परिचय
खस मूलत: भारतीय उपमहाद्वीप का पौधा है। इसका उपयोग मूलत: तेल की प्राप्ति हेतु किया जाता है। जोकि खस के पौधे की जड़ों में पाया जाता है। खस के तेल में प्रमुख घटक वेटीवरौल है जो 55-75% तक पाया जाता है। तेल का उपयोग सुगंधित सुपारी निर्माण, परफ्यूमरी तथा शर्बत आदि में किया जाता है। खस की जड़ों से तेल निकालने के बाद जो घास बचता है उससे खिड़की एवं कुलर के पर्दे बनाये जाते हैं। खस की खेती मुख्यत: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश तथा झारखण्ड में किया जाता है।
खेत की तैयारी
खस एक कठोर प्रवर्ती है अत: इसकी खेती हेतु खेत की कोई विशेष तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती है। परंतु यदि खेत में किसी प्रकार की झाड़ियाँ अथवा घास हो तो उसे साफ कर देना चाहिए तथा दो – तीन बार गहरी जुताई करके खेत को समतल कर देना चाहिए। कम उर्वराशक्ति वाली जमीनों में आखरी जुताई से पूर्व खेत में 5 टन गोबर खाद मिला देनी चाहिए और प्रति एकड़ 16 – 16 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश डालनी चाहिए। दूसरे वर्ष में प्रति एकड़ नाइट्रोजन की 16 किलोग्राम उपनिवेशन करनी चाहिए।
भूमि
अधिकतर खस की खेती अनुपाजाऊ भूमि में होती है। खस के पौधे आमतौर से नदियों के किनारों पर और दलदल भूमि से पाये जाते हैं। उनके लिए महीन बलूई और दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। इसकी खेती भूमि में भी की जा सकती है।
जलवायु
खस की खेती ज्यादा ठंड वाले प्रदेशों को छोड़कर कहीं भी की जा सकती है। वैसे ज्यादा नमी तथा आर्द्रता वाले क्षेत्र इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं। औसतन 30 से. तापमान वाले क्षेत्रों यथा उष्ण आर्द्र जलवायु खस की खेती के लिए उपयुक्त होते है।
बुआई
लेमन ग्रास तथा जामा रोजा की तरह खस की बुआई भी स्लिप्स से की जाती है। स्लिप बनाने के लिए एक वर्ष पुराने पौधों कों उखाड़कर उनसे स्लीपर्स बनाया जाता है। यदि सिंचाई की प्रयाप्त व्यवस्था हो तो खस की स्लिप्स को जमीन में 5 सेंमी. गहरा जाना चाहिए। जिन क्षेत्रों की मिट्टी ज्यादा उपजाऊ है उनमें स्लिप्स का रोपण 60 X 60 सेंमी की दूरी पर करना चाहिए। जबकि हल्की मिट्टी में इनका रोपण 30 X से 60 सेंमी. की दूरी में करना चाहिए। इस हेक्टेयर में लगभग 25000 से 37500 स्लिप्स लगाईं जाती है।
उत्तम किस्में :
हाल ही में जो अन्वेषण हुए हैं उस आधार पर उत्तम किस्में निकली गयी हैं। इनसे तेल अधिक प्राप्त होता है। पूसा हाइब्रिड – 8, हाइब्रिड – 16, सीमैप के एस. – 1, के.एस.- 2, सुगंध आदि।
निदाई – गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
खस की फसल में कोई खरपतवार नहीं पनप पाते परंतु प्रांरभिक दिनों में फसल को खरपतवातों मुक्त रखना आवश्यक होता है। इसके लिए बुआई के दो- तीन महीने के बाद फसल की एक बार हाथ से निदाई – गुड़ाई कर देनी चाहिए।
जल प्रबंधन
खस सूखा अवरोधी होता कोई खस सिंचाई की आवश्कता नहीं पड़ती, परंतु गर्मी के मौसम में दो – तीन सिंचाई करने से उत्पादन में अच्छी वृद्धि पायी जाती है। सिंचाई हल्की करना चाहिए जो पौध विकास के लिए उपयुक्त पाया जाता है।
रोग
खस में कोई विशेष रोग बीमारी नहीं लगती, परंतु जड़ों में कभी – कभी दीपक या दुसरे कीटों का प्रकोप देखा गया है जिसके लिए थीमेर नमक दवा की 10 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में देने पर लाभदायक रहता है।
तनों की कटाई
खस की फसल सामान्यत: 18 से 24 महीने की फसल के रूप में ली जाती है। अता लगाने से लगभग 18 माह के बाद जड़ें खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। सितंबर – जनवरी महीने में जब पौधे सुप्तावस्था में हो तो तने की कटाई कर देनी चाहिए या कटी हुई घास पशु अथवा इंधन के रूप में उपयोग की सकती है। एक बार काट दिए जाने पर पौधा अच्छी प्रकार से वृद्धि करता है।
जड़ों की खुदाई
रोपने के 18 से 24 महीने के बाद खस की जड़ें खोदाई करने के योग्य हो जाती है। खुदाई का काम जाड़े में (नवंबर से फरवरी महीने तक) करना चाहिए। क्योंकी उस सनी जड़ों में तेल की मात्रा सर्वाधिक होती है। और तेल की गुणवत्ता भी अच्छी होता है।
उपज
दो वर्ष में जड़ों की खुदाई करने पर प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल जड़ प्राप्त होती है। 20-25 लीटर तेल एक हे. खस की खेती से प्राप्त किया जा सकता है।
फसल चक्र एवं अंतरवर्ती खेती द्विवर्षीय फसल चक्र अपनाया जाता है।
दौनी एवं भण्डारण
जड़ों को साफ कर छोटे – छोटे टुकड़ों में विभक्त कर भंडारित किया जाता है। वाष्प आसवन विधि द्वारा जड़ों से तेल निकाला जाता है।
कीट – नियंत्रण में नीम का प्रयोग
- 500 ग्राम नीम बीज की गिरी + 10 लीटर पानी – रात भर भिगोना छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
- 2 किलो हरी नीम पत्ती + 10 लीटर रात भर भिगोना – छानना – छिड़काव
- 1 किलो नीम की खली (2-5 प्रतिशत तेल युक्त) + 10 लीटर पानी – रात भर भिगोना – छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
- 1 किलो नीम की खली (2-5 प्रतिशत तेल युक्त) + लीटर पानी – रात भर भिगोना छानना + 10 ग्राम साबुन – छिड़काव
- 300 मिलीलीटर नीम तेल + 10 लीटर पानी – देर तक घोलना – घोल + 10 ग्राम साबुन
- 1 किलो हरी नीम पट्टी + एक लीटर गोमोत्र (24 घंटे पुराना) – रात भर मिलाकर रखना – छानना – छिड़काव
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, बिहार सरकार