बड़ी प्रजाति में करीब 13 आकार के फूल आते हैं, जैसे स्पाइडर, ट्यूबलर, रेफ्लेक्स, इनकर्व, डेकोरेटिव आदि।
छोटी में करीब छह-सात आकार के फूल आते हैं, जैसे एनीमोन, पॉम्पन, डेकोरेटिव, स्प्रे, कोरियन और नो पिंच नो स्टेक आदि।
मिनी में भी कई आकार के फूल आते हैं।
गुलदाउदी के पौधे लगाने के लिए गमले को 70 प्रतिशत गोबर की पुरानी खाद, 15 प्रतिशत पत्ती की खाद, 10 प्रतिशत पुराने गमले की मिट्टी, 5 प्रतिशत मौरंग व 100 ग्राम हड्डी का चूरा, 100 ग्राम नीम की खली, 5 ग्राम जिंक, 5 ग्राम म्यूरेटा पोटाश व थोड़ा सा सल्फर व बोरान मिलाकर भर लें।
गमले में लगाने के लिए बड़ी गुलदाउदी की कुछ अच्छी प्रजातियां इस प्रकार हैं- स्नो बाल, कीकू बेरी, डिग्निटी, पिंक क्लाउड, बोला देवरा, अजीना पर्पल, सोनार बांग्ला,कस्तूरबा गांधी, चंगेज खां आदि।
छोटी गुलदाउदी की प्रजातियां हैं- कॉटन बाल, बीरबल साहनी, अप्सरा, स्वीट सिंगार, जयंती, कुंदन, ननाको, रतन आदि।
मिनी की प्रजातियां को आप चाहें तो प्लास्टिक के कप या गिलास में भी लगाकर कमरों में सजा सकते हैं।
बड़ी गुलदाउदी को लगाने के कई प्रकार हैं।
पहला: एक गमले में एक पौधा लगाकर उसकी ऊपर से पिंचिंग करके तीन फूल ही लें। इससे अधिक नहीं।
दूसरा: एक गमले में एक ही प्रजाति के पांच पौधे लगाकर प्रत्येक में एक ही फूल लें। इसकी पिंचिंग नहीं करनी पड़ती।
तीसरा: एक गमले में एक ही पौधा लगाकर उसकी कई बार पिंचिंग की जाती है। इससे एक ही पौधे में कई सारे फूल आते हैं।
छोटी गुलदाउदी का एक ही पौधा लगा कर व अलग-अलग ऊंचाई पर उसकी पिंचिंग करके उसके कई आकार बनाए जा सकते हैं, जैसे फैन, ट्री, कैस्केट आदि। पौधे की कम से कम तीन बार पिंचिंग करके उसको खूबसूरत आकार दिया जा सकता है।
परिचय
गुलदाउदी (Chrysanthemum) एक बारह मासी सजावटी फूलों का पौधा है। इसकी लगभग 30 प्रजातियों पाई जाती हैं। मुख्यतः यह एशिया और पूर्वोत्तर यूरोप मे पाया जाता है।
ग्रीक भाषा के (Anemone) अनुसार क्राइसैंथिमम शब्द का अर्थ स्वर्ण पुष्प है। इस जाति का पुष्प छोटा तथा सम्मित एनीमोन सदृश होता है।
बेंथैम तथा हूकर (Bentham and Hooker, 1862-93) के वनस्पति-विभाजन-क्रम के आधार पर गुलदाऊउदी का स्थान नीचे दिए हुए क्रम के अनुसार निर्धारित होता है:
वर्ग द्विदलीय (Dicotyledon)
उपवर्गगैमोपेटैली (Gamopetalae)
श्रेणी इनफेरी (Inferae)
आर्डर ऐस्टरेलीज़ (Asterales)
कुल कॉम्पॉज़िटी (Compositae)
जीनस क्राइसैंथिमम|
गुलदाउदी संसार के सबसे प्रसिद्ध एवं शरद ऋतु में फूलने वाले पौधों में से है। यह चीन का देशज है, जहाँ से यह यूरोप में भेजा गया। सन्* 1780 में फ्रांस के एक महाशय सेल्स (Cels) ने इंग्लैंड के विश्वविख्यात उपवन क्यू (Kew) में इसे सबसे पहले उत्पन्न किया। इसके उपरांत, अपने सुंदर तथा मोहक रूप के कारण और इसके फूलों में कीटनाशक पदार्थ, अर्थात पाईथ्रोम (pyrethrum) होने के कारण गुलदाउदी का प्रसार बहुत ही विस्तृत हो गया। इस समय इसकी लगभग 150 जातियाँ हैं जो यूरोप, अमरीका, अफ्रीका तथा एशिया महाद्वीपों में मुख्य रूप से पाई जाती हैं। इनमें से उपवनों में उगाई जान ेवाली गुलदाउदी को क्राइसैंथिमस इंडिकम (Chrysanthemum indicum Linn) कहते हैं।
गुलदाउदी का पौधा शाक (herbs) की श्रेणी में आता है। इसकी जड़ें मुख्यतया प्रधान मूल, शाखादार और रेशेदार होती हैं। तना कोमल, सीधा तथा कभी कभी रोएँदार होता है। पत्तियाँ एकांतर (alternate) सम, पालिवत्* होती हैं, परंतु उनकी कोर कटी तथा विभाजित होती हैं। पुष्पों के संग्रहीत होने के कारण पुष्पक्रम (inflorescence) एक मुंडक (capitulum) या शीर्ष (head) होता है। पूर्ण पुष्पक्रम पौधे के शिखर पर एक लंबे डंठल के ऊपर स्थित रहता है। इस डंठल के निचले भाग से और भी पुष्पक्रम निकलते हैं, जो सामूहिक रूप से एक समशिख (corymb) बना देते हैं, जो विषमयुग्मीय और रश्मीय (rayed) होता है। रश्मिपुष्प मादा और एकक्रमिक होते हैं तथा उनकी जिह्विका फैली हुई, सफेद पीली, नीली अथवा गुलाबी होती है। बिंब पुष्प द्विलिंगी तथा नलिकावत्* होते हैं। इनका दलचक्र युक्तदल होता है और ऊपर जाकर चार या पाँच भागों में विभाजित हो जाताहै। निचक्रीय निपत्र (involucral bract) सटे हुए एवं बहुक्रमिक होते हैं। भीतरी निपत्र रसदार सिरेवालेएवं बाहरी छोटे और प्राय: नसदार रंगीन किनारे वाले होते हैं। परागकोष का निचला भाग गोल होता है।
गुलदाउदी में एकीन (achene) प्रकार के फल बनते हैं। ये अर्धवृत्ताकार,कोणीय, पंखदार, होते हैं। बाह्यदलरोम (pappus) छोटे अथवा अनुपस्थित होते हैं।
गुलदाउदी मुख्यत: वर्धी प्रचारण (vegetative propagation) अथवा बीजांकुर द्वारा उगाई जाती है। चौथाई इंच चलनी द्वारा छाने हुए, लगभग बराबर भागवाले दोमट, सड़ी हुईपत्तियों तथा बालू और थोड़ी सी राखके मिश्रण में गुलदाउदी की अच्छी वृद्धि होती है। गमले में इस मिश्रण को खूब दबा दबाकर भरने के बाद पानी देते हैं तथा लगभग एक घंटे बाद कलमें लगाते हैं। सबसे उत्तम कलमें सीधे जड़ों से निकलने वाले छोटे छोटे तनों से मिलती हैं। इनके न मिलने पर मुख्य तने के किसी अन्य भाग से कलमें ली जाती हैं।
सुंदरता के साथ साथ गुलदाउदी की कुछ जातियों के फूल कीटनाशक गुणवाले होते हैं। सबसे पहले ईरान में क्राइसैंथिमम कॉक्सिनियम (C. coccineum) तथा क्राइसैंथिमम मार्शलाई (C. marschalli) के फूल कीटनाशक रूप में प्रयुक्त हुए। सन्* 1840 के आसपास क्राइसैंथिमम सिनेरेरिईफोलियम (C. Cinerariaefolium) डलमैशिया। यूगोस्लाविया में उत्पन्न की गई और धीरे धीरे इसने ईरानी जातियों से ज्यादा ख्याति प्राप्त कर ली। व्यापारिक स्तर पर गुलदाउदी की खेती ईरान, अल्जीरिया, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, स्विट्जरलैंड तथा भारत में की जाती है।
उपयोग गुलदाउदी के फूलों का प्रयोग चूर्ण अथवा अर्क के रूप में होता है। साधारणतया इसके विभिन्न उपयोगों को तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं:
(1) पाईथ्रोम कीड़ों पर ही प्रभाव डालता है, मनुष्यों को इससे कोई हानि नहीं होती, अत: इसका प्रयोग घर में खटमल, मच्छर आदि के नाश के लिए किया जाता है;
(2) पाईथ्रोम तेल का छिड़काव पशुओं के लिए हानिकारक मक्खियों को मारने में किया जाता है तथा
(3) पाईथ्रोम का अत्यंत महीन चूर्ण उद्यानों में कीटनाशक के रूप में सफल सिद्ध हुआ है, यद्यपि आजकल पाईथ्रोम का छिड़काव ही मुख्यतया उपयोग में लाया जाता है।
पाईथ्रोम का कीटनाशक गुण इसके फूल को एकत्र करने के समय तथा सुखाने के ढंग पर निर्भर करता है। कीटनाशक अंश की अधिकतम मात्रा प्राय: परागण के पूर्व एकत्रित फूलों में पाई जाती है। जहाँ तक फूलों के सुखाने का प्रश्न है, धूप में सुखाना अधिक सुविधाजनक होता है। परंतु छाया में सुखाए हुए फूलों से कीटनाशक अंश की प्राप्ति अधिक मात्रा में की जा सकती है।
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