फसलों की संतुलित पोषण और मिट्टी की जांच
बिहार में मृदा की जांच को लेकर अभी भी किसान पूरी तरह से जागरूक नहीं हुए हैं। किसान खेती के लिए अच्छी कंपनियों के बीज, खाद ,यूरिया व रासायनिक कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। बावजूद फसल की पैदावार उतनी नहीं होती जितनी की उम्मीद करते हैं। वजह है कि किसान मिट्टी की जांच में रूचि नहीं ले रहे हैं।
मृदा (मिट्टी) परीक्षण का महत्व व उपयोगिता
आधुनिक समय में उर्वरकों का महत्वपूर्ण स्थान है। फसल उत्पादन की कुल क्षमता का करीब 45 प्रतिशत खर्च उर्वरकों पर होता है। इसलिए वर्तमान समय में उर्वरकों की मांग एवं मूल्य को ध्यान में रखते हुए यह नितांत आवश्यक है कि फसल बोने से पूर्व ही उर्वरकों की दी जाने वाली कुल मात्र का निर्धारण मृदा परीक्षण के आधार पर कर किया जाये। मृदा (मिट्टी) परीक्षण वह रासायनिक प्रक्रिया है जिससे मृदा के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता का निर्धारण किया जाता है। इस विधि से पोषक तत्वों की आवश्यकता फसल बोने से पूर्व ही ज्ञात हो जाती है, जिससे आवश्यक उर्वरकों की समयानुसार पूर्ति की जा सके।
मृदा परीक्षण का उद्देश्य
मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों का सही-सही निर्धारण करना।
- विभिन्न फसलों की दृष्टि से पोषक तत्वों की कमी का पता करके किसान को स्पष्ट सूचना देना।
- मृदा में पोषक तत्वों की स्थिति ज्ञात करना और उसके आधार पर फसलों के अनुसार उर्वरकों को डालने की संस्तुति करना।
- मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त उर्वरकों की संस्तुति व्यक्त करना। साथ ही लक्षित उत्पादन के लिए उर्वरक अनुशंसा करना।
- मृदा की विशिष्ट दशाओं का निर्धारण करना जिससे मृदा को कृषि विधियों और मृदा सुधारक पदार्थो की सहायता से सुधारा जा सके।
नमूना एकत्र करने के महत्वपूर्ण बिंदु
मृदा परीक्षण में मृदा नमूना का विशेष स्थान रखता है, जिसका परीक्षण करके उर्वरकों का निर्धारण किया जाता है, यह भूमि के एक बड़े भाग का प्रतिनिधि नमूना होता है। मृदा परीक्षण के लिए आधा किग़्रा़ मिट्टी का नमूना लिया जाता है। मृदा नमूना के लिए अधिकतम भूमि की जोत 1 एकड़ होनी चाहिए। अधिक जोत होने पर इसे अलग-अलग खंडों में विभक्त कर मृदा लिया जाता है।
नमूना एकत्र करने की विधि
- जिस भूमि क्षेत्र से नमूना एकत्र हो उसे भूमि के ढाल, मृदा की संरचना, रंग, पिछली फसलों की किस्म, उपज तथा उसमें दी गई उर्वरकों की मात्र आदि बातों को ध्यान में रखकर सबसे पहले अलग-अलग खण्डों में बांट देना चाहिए। बाद में प्रत्येक खण्ड से अलग-अलग नमूने लेने चाहिए।
- प्रत्येक खण्ड से 8-10 स्थानों से ट आकार का 6 इंच की गहराई तक के नमूने खुरपी द्वारा एकत्र करने चाहिए।
- तत्पश्चात सभी नमूनों को एक स्थान पर एकत्र करके बारीक करें व आधा किग़्रा़ प्रतिनिधि नमूना ले लें। इसे छाया में सुखाकर कपड़े अथवा पोलीथीन की साफथैली में भर लेना चाहिए और पहचान के लिए मोटे कागज के लेबिल पर निम्न सूचना लिखकर उसी थैली के अन्दर रख देना चाहिए तथा दूसरे लेबिल के ऊपर बांध देना चाहिए।
- किसान का नाम एवं पिता का नाम
- खेत का नम्बर या नाम
- ग़्राम का नाम
- प्रखण्ड का नाम
- जिला का नाम
- पिछली फसल का ब्यौरा
- नमूने की गहराई
- ऩमूना एकत्र करने वाले का नाम
- भविष्य में बोई जाने वाली फसल
महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना
- गीली मिट्टी से मृदा नमूना नहीं लेना चाहिए।
- खेत में अधिक ऊंची व अधिक नीची जगह से नमूना नहीं लेना चाहिए।
- पुरानी मेड़, कम्पोस्ट के गड्ढे तथा खाद डाले गये स्थान से नमूना न लें।
- पेड़ तथा सड़क के किनारे व नाली के पास मृदा पानी नहीं लेना चाहिए।
- मृदा की किस्म भिन्न हो या फसल में कोई रोग हो तो मृदा नमूने अलग-अलग एकत्र करना
- खड़ी फसलों से नमूना न लें।
- ऊसर भूमि ने नमूना लेने के लिए 4 फीट का आयाताकार गड्ढा 3 फीट गहरी जगह खोदकर, मृदा नमूना विभिन्न गहराइयों जैसे 9 इंच, 9-18 इ्रंच, 18-30 इंच के नमूने लिये जायें।
- फसल की बुआई के लगभग डेढ़ माह पूवे ही मृदा नमूने परीक्षण हेतु प्रयोगशाला में भेजना चाहिए।
उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण
प्रयोगशाला में प्रतिनिधि मृदा नमूने की विभिन्न माप के छिद्रों वाली छलनियों से छान कर परीक्षण के लिए तैयार करके पी़एच़, जीवांशिक मात्र, उपलब्ध फास्फेट एवं पोटाश की मात्रा हेतु परीक्षण करते हैं। इस प्रकार से प्राप्त आंकड़ों को निम्न, मध्यम एवं उच्च वर्गो में सुनियोजित करके निर्धारित सीमाओं के आधार पर उर्वरक सुझाव मिलते हैं।
लेखन: श्री राजबीर सिंह, चीफ डेवलपमेंट मैनेजर, पारादीप फास्फेट कंपनी, पटना