राज्यों में – गुजरात पंजाब और उत्तर प्रदेश प्रमुख है जहां ईसबगोल एक नगद फसल के रूप में पैदा की जा रही है।
ईसबगोल एक छोटा तना रहित शाकीय पौधा होता है इसके बीज का छिलका(भूसी) का उपयोग औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके बीज में क्यूसीलेज और एल्वोमीनियम पदार्थ सुरक्षित एवं अधिक मात्रा में पाया जाता है जो बीमारियों जैसे आमशय की जलन, मूत्र रोग, स्थाई कब्ज, आंव व दस्त, बवासीर आदि रोगों की रोकथाम के काम आते हैं।
अधिक उत्पादन के प्रमुख बिन्दु :-
जलवायु-
ठंडा सूखा वातावरण तथा खुले मौसम में ईसबगोल की फसल अच्छी होती है। फसल पकने के समय बादल नमी युक्त वातावरण अच्छा नहीं होता हैं ईसबगोल ऐसे समय में बोना चाहिये ताकि वह खुले मौसम में कट जावें अन्यथा पानी गिरने से इसका बीज खराब हो जाताहै।
भूमि-
ईसबगोल सभी प्रकार की भूमि में पैदा किया जा सकता है परंतु उत्तम जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि इसके लिए उपयुक्त रहती है, जिसका पी एच मान 7 से 8 के बीच हो।
भूमि की तैयारी-
गोबर खाद भूमि में मिलाकर मिट्टी को बारीक भुरभुरी समतल निथार युक्त बनाकर सिंचाई की सुविधानुसार क्यारियों का आकार रखना चाहिये। बोनी लाईनों में या छिड़काव पद्धति से कर सकते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 20 सेमी रखना चाहिये।
उन्नत जातियां-
गुजरात ईसबगोल – 1, गुजरात ईसबगोल – 2 ये जातियां मध्यप्रदेश में 110 से 120 दिन में पककर तैेयार होती हैं। तथा 12 -14 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज देती है। जवाहर ईसबगोल-4। यह 15 -17 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज देती हैं।
बीज की मात्रा-
4 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रर्याप्त होता है। कतारों से कतारों के बीच की दूरी 20 से 30 से.मी एवं बीज 1 से 1.5 से.मी. की गहराई पर बोएं।
बीज उपचार-
2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलोग्राम बीज से बीजोपचार किया जाता है।
बोनी का समय-
ईसबगोल अक्टूबर में बोना चाहिये। बोनी पश्चात हल्की सिंचाई करना चाहिये ताकि बीज अपने स्थान से न हटे। 6 से 10 दिन में अंकुरण हो जाता है।
खाद की मात्रा-
गोबर खाद 15 टन प्रति हेक्टेयर आखिरी जुताई केसाथ भूमि में मिलायें।
रसायनिक खाद –
50 किलोग्राम नत्रजन (50 प्रतिशत बोते समय एवं 50 प्रतिशत एक माह बाद खड़ी फसल में प्रथम सिंचाई के समय ), 40 किलोग्राम स्फुर, 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर बुआई के समय दें।
सिंचाई –
पहली सिंचाई अंकुरण के लिये, द्वितीय सिंचाई 21 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई बालिया बनते समय देना चाहिये। ईसबगोल फसल मे कुल 3-4 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ध्यान रहे कि पानी खेत में न भरे अन्यथा फसल मर जायेगी।
निराई–
खरपतवार नष्ट करने के लिये 1-2 निराई करवाना आवश्यक है अन्यथा उपज में कमी आ जाती है।
कीड़े एवं बीमारी की रोकथाम–
ईसबगोल मे मुख्य रुप से मोयला (माहू) कीट का प्रकोप फूल अवस्था पर देखा गया है। कीट की रोकथाम के लिये मिथाइल ङेमेटान 1 से 1.25 मिली दवा / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
बीमारी-
पावडरी मिल्डयू की रोकथाम के लिये 2 प्रतिशत घुलनशील सल्फर दो या तीन बार 15 दिन के अंतर से छिड़काव करें।डाउनी मिल्ड्यू बीमारी की रोकथाम के लिये 0.1 प्रतिशत बाविस्टीन का जैसे ही बीमारी दिखे छिड़काव करें तथा 8-10 दिन के अंतर से छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई–
ईसबगोल फसल करीब 4-5 माह में पककर तैयार हो जाती है। जैसे ही पत्तियां पीली पड़ें और बालियां हरे रंग से भूरे रंग की हो जाये तो फसल पक गई। फसल सुबह के समय काटना चाहिये जिससे उसके दाने गिरते नहीं है। फसल काटने के बाद 1 से 2 दिन सुखा कर गहाई करना चाहिये। बीज और छिलका को अलग करने के लिये ग्रेडिंग मशीन का उपयोग करना चाहिये। उपज में लगभग 30 प्रतिशत भूसी निकलती है जो औषधि के काम आती है।
उपज–
ईसबगोल की उपज करीब 12 -15 क्विंटल प्रति हेक्टयर आती है।
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