परिचय
सितम्बर माह में सब्जियां एवं बागवानी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कुछ खेतों में फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्ची, गाजर, मूली, लगी हुए हैं तथा कुछ में लगाने की तैयारी है। इस माह कुछ अन्य सब्जियां भी लगा सकते हैं। आलू, जो जल्दी पकते हैं, उसे बोया जाता है। आम के लगाये गये नये पौधों की सुरक्षा करते हैं। अमरुद के बगीचों की सिंचाई करते हैं। धनिया की बुवाई करते हैं। देशी मटर, प्याज, मूली, गाजर, चुकन्दर, सेम, सौफ, देर से आने वाली गोभी, पालक की बुवाई करते हैं। भिण्डी और बरबरी आदि तैयार फसलों की तुड़ाई करते हैं। इस माह खरीफ की फसलें फूल, दूध व पकने की अवस्था में होती है तथा जायद फसलों के लिए उचित माह है ।
इस माह में कृषि सम्बंधित मुख्य बातें
तीन जरुरी बातें
- तोरिया फसल (अधिक मुनाफा) – यदि खेत मक्का, बाजरा, तिल, लोबिया, मूंग, उडद फसलों के कटने से खाली हो तो तोरिया की फसल सितम्बर के पहले हपते लगा दें, ये गेहूं बोने से पहले नवम्बर में पक जाती है । इससे बरसात की नमी का पूरा उपयोग होगा तथा ७-६ क्विंटल पैदावार भी मिलेगी ।
- बरसीम फसल (गुणकारी चारा) – सितम्बर में लगी फसल, नवम्बर से मई माह तक ४-६ कटाईयों में ३००-३७० क्विंटल हरा चारा देती है जिसे पशु बडे चाव से खाते है तथा अधिक दूध देते हैं । इसे हल्की खारी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है ।
- कपास फसल (अच्छी गुणवत्ता व पैदावार) – कपास में फूल आने पर नेप्थलीन एसिटिक एसिड का ७० मि.ली.फिर २० दिन बाद ७० मि.ली.को घोल छिडकने से फूल व टिण्डे गिरते नहीं हैं तथा टिण्डे भी बडे लगते हैं ।
धान
धान में यदि नत्रजन की तीसरी किस्त नहीं दी है तो ३/४ बोरा यूरिया खेत में शाम के समय बिखेर दें । धान में जल प्रबंध ठीक रखें तथा २ ईंच से अधिक गहरा पानी न ठें । सिंचाई के पानी की भी समय-समय पर जांच करवाते रहें । सितम्बर में पत्ता लपेट सूण्डी, टिड्डे तथा तनाछेदक का आक्रमण होने की संभावना रहती है । इनके उपचार पिछले माह में बता चुके है । धान में ब्लास्ट (वदरा) रोग में पत्तियों पर आंख के आकार के धब्बे बनते है । यह रोग फसल के फुटाव के समय आता है । वालियों पर काले धब्बे बना देता है तथा दाने अधिक्षरे या नहीं बळनते है । रोकथाम के लिए २०० ग्राम कार्वेण्डाजिम या हिप्नोसाळ्न या १२० ग्राम वीम २०० लीटर में मिलाकर प्रति एकड छिडके ।
मक्का
मई व जून में बोया मक्का में भुट्टे पकने लग गये हैं तथा खडी फसल में भुट्टे तोडकर सुखा लें तांकि दानें में १७ प्रतिशत तक नमी कम हो जाये । तनों को पशुओं को हरे चारे के लिए प्रयोग करें । देर से बोई मक्का में सितम्बर में तना छेदक की सुण्डिंया तनों में सुराख कर पैदावार कम कर देती है । इसकी रोकथाम जुलाई में बता चुके है ।
कपास
कपास के पौधों को दीमक, हरे तिले तथा कलियों, फूल व टिण्डों पर अमेरिकन सुण्डी हेलीओथिस आक्रमण होने पर 1 लीटर क्लोरप्पायरीफास या एंडोसल्फाळ्न २०० लीटर पानी में ७० मि.ली.पत्तों पर चिपकने वाला पदार्थ डालकर छिडकें । देसी कपास सितम्बर में चुनने के लिए तैयार होती है । १० दिन के अन्दर सूखी व साफ कपास की चुनाई करें । अमेरिकन कपास में ज्यादा फैलाव रोकने के लिए ३० मि.ली.साईकोसिल (७० प्रतिशत) को ३०० लीटर पानी में वोकी आने के समय पर छिडकें । इसके साथ कीटनाशक तथा यूरिया भी मिलाकर छिडका जा सकता है । कपास में आखिरी सिंचाई ३३ प्रतिशत टिण्डे खुलते कर दें । इसके बाद कोई सिंचाई न करें ।
गन्ना
बसंतकालीन तथा मोटी फसल को गिरने से बचाने के लिए बंधाई पूरी करलें। सितम्बर में गुरदासपुर बेधक, तराई बेधक तथा जडबेधक पायरिल्ला, सफेद मक्खी का प्रकोप बढ़ जाता है। रोकथाम पिछले महिनों में बता चुके है । रत्ता रोग लगने की स्थिति में, गन्ना बीच से लाल हो जाता है तथा शराब की बू आने लगती है । ऐसी फसल को जल्दी काट लें तथा मोढी न ले व एक वर्ष उस खेत में गन्ना न लगायें । शरदकालीन फसल बीजने का समय सितम्बर के आखिर से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक है । बाकी कृषि कार्य बसंत कालीन फसल के हिसाब से करें ।
बाजरा
बाजरा सितम्बर में पकने की स्थिति में होता है तथा खेत में वर्षा का पानी ठहरना नहीं चाहिए ।
दलहनी फसल
मंग, उडद तथा लोबिया – सभी फसलें पकने की अवस्था में रहती है तथा पत्ते पीले पडते ही काट लें तांकि फलिया झडें नहीं । अरहर व सोयाबीन – फसल दाने बनने की अवस्था में हो तो एक हल्की आखिरी सिंचाई कर दें । राजमा – मैदानों के उत्तरी क्षेत्रों में राजमा उगाने में किसानों में रूचि दिखाई है । इस फसल को सिंचित क्षेत्रों में १० सितम्बर तक लगा दें नहीं तो पकने के समय ठण्ड पडने से दाने कम बनते है । राजमा की किस्में हिम-१, उवाला तथा वी.एल.६३ की ४७ कि.ग्रा. बीज प्रति एकड राईजोवियम वायो-फर्टिलाइजर से उपचारित करें तथा 1 फुट दूर लाईनों में बीजें । बीजाई के समय आधा बोरा यूरिया तथा आधा बोरा सिंगल सुपर फासफेट खेत में बीज के नीचे पोरा या केरा से डालें । पहली सिंचाई बीजाई १७ दिन तथा दूसरी ३० दिन बाद करें । बीजाई के २० दिन बाद एक निराई-गोडाई भी करें ।
मूंगफली – फूल आने पर सिंचाई जरूर दें । जमीन गीली होने पर फलों से निकली सूई जिससे मुंगफली बनती है आसानी से जमीन में चली जाती है । कीड़ों तथा बीमारियों पर नजर रखें तथा पहले बताये तरीकों से उपचार करें ।
तिल – फसल काटने में देरी से तिल के दाने झड जाते हैं । सितम्बर में जब पोधे पीले पडने लगे तो फसल काटकर बंडल बांधकर सीधा रखें । बंडलों को सुखाकर दो बार झाडें तांकि सारे दाने बाहर आ जायें ।
सरसों, तोरिया, राया व तारामीरा – फसलें अधिकतर बारानी क्षेत्रों में उगाई जाती है । तोरिया व सरसों हल्की से भारी दोमट मिट्टी में तथा २७-४० से.मी.वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी होती है । राया सभी प्रकार की मिट्टियों में तथा मध्यम से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है । तारामीरा बहुत हल्की मिट्टी में तथा कम वर्षा वाले क्षेत्र में उगाया जाता है । तोरिया की बीजाई १७ सितम्बर तक, सरसों की २७ सितम्बर से १० अक्टूबर तक, राया की ३० सितम्बर से १० अक्टूबर तक तथा तारामीरा की सारे अक्टूबर तक की जाती है । यदि तोरिया के बाद गेंहू बोनी हो तो तोरिया सितम्बर के पहले सप्ताह तक अवश्य लगा दें । बीज रोगरहित व प्रमाणित स्त्रोत से लें । उन्नत किस्में में, सरसों की – पूसा वोल्ड, वरूणा, सोरम, लक्ष्मी, क्रांति, कृष्णा तोरिया की – संगम, टी.एल-१५, टी,एच-६८ ; पी वी टी-३७, टीएल-१५ तारामीरा की – टी-२७, भूरी सरसों हरियाणा-१, टी एम एल सी-२ राया की – राया प्रकाश, आर।एच-३०; पी.वी.आर ९७ व ९१, आर एल १३५१९ व ६१९ गोभी सरसों – पी जी एस आर-७१, जी एस एल 1 व २, अफ्रीकन सरसों – पी।सी-७ सरसों व तोरिया को २ फुट फासले पर २ ईंच गहरा बोयें तथा पोधों में ४-६ ईंच दूरी बनाये रखने के लिए 3 सप्ताह बाद छटाई करें । सिंचित खेतों में प्रति एकड तोरिया व सरसों को आधा बोरा यूरिया, २ बोरा सिंगल सुपर फासफेट तथा १/३ बोरा म्यूरेट आफ पोटास बीजाई के समय तथा आधा बोरा यूरिया पहली सिंचाई के समय दें । राया में ३/४ बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फासफेट तथा आधा बोरा म्यूरेट आफ पोटास बीजाई पर तथा ३/४ बोरा यूरिया पहली सिंचाई पर दें । गोभी सरसों व अफ्रीकन सरसों में 1 बोरा यूरिया तथा १.७ बोरे सिंगल सुपर फासफेट बीजाई पर दें । बांकी 1 बोरा यूरिया पहली सिंचाई पर दें । तारामीरा में १/४ बोरा यूरिया, १/२ बोरा सिंगल सुपर फासफेट तथा ७ कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटास बीजाई पर ही दे दें । असिंचित क्षेत्रों में खाद की मात्रा आधी कर दें तथा सारी बीजाई पर ही डाल दें । सिंगल सुपरफासफेट के प्रयोग से तिलहन फसलों में गंधक की कमी पूरी हो जाती है । जिंक सल्फेट १० कि.ग्रा.प्रति एकड तथा २ कि.ग्रा.बोरेक्स (बोरान) बीजाई पर डालने से फसल अच्छी रहती है । सडीगली ७ टन गोबर की खाद तथा अजोटोबैकटर बायोफर्टीलाइजर का २७० ग्राम का एक पैकेट डालने से भी पैदावार में बढ़ोतरी होती है तथा उर्वरकों की मात्रा कम की जा सकती है । फूल आने पर सिंचाई देने से पैदावार ज्यादा होती है । तोरिया में एक गोडाई ३ सप्ताह बाद तथा सरसों व राया में दो गोडाईयां लाभदायक होती है ।
बरसीम चारा
चारे के लिए सर्वोत्तम फसल है जोकि नवम्बर से मई तक चारे की कई कटाईयां देती है । बीजाई का उचित समय सितम्बर के आखिर सप्ताह से अक्टूबर से पहले सप्ताह तक है । उन्नत किस्मों में वी।एल-१ व वी।एल-१० तथा मैस्कावी है । बरसीम के १० कि.ग्रा.रोगरहित बीज को 1 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर तैरते हुए बीज फेंक दें तथा नीचे बैठे बीजों को साफ पानी में धोकर फिर राईजोवियम वायोफर्टिलाइजर से उपचारित करें । शुरू में बरसीम की बढ़ोतरी कम होती हैं तथा शुरू में अधिक चारा प्राप्त करने के लिए ७०० ग्राम जापानी सरसों या चाईनीज कैवेज व १० कि.ग्रा.जई का बीज मिलाकर बोयें ।
बीजाई के पहले आधा बोरा यूरिया तथा ४ बोरे सिंगल सुपर फासफेट डालें । यदि जई या सरसों भी साथ में बीजी हो तो आधा बोरा यूरिया और डाल दें । हल्की रेतीली मिट्टी में मैंगनीज की कमी पाई जाती है । एक कि.ग्रा.मैगनीज सल्फेट का (०।७ प्रतिशत) को २०० लीटर में घोलकर कमी वाली फसल में छिडक सकते है । छिडकाव के १७ दिन बाद ही चारा काटें । काली चींटी बरसीम के बीजों को खा जाती है । इसके बचाव के लिए मिथाईल पैराथियान २ प्रतिशत का धूडा करें । तना गलन रोग से बचाव के लिए ०।१ प्रतिशत वाविस्टिन घोल के साथ खेत को सिंचित करें ।
सब्जियां
सितम्बर माह सब्जियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कुछ खेतों में फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्ची, गाजर, मूली लगे हुए हैं तथा कुछ में लगाने की तैयारी है । इस माह कुछ अन्य सब्जियां भी लगा सकते हैं ।
बैंगन
यदि पाला से पोध की रक्षा हो सकती है तो सितम्बर में बैंगन की रोपाई कर सकते है । यदि बैंगन एक महीना पहले रोपे है तो यूरिया की १/२ बोरा प्रति एकड दे दें । दो महीने पुरानी फसल में भी तीसरी मात्रा के लिए १/२ बोरा यूरिया डाल दें । बैगन की मोढ़ी फसल में भी १/२ बोरा प्रति एकड डालें । यूरिया देने से पहले सिंचाई जरूर करें । बैंगन में रस चूसने वाले कीडों, फल छेदक तथा दीमक का हमला होता है । दीमक के लिए ०.३ प्रतिशत मिथाईल पैराथियान तथा वाकी कीडों के लिए ०.०७ प्रतिशत इण्डोसल्फान फूल आने पर छिडकें । फल लगे हों, तो फल तोडकर छिडकाव करें । बीमारियों से बचाव के लिए बीजोपचार ही उत्तम विधि है ।
टमाटर
विशेष स्थितियों में टमाटर सितम्बर में बोया जा सकता है यदि पाले से बचाव संभव है । यदि टमाटर अगस्त में रोपे हैं तो रोपाई के २७ दिन बाद 1 बोरा यूरिया प्रति एकड डाल दें । १०-१७ दिन बाद हल्की सिंचाई करते रहे । टमाटर में निराई-गुडाई अधिक पैदावार के लिए बहुत जरूरी है । सूत्रकृमि की रोकथाम के लिए पूसा-१२० किस्म लगायें ।
फूलगोभी व पत्तागोभी
अगस्त में बोये पोधे अब रोपाई के लिए तैयार है । हल्की दोमट मिट्टी मे ४-७ हपते पुरानी पोध को १.७ फुट की दूरी पौधों तथा लाईनों में रखें । रोपाई के बाद सिंचाई ७-१० दिन बाद करते रहे। फसल में निराई गुडाई तथा मिट्टी चडाना बहुत जरूरी है । खेत में रोपाई से पहले २ बोरे सिंगल सुपर फासफेट , १/२ बोरा म्युरेट आफ पोटाश तथा २० टन देशी गली-सडी खाद डालें । रोपाई के १७ दिन वाद 1 बोरा यूरिया डालें । क्षारीय मिट्टियों में ७-८ कि.ग्रा.वोरेक्स (वोरान ) डालें । कीडों से बचाव के लिए ०.२ प्रतिशत मैलाथियान की छिडकाव समय-समय पर आवश्यकतानुसार करें । बीमारियों से बचाव के लिए पोध को २-३ ग्राम कैपटान प्रति लीटर पानी में घोलकर डुबोयें ।
पालक व मेथी
पत्तों वाली सब्जियों में कैलसियम, लोहा, विटामिन ए, बी, व सी काफी मात्रा में होते हैं । पालक व मेथी हल्की मिट्टियों में तथा ठण्डे व शुष्क मौसम में अच्छे होते हैं । दोनों सब्जियों को सितम्बर के शुरू में बीज दें । उन्नत किस्में हैं – पालक-आल ग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित । मेथी – पूसा अर्ली बंनचिग व मैथी कसूरी किस्में ७-६ कटाई देती हैं । दोनों फसलें १००-२०० क्विंटल प्रति एकड पैदावार देती है । खेत तैयार करते समय १७ टन देशी खाट के साथ २.७ बोरे सिंगल सुपर फासफेट तथा आधा बोरा यूरिया डालें । हर कटाई के बाद पालक में आधा बोरा यूरिया तथा मैथी में १/४ बोरा यूरिया डालें। पालक के लिए १० कि.ग्रा.बीज को 1 फुट दूर लाईनों में लगायें । पौधे के बीच ४-६ ईंच का फासला रखें । सिंचाई प्रत्येक सप्ताह करें तथा दो बार खरपतवार निकालें ।
गाजर, मूली व शलगम
पूसा देशी मूली और गाजर में पूसा केसर व पूसा मेघाली तथा शलगम की व्हाईट-४ और पार्पल टाप व्हाईट ग्लोब सितम्बर में भी लगाई जा सकती है । अगस्त में लगाई फसलें में आधा बोरा यूरिया डालें । हल्की सिंचाई ८-१० दिन बाद करते रहें । सितम्बर में एक गोडाई तथा मिट्टी चढ़ाना अच्छा रहेगा । बाकों क्रियायें अगस्त माह में बता चुके हैं ।
बागवानी
सितम्बर माह में सदाबहार पेड जैसे नींबू जाति के फल, आम, बेर, लीची, अमरूद लगा सकते हैं । बाग लगाने से पहले 3 x ३ फुट के गढ्ढ़े खोद लें । गढ्ढ़े की उपर की मिट्टी को बराबर सड़ी-गली देसी खाद से मिलाकर तथा २ कि.ग्रा.जिप्सम भी डालें । दीमक के खतरे वाले क्षेत्र में १०-२० मि.ली.क्लोरपाइरीफास २० ई.सी. प्रति गढ़ढ़ा डालें ।
बेर – सितम्बर में इसकी रोपाई हो सकती है । पौधे निकालने से पहले फालतू पत्ते उतार दें । पोधों में २७ फुट दूर लगाने से ७२ पेड प्रति एकड लग सकते हैं । नये पोधे की १७ दिन के अन्तर पर सिंचाई करें । सितम्बर के माह में बेर के पुराने बागों की भी सिंचाई करें ।
अमरूद – की इलाहावादी सफेदा, बनारसी सुरखा तथा सरदार किस्मों को सितम्बर में रोपा जा सकता है । नये बागों की नियमित सिंचाई करें । अमरूद की फल-मक्खी के रोकथाम के लिए ७०० मि.ली.मैलाथियान का ७-१० दिन के अन्तर पर छिडकाव करें ।
फूल – सितम्बर माह में सुन्दर फूल बीजने का समय भी है । गैंदा के अलावा, कैलनडुला, विगोनिया, गुलदाउदी, डहलिया, स्वीट पी, सूरजमुखी, जिनीया, डोगपलावर, कारनेसन, पोपी, लारकसपुर इत्यादि फूल के लिए क्यारियां अच्छी तरह तैयार करके बीज दें ताकिं सर्दियों में आप सुन्दर फूलों का भी आनन्द ले सकें ।
स्त्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान
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