परिचय
झारखण्ड में व्यवसायिक स्तर पर फूलों की खेती आरभिक स्तर पर भी है। वर्तमान में गुलाब,जरबेरा, गेंदा, रजनीगन्धा, ग्लेडियोलस तथा अन्य शोभाकारी पौधे प्रमुख हैं। जिनकी खेती की बहुत अधिक संभावनाएं हैं। इसके अलावा गुलदाउदी, कारनेशन, एंथुरियम, एस्टर एवं बेली चमेली को खेती की भी असीम संभावनाएं हैं।
मिट्टी एवं जलवायु: अच्छी जलनिकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की भरपूर मात्रा हो। हल्की अम्लीय मिट्टी तथा अपेक्षाकृत नम जलवायु उपयुक्त होती है। पी.एच-6-7.5
बीज रोपने का समय: सितम्बर-दिसबर
ग्लेडियोलस की खेती
कट प्लावर व्यवसाय में ग्लेडियोलस की मांग सर्वाधिक है। तीन महीने के अंदर इसमें फूल आने लगते हैं। फूलों के साथ-साथ इसके कदं बिक्री द्वारा लाभ कमाया जाता है।
खेत की तैयारी: जुताई के बाद दो ट्रोली गोबर खाद, 150 किलोग्राम करंज खल्ली तथा 10 किलो चूना प्रति एकड़ मिलाकर खेत को अच्छी तरह तैयार करें साथी पाटा लगाने के पश्चात मिट्टी को बराबर/एकसार कर लें। मिट्टी उपचार के लिए 10 किलो लिन्डेन पाउडर/एकड़ खेतों में डाल दें। रसायनिक खाद के रूप में यूरिया+फास्फोरस+पोटाश का (40”20:15 किलोग्रा) का मिश्रण खेतो में डाल दें।
बीज: ग्लेडियोलस की रोपाई कंदों से की जाई है जिन्हें कार्म कहा जाता है। लगाने के लिए मेड़ 1.52.5 इंच व्यास के कंद ज्यादा उपयुक्त होते हैं। ये कंद प्याज की तरह दिखाई पड़ते हैं।
लगाने की दूरी;20 सेंटीमीटर 30 X सेंटीमीटर
बीजोपचार: २ ग्राम प्रति लीटर बेविस्टीन के घोल में 15 मिनट डूबकर बीजोपचार किया जाता है।
ग्लेडियोलस ब्बिज (कार्म) की बुआई की विधि:
1) समतल क्यारी में
2) आलू के समान मेड बनाकर
3) एक मीटर चौड़ी व 1.5 मीटर ऊँची मेड बनाकर
कार्म की संख्या: 60,000-70,000/एकड़
सिंचाई: कदं के पूर्णतया अकुरित हो जाने पर पहली सिंचाई। कंद 10-15 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। इसके बाद मौसमी/भूमि की दशा को देखते हुए 15-15 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए।
फूल निकलना: ग्लेडियोलस के फूल एक लंबी डंडी (स्पाइक) में पंक्ति में आते हैं जो कि प्रजातियों के अनुसार 7-20 तक हो सकते हैं। ये एकल/बहुल हो सकते हैं। जिस प्रजाति में अधिक फूल होते हैं उसे उतनी अच्छी प्रजाति माना जाता है। कदं लगाने के 65-90 दिनों के अंदर फूल आ जाते हैं। स्पाइक के दो तीन कली में रंग दिखने पर स्पाइक काट लिए जाते हैं। कंदों की खुदाई एवं भंडारण फूल कट जाने के 45 दिन पर किया जाता है।
कंदों के खुदाई के दो सप्ताह पूर्व सिंचाई बंद कर लेनी चाहिए। खुदे कंद को २ ग्राम बेविस्टीन घोल में 15 मिनट डुबोने के पश्चात छायादार कमरे में फैलाकर सुखा लेना चाहिए, फिर भंडारण में डाल देना चाहिए।
ग्लेडियोलस के रोग एवं उनसे बचाव: रोटिंग तथा ब्लाईट प्रमुख हैं जिनको केप्टान/बेविस्टीन/रीडोमिल के निअमित छिड़काव से रोका जा सकता है।
जरबेरा
यह एक उभरता हुआ कट फ्लावर है, जिसका उपयोग बुके बनाने, सजावट में किया जाता है। जरबेरा के द्वारा दोहरा लाभ कमाया जा सकता है।
मिट्टी: अच्छी जलनिकास वाली बलुई दोमट मिट्टी, जिसमें जीवांश की भरपूर मात्रा हो।
बीज रोपने का समय: वर्षा के उपरात- अक्तूबर-दिसबर में।
खेत की तैयारी: जुताई के बाद, क्यारी में बाँट लें।
क्यारी : 2 मी.X 3 मी. –लंबाई-चौड़ाई
20 सें.मी.- ऊंचाई
खाद की मात्रा: 10 किलो सड़ा हुआ गोबर/क्यारी
20 ग्राम यूरिया/वर्ग मी.
20 ग्राम पोटाश/वर्ग मी.
20 ग्राम फास्फेट/वर्ग मी.
मिट्टी उपचार: लिन्डेन-25 किलो/हेक्टयेर
लगाने का तरीका: 2-3 वर्ष पुराने पौधे को विभारित कर इसे पुनः लगाया जाता है। इन विभाजित पौधे को कलम्प कहा जाता है। दो वर्ष पुराने पौधे से 5 कलम (गाँठ) आसानी से तैयारी किया जा सकता है।
पौधे का उपचार: लगाने के पूर्व प्रत्येक कलम्प के जड़ों को २-3 से.मी. नीचे से काट दिया जाता है तथा इन्हें 15 मिनट तक बेविस्टीन में (२ ग्राम/लीटर_ पानी के घोल में डुबाया जाता है।
लगाने की दूरी:40 सें.मी. 30 X सेंटीमीटर- 50 पौधे/क्यारी-83,833 पौधे/हे.
सिंचाई: लगाने के पश्चात तुरंत हल्की सिंचाई कर दें। तत्पश्चात सप्ताह में एक बार सिंचाई
मिट्टी चढ़ाना: तीन चार पत्ते निकलने के पश्चात, यूरिया छिडक कर मिट्टी चढ़ा दें।
पत्ते तथा फूल निकलना: 50-65 दिनों के पश्चात पत्ते तथा फूल साथ-साथ निकलते हैं। जब फूल पूरी तरह खिल जाते हैं इन्हें काट लिया जाता है। काटने समय डंठल की लंबाई 50-60 सें.मी. तक होना चाहिए।
किस्में: कलकत्ता रेड, कलकत्ता ओरेज, कलिम्पोंग यलो, कलकत्ता पिंक, अलसिनिया, जेनेरल कैसर, अम्बर, रोजबेल, इवनिंग बेल्स इत्यादि।
गेंदा फूलों की व्यवसायिक खेती
हमारे राज्य में फूलों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है जिसके कारण राज्य के बड़े शहरों में फूलों की मांग बढ़ती जा रही है।
लगाने का समय/ऋतु: ग्रीष्मकालीन, वर्षाकालीन तथा शीतकालीन ऋतु।
बीज बुआई
ग्रीष्मकालीन गेंदे : जनवरी-फरवरी
वर्षाकालीन गेंदे : मई- जून
शीतकालीन गेंदे : सिंतबर- अक्तूबर
फूल आने का समय: बीज बोने के 75-90 दिन बाद (अफ्रीका गेंदा)
बीज बोने के 60-75 दिन बाद (फ्रेच गेंदा)
किस्में
अफ्रीकन: ऊंचाई 90-100 सेंमी, पत्तियां चौड़ी, नारगी रंग जैसे- पूसा नारंगी एवं पूसा बसंती।
क) पूसा नारगी: 70-75 सेंमी ऊँची, नारंगी रंग।
ख) पूसा बसंती: 55-60 सेंमी ऊँची, पीले फूल, बहुपंखुड़ीयुक्त
एक पौधे में लगभग 60 फूल
अन्य किस्में: अफ्रीकन येलो, अफ्रीकन ओरेज, काऊन ऑफ़ गोल्ड।
फ्रेच गेंदा: ऊंचाई 35-40 सेंमी ऊँची, पीले फूल, चित्तीदार/मिश्रित रंग के 3-4 सें.मो. आकार के।
किस्में: पिटाईट ओरेज, पिटाईट येलो, लेमन ड्राप, डबल हार्मोनी, टेनजेरियन येलो।
मिट्टी का चुनाव: बलुई दोमट, पी.एच-7-7.5, अच्छे जल निकास वाली।
रसायनिक खाद” 1/1 विक्वं.-यूरिया प्रति हेक्टेयर
4 विक्वं.- एस.एस.पी. प्रति हेक्टेयर
200-300 विक्वं.- गोबर खाद प्रति हेक्टेयर
बिछड़े तैयार करने तथा लगाने के तरीके : बीज द्वारा तथा कलम द्वारा
बीज द्वारा: क्यारी बनाकर- 15 सें.मी. ऊँची. 1 मी. चौड़ी तथा 5-6 से..मी.
बीज दर: 700-800 ग्राम/हे.
मिट्टी उपचार 0.3% कैप्टन का छिड़काव
बीज लगाने की दूरी: 6-8 से..मी.-पौधे-पौधे
२ से..मी. – गहराई
लगाने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई।
रोपाई: बीज बोने के 30 दिन बाद, 3-4 पत्तियाँ आने पर।
दूरी: 40 सें.मी. X 30 सेंटीमीटर- अफ्रीकन गेंदा
20 सें.मी. X 20 सेंटीमीटर- फ्रेंचा गेंदा
सिंचाई: लगाने के तुरंत बाद सिंचाई
7-10 दिनों के अन्तराल पर- जाड़े में
4-5 दिनों के अन्तराल पर- गर्मी में
पौधों के थोडा बड़े होने पर उसके ऊपरी भाग को तोड़ दें ताकि ज्यादा से ज्यादा डाली निकले।
तुड़ाई एवं उपज: जाड़े में जनवरी, बरसार में सिंतबर तथा गर्मी में अप्रैल-मई में फूलों का आना शुरू जो जाता है।
200 विक्वं/हे. – अफ्रीकन-5 रु./किलो- 1 लाख
100 विक्वं/हे. – फ्रेंच -5 रु./किलो- 50 हजार
खर्च- 20-25 हजार रूपये/हे.
शुद्ध लाभ—30-80 हजार रूपये/हे.
रोग एवं कीड़े – 0.3% ब्रेसीकॉल
पुष्प गलन– 0.2% इंडोफिल एम. 45/ली.
पाउडरी मिल्ड्यू- 0.2% सल्फेक्स
स्पीइडर नाइट एवं लीफ हॉपर-रोगर/मेटा सिस्टोक्स-0.2% छिड़काव।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता : समेति, कृषि एवं गन्ना विकास विभाग, झारखण्ड सरकार