कद्दू वर्गीय प्रमुख सब्जियाँ
बेलवाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, तरबूज,खरबूजा, पेठा, खीरा, टिण्डा, करेला आदि की खेती मैदानी भागो में गर्मी के मौसम में मार्च से लेकर जून तक की जाती है। इन सब्जियों की अगेती खेती जो अधिक आमदनी देती है, करने के लिए पॉली हाउस तकनीक में जाड़े के मौसम में इन सब्जियों की नसर्री तैयार करके की जा सकती है। पहले इन सब्जियों की पौध तैयार की जाती है तथा फिर मुख्य खेत में जड़ो को बिना क्षति पहुँचाये रोपण किया जाता है।
किस्म व संकर प्रजातियाँ
खीरा : पोइंसेट, जापानीज, लौंग ग्रीन, पूसा संयोग तथा पूसा उदय
लौकी : पूसा नवीन, पूसा संदेश, पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि, पी.एस.पी.एल. तथा पूसा हाइब्रिड-3
करैला : पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष, पूसा हाइब्रिड-1 व पूसा हाइब्रिड-2
तोरी : पूसा सुप्रिया, पूसा स्नेहा, पूसा चिकनी, पूसा नसदार, सतपुतिया, पूसा नूतन व को-1
चप्पन कद्दू : आस्टे्रलियन ग्रीन, पैटी पेन, अर्ली येलो, पूसा अलंकार व प्रोलिफिक
कद्दू : पूसा विशवास, पूसा विकास, अर्का चंदन व पूसा हाइब्रिड-1
उर्वरण व खाद : ज्यादातर बेल वाली उपरोक्त सब्जियों में खेत की तैयारी केसमय 15-20 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद व 80 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 50 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है।
बीज बुवाई : खेत मेंं लगभग 45 से.मी. चौड़ी तथा 30-40 से.मी. गहरी नालियाँ बना लें। एक नाली से दूसरी नाली की दूरी फसल की वेल की बढ़वार के अनुसार 1.5 की. से 5 मी. तक रखें। बुवाई से पहले नालियों में पानी लगा दें। जब नाली में नमी की मात्रा बीज बुवाई के लिए उपयुक्त हो जाए तो बुवाई के स्थान पर मिट॒टी भुरभुरी करके 0.05 से 1.0 मी. की दूरी पर बीज बोएँ।
बुवाई का समय : बसंत-गर्मी की फल बुवाई फरवरी-मार्च में करते हैं तथा वर्षा के मौसम जून के अंत से जुलाई माह में करते हैं।
सिंचाई : फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर पानी का प्रबंध करें तथा सिंचाई व निराई-गुड़ाई नालियों में ही करें।
पाली हाउस विधि से अगेती खेती
कद्दूवर्गीय सब्जियों की उत्तर भारत में मैदानी क्षेत्रों में गर्मी के मौसम के लिए अगेती फसल तैयार करने के लिए पॉली हाउस में जनवरी माह में झोपड़ी के अआकार का पॉली हाउस बनाकर पौध तैयार कर लेते हैं। पौधे तैयार करने के लिए 15 ग 10 से.मी. आकार की पॉलीथीन की थैलियों में 1:1:1 मिट॒टी, बालू व गोबर की खाद भरकर जल निकास की व्यवस्था हेतू सुजे की सहायता से छेद कर लेते हैं।
बाद में इन थैलियों में लगभग 1 से.मी. की गहराई पर बीज बुवाई करके बालू की पतली परत बिछा लेते हैं तथा हजारे की सहायता से पानी लगाते हैं। लगभग 4 सप्ताह में पौधे खेत में लगाने के योग्य हो जाते हैं। जब फरवरी माह में पाला पड़ने का डर समाप्त हो जाये तो पॉलीथीन की थैली को ब्लेड से काटकर हटाने के बाद पौधे की मिट॒टी के साथ खेत में बनी नालियों की मेंढ़ पर रोपाई करके पानी लगाते हैं। इस प्रकार लगभग एक से डेढ़ माह बाद अगेती फसल तैयार हो जाती है जिससे किसान अगेती फसल तैयार करके ज्यादा लाभ कमा सकता है।
बीज दर : विभिन्न फसलों के लिए बीज दन निम्न प्रकार है :-
खीरा 2.2-2.5 कि.ग्रा., लौकी 4-5 कि.गा्र., करेला 6-7 कि.गा्., कद्दू 3-4 कि.गा., तौरी 5-:.5 कि.ग्रा., चप्पन कद्दू 5-6 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
उपज : फसल अनुसार निम्न प्रकार है :-
खीरा 100-120 क्विंटल, लौकी 250-420 क्विंटल, करेला 75-120 क्विंटल, कद्दू 250-500 क्विंटल, तौरी 100-130 क्विंटल, चप्पन कद्दू 50-60 क्विंटल/हेक्टेयर
कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी
- बेल वाली फसलें जैसे खीरा, घीया, तोरी करेला व कद्द में तुड़ाई तब करें जब वे कच्चे व मुलायम हों।
- तुड़ाई कैंची की मदद से करें तथा डंठल सहित (4-5 से.मी.) फलों को तोड़ें।
- रंग व आकार के आधार पर श्रेण्ीकरण कर पैकिंग करें।
- पैक किये गये फलों को शीघ्र मण्डी या शीतगृह में रखें।
- पैक किये गये फलों को काट कर (छल्लानुमा) स्वच्छ जगह पर सुखाएँ एवं पालीथीन के थैलों में सील करके भण्डारित करें।
कीट प्रकोप एवं प्रबंधन
1. लाल कद्द भृंग (रैड पम्पकिन बीटल)
इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही फसल को हानि पहुँचाते हैं। वयस्क कीट पौधों के पत्ते में टेढे़-मेढ़े छेद करते हैं जबकि शिशु पौधों की जड़ों, भूमिगत तने व भूमि से सटे फलों तथा पत्तों को नुकसान पहुँचाते हैं।
प्रबंधन
- फसल खत्म होने पर बेलों को खेत से हटाकर नष्ट कर दें।
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फसल की अगेती बुवाई से कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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स्ंतरी रंग के भृंग को सुबह के समय इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
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कार्बेरिल 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लिटर या एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.ली.फलिटर या एमामेक्टिन बैंजोएट 5 एस.जी. 1 ग्राम/2 लिटर या इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 1 मि.लि./2 लिटर का छिड़काव करें।
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भूमिगत शिशुओं के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 लिटर/हेक्टेयर हल्की सिंचाई के साथ इस्तेमाल करें।
2. फल मक्खी (फ्रूट फलाई)
इस कीट की मक्खी फलों में अंडे देती है तथा शिशु अंडे से निकलने के तुरंत बाद फल के गूदे को भीतर ही भीतर खाकर सुरंगें बना देते हैं।
प्रबंधन
- खेत की निड़ाई करके प्यूमा को नष्ट कर दें।
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ग्रसित फलों को भी कत्रित करके नष्ट कर दें।
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मक्खियों को आकर्षित कर मारने के लिए मीठे जहर, जो एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 5 मि.लि./लिटर व 1 प्रतिशत चीनी/गुड़ (25 ग्राम/लिटर) से बनाया जा सकता है, का 50 लिटर/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। फल मक्खी रात को मक्खी के पौधों के पत्तों की निचली सतह पर विश्राम करती है इसलिए कद्दू वर्गीय फसलों के खेत के पास मक्खी लगाने व उस पर छिड़काव करने से इस कीट को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
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फल मक्खी के नरों को आकर्षित करने के लिए मिथाइल करने से इस कीट को नियंत्रित भी किया जा सकता है।
3. सफेद मक्खी (व्हाइट फलाई)
इस कीट के शिशुओं व वयस्कों के रस चुसने से पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इनके मधुबिन्दु पर काली फफूंद आने से पौधों की भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
इस कीट की रोकथाम के लिए एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1 मि.लि./3 लिटर या डज्ञइमेथेएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर का छिड़काव करें।
4. चिंचिड़ा सेमी लूपर
यह कीट केवल चिंचिड़ा को ही हानि पहुँचाता है। अधिक प्रकोप की अवस्था में इसकी इल्लियाँ पौधों के पत्तों को खकर खत्म कर देती हैं।
प्रबंधन
- इल्लियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
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नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या बी.टी. 1 ग्राम/लिअर या एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या काब्रोरिल 50 डब्ल्यू.पी. 2 मि.लि./लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.लि./4 लिटर का छिड़काव करें।
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चेपा (एपिड)
चेपा लगभग सभी कद्दू वर्गीय फसलों पर आक्रमक करते हैं। ये पौधों के कोमल भागों से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते हैं।
प्रबंधन
- लेडी बर्ड भृंग का संरक्षण करें।
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नाइट्रोजन खाद का अधिक प्रयोग न करें।
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इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1 मि.लि./3 लिटर या डाइमेथेएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या क्विनलफॉस 25 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर का छिड़काव करें।
जानिए खीरा की खेती के बारे में
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार; ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
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