भूमिका
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश के सिंचित क्षेत्र में अल्पावधि (60-65 दिन) वाली दलहनी फसल उरद की खेती करके किसानों की वार्षिक आय में आशातीत वृद्धि संभव है। साथ ही मृदा संरक्षण/उर्वरता को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। उर्द की ग्रीष्मकालीन फसल में पीत चितकबरा रोग भी खरीफ फसल की अपेक्षा कम लगता है। ग्रीष्म कालीन उरद उत्पादन की उन्नत एवं नूतन तकनीक का विवरण निम्नलिखित हैः-
उन्नतशील प्रजातियॉं
पीला चितकबरा रोग रोधी प्रजातियों का ही चयन करें जैसे बसंत बहार (पी0डी0यू0-1) व आई0पी0यू0 94-1, के0यू0-300ए के0यू0-92-1 (आजाद उर्द-1)ए एल0बी0जी0 20
अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन अन्तर्गत प्रमुख प्रजातियों की पैदावार निम्न तालिका में दर्शायी गयी है-
राज्य |
प्रजाति |
उपज कि0ग्रा0/है0 |
% वृद्धि |
||
उन्नत |
लोकल |
उन्नत |
स्थानीय |
||
पूर्वी उत्तर प्रदेश |
पी0डी0यू0-1 (बसन्त बहार) |
लोकल |
638 |
210 |
203.8 |
आन्ध्र प्रदेश |
एल0वी0जी0-20 |
लोकल |
1010 |
725 |
39.3 |
बीजशोधन
मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिश्रण (2:1) प्रति कि0ग्रा0 बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्रा0 प्रति कि0ग्राम बीज की दर से शोधित कर लें। बीजशोधन कल्चर से उपचारित करने के 2-3 दिन पूर्व करना चाहिए।
बीजोपचार
राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट (250 ग्रा0) प्रति 10 कि0ग्रा0 बीज के लिए पर्याप्त होता है। 50 ग्राम गुड़ या शक्कर को 1/2 लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें। ठण्डा हो जाने पर ही इस घोल में एक पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला लें। बाल्टी में 10 कि0ग्रा0 बीज डाल कर अच्छी तरह से मिला लें ताकि कल्चर के लेप सभी बीजों पर चिपक जाएं उपचारित बीजों को 8-10 घंटे तक छाया में फेला देते हैं। उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को अथवा दूसरे दिन बुआई की जा सके। कवकनाशी या कीटनाशी आदि का प्रयोग करने पर राइजोबियम कल्चर की दुगनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए तथा बीजोपचार कवकनाशी-कीटनाशी एवं राइजोबियम कल्चर के क्रम में ही करना चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई पंक्तियों में ही सीड डिरल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बॉंधकर करते हैं। ग्रीष्म ऋतु में अधिक तापक्रम के कारण फसल वृद्धि कम होती है। अतः बुवाई कम दूरी पर (पंक्ति से पंक्ति 20-25 से0मी0 तथा पौधा से पौधा 6-8 से0मी0) करना चाहिए तथा अधिक बीजदर का प्रयोग करना चाहिए।
अन्तर्वर्ती खेती
बसंतकालीन गन्ने के साथ अन्तर्वर्ती खेती करना अत्यन्त लाभदायक रहता है। 75 से.मी. की दूरी पर बोई गयी गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में उरद की दो पंक्ति आसानी से ली जा सकती है।ऐसा करने पर उरद के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सूरजमुखी व उरद की अन्तर्वर्ती खेती के लिए सूरजमुखी की दो पंक्तियों के बीच उरद की दो से तीन पंक्तियॉं लेना उत्तम रहता है।
उर्वरक
एकल फसल के लिए 10 कि0ग्रा0 नत्रजन, 30 कि0ग्रा0 फासफोरस एवं 20 कि0ग्रा0 सल्फर, प्रति हे0 की दर से अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए। अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन से सल्फर के प्रयोग से 11% अधिक उपज प्राप्त हुई है। नाइट्रोजन एवं फासफोरस की पूर्ति के लिए 75 कि0ग्रा डी0ए0पी0 तथा सल्फर की पूर्ति के लिए 100 कि0ग्रा0 जिप्सम प्रति है0 प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय ही बीज से 2-3 से0मी0 की गहराई व 3-4 से0मी0 साइड पर ही प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई
2-4 सिंचाई आवश्यकतानुसार। प्रथम सिंचाई पलेवा के रूप में तथा अन्य सिंचाईयाँ 15 से 20 दिन के अन्तराल में फसल की आवश्यकतानुसार करना चाहिए। पुष्पावस्था एवं दाने बनते समय खेत में उचित नमी होना अति आवश्यक है। स्प्रिंकलर सेट का उपयोग कर जल संवर्धन एवं फसल के उत्पादन में अप्रत्यासित बढ़त प्राप्त की जा सकती है।
खरपतवार नियंत्रण
बुआई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकासान पहुॅचाते हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो 20-25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए। जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहॉं पर बुआई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलीन की 0.75 किग्रा0 सक्रिय मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।
पौध रक्षा
ग्रीष्म कालीन उरद में थ्रिप्स व श्वेत मक्खी का प्रकोप ज्यादा होता है। इन्हें मारने के लिए मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत व मेटासिस्टाक्स 0.05 प्रतिशत (2 एम0एल0 1 लीटर) पानी में घोल का छिड़काव करें।
कटाई एवं मड़ाई
जब 70-80 प्रतिशत फलियॉं पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए। तत्पश्चात वण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं।
औसत उपज व लाभ
उक्त तरीके से ग्रीष्म कालीन उरद की खेती करने से 8-10 कुन्तल प्रति हे0 उपज प्राप्त होती है
व लगभग आठ हजार से दस हजार रूपये प्रति हे0 की आय प्राप्त होती है।
भण्डारण
धूप में अच्छी तरह सुखाने के बाद जब दानों में नमी की मात्रा 8-9: या कम रह जाये, तभी फसल को भण्डारित करना चाहिए।
आइसोपाम सुविधा
तिलहन, दलहन, आयलपाम तथा मक्का पर एकीकृत योजना के अन्तर्गत देश में उरद उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु उपलब्ध सुविधायें :-
- बीज मिनीकिट कार्यक्रम के अन्तर्गत खण्ड (ब्लाक) के प्रसार कार्यकर्ताओं द्वारा चयनित कृषकों को आधा एकड़ खेत हेतु नवीन एवं उन्नत प्रजाति का सीड मिनीकिट (4 कि0ग्रा0/मिनीकिट) राइजोवियम कल्चर एवं उत्पादन की उन्नत विधि पर पम्पलेट सहित निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
- ‘बीज ग्राम योजना’ अन्तर्गत चयनित कृषकों को विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण एवं रू0 375/- प्रति क्विंटल की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
- यदि एकीकृत पेस्ट नियंत्रण प्रभावशाली न हो, तभी पादप सुरक्षा रसायनों एवं खरपतवारनाशी के प्रयोग पर प्रयुक्त रसायन की लागत का 50%जो कि रू0 500/- से अधिक नहीं हो की सहायता प्रदान की जाती है।
- पादप सुरक्षा यंत्रों की खरीद में मदद हेतु लागत का 50% की सहायता उपलब्ध है। (अधिकतम व्यक्ति संचालित यन्त्र रू0 800/-, शक्ति चालित यन्त्र रू0 2000/-)।
- कम समय में अधिक क्षेत्रफल में उन्नत विधि से समय से बोआई तथा अन्य सस्य क्रियाओं हेतु आधुनिक फार्म यन्त्रों को उचित मूल्य पर कृषकों को उपलब्ध कराने हेतु राज्य सरकार को व्यक्ति/पशुचालित यन्त्रों पर कुल कीमत का 50% (अधिकतम रू.2000/-) एवं शक्ति चालितयन्त्रों पर कुल कीमत का 30%(अधिकतम रू.10000/-) की सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
- जीवन रक्षक सिंचाई उपलब्ध कराने तथा पानी के अधिकतम आर्थिक उपयोग हेतु स्प्रिंकलर सेट्स के प्रयोग को प्रोत्साहन के लिए छोटे सीमान्त एवं महिला कृषकों को मूल्य का 50 प्रतिशत या रू0 15000/- (जो भी कम हो) तथा अन्य कृषकों को मूल्य का 33 प्रतिशत या रू0 10000/- (जो भी कम हो) की सहायता उपलब्ध है। किन्तु राज्य सरकार अधिकतम कृषकों तक परियोजना का लाभ पहूँचाने हेतु दी जाने वाली सहायता में कमी कर सकती है।
- राइजोबियम कल्चर तथा/या पी0एस0बी0 के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु वास्तविक लागत की 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 50/प्रति हे0 की आर्थिक मदद उपलब्ध है)।
- कृषकों को सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति सुनिश्चित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 200/-की आर्थिक मदद उपलब्ध है)
- गन्धक के श्रोत के रूप में जिप्सम/पाइराइट के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु लागत का 50 प्रतिशत तथा यातायात शुल्क जो कि महाराष्ट्र राज्य को रू0 750/- तथा अन्य राज्यों को रू0 500/- से अधिक न हो की सहायता उपलब्ध है।
- सहकारी एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नाबार्ड के निर्देशानुसार दलहन उत्पादक कृषकों को विशेष ऋण सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।
- कृषकों तक उन्नत तकनीकी के शीघ्र एवं प्रभावी स्थानान्तरण हेतु अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं अन्य शोध संस्थाओं को प्रदर्शन की वास्तविक लागत या रू0 2000/एकड़/प्रदर्शन (जो भी कम हो) तथा खण्ड प्रदर्शन आयोजित करने के लिए राज्य सरकार को उत्पादन के आगातों का 50 प्रतिशत तथा वास्तविक मूल्य के आधार पर रू0 2000/हे0 की सहायता प्रदान की जाती है।
- कृषकों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराने हेतु प्रति 50 कृषकों के समूह पर कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं कृषि विश्वविद्यालयों को रू0 15000/- की सहायता प्रदान की जाती है।
स्रोत: राज्य व भारत सरकार का कृषि विभाग|
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