परिचय
पिछले कुछ वर्षो में पेशे के रूप में खेती के प्रति किसानों का आकर्षण कम हो रहा है, इसके लिए अनेक कारण जिम्मेदार हैं| उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है- कृषि उत्पादों की कीमत में अनिश्चितता और कृषि आदानों की तेजी से बढ़ती लागत, भूजल स्तर में गिरावट के कारण सुनिश्चित सिंचाई उपलब्ध नहीं हो रही है, फलस्वरूप कृषि और किसान की मुश्किलें और बढ़ गई है, यही कारण है कि किसी समय कृषि की दृष्टि से विकसित माने जाने वाले आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के काफी बड़े भाग में किसान संकट में हैं| अनके समितियाँ ने इस समस्या के मूल कारणों को जानने की कोशिश की है और किसानों के लिए आय सृजन के वैकल्पिक अवसर उपलब्ध कराने के सुझाव दिए है, ऐसे संकटग्रस्त किसानों के लिए पशुपालन एक अच्छा विकल्प है| पशुओं के के वैज्ञानिक प्रबंधन में गुणवत्तापरक चारे की उपलब्धता प्रमुख बाधा है, क्योंकि भारत का भौगोलिक क्षेत्र विश्व का 2.4% है जबकि विश्व के 11% पशु भारत में है, यहाँ विश्व की 55% भैंसे, 20% बकरियां और 16% मवेशी पाए जाते हैं, इससे हमारी प्राकृतिक वनस्पतियों पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ रहा है|
अब तक अजोला का इस्तेमाल मुख्यत: धान में हरी खाद के रूप से किया जाता था, इसमें छोटे किसानों हेतु पशुपालन के लिए चारे हेतु बढ़ती मांग को पूरा करने की जबरजस्त क्षमता है|
अजोला के बारे में
अजोला समशीतोष्ण जलवायु में पाया जाने वाला जलीय फर्न है, जो धान की खेती के लिए उपयोगी होता है| फर्न पानी पर एक हरे रंग की परत जैसा दिखता है| इस फर्न के निचले भाग में सिम्बोइंट के रूप में ब्लू ग्रीन एल्गी सयानोबैक्टीरिया पाया जाता है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को परिवर्तित करता है| इसकी नाइट्रोजन को परिवर्तित करने की दर लगभग 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर होती है|
हरी खाद के रूप में, अजोला को पानी से भरे हुए खेत में दो से तीन सप्ताह के लिए अकेले उगाया जाता है, बाद में, पानी बाहर निकाल दिया जाता है और अजोला फर्न को धान की रोपाई से पहले खेत में मिलाया जाता है या धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद, पानी से भरे खेत में 4-5 क्विंटल ताजा अजोला छिड़क दिया जाता है| सूखे अजोला को पोल्ट्री फीड के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और हर अजोला मछली के लिए भी एक अच्छा आहार है| इसे जैविक खाद, मच्छर से बचाने वाली क्रीम, सलाद तैयार करने और सबसे बढ़कर बायो-स्क्वेंजर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह सभी भारी धातुओं को हटा देता है|
अजोला के लाभ
- अजोला जंगल में आसानी से उगता है| लेकिन नियंत्रित वातावरण में भी उगाया जा सकता है|
- इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है और खरीफ और रबी दोनों मौसमों में हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है|
- यह वायूमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन को क्रमश: कार्बोहाइड्रेट और अमोनिया में बदल सकता है और अपघटन के बाद, फसल को नाइट्रोजन उपलब्ध करवाता है तथा मिट्टी में जैविक कार्बन सामग्री उपलब्ध करवाता हैं|
- ऑक्सीजेनिक प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न ऑक्सीजन फसलों की जड़ प्रणाली और मिट्टी में उपलब्ध अन्य सूक्ष्मजीवों को श्वसन में मदद करता है|
- यह जेड एन, एफ इ और एम् एन को परिवर्तित करता है और धान को उपलब्ध करवाता है|
- धान के खेत में अजोला छोटी – मोटी खरपतवार जैसे चारा और निटेला को भी दबा देता है|
- अजोला प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर और विटामिन छोड़ता है, जो धान के पौधों के विकास में सहायक होते हैं|
- अजोला एक सीमा तक रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरकों (20 किग्रा/हेक्टेयर) के विकल्प का काम कर सकता है और यह फसल की उपज और गुणवत्ता बढ़ाता है|
- यह रासायनिक उर्वरकों के उपयोग की क्षमता को बढ़ाता है|
- यह धान के सिंचित खेत से वाष्पीकरण की दर को कम करता है|
अजोला की पोषण क्षमता
अजोला में प्रोटीन (25%-35%), कैल्शियम (67 मिलीग्राम/100 ग्राम) और लौह (7.3 मिली ग्राम/ 100 ग्राम) बहुतायत में पाया जाता है| अजोला और अन्य चारे के पोषक तत्वों का तुलनात्मक विश्लेषण निम्नलिखित तालिका में दिया जाता है|
अजोला और अन्य चारे के बायोमास और प्रोटीन की तुलना
क्र.सं | मद |
बायोमास का वार्षिक उत्पादन (मिट्रिक टन/हेक्टेयर |
शुष्क पदार्थ (मिट्रिक टन/हेक्टेयर) |
प्रोटीन (%) |
1 |
हाइब्रिड नेपियर |
250 |
50 |
4 |
2 |
कोलाकटटो घास |
40 |
8 |
0.8 |
3 |
ल्युक्रेन |
80 |
16 |
3.2 |
4 |
कोऊपी |
35 |
7 |
1.4 |
5 |
सुबाबुल |
80 |
16 |
3.2 |
6 |
सोरघम |
40 |
3.2 |
0.6 |
7 |
अजोला |
1,000 |
80 |
24 |
स्रोत: डॉ. पी. कमलसनन , “ अजोला – ए सस्टेनेबल फीड सब्स्तित्यूत फॉर लाइवस्टॉक,” स्पाइस इंडिया
छोटे और सीमांत किसान खेती के काम के अलावा सामान्यत: 2-3 भैंस पाल सकते हैं| पशुपालन के पारंपरिक तरीकों से किसान चारे की आवश्यकताओं की पूर्ति फसली चारे से की जाती हैं और बहुत कम किसान है, जो जरा चारा और खली/पशु आहार का खर्च वहन कर सकते हैं| बहुत ही कम मामलों में, पशुओं के लिए खेती से घास एकत्र की जाती है या बैकयार्ड में हरा चारा उगाया जाता है| सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होने पर भी हरे चारे की आपूर्ति 5 से 6 महीने के लिए हो पाती है| यदि छोटे किसान अजोला चारा उगाते है, तो वर्ष के शेष भाग के लिए चारे की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता हैं| प्रति पशु 2-2.5 किलो अजोला नियमित रूप से दिया जा सकता है| जो पूरक पशु आहार का कम कर सकता है|
यदि अजोला को चारे के लिए उगाया जाता है, तो इसे अनिवार्य रूप से स्वच्छ वातावरण में उगाया जाना आवश्यक है और सालभर नियमित आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए| चारा प्लाट अधिमानत: घर के पास होना चाहिए ताकि परिवार की महिला सदस्य इनकी देखरेख और रख रखाव कर सके|
खेती की प्रक्रिया
प्राकृतिक वातावरण में चावल के खेत में बायोमास का उत्पादन केवल 50 ग्राम/वर्ग मीटर/दिन होता है, जबकि अधिकतम उत्पादन 400 ग्राम/वर्ग मीटर/दिन होता है| अन्य शैवाल के साथ संक्रमण और प्रतिस्पर्धा को कम करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकती है| अधिमानत: खुली जगह में या जहाँ सूर्य का पर्याप्त प्रकाश उपलब्ध हो, छत हो, आंगन/बैकयार्ड में खड्डा खोदकर उसमें सिंथेटिक पोलीथिन शीट की लाइनिंग लगाकर अधिक मात्रा में अजोला उगाया जा सकता है|
यद्धपि, अजोला का नर्सरी प्लाट में अच्छा उत्पादन होता है लेकिन धन के खेतों में हरी खाद के रूप में अजोला का उत्पादन करने के लिए, इसे धान के खेत के के 10% क्षेत्र के घेरे में उगाया जाता है| खेत में पानी भरा जाता है और खेत को बराबर किया जाता है, ताकि खेत में पानी सभी जगह बराबर मात्रा में हो| अजोला इनोकूलम खेत में छिड़का जाता है और प्रति एकड़ 45 किलो सिंगल सुपर फास्फेट डाला जाता है| अजोला की खेती के लिए इस्तेमाल की गई भूमि व्यर्थ नहीं जाती है क्योंकि धान की फसल में (रोपण के चार दिनों के बाद) अजोला छिड़कने के बाद, इस जमीन को धान की खेती करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है|
मछली आहार के लिए उगाया जाने वाला अजोला तालाब के बगल में उगाया जाता है| तालाब का एक हिस्सा इसके लिए निर्धारित किया जाता है और घास से बनी रस्सी से घेरा बनाया जाता है| अजोला की चटाई का बनने के बाद, इसे रस्सी हटाकर धीरे-धीरे तालाब में छोड़ दिया जाता है|
अजोला चारा उगाने के लिए किसी विशेष विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती है और किसान खुद ही आसानी से उगा सकते हैं| यदि अजोला बैकयार्ड में उगाया है, तो इसे क्षेत्र को समतल किया जाता है और चारों ओर ईंटें खड़ी करके दिवार बनाई जाती है| क्यारी के चारों ओर थोड़ी ऊँची दिवार बनानी होगी ताकि उसमें पानी ठहर सके| या चारे का प्लाट 0.2 मीटर गहरे गड्ढे में बनाया जा सकता है| क्यारी में एक पॉलीथीन शीट इस तरह से बिछा दी जाती है, ताकि उसमें 10 सेमी पानी का स्तर बना रहे| क्यारी की चौड़ाई 1.5 मीटर रखते हैं, ताकि दोनों तरफ से काम किया जा सके| चारे की आवश्यकता के आधार पर क्यारी की लंबाई अलग-अलग रखी जा सकती है| लगभग 8 वर्ग मीटर क्षेत्र की दो क्यारी. जिनकी लंबाई 2.5 मीटर हो, से दो गाय के लिए हरे चारे की 50% जरूरत पूरी हो सकती हैं|
2.5 मीटर ×1.5 मीटर की क्यारी तैयार करने के बाद, क्यारी में 15 किलो छानी हुई मिट्टी फैला दी है, जो अजोला को पोषक तत्व प्रदान करेगी| लगभग 5 किलो गाय के गोबर (सड़ने के पूर्व के 2 दिन का) को पानी में मिला दिया जाता है जिससे अजोला को कार्बन प्राप्त होगा| 10 किलो रॉक फास्फेट, 1.5 किलो मैग्निशियम नाम और 500 ग्राम पोटाश की म्यूरेट के मिश्रण से बना लगभग 40 ग्राम पोषक तत्व मिश्रण अजोला की क्यारी में डाला जाता है| इस मिश्रण में वंछित मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्व भी डाले जाते है| इससे न केवल अजोला की सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी होगी बल्कि इसे खाने पर पशुओं की सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत भी पूरी हो सकेगी| क्यारी में 10 सेमी के जल स्तर को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी डाला जाता है|
वैज्ञानिक और सतत आधार पर लंबे समय के लिए अजोला का उत्पादन करने हेतु 2 मीटर लंबे, एक मीटर चौड़े और 0.5 मीटर गहरे सीमेंट कंक्रीट के टैंक की आवश्यकता होती है| टैंक का निर्माण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए ताकि टैंक में पानी भरा रह सके| 25 वर्ग मीटर क्षेत्र में दस या अधिक टैंकों का निर्माण किया जा सकता है| टैंक को लेआउट तस्वीर में दिखाया गया है| प्रत्येक टैंक के लिए पानी की व्यवस्था करने के लिए ऊपर रखी हुई टंकी से पाइप और नल लगाया जाना चाहिए|
टैंक में समान रूप से मिट्टी डाल देनी चाहिए| मिट्टी की परत 10 सेमी गहरी होने चाहिए| टैंक में गाय का गोबर 1 से 1.5 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से (प्रति टैंक 2 से 3 किलो गाय का गोबर) डालना चाहिए| टैंक में हर हफ्ते प्रति वर्ग मीटर 5 ग्राम की दर से सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) डालना चाहिए (प्रति टैंक 10 ग्राम एसएसपी)| टैंक में मिट्टी से 10 से 15 सेमी की ऊँचाई तक पानी डालना चाहिए| मिट्टी को अच्छे से जमा देना चाहिए| कीट संक्रमण से बचाव के लिए 2 ग्राम कार्बोफुरन मिला कर ताजा अजोला इनोकूलम तैयार करें| पानी की सतह पर निर्मित फोम और स्कम की परत को हटा दें| अगले दिन, पानी की सतह पर लगभग 200 ग्राम ताजा अजोला इनोकूलम छिड़क दें| पानी की सतह पर अजोला की परत बनने में 2 सप्ताह का समय लगता है| टैंक में पानी का स्तर, विशेषकर गर्मियों के दौरान, बनाए रखा जाना चाहिए| ज्यादा प्रकाश को रोकने के लिए टैंक पर नारियल के पत्तों की शेड/छप्पर बना देना चाहिए| इससे सर्दियों के दौरान अजोला पर ओस भी नहीं जमती है|
अजोला क्यारी में पानी को अच्छे से हिलाने के बाद अजोला की मदर नर्सरी से अजोला का 1.5 किलो बीज क्यारी में बराबर मात्रा में छिड़क देना चाहिए| अजोला बीज के स्रोत के बारे में सावधानी बरतनी चाहिए|
प्रारंभ में, अजोला पूरी क्यारी में फ़ैल जाता है और साथ दिनों के एक मोटी परत का आकार ले लेता है| आदर्श रूप में यह सात दिनों के भीतर 10 किलो काजोल का उत्पादन कर देता है| शुरू के सात दिनों के डरूँ, अजोला का प्रयोग नहीं किया जाता है| हर रोज पानी डालकर जल स्तर बनाए रखा जाता है| सात दिन बाद, हर दिन 1.5 किलो अजोला प्रयोग करने के लिए निकाल सकते है| छलनी से अजोला प्लास्टिक की ट्रे में एकत्र किया जाना चाहिए| इस अजोला को मवेशियों को खिलाने से पूर्व ताजा पानी में धोना चाहिए| गोबर की गंध को दूर करने के लिए इसे धोना आवश्यक है| अजोला की धुलाई में प्रयुक्त पानी को पेड़ – पौधों के लिए जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है| अजोला और पशु आहार को 1:1 अनुपात में मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है|
अजोला से हटाए गए गाय के गोबर और खनिज मिश्रण की पूर्ति के लिए, अजोला क्यारी में कम से कम सात दिनों में एक बार गाय का गोबर खनिज मिश्रण डालना चाहिए| अजोला क्यारी में गाय के गोबर, खनिज मिश्रण सात दिन में एक बार जरूर डालना चाहिए|
हर 60 दिनों के बाद, अजोला क्यारी से पुरानी मिट्टी हटा दी जाती और 15 किलो नई उपजाऊ मिट्टी डाली जाती है ताकि क्यारी में नाइट्रोजन निर्माण से बचा जा सके और अजोला को पोषक तत्व उपलब्ध होते रहे| मिट्टी और पानी निकालने के बाद, कम से कम छह महीने में एक बार पूरी प्रक्रिया को नए सिरे से दोहराते हुए अजोला की खेती की जानी चाहिए|
सावधानियाँ
- अच्छी उपज के लिए संक्रमण से मुक्त वातावरण का रखना आवश्यक है|
- ज्यादा भीड़भाड़ से बचने के लिए अजोला को नियमित रूप से काटना चाहिए|
- अच्छी वृद्धि के लिए तापमान महत्वपूर्ण कारक है| लगभग 35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए| ठंडे क्षेत्रों में ठंडे मौसम के प्रभाव को कम करने के लिए, चारा क्यारी को प्लास्टिक की शीट से ढक देना चाहिए|
- सीधी और पर्याप्त सूरज की रोशनी वाले स्थान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए| छाया वाली जगह में पैदावार कम होती है|
- माध्यम का पीएच 5.5 के बीच 7 होना चाहिए|
- उपयुक्त पोषक तत्व जैसे गोबर का घोल, सूक्ष्म पोषक तत्व आवश्यकतानुसार डालते रहने चाहिए|
चारा प्लाट की लागत
चारा प्लाट लगाने की लागत रू. 1500 से रू. 2000 के बीच होती है| प्राथमिक लागत श्रम के रूप में होती है जिसे पारिवारिक श्रम द्वारा पूरा किया जा सकता है| चारा प्लाट की लागत का आकलन करते समय चारा क्यारियों की दो इकाइयों को शामिल किया जाता है ताकि अजोला की उपज नियमित रूप से मिलती रहे| पशु और चारे की आवश्यकता के आधार पर इकाइयों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है| लागत का विविरण निम्नानुसार है|
क्र.सं. |
विवरण |
मात्रा |
दर |
राशि (रू.) |
1 |
खाई (ट्रेंच) बनाने की लागत (2.25 मी. × 1.5 मी. × 0.2 मी.) |
2 खाई |
रू. 80.00 (एक श्रम दिवस) |
80.00 |
2. |
पोली शीट (3 मी. × 2.मी.) |
2 शीट |
रू. 300 |
600.00 |
3. |
उपजाऊ मिट्टी |
15 किलो/ खाई |
रू. 80.00 (एक श्रम दिवस) |
80.00 |
4. |
गाय का गोबर |
5 किलो/ खाई |
रू. 3 |
30.00 |
5. |
उर्वरक एसएसपी 5किलो प्रत्येक खनिज मिश्रण 2 किलो प्रत्येक |
10 किलो 4 किलो |
रू. 10 |
100.00 400.00 |
6. |
अजोला कल्चर |
एकमुश्त |
रू. 100 |
100.00 |
7. |
पोली नेट |
400.00 |
||
8. |
पंडाल निर्माण |
वैकल्पिक |
— |
|
9. |
विविध |
10.00 |
||
कूल योग |
1800. |
चारे में रूप में अजोला का उपयोग करने के लिए अनेक स्थानों पर प्रयोग किए गए है, इनमें मुख्यत: है- कन्याकुमारी में विवेकानंद आश्रम, कोयंबटूर में जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड, आन्ध्र प्रदेश के गूंटूर में बायफ द्वारा कार्यान्वित पशुपालन कार्यक्रम, पशुपालन और ग्रामीण विकास विभाग, आन्ध्र प्रदेश सरकार के सहयोग से मडंल महिला समाख्या के माध्यम से चित्तूर में गंगाराम, वी कोटा और पूंगनूर मंडलों में अजोला चारे की खेती की जा रही है|
नाबार्ड ने वाटरशेड विकास निधि के तहत आजीविका गतिविधि के रूप में विभिन्न वाटरशेडों में अजोला चारा उत्पादन को प्रोत्साहित किया है| जिन वाटरशेड गांवों में डेयरी पर ज्यादा जोर हैं ऐसे गांवों में नाबार्ड प्रदर्शन इकाई के रूप में ऐसे नवाचारों को सहायता प्रदान करता है, कडप्पा जिले के टी सूंदूपल्ली मडंल के कोथापल्ली और चितूर जिले के थाम्बालापल्ली मंडल के रेनूमाकूलपल्ली आदि वाटरशेड गांवों में प्रदर्शन इकाइयों की स्थापना की गई है| इन प्रदर्शन इकाइयों से प्रेरित होकर अन्य डेयरी किसानों ने भी अजोला इकाइयाँ स्थापित की है|
आकलन के अनुसार, 2.5 × 1.5 मीटर आकार के अजोला चारा प्लाट की प्रत्येक इकाई की लागत रू. 1800 होती खर्च मुख्यत: प्लास्टिक और बीज सामग्री पर होता है| जैसे कि किसानों ने बताया इसका लाभ यह है कि किसानों को वर्ष भर हरा चारा मिलता रहता है और किसान बिना किसी खास कौशल के अजोला की खेती कर सकते हैं|
मवेशियों की आहार आवश्कता को पूरा करने के लिए डेयरी किसान अजोला चारा की खेती सकते है| वैकल्पिक रूप से, कलस्टर में डेयरी किसानों को पशु आहार की आपूर्ति के लिए उद्यमी आय सृजन गतिविधि के रूप में बड़े पैमाने पर अजोला की खेती कर सकते हैं| इस तरह की अभिनव पहलों से, हम श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कूरियन के सपने को काफी हद तक पूरा करने में सफल हो सकते हैं|
अजोला से संबंधित जानकारी
इनोकूलम रेट = 250 ग्राम/वर्ग मी.
उपज = 10 टन/हेक्टेयर/सप्ताह या 1 किलो ग्राम/वर्ग मी./ सप्ताह – एक परत से
बिक्री मूल्य= रू. 1 से 1.2/किलो ग्राम (वियतनाम में 100 आस्ट्रेलियाई डॉलर टन)
बाविस्टीन = रू. 550ऍम/किलो ग्राम
फुराडन = रू. 65/किलो ग्राम
एसएसपी = रू. 5/किलो ग्राम
इनोकूलम और ताजा अजोला का अनुपात = 1:4
स्रोत: नाबार्ड बैंक
अजोला है दुधारू पशुओं का खास चारा, आइए जानें से उपजाने के तरीके| देखिये यह विडियो