कुल लोग नये-नये प्रयोगों के जरिये न सिर्फ पैसा कमाते हैं बल्कि दूसरे लोगों के मार्गदर्शन भी बन जाते हैं। तमाम किसान नर्सरी को घाटे का सौदा बताने से नहीं चुकते, लेकिन इनके बीच जो प्रतिशील किसान होते हैं वे बिना उपजाऊ मिट्टी में भी सोना उगाने का साहस रखते हैं।ये ऐसे किसान होते हैं जो मिट्टी को उर्वरता भी बचाते हैं।ऐसे ही एक किसान हैं पटना जिले के बिहटा अनुमंडल से लगभग सात किलोमीटर दूर डिहरी गांव निवासी समरेंद्र उन्होंने अपने नाम के अनुरूप अपना यश पूरे इलाके में फैलाया हैं।अब तमाम किसान उनसे सलाह लेने के लिए आते हैं।इसके पहल के लिए उन्हें ब्लॉक से जिला स्तर पर कई तरह के सम्मान भी हासिल कर चुके हैं।वह राज्य व जिला स्तर पर नर्सरी के क्षेत्र में सम्मान हासिल कर चुके हैं।बीएससी में स्नातक हासिल के बाद समरेंद्र युवक ने किसी कंपनी में नौकरी करने के बजाय नर्सरी का पेशा बनाया़ यह कहानी सुनने में अचरज भरी लगती है, लेकिन शत-प्रतिशत सच हैं। विज्ञान की पढ़ाई कर अपने ज्ञान के जरिये नर्सरी का ढंग ही बदल दियाक़ कल तक जहां तमाम किसान नर्सरी को घाटे का सौदा मान रहे थे वहीं अब के भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं।न ज्यादा रासायनिक खाद न महंगी सिंचाई़ बस वैज्ञानिकों की ओर से बतायी गयी तकनीक के तहत नर्सरी का फंडा अपना कर मंजिल हासिल कर रहे हैं। हालत यह है कि नर्सरी की दिशा में समरेंद्र का गांव ही नहीं बल्कि पूरा इलाका अपना योगदान दे रहा है।
कई तरह के पौधे
सन 1998 में में बीएससी तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भविष्य को संवारने के लिए समरेंद्र ने पेड़-पौधों व फल-फूल की नर्सरी से अपनी किस्मत संवारने का निश्चय किया़ इनकी मेहनत व लगन का ही नतीजा है कि आज लगभग डेढ़ एकड़ में नर्सरी को व्यावसायिक रूप देकर सफलता की नयी ऊंचाई तक ले जाने में सफल हुए हैं।इस नर्सरी से वर्ष में लगभग ढाई से तीन लाख रुपये की आय प्राप्त कर लेते हैं।इस युवा किसान के पास लाखों रुपये की बोनसाई भीहैं। इसके साथ ही मदर प्लांट के रूप में आम की किस्मों में भारत दर्शन, हिम सिंधु, वनराज, आम्रपाली, मल्लिका, भास्कर, स्वर्ण रेखा, अनमोल, अनामिका आदिहैं। अमरूद में इलाहाबादी सफेदा, केजी-नौ, एप्पल क्रास जैसी उम्दा किस्में हैं।इसके अलावा दालचीनी, तेजपत्ता, चेरी, कफी, कागजी नींबू, चंदन, सीता अशोक, मौसमी, नींबू हजारा, आंवला, कदम, स्ट्राबेरी, केला, खैर,बांस, पाम व कैक्टस की कई किस्में हैं। नर्सरी में नवग्रह के रुप में चंदन, सीता, अशोक, खैर, पलाश, दूब पीपल,पाकड़, अपामार्ग और गूलर के पौधे हैं। इसमें से अधिकतर पौधों का उपयोग मातृ पौधों के रूप में कर के नये पौधों को तैयार कर बिक्री कर प्रति वर्ष हजारों की आय प्राप्त की जातीहैं।
नर्सरी से होती अच्छी आय
सब्जियों में हरी पीली ब्रोकली के एक पीस 300-400 सौ ग्राम की कीमत 40-50 से रुपये तक मिल जाती है।लाल पत्ता गोभी, लाल मूली जो एक माह में तैयार हो जातीहैं। इसकी कीमत 35-40 से रुपये प्रति किलो तक होतीहैं। इसके अलावा सफेद गाजर, हाईब्रिड मटर तथा फूल के बीज एवं पौधों की नर्सरी से अच्छी खासी आय प्राप्त हो जातीहैं। हर्बल सिंदूर, इसका पेड़ सिंदूरी के नाम से जाना जाता हैं। इसके बीज की कीमत प्रति किलो तीन सौ रुपये की दर से बिकती हैं। सुगर फ्री आलू लत्तरदार होता हैं। यह पौधा ठंड के मौसम को छोड़ कर वर्ष के आठ माह तक फलता रहताहैं। इसे किसी छोटे वृक्ष या छांन-छप्पर पर चढ़ा कर फल प्राप्त किया जा सकता हैं। स्टीबिया यह चीनी से 30 गुना अधिक मीठा होता हैं। सुगर फ्री होने के नाते इसकी हरी व सूखी पत्तियों को चाय में डाल कर उपयोग में लाया जाता है। करौंदा, आंवला, मीठा इमली, चीकू व गुग्गुल के पौधे भी उपलब्ध हैं। समय समय पर फूलों की किस्मों व सब्जियों में गोभी, पात गोभी, रंगबिरंगी मिर्च, शिमला मिर्च, टमाटर व बैगन के साथ ही कई किस्म के पपीते की नर्सरी तैयार कर प्रति वर्ष अच्छी आय प्राप्त करते हैं।
सीजन से पहले बुक हो जाते पौधे
समरेंद्र कुमार अपने इस पारंपरिक व उत्साहपूर्ण कार्य के लिए आसपास के ग्रामणी क्षेत्र को प्रेरणास्नेत मानते हैं। इनके इस व्यसवाय से प्रेरित होकर तारा नगर निवासी भोला साव, प्रमोद सिंह, मीठापुर के नीरज कुमार तथा ब्रिकम निवासी रमेश चंद्र गुप्ता आदि युवा व प्रगतिशील किसान इनके साथ जुड़े हुए हैं। समरेंद्र जहां भी जाते अपने नर्सरी के कुछ खास पौधे जरूर लाते हैं।यही कारण है कि इनकी नर्सरी में गुलाब, जामुन, मीठी इमली, सेब, नाशपाती, आलू बुखारा, हुमाद जैसी किस्मों के पौधे भी मौजूद हैं। इनकी नर्सरी की विश्वसनीयता ऐसी है कि अगले सीजन के लिए सैकड़ों पौधे पहले से ही बुक हो जाते हैं।
बोनसाइ पौधे जितना पुराना उतना दाम
इस विषय में समरेंद्र ने कहा कि एक पौधा तैयार होने में चार से पांच वर्षो का समय लग जाताहैं।वैसे बोनसाई तैयार किये जाने वाले पौधे की प्रति और आप की कबलियत पर बहुत कुछ निर्भर करता है कि उस पौधे को आप देखभाल आप किस तरह से करते हैं।क्योंकि किसी विशाल होने वाले पौधे को जब आप छोटा आकार प्रकार देते हैं तो बड़ी ही सावधानी की आवश्यकता होती हैक़ कई बार थोड़ी सी भी असावधानी आपके प्रयास को न उम्मीद में बदल सकती हैं।बोनसाई बनाया गया पौधा जितना पुराना होगा उतना ही आकर्षक होने के साथ ही लाखों का हो सकता हैं।इसका बाजार कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, वाराणसी व बेंगलुरू आदि शहरों में अधिक है, पर समय के साथ प्रति प्रेमियों की रूचियां बढ़ने से अब स्थानीय स्तर पर भी इसकी मांग होने लगी हैं। पिछले वर्ष तीन से चार वर्षो के बरगद व नीम की बोनसाई 1200 रुपये,चीली नौ सौ रुपये में तो अमरूद की बोनसाई की ब्रिकी छह सौ रुपये में की गयी थी़ जब बात शौक के साथ प्रति प्रेम की आती है तो यही विशाल प्रति वाले नन्हें पौधे आपके शौक को पूरा करने में सहभागी होते हैं।यदि आप की बालकानी अथवा कैंपस में छिछले से मिट्टी अथवा चीनी मिट्टी के आकर्षक पात्र में नीम, गूलर आम, नींबू, सीता अशोक, पाकड़, इमली सेमल, महुआ, जामुन, अमरूद, कटहल व पलाश आदि विशाल आकार वाले पेड़ों का छोटा रूप दिखे और समय-समय पर उनके पौधों पर फल-फूल भी लगाते रहे तो निश्चित रूप से मनभावन तो होगा ही़ । समरेंद्र का कहना है कि यदि कदम के पौधे लगागर व्यावसायिक खेती की जाय तो यह पेड़ जिस तेज गति से बढ़ता है उस हिसाब से आठ से दस वर्षो में आज की मांग के अनुसार कदम का पेड़ पांच से छह हजार रुपये तक हो सकताहैं।जिससे आने वाले समय में लाखों रुपये की लकड़ी प्राप्त की जा सकती है।
वैज्ञानिकों का सहयोग व नये प्रयोग
नर्सरी की सहायता में पशुपालन कर दूध के साथ ही गोबर का वर्मी कंपोस्ट या फिर गोबर खाद तैयार कर उसका उपयोग करना महत्वपूर्ण होताहैं।इनके पास सदियों पुरानी एक सी छोटी पुस्तकालय भी है जिसमें कई पुस्तकें ऐसी हैं जो तीन वर्षो तक पुरानीहैं।इस पुस्तकालय रखी किताबों का अध्ययन कर नर्सरी में नये प्रयोग भी समरेंद्र द्वारा समय-समय पर किया जाताहैं।इसके साथ ही षि विभाग द्वारा आयोजित होने वाली प्रदर्शनियों व मेलों में भाग लेना तथा कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर नये बीजों एवं नयी तकनीक का प्रयोग करना ही इनकी व्यावसायिक नर्सरी सफलता का राजहैं।वे कृषि विभाग द्वारा दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले कृषि मेले में जाना नही भूलते हैं। क्योंकि वहां इस व्यवसाय से जुड़ी देश-विदेश की बहुत सारी जानकारियां मिलती हैं। से जुड़े पत्रिकाएं भी इनकी सफलता में महत्वपूर्ण सहभागी हैं।
स्त्रोत: संदीप कुमार,स्वतंत्र पत्रकार,पटना बिहार ।
Source