रोग व बीमारियाँ
वैसे जेट्रोफा में किट व बीमारियों का प्रकोप बहुत कम होता है फिर भी कुछ रोग, बीमारियाँ एवं कीटों का प्रकोप कहीं-कहीं देखने को मिलता हैं जिसके लक्षण एवं रोकथाम के उपाय नीचे दिए गए हैं –
क्रम. सं. |
बिमारी का नाम |
लक्षण |
उपाय |
1. |
फाईटोप्थोरा पिथियम | जड़गलन |
केप्टान 50 प्रतिशत के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें | |
2. |
फ्यूजेरियम |
आर्द्र गलन |
डाइथेन एम. – 45 के 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करने इस बिमारी को रोका जा सकता है | |
3. |
फ्यूडीरसम मोनीलीफोर्मी |
जड़ गलन |
0.2 थीरम या केप्टान का छिड़काव करें | |
4. |
हेल्मिन्थोस्पोरियम रेटामेटा |
पत्ती धब्बा |
ब्लाइटाक्स 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें | |
कीट नियन्त्रण
1. |
लीफ माइनर |
पत्तियों पर गोलियां बनाना |
मेटासिस्टाक्स 25 सी. का 1.5 मि.ली./ लीटर पानी छिडकाव करें | |
2. |
कैल्डिया ड्रगी (नीला बग) |
फलों को चूसना |
डायमेथोएट (रोगोर) फोस्फोमिडान 2 मि.ली./ 3 लिका छिड़काव करें | |
3. |
थोईडेलियस सिनेडोलिंनसिस |
पत्ते, बाल वृक्ष |
मोनोक्रोटोफ़ॉस 1-1.5 मि.ली./ली का छिड़काव करें | |
4. |
नेजारा विरीडूला (हरीबग ) |
फलों को चूसना |
डायमेथोएट (रोगार) फास्फोमिडान 2 मि.ली./ 3 लिका छिड़काव करें | |
छंटाई
जेट्रोफा पुष्पगुच्छे पौधे का मुख्य आर्थिक हिस्सा है उसका अधिकतम मात्रा में बीज प्राप्त करना | शाखाओं पर उपस्थित पुष्पगुच्छों में फल आते हैं तथा उससे बीज प्राप्त होता है | अत: हमें अधिक से अधिक शाखाएं विकसित करनी हैं| शाखायें विकसित करने के लिए हमें समय-2 पर छंटाई करनी पड़ती है पहली बार हमें छंटाई 1 फिट की ऊँचाई पर करनी हैं | इससे काफी संख्या में शाखाएं होती हैं| दूसरे वर्ष में दो तिहाई ऊँचाई तक की शाखाएं काटनी हैं और ऊपर की एक तिहाई शाखाएं छोड़ देनी हैं | पौधों के बढ़ने के अनुसार समय-2 पर छंटाई करनी है | छंटाई का समय मार्च का महीना श्रेष्ठ रहता है| इससे पौधों के छत्र धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है |
जेट्रोफा का पुष्पन, फलन एवं कटान
सामान्य तौर पर जेट्रोफा का पौधा दुसरे वर्ष फूलना व फलना शुरू कर देता है | अप्रैल-मई तथा सितम्बर-अक्टूबर के महीनों में फल आता है | इसके फल नवम्बर-दिसम्बर एवं जनवरी में पक जाते हैं| दिसम्बर से जनवरी में इसके पके फल तोड़ लिए जाते हैं | फल व बीज की उपज मादा पुष्पों की संख्या, छंटाई, जल एवं फसल के प्रबन्धन पर निर्भर करनी है |
उपज
जेट्रोफा के बीज की औसत उपज पौधे की उम्र, पौधों की प्रति इकाई क्षेत्रफल में संख्या तथा सिंचाई व्यवस्था पर निर्भर करती है | जेट्रोफा के छ: साल पुराने पौधों को सिंचित क्षेत्र में उगाने से औसतन 40-60 कि.ग्रा./पौधा भिन्न-2 रहती है | हालांकि उच्च घनत्व ऊर्जा पौधरोपण स्थिति में 35-50 कु./है. बीज उपज के परिणाम भी मिले हैं |
रासायनिक संघठन
राघव (2004) द्वारा प्रस्तुत जेट्रोफा के तेल का रसायनिक विश्लेष्ण इस प्रकार है – जेट्रोफा के बीजों में 35 -40 प्रतिशत (7 प्रतिशत नमी होने पर) तथा गिरी में 50-60 प्रतिशत तेल पाया जाता है, जो ताजा होने पर रंगहीन तथा गंधहीन एवं पुराना होने पर यह हल्के पीले या पीले-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है, साथ ही इसमें हल्की अवांछनीय गंध भी पैदा हो जाती है | इसमें मुख्यत: जेट्रोफा अम्ल पाया जाता है | बीज की खली पौधों के पोषक तत्वों का उत्तम स्रोत है | इसमे 3.2 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.4 प्रतिशत फॉस्फोरस तथा 1.2 प्रतिशत पोटाश जाये जाते हैं | इसके अलावा तेल में मायरिस्टिक अम्ल 0.1-1.37 प्रतिशत, पामिटिक अम्ल 12 -17 प्रतिशत, स्टीयरिक अम्ल 5.0-9.7 प्रतिशत, एराकिडिक अम्ल 0-0.35 प्रतिशत, ओलीक अम्ल 37 -63 प्रतिशत तथा लिनोलीक अम्ल 19-40 प्रतिशत पाए जाते हैं |
जेट्रोफा का तेल अरण्डी के तेल से पतला होता है | यह एल्कोहल में कम घुलनशील तथा लाइट पेट्रोलियम में पूरी तरह घुलनशील हैं | इसके अंदर एक कैंसररोधी यौगिक जेट्रोफा तथा करकेसिन नामक दो जहरीले पदार्थ तथा एक टोक्साल्बूमिन पाया जाता है | जहरीले पदार्थ एल्कोहल घुलनशील भाग के अंदर उपस्थित रहते है | पौधे के समस्त भागों में लसलसा पदार्थ (लेटैक्स) निकलता है, जिसके अंदर लगभग 15 प्रतिशत रेजिन्युक्त पदार्थ पाया जाता है | पौधे के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले अन्य अवयव इस प्रकार है|
बीज
7-किटो बीटा स्टीरॉल, एराबिनोस, एराकिडिक एसिड (0.18-0.28), राख (4.5), बीटा सिटोस्टीरॉल, कार्बोहाइडेट्स (33.5), कुर्सिन, डलसिटोल, वसा (30-48), रेशा (15.5), फ्रक्टोज, गेलेक्टोज, ग्लुकोज, जेट्रोफा फेक्टर सी-1 (65 पी.पी.एम), सी-2 (65 पी.पी.एम), लिग्नोसेरिक अम्ल, लिनोलीक अम्ल (8.80-16.22), लिनोलीनिक अम्ल (0.33-0.53), मायरिस्टिक अम्ल (0.54-0.86), ओलीक अम्ल (10.94-19.97), पामिटिक अम्ल (3.99-6.53), पामिटोलिक अम्ल (0.42-0.67), फोरबोल, 12-डी ओक्सी-16 हाइडॉक्सी, प्रोटीन (16.2-18.6), रैफिनोज, रैम्नोज, स्टेकियोज, स्टार्च, सुक्रोज, पानी (6.60), जाइलोज छिलका तथा गिरी अनुपात 43:57.
पत्ती
ऐल्फा एमाइरिन, एपिजीनिंन, बीटा सिटोस्टीरॉल, बीटा-डी-ग्लुकोसाइड, कैम्पेस्टिरोल, डॉकोस्टिरोल (0.014), इकशुस्टिरोल (27 पी.पी.एम), आइसोविटेक्सिन, जेट्रोफा करकस फलेवोनॉइड –I (0.065%), जेट्रोफा करकस फलेवोनॉइड – II (0.04%), जेट्रोफा करकस ट्राइटरपीन (0.05%) – एन-I – ट्राइएकोंटेनोल, स्टिगास्ट-5-एन -3बीटा, 7 – ऐल्फा-डायोल, स्टिगास्ट -5-एन-3 बीटा, 7-बीटा-डायोल (8 पीपीएस), स्टिगास्टीरॉल (0.025%) एवं ट्राईएकोंटेन-1-ओल (36 पीपीएम) |
पौधा
करकूलेथायरेन –ए, करकूलेथायरेन-बी |
जड़
करकूसोन-ए (0.013%) एक करकूसोन-बी (0.013%) ए करकूसोन-सी (0.001%) ए करकुसोन –डी (0.004%) ए जेट्रोफिन, जेट्रोफोल, जेट्रोफोलोन, जेट्रोफोलोन-ए तथा बी, टोमेंटिन |
तना
फ्रीडीलिनोल (8 पीपीएम), फ्रीडीलिनोल (0.001%), एस्कोपेरोन (10 पीपीएम) | इसके तेल में निम्नलिखित विशेषताएं पाई गई है: विशिष्ट घनत्व – 0.9186-0.923, ऐसिड वैल्यू -1-38.2, सैपोनिफिकेशन वैल्यू-188-196, आयोडीन वैल्यू-93-107, फ्लैश प्वाइंट 240/110 सी, कार्बन रेजीडयू-0.64, सिटेन मान 51.0, डीस्टिलेशन प्वांट-295 सी, किनेमेटिक विस्कॉसिटी -50.73 सी. एस., सल्फर -0.13% एकेलोरिफिक मान-9470 कि. कैलोरी/कि.ग्रा. एवं पोर प्वांइट -80 सेंटीग्रेट |
स्रोत: राष्ट्रीय तिलहन एवं वनस्पति तेल विकास बोर्ड,कृषि मंत्रालय, भारत सरकार