जैविक कृषि क्या है?
जैविक कृषि तकनीक में दलहनी फसलें, जैविक खाद, जीवाणु खाद, केंचुआ द्वारा तैयार किये गये खाद एवं फसल अवशेषों द्वारा पोषण प्रबंध तथा कीट एवं बीमारियों के जैविक नियंत्रण, पशुधन प्रबंधन, जलछाजन, जनसहभागिता सम्मिलित हैं। जैविक पोषण प्रबंधन तथा कीट एवं बीमारियों के जैविक नियंत्रण के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित हैं।
दलहनी फसलों का प्रयोग के बारे में बतायें
दलहनी फसलों को सब्जियों के साथ सम्मिलित किया जा सकता है। मुख्यत: दलहनी फसलों को सब्जियों के साथ अंत: फसल के रूप में नया हरी खाद के रूप में उगाया जा सकता है। दलहनी फसलों को सम्मिलित करने से सब्जी में उत्साहजनक वृद्धि तथा उपज में स्थिरता देखी गई है। दलहनी फसलें खेत में उगने से वायुमण्डलीयनेत्रजन का दलहनी फसलों द्वारा किये जाने वाले नेत्रजन-यौगिकीकरण का लाभ मिलता है। दलहनी फसलों द्वारा यौगिकीकृत नेत्रजन की औसत मात्रा 35-40 कि.ग्रा./हेक्टेयर देखी गई है।
हरी खाद का प्रयोग के बारे में बतायें
हरी खाद के प्रयोग से जैविक पदार्थ के अतिरिक्त मृदा में नेत्रजन की मात्रा बढ़ जाती है। राईजोबियम नामक जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रांथिकाएं बनाते हैं तथा वायुमण्डलीय नेत्रजन का यौगिकीकरण करके पौधों को सुलभ कराता है। इसके अतिरिक्त जीव रासायनिक क्रिया में तीव्रता भी आती है तथा पोषक तत्वों का संरक्षण व उपलब्धता बढ़ जाती है। ढैंचा दलहनी वर्ग के हरी खाद के लिए एक बहुत ही उपयोगी पौधा है जो बरसात के मौसम में उगाया जाता है। ढैंचा के अतिरिक्त बरसात के मौसम में सनई तथा शुष्क मौसम में सन्जी एवं बरसीम उगाया जता है। हरी खाद की जुताई उसी समय करनी चाहिए जब फसल में काफी पत्तियाँ आ जाएं, परन्तु वे कड़ी न हो जिससे उनके सड़ने में बाधा न होने पाए। साधारणत: बुआई से 45-50 दिन बाद हरी खाद को पलट कर जुताई करना चाहिए। इसके अतिरिक्त वनखेती तंत्रानुसार सुबबूल (ल्यूकायना) लगाकर उसके पत्तों का हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
केंचुआ खाद क्या है?
यह एक उच्च कोटि का संतुलित जैविक खाद है जो एसीनिया फोटिडा तथा युड्रिलस युजनी नामक केंचुओं द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें नेत्रजन, फ़ॉस्फोरस तथा पोटाश के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व एवं इन्जाइम उपलब्ध होते हैं जो पौधों के लिए आवश्यक होते हैं। यह जमीन की उर्वरकता तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता को भी बढ़ाता है।
केंचुआ खाद के प्रयोग विधि के बारे में बतायें
- खेत की अंतिम जुताई के समय 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर केंचुआ खाद डालकर जुताई करें।
- बीज लगाने से पहले पंक्ति में इसे अच्छी तरह डालें अथवा बिचड़ा या पौधा लगाने से पूर्व इसको अच्छी तरह डाल दें।
- मिट्टी चढ़ाने के समय भी इसे डालें।
- निकौनी, गुड़ाई के समय केंचुआ खाद पौधों की जड़ में डालकर मिट्टी से ढँक दें अथवा पौधों की रोपाई एवं बीजों की बुनाई के समय केंचुआ खाद डालकर बुनाई-रोपाई करें।
- अच्छे परिणाम के लिए केंचुआ खाद का प्रयोग करने के बाद पुआल, सुखी पत्ती आदि पलवार (मलचिंग) का उपयोग करें।
जीवाणु खाद से क्या लाभ है?
कुछ जीवाणु पौधों की जड़ों में रहकर वायुमंडलीयनेत्रजन या भूमि में उपलब्ध अघुलनशील फास्फोरस को पौधे के लिए उपयोगी बनाते हैं तथा पौधों के वृद्धि एवं उपज बढ़ाने में सक्रिय योगदान देने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बनाये रखते हैं।
नेत्रजन उपलब्ध कराने वाले जीवाणु खाद वातावरण में उपलब्ध नेत्रजन गैस को अमोनिया में परिवर्तित करके पौधों को आसानी से उपलब्ध कराते हैं। सब्जी एवं मसाले जैसी फसलों में नेत्रजन की उपलब्धता को बढ़ाने वाली जीवाणु खाद एजोटोबैक्टर तथा एजोस्पाइरिलम हैं।
फास्फोरस उपलब्ध कराने वाले जीवाणु खाद में ऐसे जीवाणु होते हैं जो भूमि में उपस्थित अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील रूप में बदल देते हैं जिससे पौधे आसानी से अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु खाद फास्फोबैक्ट्रीन तथा फास्फाटिका नाम से बाजार में उपलब्ध है।
जीवाणु खादों के प्रयोग विधि के बारे में बतायें
- जीवाणु खादों से बीज को उपचारित करना।
- जीवाणु खादों को भूमि में मिलाना।
बीजोपचार विधि में 250 ग्रा. गुड़ एक लीटर पानी में उबालकर ठंडा करने के बाद उसमें 500 ग्राम जीवाणु खाद तथा एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त बीज को अच्छी तरह मिलाकर आधा घंटा तक छायादार स्थान में सुखाने के बाद उपचारित बीज की बुआई करनी चाहिए। कल्चर को धूप से बचाना चाहिए। मिट्टी उपचार के लिए 2 कि.ग्रा. कल्चर, 25 कि.ग्रा. गोबर की सड़ी खाद तथा 25 कि.ग्रा. मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिलाकर भींगे हुए जूट के बोरे से ढककर छायादार स्थान पर 7-10 दिन तक रखें। इस प्रक्रिया को चार्जिंग कहा जाता है। सात दिन बाद उपरोक्त मिश्रण को एक हेक्टेयर में समान रूप से बिखेर देना चाहिए। इसका प्रयोग करते समय उर्वरक तथा रासायनिक दवाओं का उपयोग नहीं करना चाहिए।
कीट एवं बीमारियों के जैविक नियंत्रण विधि क्या है?
रासायनिक दवाओं के द्वारा कीट एवं बीमारियों का प्रबंधन एक सरल एवं प्रभावशाली तरीका है। परन्तु रासायनिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग, प्रबंधन के साथ-साथ कृषि व्यवस्था के लिए कई नई समस्याओं को भी जन्म देता है।
- कीट में कीटनाशक के प्रति रोधक क्षमता का पैदा होना।
- वातावरण एवं भूमिगत – जल प्रदूषण।
- कृषि उत्पाद में रसायनिक दवा के अवशेष की मात्रा, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- फसल के कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या का ह्रास।
- रसायनिक दवाओं, छिड़काव उपकरणों एवं मजदूरी पर होने वाला खर्च।
- रसायनिक दवाओं द्वारा उत्पादित फसलों में भंडारण क्षमता की कमी।
उपरोक्त सभी समस्याओं को देखते हुए फसल संरक्षण के लिए जैविक नियंत्रण विधियाँ अपनाकर तथा कृषि कार्यो में थोड़े परिवर्तन कर कीड़ों तथा बीमारियों से बचाव किया जा सकता है और दवाओं पर होनेवाले खर्च को कम किया जा सकता है। कीट एवं बीमारियों के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है।
- प्रतिरोधी पौधों का प्रयोग।
- अगेती रोपाई करना।
- पलवार (मल्चिंग) द्वारा खरपतवार को नष्ट करना तथा खेत में नमी को बनाए रखना।
- उचित समय पर पानी का प्रयोग तथा अत्यधिक पानी के उचित निकास का प्रबंध करना।
- जैविक पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में प्रयोग करना।
- खेत में करंज एवं नीम की खल्ली का प्रयोग करना।
- गंधपाश (फेरोमोन ट्रैप) द्वारा कीड़ों को पकड़ना।
- प्राकृतिक शत्रुओं के द्वारा कीड़ों एवं बीमारियों के कारकों का रोकथाम।
- वानस्पतिक पदार्थो जैसे – नीम, तुलसी, लेनटाना, करंज इत्यादि की पत्तियों के घोल के प्रयोग से बीमारी एवं कीड़ों की समस्या को कम करना। इन सभी उपायों द्वारा कम खर्च में फसल की सुरक्षा की जा सकती है।
जैविक बीमारीनाशक के बारे में बतायें
ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशक है जिसका प्रयोग सभी फसलों में फफूंद से होने वाले बीमारियाँ जैसे – जड़ गलन, पौध गलन, झुलसा इत्यादि रोगों की रोकथाम के लिए किया जा सकता है। साथ ही टमाटर एवं बैगन के जीवाणु मुरझा रोग के रोकथाम के लिए उपयुक्त पाया गया है। बाजार में ट्राइकोडर्मा विभिन्न नामों से बिकता है जैसे – मोनीटर डब्लू पी, मोनीटर-एस, बायोडर्मा, ट्राइको एस पी, ट्राइकोडर्मा, बायोनैब टी एवं फुले ट्राइको किल के नाम से उपलब्ध है। इसके प्रयोग से मिट्टी जनित अनेक बीमारियों का रोकथाम की जा सकती है। साथ ही पौधे की बढ़वार अच्छी होती है। इसका प्रयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है। उपचार के लिए सब्जियों में नर्सरी लगाने के पहले 4 ग्रा. ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज से उपचारित कर बीज लगावें। खेतों में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करने के लिए गोबर की खाद को उपचारित कर लगावें। एक बैलगाड़ी सड़ी हुई गोबर की खाद (250-300 किलोग्राम) में 100 ग्रा. ट्राइकोडर्मा पाउडर छिड़ककर अच्छी तरह मिलावें। 3-4 दिनों पर 3-4 बार पलटें ताकि ट्राइकोडर्मा अच्छी तरह खाद में मिल जाये तथा फफूंद पूरे खाद में फ़ैल जाये। खाद में नमी बनाये रखें के लिए गर्मी के दिनों में भींगे बोरे या अखबार से ढकें। जाड़े में पालीथिन से ढका जा सकता है ध्यान दें कि हल्की नमी 20 प्रतिशत बनी रहे तथा तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेट से न बढ़े। इस प्रकार से गोबर की खाद को उपयुक्त मात्रा के अनुसार सब्जी एवं फल फसलों में दें।
जैविक कीटनाशक का प्रयोग के बारे में बतायें
बैसिलस थुरिनजेन्सीस: यह संक्षेप में बी.टी. के नाम से जाना जाता है जो फूलगोभी एवं पतागोभी पर हीरपीट फतिंगों का नियंत्रण करता है। इसका 500-1000 ग्राम कल्चर प्रति हेक्टेयर, 650 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए। बाजार में यह डेल्फिन नाम से उपलब्ध है।
ट्राईकोग्रामा: यह छोटे ततैया कर आधारित है जो पतंगों के अंडे के परजीवी होते हैं। इसका 8 से 12 कार्ड प्रति हेक्टेयर के दर से 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 3-4 बार फसलों में शाम के समय लगा दिया जता है। ट्राईकोग्रामा बैक्ट्री फूलगोभी एवं पतागोभी के लिए तथा ट्राइकोग्रामा किलोनिस अन्य सब्जियों में प्रयोग किया जाता है।
नीम आधारित कीटनाशक: इसका प्रयोग सफेद मक्खी, भृंग, फुदका (जैसिड्स), कटुआ कीट, टहनी तथा फल वेधक सुंडी पर किया जाता है। ये कीड़ों के जीवन चक्र को कमजोर बनाता है। नीम के बीज का घोल बनाने के लिए 35 कि.ग्रा. नीम के बीज को पानी में पीसकर 100 ली. घोल तैयार कर टब में जमा करें। 12 घंटे बाद इसे कपड़े से छानकर प्रति ली. घोल को 6 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें। एक हेक्टेयर में लगी सब्जी फसल पर छिड़काव के लिए लगभग 700 ली. नीम के बीज के घोल की आवश्यकता होती है।