परिचय
जरबेरा अपनी सुन्दरता के कारण दस महत्वपूर्ण कर्त्तन फूलों में एक अलग स्थान रखता है। व्यापारिक फूलों में इसे बहुत ही पसंद किया जाता है। विभिन्न रंगों में पाए जाने के कारण इसे क्यारियों, गमलों और रॉक गार्डेन में लगाया जाता है।
उत्पत्ति
जरबेरा बहुवर्षीय, तना रहित पौधा है। इस फूल का उत्पत्ति स्थान दक्षिण अफ्रीका और एशिया महाद्वीप माना जाता है। यह एस्टेरेसी कुल का पौधा है। जरबेरा वंश में 40 जातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें सिर्फ जरबेरा जेमीसोनी जाति को ही फूलों के लिए लगाया जाता है। यह एस्टेरेसी कुल का पौधा है।
किस्म
व्यापारिक स्तर से विश्व में निम्नलिखित किस्मों को लगाया जाता है – डस्टी (लाल), फ्लेमिन्गो (पेल रोज), फ्रेडेजी (गुलाबी), फ्रेडकिंग (पीला), फ्लोरिडा (लाल), मारोन क्लेमेंटीन (नारंगी), नाड्जा (पीला), टेराक्वीन (गुलाबी), युरेनस (पीला), वेलेन्टाइन (गुलाबी), वेस्टा (लाल) इत्यादि।
मिट्टी एवं जलवायु
फूलों की अच्छी पैदावार के लिए जल निकास वाली उपजाऊ, हल्की और उदासीन से हल्की क्षारीयमिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी. एच. मान 5.0 से 7.2 रहने पर फूल अधिक खिलते हैं तथा फूल के डंठल लम्बे निकलते हैं।
जरबेरा उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में खुली जगहों पर लगाया जाता है, परन्तु शीतोष्ण जलवायु में इसे हरित घर में लगाया जाता है। यह पौधा ठंडे मौसम में धूप पसंद करता है तथा गर्मी के मौसम में हल्की छाया की जरूरत होती है। जाड़े में खराब रोशनी से फूल कम खिलते हैं।
पौध रोपण
जरबेरा के पौधे को 1 से 1.2 मीटर चौड़ी तथा 20 सें. मी. ऊँची क्यारियों में 30 30 सें.मी. की दूरी पर रोपना चाहिए। पौधा रोपने के पहले क्यारियों की लम्बाई अपनी आवश्यकता अनुसार रखकर उसमें प्रचुर मात्रा में कार्बनिक खाद या पत्ती खाद, या केचुआ खाद इत्यादि मिलाना चाहिए तथा उस बेड को रासायनिक दवा से उपचारित कर ही उसमें पौधे को लगाना चाहिए, नहीं तो रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। जून-जुलाई में पौधा लगाने से फूल अधिक खिलते हैं।
खाद एवं उर्वरक
जल निकास वाले माध्यम में जरबेरा को जमीन और गमले में लगा सकते है। खाद एवं उर्वरक का प्रयोग समय-समय पर करने से पौधे विकास और वृद्धि के साथ फूल उत्पादन भी अच्छा करते है। खाद एवं उर्वरक का उपयोग मिट्टी जाँच के आधार पर करना चाहिए।
अच्छे फूल उत्पादन के लिए 1000 वर्ग मीटर जगह में 13 कि.ग्रा. यूरिया, 25 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट और 10 कि. ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रत्येक महीना के हिसाब से वानस्पतिक वृद्धि के लिए 3 महीना तक देते रहते है। वानस्पतिक वृद्धि पूर्ण होने के बाद 13 कि.ग्राम यूरिया, 25 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट तथा 13 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ़ पोटाश इतनी ही जगह में 6 महीना तक प्रत्येक महीना देते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व में बोरोन, जिंक, कैल्सियम, मैग्निशियम का प्रयोग करने पर फूल की गुणवत्ता अच्छी होती है।
प्रसारण
जरबेरा का प्रसारण बीज एवं वानस्पतिक विधि द्वारा किया जाता है। बीज से प्रसारण में फूलों की गुणवत्ता में परिवर्तन होने के कारण इसका प्रसारण वानस्पतिक विधि के विभाजन, कर्त्तन या उत्तक संवर्धन से करने पर मातृ पौधे जैसे फूलों का उत्पादन होता है।
(1) बीज द्वारा: फूलों में बीज बनने की प्रक्रिया 10 से 12 बजे सुबह परागण द्वारा उष्ण एवं धूपयुक्त जगहों पर होती है। अप्राकृतिक ढंग से परागण से अधिक मात्रा में बीज बनते हैं। बीज को जल्द से जल्द निकाल कर अंकुरण कराने पर अंकुरण अच्छा होता है। बीज के अंकुरण में 5-6 सप्ताह का समय लगता है, जो डेढ़ से दो साल में फूल देते हैं।
(2) विभाजन: जब पौधे गुच्छे में हो जाते हैं तब बरसात के मौसम में पौधे का विभाजन कर पौधे बनाए जाते हैं।
(3) कर्त्तन: जरबेरा के पौधे को 3 सप्ताह पूर्व ही सिंचाई बंद कर उसकी जड़ों को काट देना चाहिए। तनों को ऐसा काटना चाहिए कि उसमें कलियाँ हों। उस कटे हुए भाग में रुटेक्स दवा का प्रयोग कर 25-300 सेंटीग्रेड तापमान तथा 80% आर्द्र वाली जगह पर लगा देना चाहिए। पौधे बनने में 2 से 3 महीने लगते हैं। इस प्रक्रिया से मातृ पौधे से 40-50 पौधे 2-3 महीने में बनाए जा सकते हैं।
(4) सूक्ष्म प्रसारण: उत्तक संवर्धन द्वारा रोग मुक्त पौधे तैयार किए जाते हैं। पौधे के अग्र भाग, कलियों, फूलों के उत्तक से उत्तक संवर्धन द्वारा प्रयोगशाला में नये पौधे तैयार किये जाते हैं।
सिंचाई
जरबेरा गहरी जड़ वाला पौधा होने के कारण इसमें हल्की सिंचाई की आवश्यकता हमेशा रहती हैं। किसी भी अवस्था में सिंचाई की कमी उसकी वृद्धि, गुणवत्ता तथा फूल के उत्पादन को प्रभावित करती है। जाड़े में 10-12 दिनों के अंतराल पर तथा गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहनी चाहिए। हरित घर में लगे पौधे की सिंचाई टपकन विधि से आवश्यकता अनुसार करते रहनी चाहिए।
गमले में जरबेरा
गमले में जरबेरा लगाने के लिए 20-25 सें.मी. का गमला लेना चाहिए। गमले में 70% गोबर खाद या केचुआ खाद या कोको पीट तथा 30% मिट्टी होने से पौधे स्वस्थ होते हैं तथा अधिक फूल देते हैं। समय-समय पर 200 मि. ग्राम नाइट्रोजन, 100 मि. ग्राम फास्फोरस और 300 मि. ग्राम पोटाश प्रति लीटर पानी में घोलकर सिंचाई करने से अधिक फूल खिलते हैं।
उपज
जरबेरा पौधा लगाने के तीन महीना बाद फूल खिलना शुरू हो जाता है। हरित घर में प्रति वर्ग मीटर में प्रति वर्ष 200-250 फूल का उत्पादन होता है। खुली जगहों पर 120-150 फूल/वर्ग मीटर/ वर्ष खिलते हैं। फूलों को सुबह या शाम के समय काटना चाहिए।
फूलदान जीवन
जरबेरा के कटे फूलों को फूलदान के पानी में 7% सुक्रोज, 25 मि. ग्राम सिल्वर नाइट्रेट और 200 मि. ग्रा. 8- हाइड्रोक्सिक्युनोलाइन साइट्रेट प्रति लीटर पानी में मिलाकर रखने से उन्हें 2 सप्ताह तक ताजा रखा जा सकता है।
बीमारियाँ एवं रोकथाम
जरबेरा में रोग लगने से उपज प्रभावित होती है। कुछ मुख्य रोग और उसके उपचार निम्नलिखित है:
(1) जड़ गलन: यह रोग मिट्टी जनित, पिथियम इरेगुलेरिया फफूंद के कारण होता है। इस रोग में पौधे की वृद्धि रुक जाती है तथा पौधे मर जाते हैं। कॉपर ऑक्सिक्लोराइट दवा के 4 ग्राम/ली. पानी में बने घोल को जड़ों के आस पास देने से रोग को रोका जा सकता है।
(2) ब्लाइट: यह बीमारी ग्रेमोल्ड के नाम से जानी जाती है। यह रोग बोटराइटिस सिनेरिया फफूंद के कारण होता है जो नई कोशिकाओं को मार देता है। यह रोग घने पौधा लगाने तथा जल निकास की असुविधा होने पर ज्यादा लगता है। बेनलेट या वेविस्टीन दवा का 1 ग्राम/ली. पानी में बने घोल का छिड़काव करना लाभप्रद होता है।
(3) पाउडरी मिल्ड्यू: यह रोग इरिस्फी चिचोरेसिएरम और ओडियम क्रायसिफोडिस फफूंद के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर सफेद पाउडर जैसा दाग हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए फूल खिलने के पहले 2.5 ग्राम सल्फेक्स या 3 मि.ली. डायकोफाल दवा का प्रतिलीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।
(4) पर्णदाग: यह रोग फाइलोस्टिकटा जरबेरी और अल्टेनेरिया स्पेसिज फफूंद के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर भूरे तथा काले रंग का दाग होने लगता है। इस रोग की रोकथाम के लिए वेविस्टीन दवा का 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(5) टोबैको रेटल वायरस: यह रोग ट्राइकोडोरस जाति के निमेटोड से फैलता है। इस रोग में पीले या काले गोल दाग पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए एल्डीकार्ब या फ्यूराडान दवा का 500 ग्राम/एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।
कीट एवं रोकथाम
(1) सफेद मक्खी: यह नन्हा कीट पत्तियों का रस चूसता है। पत्तियों पर हरापन रहित दाग पड़ जाते हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इस कीट की रोक थाम के लिए रोगर दवा का 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(2) लीफ माइनर: यह नन्हा कीट पत्तियों के बीच सुरंग बनाकर जाली के समान कर देता है। इस कीट का प्रकोप होने पर क्लोरोडेन या टोक्साफेन दवा का 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
(3) माहू: यह कीट पौधे के ऊपर के भाग से रस चूस कर नुकसान पहुँचाता है जिससे पौधे कमजोर होकर मर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा का 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
(4) माइज: यह छोटा सूक्ष्म कीट पत्तियों का रस चूसकर पत्तियों को रंगहीन तथा खराब बना देता है। 1 मि.ली. कैलाथेन दवा का प्रति ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।
स्त्रोत: रामकृष्ण मिशन आश्रम, दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, राँची।
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