परिचय
पूर्वी भारत के जन-जातीय बहुल वर्षाश्रित पठारी क्षेत्रों में कृषि योग्य टांड़ भूमि प्रायः धान अथवा मोटे अनाजों की खेती हेतु प्रयोग में लाई जाती है। इन फसलों की उत्पादन क्षमता कम होने के साथ-साथ वर्ष की शेष अवधि में भूमि प्रायः खाली रहती है। झारखण्ड के परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो यहाँ की खाद्यान आवश्यकता (लगभग 45 लाख टन) की मात्रा आधा ही राज्य में उत्पादित होता है शेष अन्य राज्यों से आयात किया जाता है। राज्य में बढ़ती जनसंख्या के दबाव एवं उसके अनुरूप रोजगार सृजन न हो पाने के कारण वन संपदा का ह्रास भी तीव्र गति से हो रहा है। सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जलछाजन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनके अंतर्गत वर्षा जल को संचित कर कृषि में इसके उपयोग पर बल दिया जा रहा है।
जलछाजन क्षेत्रों में बागवानी की अपार संभावनाओं एवं इन फसलों की उत्पादन क्षमता को दृष्टिगत करते हुए यहाँ कार्यरत शोध संस्थानों ने फल आधारित कृषि प्रणाली का विकास करने का प्रयास किया है। इसके द्वारा पूर्ण विकसित एवं नए बागों के लिए अंतररासस्यन प्रणालियाँ विकसित का प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादकता स्तर में सुधार पर बल दिया गया है जिसके फलस्वरूप मानकीकृत फल आधारित बहुस्तरीय फसल प्रणालियाँ विकसित की गयी है।
बहुस्तरीय फसल प्रणाली का मुख्य आधार प्राकृतिक संसाधनों का सघन उपयोग कर उत्पादकता बढ़ाना है। जिसमें बाग़ की प्रारभिंक अवस्था में अपेक्षाकृत लंबी विकास अवधि एवं बड़े आकार वाले फल पौधों जैसे- आम, लीची, आवंला, कटहल आदि के बीच की उपलब्ध भूमि में कम बढ़ने एवं अल्प विकास अवधि वाले पूरक फलों जैसे अमरुद, शरीफा, आडू (सतालू), पपीता, नींबू वर्गीय फल आदि की रोपाई की जाती है। फल पौधों की रोपाई के उपरांत उपलब्ध शेष स्थान में वर्षाश्रित अथवा सिंचित मौसमी फसलें जैसे- सब्जियां, पुष्प, दलहन, तिलहन अथवा धान्य फसलें लगाई जा सकती हैं।
आधार फल पौधों का आकार बढ़ने पर पूरक फल पौधों को हटा दिया जाता है जिससे आधार वृक्षों का समुचित विकास होता रहता है। इस अवस्था में पेड़ों के बीच की खाली जमीन में अपेक्षाकृत कम प्रकाश में उगाई जा सकने वाली फसलों जैसे-हल्दी, अदरक इत्यादि की खेती की जा सकती है। इस प्रकार बाग़ की प्रांरभिक अवस्था से ही सतत आय प्राप्त की जा सकती है। भूमि की उवर्रता एवं पर्यावरण सुरक्षा जैसे महती आवश्कताओं के सुधार में भी इसके द्वारा योगदान संभव है।
लीची और आम के बाग़ में पौधों तथा लाइनों के बीच 10 मी. की दुरी रखने की आवश्कता होती है। प्रांरभिक अवस्था में इनके बीच में अमरुद के पौधों की रोपाई की जा सकती है। इस प्रकार एक हेक्टेयर भूमि में 100 लीची अथवा आम तथा 300 अमरुद के पौधों की रोपाई की जाती है। शेष लगभग 70-80% भूमि अनरासस्यन हेतु प्रयोग किया जा सकता है।
लीची एवं अमरुद के नए बाग़ में वर्षाश्रित बोदी के अंतरासस्यन से 20-30 किवंटल प्रति हेक्टेयर की औसत पैदावार ली जा सकती है। पूरक (अमरुद) पौधों से दूसरे/तीसरे वर्ष में मिलने प्रांरभ हो जाते हैं जिनके योगदान से प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक आमदनी मिल सकती है।
बहुस्तरीय फसल प्रणाली की तकनीक
आधार एवं पूरक फलों की उन्नत किस्में: आम लीची एवं अमरुद की उन्नत किस्में तथा परिपक्वता समय का विवरण दिया गया है:
आधार एवं पूरक फलों की उन्नत किस्में एवं परिपक्वता समय
फसल | परिपक्वता समय |
उन्नत किस्में |
आम |
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अगेती |
20-30 मई |
बाम्बे ग्रीन, रानी पसंद, जर्दा, जरदालू |
मध्य अगेती |
30 मई-10 जून |
हिमसागर, गोपाल भोग, किशन भोग |
मध्य |
10-30 जून |
लंगड़ा दशहरी, सफेद मालदह, प्रभाशंकर |
मध्य पछेती |
20 जून-5 जुलाई |
महमूद बहार, मल्लिका |
पिछेती |
25 जून-20 जुलाई |
आम्रपाली, सीपिया, चौसा, फजली |
लीची |
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अगेती |
10-22 मई |
शाही, अझौली, ग्रीन |
मध्य |
20-25 मई |
रोज सेंटेड, अर्ली बेदाना |
मध्य अगेती |
25 मई-10 जून |
स्वर्ण रूपा, चाइना, लेट बेदाना |
पछेती |
5-15 जून |
पूर्वी, कस्बा |
अमरुद |
सरदार, इलाहाबाद सफेद, अर्का मृदुला |
आम के लिए अप्रैल-मई में 90x90x90 सें.मी, एवं अमरुद के लिए 60x60x60 सें.मी, आकार के गड्ढे खोदकर छोड़ देने चाहिए। गड्ढों को 150-20 दिन खुला छोड़ने के बाद 2-3 टोकरी गोबर की खाद (25-30 किग्रा.) २ किग्रा. करंज/नीम की खल्ली, 1 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट एवं 15-20 ग्रा. फ्यूराडॉन-3 जी प्रति गड्ढे की दर से सतह की ऊपर मिट्टी में मिलाकर भर देना चाहिए। एक दो बारिश होने के साथ जब गड्ढे की मिट्टी दब जाय तब पौधों की रोपाई की जा सकती है। पौधे रोपाई के बाद पौधों की समुचित देख-रेख करने के साथ-साथ अंतरसस्य की फसल लेने से अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है। बहुस्तरीय फसल प्रणाली झारखण्ड ही नहीं बल्कि कोरापुट (उड़ीसा), अमिब्कापुर, छतीसगढ़ एवं जबलपुर (मध्यप्रदेश) में भी उत्साहवर्धक लाभ मिला है। जहाँ पर लीची+अमरुद तथा आम+अमरुद के नये बगीचों में बोदी, उरद तथा अरहर की वर्षाश्रित खेती सर्वश्रेष्ठ पायी गिया है, जबकि पूर्ण विकसित आम के बगीचों में हल्दी तथा अदरक की वर्षाश्रित खेती ज्यादा लाभप्रद रही।
अतः झारखण्ड राज्य में आम,लीची तथा कटहल के नये बगीचों एंव पुराने बागों की उपलब्ध लगभग जाय तो इससे अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखण्ड सरकार