परिचय
मूंगफली खरीफ मौसम की मुख्य तेलहनी फसल है। मूंगफली की खेती से मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ती है। यह वायु तथा वर्षा द्वारा भूमि के कटाव को भी रोकती है।
- भूमि का चुनाव– हल्की बलुई मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
- खेत की तैयारी – खेत की तैयारी हेतु दो-तीन बार जुताई करके पाटा चलाकर खेत समतल कर दें। अंतिम जुताई के समय गोबर की सड़ी हुई खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए।
अनुशसित प्रभेद
उन्नत प्रभेद | बुआई का समय |
परिपक्वता अवधि (दिन) |
औसत उपज (किवंटल.हेक्टेयर |
तेल की मात्रा |
गुच्छेदार : ए.के 12-24 कुबेर फूले प्रगति |
15 जून-10 -जुलाई 15 जून-10 जुलाई 15 जून-10 जुलाई |
100-105 100-105 90-100 |
14-16 15 -17 18-20 |
49% 48% 50 % |
फैलने वाली एम-13 |
130-135 |
25-28 |
49% |
बीज दर – 80-90 कि.ग्रा. (दाना) हेक्टेयर (गुच्छेदार प्रभेदों के लिए), 70-75 कि.ग्रा. (दाना) हेक्टेयर (फैलने वाली प्रभेदों के लिए),
बीजोपचार
बीज उचित रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए फुफुन्दनाशक एवं कीटनाशक दवाओं से बीजों को उपचारित करना जरूरी है। बुआई से पहले बीज को वेबिस्टिन २,5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। यदि खेत में दीमक यह तना छेदक का प्रकोप होता है तो फफूंदनाशक से उपचारित करने बाद बीज को क्लोरोपाईरिफॉस 20 ई.सी. 3 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
बुआई की दूरी – पंक्ति से पंक्ति 30 सें. मी. तथा पौधे-से पौधे की दूरी 15 सें.मी. फैलने वाली प्रभेदों के लिए। पंक्ति –से – पंक्ति 30 सेंमी. तथा पौधे की दूरी 10 से.मी. गुच्छेदार प्रभेदों के लिए ।
खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन – नेत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की मात्रा में नेत्रजन 25 किलोग्राम (यूरिया 54 कि. ग्रा.) तथापोटाश 25 किलोग्राम (म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 42 कि.ग्रा./हे.) का व्यवहार करें। उर्वरकों की पूरी मात्रा बुआई के पूर्व अंतिम जुताई के समय एक समान रूप से खेती में मिला दें। जस्ता की कमी वाले खेत में 25 किलोग्राम जिंकसल्फेट तथा गंधक की कमी वाले खेत में 20 किलोग्राम गंधक डालें। ह्युमिक एसिड 90% 1 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई – खरीफ में वर्षा न होने की दशा में दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई खूँटी बनते समय तथा दूसरी सिंचाई मूली बनते समय करनी चाहिए।
रोग नियंत्रण – मूंगफली में क्राउन राट, डाई रूट, बड नेक्रोसिस एवं टिक्का रोग लगता है। इसकी रोकथाम के लिए डाईमेंथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
कीट नियंत्रण- सफेद गिडार, दीमक, हेयरी कैटरपिलर जैसिड एवं फलीवेधक कीट का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए बेबेरिया वेसियाना एक किग्रा. 200 लीटर पानी में घोल के प्रकोप से पूर्व छिड़काव करना चाहिए।
निकाई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन- बुआई के 20 दिनों बाद निकाई-गुडाई करने से मिट्टी हल्की तथा ढीली हो जाती है तथा खुंट (पेग) आसानी से जमीन में प्रवेश कर जाते हैं और फलियों का विकास अच्छी होता है। अंतःकर्षण का कार्य खूंटी (पेग) के मिट्टी में प्रवेश करने के बाद नहीं करना चाहिए।
कटनी, दौनी एवं भंडारण- मूंगफली की पत्तियाँ पीली होकर जब नीचे से सूखने लगती है तब मूंगफली की खुदाई करके फलियाँ निकाल लेनी चाहिए। फलियों को 6-7 दिनों तक 40 डिग्री सें, से कम तापमान पर सुखाना चाहिए। भंडारण के दौरान फली छेदक कीट हानि पहुँचाते हैं। इसलिए भंडारण के स्थान पर डाईक्लोरोवास तरल 3 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर पांच लीटर प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए। फिर फलियों को साफ बोरों में भरकर लकड़ी के तख्तियों के ऊपर रखना चाहिए।
स्त्रोत: कृषि विभाग, बिहार सरकार
मूंगफली की फसल को टिक्का रोग से बचाएं