पंचफूली के हानिकारक गुणों के कारण ही हिमाचल और उत्तराखंड में इस फूल के पौधे को कुरी और छत्तियानाशी नामों से जाना जाता है। झाड़ीनुमा ‘बरवाने सी’ कुल का इस फूल-पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘लैंटाना कैमरा’ है।
दरअसल, ऐसा इसलिए हुआ कि इन फूल-पौधों से ‘लैंटाना ए’ नामक रसायन की गंध उड़ती है, जो मवेशियों को नहीं भाती। इसके पत्ते विषैले होते हैं, जिन्हें खाकर मवेशी गंभीर रूप से बीमार पड़ सकते हैं। इससे यह भी हुआ कि उद्यान विभाग को मवेशियों से होने वाले नुकसान से निजात मिली और मालियों की बार-बार की निराई-गुड़ाई, खाद और सिंचाई की मेहनत भी बच गई। इस तरह विभाग का धन भी बचा, क्योंकि यह फूल-पौधा जमीन में अपनी जड़ों को गहराता जाता है और बिना खाद-पानी के भी फैलता जाता है। लेकिन इसका एक पहलू यह भी है कि उद्यान विभाग भूल गया कि इस इलाके से गुजरने वाले लोग अगर इस फूल-पौधे के संपर्क में आ गए तो उन्हें खुजली और मितली की शिकायत हो सकती है, स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।
पंचफूली के हानिकारक गुणों के कारण ही हिमाचल और उत्तराखंड में इस फूल के पौधे को कुरी और छत्तियानाशी नामों से जाना जाता है। झाड़ीनुमा ‘बरवाने सी’ कुल का इस फूल-पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘लैंटाना कैमरा’ है। इसमें सामान्य तौर पर पीला, सफेद, गुलाबी या क्रीमी फूल गुच्छे में खिलता है। यह फूल दिखने में बहुत सुंदर है। फूलों के इतिहास में दर्ज है कि यह फूल भारत में आस्ट्रेलिया से इसकी सुंदरता के कारण ही सन 1809-1810 में शोभाकार फूल-पौधे के रूप में लाया गया था।
साधारण तौर पर देखने में आता है कि धरती पर कोई प्रजाति देशी-विदेशी नहीं होती, बशर्ते धरती का वह हिस्सा उस प्रजाति को अपना ले। लेकिन विडंबना है कि भारत में भी इस फूल-पौधे को अपनाया, जो आज भारतीय कृषि के लिए देश के अधिकतर राज्यों के किसानों के लिए भूमि के विनाशकारी फूल-पौधे के रूप में समस्या बन कर अपनी जड़ें फैलाता जा रहा है। इस छत्तियानाशी फूल-पौधे से देश के अनेक राज्यों में बड़े हिस्से की जमीन बंजर हो गई और उपजाऊ भूमि को भी अपने प्रभाव में लेकर भूमि की उर्वरा शक्ति का बहुत नुकसान कर दिया है। दरअसल, मुश्किल यह है कि इस पौधे के आसपास कोई पेड़-पौधा यहां तक कि खर-पतवार तक पनप नहीं सकता। वानस्पतिक कारणों से इसका ऐसा विस्तृत फैलाव होता है कि इस पौधे का विनाश करना किसानों के बस की बात नहीं होती।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में हर साल लगने वाली भयानक आग में भी पंचफूली की झाड़ियां जल कर फिर से अपनी जड़ें जमा कर खड़ी हो जाती हैं और यह पौधा फिर जगह-जगह फलता-फूलता, भूमि को बर्बाद करता देखा जा सकता है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भूमि में गहरे पैठी इसकी जड़ों को उखाड़ने पर पहाड़ी जमीन खिसकने लगती है और भूमि का कटाव आरंभ हो जाता है। जहां भी इसकी फसलें फैलीं, वहां इसके पौधों ने फसलों को चौपट कर दिया।
अधिकतर फूल हमें खुशी और उत्साह के साथ जीवन जीने का संदेश देते हैं। फूलों की उम्र ज्यादा नहीं होती, वे जल्दी मुरझा जाते हैं। लेकिन फूल का छोटा-सा जीवन मनुष्य के लिए बहुत लाभकारी होता है, सुगंध और दृश्य से लेकर खाद्य तक, औषधि से लेकर पेय पदार्थ तक। लेकिन पंचफूली की बाबत हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि यह दिखने में सुंदर जरूर है, लेकिन घातक है। इसलिए नोएडा उद्यान विभाग ने सुंदर फूलों के नाम पर घातक फूल-पौधों का रोपण किया है। अधिसंख्य समाज, पर्यावरणविद और भुक्तभोगी इस घातक अवगुणी पौधे के चयन का विरोध तो करेंगे ही। साथ ही मवेशियों को पालने वाले वे पशुपालक भी, क्योंकि जो मवेशी पहले घास के मैदानों में जाकर अपना चारा ढूंढ़ते थे।
आज बढ़ते शहरीकरण के कारण घास और पेड़-पौधों के विलुप्त होने पर अपना थोड़ा-बहुत आहार फूल-वाटिकाओं और बचे-खुचे पार्कों की हरियाली से अपना पेट भर लिया करते थे। फिलहाल जहां पंचफूली की खेती की गई है, उसके अगल-बगल से बड़ी तादाद में रोज पैदल स्कूली बच्चे, सुबह-शाम की सैर करने वाले और वहां बने डीटीसी बस स्टॉप पर चढ़ने-उतरने वाले सैकड़ों लोग इन घातक और विषैले फूल-पौधों के प्रभाव में आकर अस्वस्थ होंगे। साथ ही इलाके की बची-खुची भूमि भी इसके बीजों के प्रभाव में आकर अनुर्वर हो जाएगी।
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