मान्नार खाड़ी का ज्वारीय क्षेत्र में स्थापित नितलस्थ पिंजरों में पेनिअस सेमिसलकाटस का पालन
भारत के दक्षिण-पूर्व तट में मात्रार और पाक की खाड़ी में प्रचुर मात्रा में दिखाये पड़नेवाला वाणिज्य प्रमुख समुद्री झींगा है, हरित पुलि झींगा पेनिअस सेमिसलकाटस। यंत्रीकृत ट्रालरों के जरिए यह एकडा जाता है और यहाँ के झींगा अवतरण का 70% इस झींगा का योगदान है (नन्दकुमार, 1980 और 1983) मंडपम के पाक की खागी से पूरे वर्ष के दौरान रोक लगाए 45 दिवस को छोड़ कर बाकी इसकी पकड़ होती है। मंडपम के मान्नार खड़ी से अक्टूबर से मार्च तक की छ: महीनों में इसकी पकड़ होती है। तल्लुवलै नामक परंपरागत मत्स्यन संभार से पूरे वर्ष में इन खाड़ियों से इसकी पकड़ होती है। तटीय उथले पानी में इसकी बढ़ती अच्छी तरह होती है। यह मानते हुए पी सेमिसुलकाट्स के पश्चडिंभकों समुद्री घास संस्तरों से समृद्ध यहाँ के उथले पानी में बनाए पिंजरों पालन किया और बढ़ती की स्थिति का आकलन किया, इसका परिणाम इस लेख में प्रस्तुत किया है।
परीक्षण सामग्री और रीतियाँ
5 x 5 x 1 मी के फ्लवमान फ्रेम में नाइलोन जाल 5 x 5 x 1 मी आकार में सिलाकर और नीचे के भाग में बॉटम इरोशन रोकने को 350 माइक्रोनवाला सिंथेटिक कपड़ा से अतिरिक्त ओढिंग देकर पिंजरा तैयार किया। निम्न ज्वार के समय पिंजरे को तट के निकट के ज्वरीय क्षेत्र में रख दिया। हैचरी में उत्पादित 7000 पश्च डिंभकों का संभरण प्रति वर्ग मी में 280 की संख्या में पिंजरा में किया गया।
ये पश्च डिंभक नवंबर 12, 2008 को मंडपम में ट्राल पकड़ से पाए अंडजनकों के हैचरी में अंडजनन करवाने से प्राप्त हुए थे। इनके अंडजनन पर 4,54,500 नोप्ली प्राप्त हुए थे। पालन टैकों में मिश्रित फैटाप्लोंकटन कल्चर से खिलाकर नोप्लियो को बढ़ाने पर 12 दिवस के बाद 2,03,700 पी.एल.-1 प्राप्त हुए। इन पश्च डिंभकों को 200 टन धारिता के सिमेंट टैकों में आयातित पेल्लेट आकार खाद्य से खिलाया। पश्च डिंभक की बढ़ती की विविध दशाओं में पेल्लेट आहार को टुकड़ा-टुकड़ा करके PL-1 से PL-5, PL-6 से PL-10, PL-11, PL-20 को यथक्रम 150 µ, 350 µ, 500 µ में दे दिया। PL-20 दशा के बाद पार्टिकल साइज़ 800 से 1000 µ वाले कृत्रिम आहार से खिलाया । इसके बाद इन्हें पिंजरों में पालने लगा और 10 दिवस के लिए कृत्रिम आहार दे दिया। इसके बाद टुकड़े किए तारली आहार के रूप में दे दिया। 30वें दिवस में बढ़ती मंद देखने पर फिर से पेल्लेट आहार देने लगा। दिए गए आहार की मात्रा का आकलन प्रत्येक सांप्लिंग में जीव के भार से किया गया। प्रत्येक दस दिवस के अंतराल में जीव की लंबाई और भार का आकलन किया। परिवेशी तापमान लवणता और pH की जलशारिकी स्थितियाँ रोज रेकार्ड किया।
परिणाम और चर्चा
ट्रर्कमेन, 2007 के अनुसार हरित पुलि झींगा पी. सेमिसलकट्स का पालन मिट्टी के बर्तनों में दुनिया के कई स्थानों में हो रहा है। भारत में मंडपम के तटीय कुंडो में इसका पालन सफल रूप से किया गया है (नंदकुमार, 1982, महेश्वरडु आदि 1996)। अभी तक हुआ अधिकांश अध्ययन में यह व्यक्त हुआ है कि चाहे प्रयोग शाला में हो या बर्तन के कुडों में हो पुलि झींगा की बढ़ती हुई है पर प्राकृतिक परिवेश में किए गए अध्ययन की सूचना कम उपलब्ध है। अत: इस अध्ययन में पिंजरों की स्थापना उथले ज्वारीय जल के प्राकृतिक वातावरण में किया गया जहाँ सिर्फ जीवों को समुद्री घास संस्तरों से संपर्क रहने का मौका नहीं दिया था। इस परीक्षण की शुरुआत में समुद्र शांत था लेकिन जब चौथे हफ्ते में तरंगायन के बढ़ जाने पर पंजर का नितलस्थ भाग टूट जाने से झींगे बच गए। फिर भी 50 दिवस के इस पालन परीक्षण से यह सूचना मिलती है। पिंजरों का निचला भाग थोड़ा बलवत करके थोड़ा और गहराई के क्षेत्र में इन बेटटम-सेट केजों को रखके हरित पुलि झींगों का पालन सफल रूप से किया जा सकता है।
पी.से मिसुलकेरस का पंजरा पालन से यह हुआ कि 50 दिवस के पालन में इसका औसत आकार 27 मि.मी. से 64.4 में बढ़ गया और बढ़ती दर 0.7 मि.मी./दिवस हो गया। भार के संबंध में भी वृद्धि हुई। प्रारंभ के 0.1 ग्राम से 50वाँ दिवस में 2.06 ग्राम से बढ़ती दर 0.039 ग्राम/दिवस हो गयी। प्रत्येक 10 दिवस के अंतराल में किए अध्ययन से व्यक्त हुआ कि पहले के 30 दिवस में बढ़ती पर कम था पर बाद में विचारणीय रूप से बढ़ गया। पहले के 10 दिवस की बढ़ती दर 0.3 मि.मी./दिवस थी दूसरे दस दिवस में 0.7 मि.मी./दिवस थी। तीसरे दस दिवस में आहार बदलने पर मंद बढ़ती देखी गई पर जब कृत्रिम खाद्य फिर से दिया यह 1.21 मि.मी./दिवस हो गयी। अंतिम हफ्ते समुद्र अशांत होने से तटीय ज्वार से लंगर के रूप में रखे पत्थर फिसलने के भार से जाल टूट गया और झींगा समुद्र की ओर दौड़ पड़ा। फिर भी देखी गई बढ़ती दर से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि तटीय उथले जल में पिंजरों में पी.सेमिसुलकाट्स झींगा का पालन साध्य है।
इस समय पानी का परिवेशी तापमान 24.3 से 33.1०C और लवणीयता 28.0 ppt से 33.2 ppt थे। pH Value 6.5 से 7.9 के बीच था।
यद्यपि प्रकृति क्षोभ से यह परीक्षण पूरा नहीं कर पाया। पाई गई सूचनाएँ संतोषजनक है इसलिए विवध स्थानों में भिन्न-भिन्न सघनताओं में जीवों का संभरण करके वाणिज्यक तौर पर यह पालन प्रौद्योगिकी विकसित करने की दिशा में कारवाई उठाई जानी है।
सारणी-1
मंडपम के मान्नार खाड़ी की ज्वारीय मेखला में स्थापित बोटम सेट पिंजरे में पालित यी. सेमिसलकेप्स की बढ़ती दर (लंबाई मि.मी. में)
निरीक्षण का दिवस |
संभरणोत्तर दिवस |
आकार |
कुल लंबाई (मि.मी.) |
बढ़ती (मि.मी.) |
संभरण दिवस से मि.ली. बढ़ती मि.मी. दिवस |
प्रत्येक 10 दिवस में बढ़ती दर (मि.मी./दिवस) |
||
न्यूनतम |
उच्चतम |
औसत |
||||||
19-2-09 |
0 |
100 |
23 |
38 |
27 |
|
|
|
28-2-09 |
10 |
19 |
25 |
37 |
30 |
3 |
0.3 |
0.3 |
10/3/2009 |
20 |
24 |
34 |
44 |
37 |
10 |
0.5 |
0.7 |
20-3-09 |
30 |
27 |
33 |
45 |
38 |
11 |
0.4 |
0.1* |
30-3-09 |
40 |
28 |
41 |
80 |
50 |
23 |
0.6 |
1.2 |
10/4/2009 |
50 |
22 |
58 |
72 |
64 |
37 |
0.7 |
1.4 |
*कृत्रिम खाद्य से तारली मांस देने पर बढ़ती कम हो गयी।
सारणी-2
मंडपम के मान्नार खाड़ी की ज्वारीय मेखला में स्थापित बोत्म सेट पिंजरे में पालित पेनिअस सेमिसलकेप्स की बढ़ती दर (भार ग्राम में)
निरीक्षण का दिवस |
संभरणोत्तर दिवस |
आकार |
भार (ग्रा.) |
भार में बढ़ती (ग्रा.) |
मि.ली. बढ़ती (ग्रा./दिवस) |
प्रत्येक 10 दिवस में बढ़ती दर (मि.मी./दिवस) |
||
न्यूनतम |
उच्चतम |
औसत |
||||||
19-2-09 |
0 |
100 |
|
|
0.1 |
|
|
|
28-2-09 |
10 |
19 |
|
|
Not weighed |
|
|
|
10/3/2009 |
20 |
24 |
|
|
0.39 |
0.29 |
0.015 |
|
20-3-09 |
30 |
27 |
|
|
0.44 |
0.34 |
0.011 |
0.005 |
30-3-09 |
40 |
28 |
0.6 |
4 |
1.07 |
0.97 |
0.024 |
0.063 |
10/4/2009 |
50 |
22 |
1.35 |
2.9 |
2.06 |
1.96 |
0.039 |
0.099 |
सारणी-3
परीक्षण काल की जलराशिकी स्थिति
अवधि (हफ्ते) |
तापमान 0C |
लवणता (ppt) |
pH |
|
न्यूनतम |
अधिकतम |
|||
I |
25.5 |
28.5 |
33.0 |
7.9 |
II |
30.9 |
32.1 |
33.2 |
7.8 |
III |
24.3 |
25.7 |
28.0 |
7.8 |
IV |
29.4 |
30.4 |
32.5 |
6.5 |
V |
31.2 |
32.7 |
32.2 |
7.8 |
VI |
32.7 |
33.1 |
32.3 |
7.7 |
VII |
31.5 |
32.0 |
33.0 |
7.8 |
VIII |
29.5 |
30.9 |
32.0 |
7.8 |
IX |
30.9 |
32.0 |
31.7 |
7.7 |
स्रोत: केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, मंडपम क्षेत्रीय केंद्र, तमिलनाडु