतरों से बचने का आसान रास्ता है समन्वित खेती| प्राचीन समय में खेती के अधिकाधिक फायदेमंद होने की एक सबसे बड़ी वजह जानवर थे जो खेत का हिस्सा होते थे, खेती पूरी तरह उन पर निर्भर करती थी| आज उसके महत्त्व को समझना होगा| अपनी आर्थिक स्थिति व आश्यकता के अनुसार किसान छोटे या बड़े जानवर रखकर उस कमी को पूरा कर सकते हैं|
इन तकनीकों को अपनाने के बाद नि: संदेह किसान की निर्भरता बाहरी संसाधनों पर कम होगी और उसे साल भर भरपेट भोजन, वह भी पूरी गुणवत्ता के अनुरूप प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी|
पूरे परिवार को भरपेट भोजन,
मिलना आसान होगा खेती का नाम होगा|
स्रोत : हलचल, जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|