परिचय
प्याज़ एक वनस्पति है जिसका कन्द सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है। यहाँ साल मे दो बार प्याज़ की फ़सल होती है – एक नवम्बर में और दूसरी मई के महीने के क़रीब होती है। लहसुन, प्याज कुल (एलिएसी) की एक प्रजाति है। इसके करीबी रिश्तेदारो में प्याज, इस शलोट और हरा प्याज़ शामिल हैं।
कन्द में आयरन, कैल्शियम, तथा विटामिन ‘सी’पाया जाता है। कन्द तीखा, तेज, बलवर्धक , स्वादवर्धक, क्षुधावर्धक तथा महिलाओं में रक्त वर्धक होता है। पित्तरोग, शरीर दर्द, फोड़ा, खूनी बवासीर, तिल्ली रोग, रतौंधी, नेत्रदाह, मलेरिया, कान दर्द तथा पुल्टिस के रूप में लाभदायक है। अनिद्रा निवारक (बच्चों में), फिट (चक्कर) में सुंघाने के लिए उपयोगी। कीड़ों के काटने से उत्पन्न जलन को शान्त करता है।
किस्में : पूसा रेड, ग्रेनो, पूसा माधवी, पूसा व्हाईट राउंड, पूसा रतनार, एन-2-4-1, एन-53, एग्रीफाईड लाईट रेड, तथा ब्राउन स्पैनिश।
बीज की मात्रा : 8-10 कि.ग्रा./हेक्टेयर
पौध तैयार करना : प्याज की पौध भूमि की सतह से उभरी हुई क्यारियों में तैयार करनी चाहिए।
बीज बुनाई का समय : अध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर उपयुक्त है।
रोपाई : दिसम्बर के अंत से 15 जनवरी तक करनी चाहिए। रोपाई के समय पंक्ति की दूरी 15 से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 10 सें.मी. रखनी चाहिए।
उर्वरण व खाद : गोबर की खाद 20-25 टन/हेक्टेयर, नत्रजन 60-70 कि.ग्रा./है., फॉस्फोरस 70 कि.ग्रा./है. व पोटाश 60 कि.ग्रा./हेक्टेयर
निराई, गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण : आवश्यकतानुसार समय पर निराई करें। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतू स्टाम्प का 3.5 लिटर/हेक्टेयर की दर से रोपाई के बाद सिंचाई से पहले छिड़काव करें।
खुदाई : जब प्याज 50 से 75 प्रतिशत पौधे सूखकर नीचे गिर जाएं तब फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। खुदाई के बाद प्याज के डंठल को गांठ से 2.5 सें.मी. छोड़ कर काटें एवं अच्छी तरह सुखा दें।
उपज : यह किस्म पर निर्भर करती है लेकिन 250-300 टन/हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है।
भण्डारण : हवादार भंडार में प्याज को पतली तह में रैक के ऊपर फैलाकर रखें जिससे प्याज की गांठों से हवा का आवागमन सुचारु रुप से हो सके तथा वे गलन व सड़न से बची रहें।
बीजोत्पादन : प्याज के उत्पादन के लिए दो विधियाँ हैं। एक विधि में बीज उत्पादन के लिए प्याज की गांठों का प्रयोग करते हैं। दूसरी विधि में बीज द्वारा जून-जुलाई में पौध तैयार करके अगस्त-सितम्बर में खेत में पौध की रोपाई करके दिसम्बर-जनवरी में प्याज में फूल आने लगता है। इस विधि में अप्रैल-मई तक बीज तैयार हो जाता है। इस विधि में 11-12 माह का समय लगता है। दूसरी विधि में गांठों को खेत से चुनाव करके प्याज को भंडार में रखते हैं तथा अगले वर्ष इन गांठो को अक्टूबर-नवम्बर में खेत में बोया जाता है तो अप्रैल-मई में प्याज का बीज तैयार होता है। इस विधि में बीज तैयार करने में लगभग 18 माह का समय लगता है। बीज उत्पादन के लिए आधार बीज हेतू 1000 मी. की पृथक्करण दूरी तथा प्रमाणित बीज हेतू 500 मी. की देरी रखते हैं।
बुआई की दूरी : चुनी हुई गांठों को 45 सें.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में 30 सें.मी. की दूरी पर भूमि में रोपाई 7.5 सें.मी. की गहराई पर करते हैं। बीज के लिए लगभग 15 क्विंटल गांठों की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।
अवांछित पौधों को निकालना : गांठों के रंग, रुप व आकार के आधार पर अवांक्षित पौधे को निकाल देना चाहिए। यह कार्य पहली बार फूल आने से पहले तथा दूसरी बार गांठों का चुनाव करते समय करना चाहिए।
बीज उपज : औसतन उपज 10-12 क्विंटल बीज/हेक्टेयर तक होती है।
लहसुन
किस्में : यमुना सफेद (जी-1), यमुना सफेद-2 (जी-50), जी-282, एग्रीफाउंड पार्वती, एग्रीफाउंड व्हाईट (जी-41), एच जी-1, तथा एच जी-6, एल सी जी-1, गोदावरी व स्वेता।
बीज की मात्रा : गांठें 500 कि.ग्रा./हेक्टर के लिए पर्याप्त है।
बुआई : कतार से कतार की दूरी 15 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखते हैं। लहसुन की पुत्ती को 5-7.5 सें.मी. की गहराई पर नुकीला भाग ऊपर रखकर भूमि में बुवाई करते हैं।
उर्वरण व खाद : तीस टन गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में तैयारी के समय डालें। जत्रजन 80 कि.ग्रा., फास्फोरस 60 कि.ग्रा. व 60 कि.ग्रा. पोटाश/हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
निराई, गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर स्टाम्प ( पैडामेथलीन) का 3-4 लि. मात्रा का छिड़काव बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई से पहले करना चाहिए। दो से तीन निराई खरपतवार नियंत्रण के लिए पर्याप्त हैं।
बीज के लिए गांठों का उत्पादन : लहसुन का उत्पादन इसकी गांठों में लगी हुई छोटी-छोटी क्लोव (गांठ) से किया जाता है। इसलिए बीज उत्पादन के लिए पृथक्करण की दूरी (आइसोलेसन डिस्टेंस) की कम आवश्यकता होती है जिससे एक प्रजाति की गांठें दूसरी प्रजाति की गांठों से न मिल जाएँ। गांठों की शुद्धता बनाए रखने के लिए गांठों के आकार व प्रकार के अनुसार स्वस्थ गांठों का बीज उत्पादन हेतु चुनाव करके भंडार करते हैं। अगले वर्ष बुवाई व बीज उत्पादन के लिए इन्हीं चुनी गई गांठों का प्रयोग करते हैं। बीज के लिए गांठों को हवादार भंडार में भंडारित करें तथा अक्टूबर माह में चुनी गई गांठों से क्लोव निकाल कर 12 सें.मी. की दूरी पर कतार से कतार तथा 10 सें.मी. क्लोव से क्लोव की रोपाई करें। इसके बाद सिंचाई कर दें तथा सामान्य फसल के अनुसार बीज फसल की देखभाल करें।
कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी
- खेत की मिट॒टी पूर्ण रुप से सूखने पर खुदाई करें।
- फसल को डंठल सहित 2-3 दिनों तक सुखयें।
- सुखाने के बाद डंठल को पुत्ती/गांठ से 2.5 सें.मी. ऊपर से काटें।
- गांठों पुत्तियों को जूट एवं प्लास्टिक के झीने थैलों में पैक करें।
- खुले व हवादार पात्रों में भण्डारित करें या फिर शीतगृह में 8-10 डिग्री से. तापमान व 65 प्रतिशत आर्द्रता पर भण्डारित करें।
- सुखाकर विभिन्न उत्पाद तैयार करें।
बीज उपज
लगभग 120-150 क्विंटल/हेक्टेयर
प्रमुख रोग एवं नियंत्रण
रोग का कारण |
लक्षण |
नियंत्रण |
नील लोहित धब्बा (परपल ब्लाच |
इस रोग में पत्तियों पर छोटे सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं जो मध्य से बैंगनी रंग के हो जाते हैं। |
डायथेन एम-45 या ब्लाइटास्क 50 (2.5 प्रति लिटर पानी) आवश्यकतानुसार 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें| |
कीट प्रकोप एवं प्रबंधन
1. थ्रिप्स
र्थिप्स, प्याज व लहसुन का मुख्य कीट है। शिशु व वयस्क दोनों ही पत्तों को खुरचकर रस पीते हैं। इसके अलावा फूलो को भी नुकसान की वजह से बीज कम बनते हैं।
थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या कार्बोरिल 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/ लिटर या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर का छिड़काव करें।
2. प्याज मक्खी (ओनियन मैगट)
इस कीट के प्रकोप की वजह से पौधे ऊपर से नीचे की तरफ भूरे पड़कर सूख जाते हैं। कंद या इसके पास के पत्तों का हिस्सा नम हो जाता है। इसके अलावा शिशु कंद को भी पूरी तरह नष्ट कर देते हैं।
प्रबंधन
- इस कीट के नियंत्रण के लिए दानेदार कीटनाशी कार्बोक्यूरान 3 जी. 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर या फिप्रोनिल 0.3 जी. 18 कि.ग्रा./हेक्टेयर प्रयोग करें।
कैसे करें प्याज की खेती? देखिए इस विडियो में
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार; ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
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