भूमिका
दलहनी फसलों में अरहर का विशेष स्थान है। अरहर की दाल में लगभग 20-21 प्रतिशत तक प्रोटीन पाई जाती है, साथ ही इस प्रोटीन का पाच्यमूल्य भी अन्य प्रोटीन से अच्छा होता है। अरहर की दीर्घकालीन प्रजातियॉं मृदा में 200 कि0ग्रा0 तक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थरीकरण कर मृदा उर्वरकता एवं उत्पादकता में वृद्धि करती है। शुष्क क्षेत्रों में अरहर किसानों द्वारा प्राथमिकता से बोई जाती है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती लाभकारी सि) हो सकती है क्योंकि गहरी जड़ के एवं अधिक तापक्रम की स्थिति में पत्ती मोड़ने के गुण के कारण यह शुष्क क्षेत्रों में सर्वउपयुक्त फसल है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश देश के प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं।
उन्नतशील प्रजातियॉं
शीघ्र पकने वाली प्रजातियॉं | उपास 120, पूसा 855, पूसा 33, पूसा अगेती, आजाद (के 91-25) जाग्रति (आईसीपीएल 151) , दुर्गा (आईसीपीएल-84031)ए प्रगति। |
मध्यम समय में पकने वाली प्रजातियॉं |
टाइप 21, जवाहर अरहर 4, आईसीपीएल 87119 (आशा) ए वीएसीएमआर 583 |
देर से पकने वाली प्रजातियॉं |
बहार, बीएमएएल 13, पूसा-9 |
हाईब्रिड प्रजातियॉं |
पीपीएच-4, आईसीपीएच 8 |
रबी बुवाई के लिए उपयुक्त प्रजातियॉं |
बहार, शरद (डीए 11) पूसा 9, डब्लूबी 20 |
अग्रिम पंक्ति प्रदेशन अन्तर्गत शीघ्र, मध्यम व देर से पकने वाली उन्नत प्रजातियों ने विभिन्न स्थानीय/पुरानी प्रजातियों की अपेक्षा क्रमशः 94, 36 एवं 17 प्रतिशत अधिक उपज प्रदान की हैं। प्रमुख अरहर उत्पादक राज्यों हेतु संस्तुत उन्नत प्रजातियों की उपज निम्न तालिका में दर्शायी गयी है।
राज्य |
प्रजाति |
उपज कि0ग्रा0/है0 |
%वृद्धि |
||
शीघ्र |
|||||
हरियाणा |
एच0 82-1 (पारस) |
– |
1127 |
– |
– |
पंजाब |
पी0पी0एच0-4 (हाइब्रिड) ए0एल0-201 |
– – |
1400 1295 |
– – |
– – |
उत्तर पद्रेश |
उपास-120 |
स्थानीय |
1295 |
817 |
46.8 |
उड़ीसा |
उपास-120 |
गोकनपुर |
337 |
173 |
94.8 |
तमिलनाडु |
सी0ओ0पी0एच0-2 |
सी0ओ0-5 |
850 |
610 |
39.3 |
मध्यम |
|
|
|
|
|
महाराष्ट्र |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) वी0एस0एम0आर0-583 |
स्थानीय स्थानीय |
1410 2185 |
1060 1278 |
33.0 70.9 |
गुजरात |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) जे0के0एम0-7 |
टी0-21 वी0डी0एन0-2 |
1762 1400 |
1207 887 |
45.9 57.8 |
छत्तीसगढ़ |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) |
एन0-1481 |
514 |
407 |
26.3 |
मध्य प्रदेश |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) ए0के0पी0जी0-4101 जी0टी0-100 |
स्थानीय वी0डी0एन0-2 स्थानीय वी0डी0एन0-2 |
1410 1350 1600 1256 |
1060 1000 950 836 |
33.0 35.0 68.4 56.2 |
कर्नाटक |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) |
स्थानीय |
1465 |
1240 |
18.4 |
आन्ध्र प्रदेश |
आई0सी0पी0एल0-87119 (आशा) |
– |
1905 |
1452 |
31.1 |
देर |
|
|
|
|
|
बिहार |
पूसा-9 |
शरद |
2142 |
2034 |
5.3 |
पूर्वीउत्तर प्रदेश |
बहार |
– |
1995 |
– |
– |
बुआई का समय
शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के प्रथम पखवाड़े तथा विधि में तथा मध्यम देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के द्वितीय पखवाड़े में करना चाहिए। बुआई सीडडिरल या हल के पीछे चोंगा बॉंधकर पंक्तियों में हों।
भूमि का चुनाव
अच्छे जलनिकास व उच्च उर्वरता वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। खेत में पानी का ठहराव फसल को भारी हानि पहुँचाता है।
खेत की तैयारी
मिट्टी पलट हल से एक गहरी जुताई के उपरान्त 2-3 जुताई हल अथवा हैरो से करना उचित रहता है। प्रत्येक जुताई के बाद सिंचाई एवं जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था हेतु पाटा देना आवश्यक है।
उर्वरक
मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 2 से0मी0 गहराई व 5 से0मी0 साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। प्रति हैक्टर 15-20 कि0ग्रा0 नाइट्रोजन , 50 कि0ग्रा0 फास्फोरस, 20 कि0ग्रा0 पोटाश व 20 कि0ग्रा0 गंधक की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहॉं पर 15-20 कि0ग्रा0 जिन्क सल्फेट प्रयोग करें। नाइट्रोजन एवं फासफोरस की समस्त भूमियों में आवश्यकता होती है। किन्तु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मृदा पीरक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें। नत्रजन एवं फासफोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 कि0ग्रा0डाइ अमोनियम फासफेट एवं गंधक की पूर्ति हेतु 100 कि0ग्रा0 जिप्सम प्रति हे0 का प्रयोग करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।
बीजशोधन
मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2 ग्राम थीरम व 1 ग्राम कार्वेन्डाजिम प्रति कि0ग्राम अथवा 3 ग्राम थीरम प्रति कि0ग्राम की दर से शोधित करके बुआई करें। बीजशोधन बीजोपचार से 2-3 दिन पूर्व करें।
बीजोपचार
10 कि0ग्रा0 अरहर के बीज के लिए राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट पर्याप्त होता है। 50 ग्रा0 गुड़ या चीनी को 1/2 ली0 पानी में घोलकर उबाल लें। घोल के ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर मिला दें। इस कल्चर में 10 कि0ग्रा0 बीज डाल कर अच्छी प्रकार मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जायें। उपचारित बीजों को छाया में सुखा कर, दूसरे दिन बोया जा सकता है। उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें, व बीज उपचार दोपहर के बाद करें।
दूरी
पंक्ति से पंक्ति
45-60 से0मी0 तथा (शीघ्र पकने वाली)
60-75 से0मी0 (मध्यम व देर से पकने वाली)
पौध से पौध
10-15 से0मी0 (शीघ्र पकने वाली)
15-20 से0मी0 (मध्यम व देर से पकने वाली)
बीजदर
12-15 कि0ग्रा0 प्रति हे0।
सिंचाई एवं जल निकास
चूँकि फसल असिंचित दशा में बोई जाती है अतः लम्बे समय तक वर्षा न होने पर एवं पूर्व पुष्पीकरण अवस्था तथा दाना बनते समय फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। उच्च अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जलनिकास का होना प्रथम शर्त है अतः निचले एवं अधो जल निकास की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ो पर बुआई करना उत्तम रहता है।
खरपतवार नियंत्रण
प्रथम 60 दिनों में खेत में खरपतवार की मौजूदगी अत्यन्त नुकसानदायक होती है। हैन्ड हों या खुरपी से दो निकाईयॉं करने पर प्रथम बोआई के 25-30 दिन बाद एवं द्वितीय 45-60 दिन बाद खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के साथ मृदा वायु-संचार में वृद्धि होने से फसल एवं सह जीवाणुओं की वृद्धि हेतु अनुकूल वातावरण तैयार होता है। किन्तु यदि पिछले वर्षों में खेत में खरपतवारों की गम्भीर समस्या रही हो तो अन्तिम जुताई के समय खेत में वैसालिन की एक कि0ग्रा0 सक्रिय मात्रा को 800-1000 ली0 पानी में घोलकर या लासो की 3 कि0ग्रा0 मात्रा को बीज अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों पर प्रभावी नियन्त्रण पाया जा सकता है।
फसल सुरक्षा के तरीके
कीट नियन्त्रण
- फलीमक्खी/फलीछेदक क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल0/क्यूनालफास 25 ई0सी0 15 एम0एल0/मोनोक्रोटोफास 30 डबलू0एस0सी0 11 एम0एल0 प्रति 10 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए तथा एक हैक्टेयर में 1000 लीटर घोल का प्रयोग करना चाहिए।
- पत्ती लपेटक – इन्डोसल्फान 35 ई0सी0 20 एम0एल0 अथवा मोनोक्रोटोफास 36 डबलू0एस0सी0
- एम0एल0 प्रति 10 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करें।
रोग नियन्त्रण
- फाइटा्रेप्थोरा ब्लाइट – बीज को रोडोमिल 2 ग्रा0/किग्रा0 बीज से उपचारित करने बोयें। रोगरोधी प्रजातियॉं जैसे आशा, मारूथि बी0एस0एम0आर0-175 तथा वी0एस0एम0आर0-736 का चयन करना चाहिए।
- बिल्ट – प्रतिरोधी प्रजातियों का उपयोग करें, बीज शोधित कर के बोयें। मृदा का सौर्यीकरण करें।
- बन्ध्यमोजेक – प्रतिरोधी प्रजातियॉं जैसे शरद, बहार आशा, एम0ए0-3, मालवीय अरहर-1 आदि बोयें। रोगी पौधों को जला दें। वाहक कीट के नियन्त्रण हेतु मेटासिस्टाक का छिड़काव करें।
प्रमुख कीट
- फली मक्खी
यह फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। इल्ली अपना जीवनकाल फली के भीतर दानों को खाकर पूरा करती है एवं खाद में प्रौढ़ बनकर बाहर आती है। दानों का सामान्य विकास रूक जाता है।मादा छोटे व काले रंग की होती है जो वृद्धिरत फलियों में अंडे रोपण करती है। अंडो से मेगट बाहर आते है ओर दाने को खाने लगते है। फली के अंदर ही मेगट शंखी में बदल जाती है जिसके कारण दानों पर तिरछी सुरंग बन जाती है ओर दानों का आकार छोटा रह जाता है। तीन सप्ताह में एक जीवन चक्र पूर्ण करती है।
- फली छेदक इल्ली
छोटी इल्लियॉ फलियों के हरे उत्तकों को खाती है व बडे होने पर कलियों , फूलों फलियों व बीजों पर नुकसान करती है। इल्लियॉ फलियों पर टेढे – मेढे छेद बनाती है।
इस कीट की मादा छोटे सफेद रंग के अंडे देती है। इल्लियॉ पीली, हरी, काली रंग की होती है तथा इनके शरीर पर हल्की गहरी पटिटयॉ होती है। अनुकूल परिस्थितियों में चार सप्ताह में एक जीवन चक्र पूर्ण करती है।
- फल्ली का मत्कुण
मादा प्राय: फलियों पर गुच्छों में अंडे देती है। अंडे कत्थई रंग के होते है। इस कीट के शिशु वयस्क दोनों ही फली एवं दानों का रस चूसते है, जिससे फली आडी-तिरछी हो जाती है एवं दाने सिकुड जाते है। एक जीवन चक्र लगभग चार सप्ताह में पूरा करते है।
- प्लू माथ
इस कीट की इल्ली फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। प्रकोपित दानों के पास ही इसकी विश्टा देखी जा सकती है। कुछ समय बाद प्रकोपित दानो के आसपास लाल रंग की फफूंद आ जाती है।
- ब्रिस्टल ब्रिटल
ये भृंग कलियों, फूलों तथा कोमल फलियों को खाती है जिससे उत्पादन में काफी कमी आती है। यक कीट अरहर मूंग, उड़द , तथा अन्य दलहनी फसलों पर भी नुकसान पहुंचाता है। भृंग को पकडकर नष्ट कर देने से प्रभावी नियंत्रण हो जाता है।
कीटो का प्रभावी नियंत्रण
1.कृषि के समय
- गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें
- शुद्ध अरहर न बोयें
- फसल चक्र अपनाये
- क्षेत्र में एक ही समय बोनी करना चाहिए
- रासायनिक खाद की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें।
- अरहर में अन्तरवर्तीय फसले जैसे ज्वार, मक्का, या मूंगफली को लेना चाहिए।
2 . यांत्रिक विधि द्धारा
- फसल प्रपंच लगाना चाहिए
- फेरामेन प्रपंच लगाये
- पौधों को हिलाकर इल्लियों को गिरायें एवं उनकों इकटठा करके नष्ट करें
- खेत में चिडियाओं के बैठने की व्यवस्था करे।
3 . जैविक नियंत्रण द्वारा
- एन.पी.वी 5000 एल.ई / हे. + यू.वी. रिटारडेन्ट 0.1 प्रतिशत + गुड 0.5 प्रतिशत मिश्रण को शाम के समय खेत में छिडकाव करें।
- बेसिलस थूरेंजियन्सीस 1 किलोग्राम प्रति हेक्टर + टिनोपाल 0.1 प्रतिशत + गुड 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करे।
4 जैव – पौध पदार्थ के छिड़काव द्वारा : –
- निंबोली शत 5 प्रतिशत का छिड़काव करे।
- नीम तेल या करंज तेल 10 -15 मी.ली. + 1 मी.ली. चिपचिपा पदार्थ (जैसे सेन्डोविट टिपाल) प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- निम्बेसिडिन 0.2 प्रतिशत या अचूक 0.5 प्रतिशत का छिड़काव करें।
- रासायनिक नियंत्रण द्वारा
- आवश्यकता पड़ने पर ही कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
- फली मक्खी नियंत्रण हेतु संर्वागीण कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करे जैसे डायमिथोएट 30 ई.सी 0.03 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस 36 एस.एल. 0.04 प्रतिशत आदि।
फली छेदक इल्लियों के नियंत्रण के लिए
फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत चूर्ण या क्लीनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण या इन्डोसल्फान 4 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम / हे. के दर से भुरकाव करें या इन्डोसलफॉन 35 ईसी. 0.7 प्रतिशत या क्वीनालफास 25 ई.सी 0.05 प्रतिशत या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी . 0.6 प्रतिशत या फेन्वेलरेट 20 ई.सी 0.02 प्रतिशत या एसीफेट 75 डब्लू पी 0.0075 प्रतिशत या ऐलेनिकाब 30 ई.सी 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हे. या प्राफेनोफॉस 50 ई.सी एक लीटर प्रति हे. का छिड़काव करें। दोनों कीटों के नियंत्रण हेतु प्रथम छिडकाव सर्वागीण कीटनाशक दवाई का करें तथा 10 दिन के अंतराल से स्पर्श या सर्वागीण कीटनाशक दवाई का छिड़काव करें। कीटनाशक का तीन छिड़काव या भुरकाव पहला फूल बनने पर दूसरा 50 प्रतिशत फुल बनने पर और तीसरा फली बनने बनने की अवस्था पर करना चाहिए।
कटाई एवं मड़ाई
80 प्रतिशत फलियों के पक जाने पर फसल की कटाई गड़ासे या हॅंसिया से 10 से0मी0 की उॅंचाई पर करना चाहिए। तत्पश्चात फसल को सूखने के लिए बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। फिर चार से पॉच दिन सुखाने के पश्चात पुलमैन थ्रेशर द्वारा या लकड़ी के लठ्ठे पर पिटाई करके दानो को भूसे से अलग कर लेते हैं।
उपज
उन्नत विधि से खेती करने पर 15-20 कुन्तल प्रति हे0 दाना एवं 50-60 कुन्तल लकड़ी प्राप्त होती है।
भण्डारण
भण्डारण हेतु नमी का प्रतिशत 10-11 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन प्रयोग करे।
आइसोपाम सुविधा
तिलहन, दलहन, आयलपाम तथा मक्का पर एकीकृत योजना के अन्तर्गत देश में अरहर उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु उपलब्ध सुविधायें-
- बीज मिनीकिट कार्यक्रम के अन्तर्गत खण्ड (ब्लाक) के प्रसार कार्यकर्ताओं द्वारा चयनित कृषकों को आधा एकड़ खेत हेतु नवीन एवं उन्नत प्रजाति का सीड मिनीकिट (4 कि0ग्रा0/मिनीकिट) राइजोवियम कल्चर एवं उत्पादन की उन्नत विधि पर पम्पलेट सहित निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
- ‘बीज ग्राम योजना’ अन्तर्गत चयनित कृषकों को विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण एवं रू0 375/- प्रति क्विंटल की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
- फली बेधक के नियन्त्रण के लिए एन.पी.वी. के प्रयोग को प्रोत्साहन देने हेतु रू0 250/है0/किसान की सहायता उपलब्ध है।
- यदि एकीकृत पेस्ट नियंत्रण प्रभावशाली न हो, तभी पादप सुरक्षा रसायनों एवं खरपतवारनाशी के प्रयोग पर प्रयुक्त रसायन की लागत का 50% जो कि रू0 500/- से अधिक नहीं हो की सहायता प्रदान की जाती है।
- पादप सुरक्षा यंत्रों की खरीद में मदद हेतु लागत का 50% की सहायता उपलब्ध है। (अधिकतम व्यक्ति संचालित यन्त्र रू0 800/-, शक्ति चालित यन्त्र रू0 2000/-)।
- कम समय में अधिक क्षेत्रफल में उन्नत विधि से समय से बोआई तथा अन्य सस्य क्रियाओं हेतु आधुनिक फार्म यन्त्रों को उचित मूल्य पर कृषकों को उपलब्ध कराने हेतु राज्य सरकार को व्यक्ति/पशुचालित यन्त्रों पर कुल कीमत का 50% (अधिकतम रू.2000/-) एवं शक्ति चालित यन्त्रों पर कुल कीमत का 30% (अधिकतम रू.10000/-) की सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
- जीवन रक्षक सिंचाई उपलब्ध कराने तथा पानी के अधिकतम आर्थिक उपयोग हेतु स्प्रिंकलर सेट्स के प्रयोग को प्रोत्साहन के लिए छोटे सीमान्त एवं महिला कृषकों को मूल्य का 50 प्रतिशत या रू0 15000/- (जो भी कम हो) तथा अन्य कृषकों को मूल्य का 33 प्रतिशत या रू0 10000/- (जो भी कम हो) की सहायता उपलब्ध है। किन्तु राज्य सरकार अधिकतम कृषकों तक परियोजना का लाभ पहुँचाने हेतु दी जाने वाली सहायता में कमी कर सकती है।
- राइजोबियम कल्चर तथा/या पी0एस0बी0 के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु वास्तविक लागत की 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 50/प्रति हे0 की आर्थिक मदद उपलब्ध है)।
- कृषकों को सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति सुनिश्चित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 200/-की आर्थिक मदद उपलब्ध है)
- गन्धक के श्रोत के रूप में जिप्सम/पाइराइट के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु लागत का 50 प्रतिशत तथा यातायात शुल्क जोकि महाराष्ट्र राज्य को रू0 750/- तथा अन्य राज्यों को रू0 500/- से अधिक न हो की सहायता उपलब्ध है।
- सहकारी एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नाबार्ड के निर्देशानुसार दलहन उत्पादक कृषकों को विशेष ऋण सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।
- कृषकों तक उन्नत तकनीकी के शीघ्र एवं प्रभावी स्थानान्तरण हेतु अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं अन्य शोध संस्थाओं को प्रदर्शन की वास्तविक लागत या रू0 2000/एकड़/प्रदर्शन (जो भी कम हो)ए तथा खण्ड प्रदर्शन आयोजित करने के लिए राज्य सरकार को उत्पादन के आगातों का 50 प्रतिशत तथा वास्तविक मूल्य के आधार पर रू0 2000/हे0 की सहायता प्रदान की जाती है।
- कृषकों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराने हेतु प्रति 50 कृषकों के समूह पर कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं कृषि विश्वविद्यालयों को रू0 15000/- की सहायता प्रदान की जाती है।
स्रोत: राज्य व भारत सरकार का कृषि विभाग, कृषि हेल्पलाइन |
Source