अश्वगंधा
सर्पगंधा
मिटटी एवं जलवायु
उष्ण से समशीतोष्ण, औसत तापमान 20-24 डिग्री सें.ग्रे. तथा वर्षा 100 सें.मी. वार्षिक। बलुई दोमट से हल्की रेतीली भूमि। भूमि का जल निकास अच्छा हो एवं पी.एच.मान 6-7 तक।
गर्म एवं नम जलवायु उपयुक्त। बलुई जलोढ़ से लेकर लाल लेटराइट दोमट। उचित जल निकास वाली भूमि उपयुक्त एवं भूमि की पी.एच.मान 4.0 से 6.0 के मध्य।
उन्नत प्रभेद
पेषिता, जे.ए. 20, जे.ए. 134, आई.सी.204612
आर.एस. 1, सीम-शिल, आर.आई. 1.
बीज दर
8-10 किग्रा. बीज (सीधी बुआई)
5-7 किग्रा. बीज (बिचड़ा तैयार करने में)
5-6 किग्रा. बीज
लगाने का समय
नर्सरी में बुआई – जून
खेत में रोपाई – जुलाई-अगस्त।
मई के मध्य उपचारित बीजों को 6-7 सें.मी. की दूरी पर तथा 1-2 सें.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
लगाने की दूरी
कतार व् पौधे में अंतर – 20-25 सें.मी.
45 x 30 सें.मी. की दूरी पर।
खाद एवं उर्वरक
खाद व उर्वरक सड़ी गोबर की खाद 15-20 टन/ प्रति हें. । बोने के समय नेत्रजन 25 किग्रा. स्फुर 30 किग्रा. एवं पोटाश 30 किग्रा. प्रति हें. । 12.5 किग्रा. नेत्रजन दूसरी सिंचाई के समय।
रोपण से पहले 20 किग्रा. नाइट्रोजन 40 किग्रा. फास्फोरस तथा 40 किग्रा. पोटाश/ हें. बेसल खुराक के रूप में। फसल अवधि के दौरान 2 किग्रा. नाइट्रोजन/हें. का प्रयोग दो बार 25-30 दिनों के अंतराल से।
सिंचाई
शीत-ऋतु में 3-5 सिंचाई
शीत-ऋतु में 4-5 सिंचाई
तुड़ाई/ खुदाई
पौधें की पत्तियाँ पीली और फल लाल होने पर पौधें को जड़ से उखाड़ कर एवंजड़ों को काट कर सुखने के लिए दें।
जड़ों को पौधरोपण के 3 साल बाद खादें तथा जड़ों से मिटटी को अच्छी तरह पानी से धोकर 12-15 सें.मी. के टुकड़ों में काटकर सुखायें तथा भंडारित करें।
उपयोगी भाग एवं उपज
जड़ हरी पत्तियाँ। 6-8 क्विं. सुखी जड़ें एवं बीज 1-2 क्विं./हें. ।
जड़, तना कटिंग या जड़ कटिंग से उगाई गई फसल से 12 क्विं/ हें. सुखी जड़ें प्राप्त होती है।
उपयोग
टॉनिक के रूप में अनिद्रा, रक्त चाप, मुरछा चक्कर, सिरदर्द, तंत्रिका विकास ह्रदय रोग, रक्त कोलेस्ट्राल कम करने में, गठिया को नष्ट करने में, बच्चों के सूखा रोग में, क्षय नाशक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में, चर्मरोग, फेफड़ों के रोग में, अल्सर तथा मंदाग्नि के उपचार में, जोड़ों की सूजन तथा अस्थि क्षय के उपचार में, कमर दर्द, कूल्हें का दर्द दूर करने में, रुकी हुई पेशाब को ठीक से उतारने में।
अवसादक, निद्रादायक तथा रक्तदाब कम करने में, दस्त, पेट दर्द, रोगभ्रम एवं केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की उत्तेजक। सांप का जहर उतारने तथा मानसिक रोगों को उपचार में। गर्भाशय संकुचन बढ़ाने तथा नवजात शिशु को बाहर निकलने में।
सतावर
घृतकुमारी
मिटटी एवं जलवायु
उष्णआर्द्र जलवायु उत्तम। तापमान 10-35 डिग्री सेल्सियस तथा वार्षिक वर्षा 200 सें. मी. तक। बलुई दोमट, लेटराइट, लाल एवं चिकनी मिटटी जिसमें जल निकास अच्छा हो।
शुष्क समशीतोष्ण क्षेत्रों एवं उष्ण कटिबन्धीय जलवायु। वार्षिक 800-1500 मि.मी. वर्षा। जल जमाव सहन नहीं करता है। अधिकतम तापमान 40-45 डिग्री एवं न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस। बलुई दोमट मृदा जिसमें जीवांश अधिक हो।
उन्नत प्रभेद
आई.सी. 471900, आई.सी. 471903, आई. 471905, आई.सी. 471907, आई.सी. 4717905, आई.सी. 471923, आई.सी. 471924, जे.एस. 1
आई.सी. 11271, आई.सी.11128ए आई.सी. 111269, सीम शीतल, आर.एल.ए.भी. 18।
बीज दर
12 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर।
एक हेक्टेयर हेतु लगभग 40,000 पौधें की जरूरत।
लगाने का समय
नर्सरी: जून-जुलाई
खेत में: जुलाई-अगस्त
जून से जुलाई
लगाने की दूरी
60 सें.मी. 60 सें.मी. दूरी में ऊँची मेढ़े तैयार कर इनपर 60 सें.मी. दूरी से अंकुरित पौधें लगायें।
कतार से कतार एवं पौधा से पौधों की दूरी 50 सें.मी. ।
खाद एवं उर्वरक
20-25 टन गोबर खाद 100 किग्रा. यूरिया, 250 किग्रा. सि.सु.फा. तथा 60 किग्रा. पोटाश प्रति हें. ।
गोबर की सड़ी हुई 10-20 टन खाद/ हें. खेतर तैयार करते समय। नेत्रजन 50, स्फुर 50 एवं पोटाश 30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा. नेत्रजन की मात्रा रोपाई के समय एवं शेष नेत्रजन 6 माह उपरान्त टॉप ड्रेसिंग के रूप में।
सिंचाई
शुरुआत में 7-8 दिन में एवं बड़े होने पर 30 दिनों के अंतराल में।
अच्छी वृद्धि हेतु ग्रीष्मकाल में हल्की सिंचाई।
तुड़ाई/खुदाई
पौध लगाने के 12-18 माह पश्चात।
पौधे लगाने के एक वर्ष उपरान्त हर तीन माह में प्रत्येक पौधे की तीन-चार पत्तियाँ छोड़कर शेष सभी पत्तियों को काट लेनी चाहिए।
उपयोगी भाग एवं उपज
कंदिल जड़ 12-14 टन हरी जड़ें। 1000-1200 किग्रा. सुखी जड़े प्रति हेक्टेयर।
पत्तनों का रस तथा गुद्दा। प्रथम वर्ष 30-35 टन ताजे पत्ते एवं दूसरे वर्ष 15-20 टन ताजे पत्ते प्रति हें. ।
उपयोगी
नेत्रों के लिए हितकर, शुक्रवर्धक, डायबिटीज नियंत्रण बलवर्धक टॉनिक, ल्यूकोरिया, अनीमिया, भूख न लगने तथा पाचन सुधरने हेतु मानसिक तनाव से मुक्ति हेतु एवं दुग्ध बढ़ाने हेतु।
चर्मरोगों, उदरशूल, रक्त शोध, महिलाओं के रोगों के उपचार, सिरदर्द, फोड़े एवं घाव, सूजन तथा गाँठो पर मोच आ जाने या अंदरूनी चोट, नेत्र रोग, रक्त परिभ्रमण, प्लीहा वृद्धि, सर्वागिक शक्ति, बवासीर, बच्चों की खांशी एवं कफ में। गठिया व जोड़ों के दर्द में। त्वचा/ शरीर के जले घावों व दर्द के उपचार, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री तथा खाद्य व्यंजनों में।
पिप्पली
सफेद मूसली
मिटटी एवं जलवायु
उष्ण एवं आर्द्र तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में। जीवांश युक्त दोमट एवं लाल मिट्टियाँ, जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था।
समशीतोष्ण जलवायु वाले वनों में। वार्षिक वर्षा 800-1500 मिलीमीटर। उपयुक्त जल निकास वाली हल्की रेतीली दोमट एवं लालमृदा।
उन्नत प्रभेद
विश्वनाथ पिप्पली 1, असाली, सुवाली, गोल टिप्पली एवं पीपल ननसोरी।
ए.एस.एम.1, जे.एस.एम.405
बीज दर
एक हेक्टेयर में दस हजार पौधे लगते है।
एक हेक्टेयर हेतु 2 लाख डिस्क की आवश्यकता होती है। 10 क्विं. जड़ 10-20 ग्राम प्रति जड़।
लगाने का समय
मार्च में लगाई गई कटिंग व बीजों से उत्पन्न पौध को जुलाई माह में लगाया जाता है।
मई-जून
लगाने की दूरी
पौधे की रोपाई एक-एक मीटर के अंतराल पर कतारों में एवं कटिंग से कटिंग की दूरी एक-एक मीटर रखनी चाहिए।
कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. एवं डिस्क से डिस्क की दूरी 20 सें.मी. ।
खाद एवं उर्वरक
बोने के समय 20: 40: 40 किलोग्रा. क्रमश: नेत्रजन, स्फुर व पोटाश प्रति हेक्टेयर। रोपाई के एक माह के बाद डी.ए.पी. 40 किलोग्रा. व चार माह के बाद 20 किलोग्रा. अधिक उपज के लिए।
10-15 टन गोबर/हें. खेत की तैयारी के समय। भूमि की तैयारी – ग्रीष्म ऋतु में गोबर की खाद डालकर खेत की जुताई एवं पाटा चलाकर समतल करें।
सिंचाई
रोपण के बाद हल्की सिंचाई। शीत ऋतु में 25 से 30 दिन के बाद व ग्रीष्म में 15 दिन के अंतर से।
अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक सिंचाई।
तुड़ाई/खुदाई
रोपण के 18 माह बाद इसकी पहली कटाई की जाती है।
खुदाई दिसम्बर/ जनवरी माह में। खुदाई के दो दिन पूर्व हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
उपयोगी भाग एवं उपज
फल 10-45 क्विं., फल /हें. 2 क्विं. सुखी जड़ पांचवे साल में।
कंद, गीती मसूली 60 क्विं/हें.
उपयोग
शीत एवं कफ दूर करने में, पेट के कृमि को नियंत्रित करने में, सूखे खाँसी में, सर्पविष को दूर करने में, टॉनिक के रूप में, उपापचय क्रिया को क्रियाशील करने में, सरदर्द, गले से संबंधित विकारों, आँख-कान तथा गले से संबंधित बीमारियाँ, अपच एवं बदहजमी, तथा बबासीर के उपचार में, एक महत्वपूर्ण मसाला।
शारीरिक शिथिलता दूर करने में, बलवर्धक दवाओं, टॉनिक, मधुमेह, गठिया, प्रसवोपरांत होने वाली बीमारियों में, उत्तेजक के रूप में, प्रसवोपरांत माताओं का दूध बढ़ाने में।
कालमेघ
ईसबागोल
मिटटी एवं जलवायु
समशीतोष्ण, औसत वार्षिक वर्षा 75-90 सें.मी. । उत्तम जल निकास वाली दोमट, कछारी तथा मटियारी काली भूमि। मिटटी का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए।
ठंडी शुष्क जलवायु आवश्यक रात का तापक्रम कम होने से इसकी वृद्धि अधिक होती है। उचित जल निकास वाली हल्की दोमट मिटटी। पी.एच.मान 7.2-8.5 हो।
उन्नत प्रभेद
ए.के.1, सिम-मेघा, आई.सी. 111286, आई.सी. 111287, आई.सी. 111289, आई.सी. 471890, जे.के. 1, के.आई.5
जे.आई 4, निहारिका, जी.आई.1,
जी. आई. 2
एच.आई 5
बीज दर
5 किलोग्राम बीज/हेक्टेयर
अक्टूबर-नवम्बर में।
लगाने की दूरी
कतारों के बीच 30 सें.मी. व पौधों के बीच 25 सें.मी. का अंतर रखें।
लाइन से लाइन का अंतर 22.5 सें.मी.
खाद एवं उर्वरक
सिंचित फसल में 20: 30: 20 किलोग्राम नेत्रजन, स्फुर व पोटाश/ हेक्टेयर बोने के समय। इसके बाद 15 किलोग्राम नेत्रजन/हें. प्रथम सिंचाई के समय देना चाहिए ।
20 टन गोबर की सड़ी खाद खेत तैयार करते समय तथा बोने के समय 25 किलोग्राम नेत्रजन, 50 किलोग्राम स्फुर। अच्छी उपज हेतु 25 किलोग्रा. नेत्रजन प्रति हेक्टेयर पहली सिंचाई के समय।
सिंचाई
आवश्यकतानुसार
अंकुरण के बाद 30 दिन पर हल्की सिंचाई। बाल निकलने की अवधि में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
तुड़ाई/खुदाई
फसल 4-5 माह में पक कर तैयार हो जाती है। पौधें को काट कर छाया में सुखाना चाहिए।
फसल की पत्तियाँ जब पीला पड़ जाये एवं बाल का रंग मटमैला सा हो तब फसल काटने लायक होती है।
उपयोगी भाग एवं उपज
पंचाग, तना, पत्तियाँ, फल, फूल एवं बीज 35 क्विं. सुखी शाक/हें., 4.5 क्विं. बीज/हें. ।
भूसी 5 क्विं./हें. । बीज 15-20 क्विं./हें. ।
उपयोग
यकृत वृद्धि, रक्त विकार, मलेरिया ज्वर तथा चर्मरोग में।
आंत संबंधी रोगों में कब्ज एवं अतिसार में मुत्रोत्सर्जन में, दमा के रोगियों, बबासीर एवं गुर्दे के रोग में।
गिलोय
गुड़मार
मिटटी एवं जलवायु
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में 3000 मीटर की ऊँचाई तक। रेतीली, पथरीली, बंजर से लेकर दोमट चिकनी मिटटी। खेत में पानी न जमें।
उष्ण कटिबन्धीय तथा समशीतोष्ण। दोमट, बलुई मिटटी, जैविक पदार्थ युक्त, उचित जल निकास वाली भूमि।
उन्नत प्रभेद
आई.सी. 281959, आई. सी. 281972
इनकी उन्नत किस्म का विकास नहीं हुआ है।
बीज दर
400 पौधा/हें.
2500 पौधे/हें.
लगाने का समय
मई-जून में गड्ढा बनाना। वर्षा ऋतु में रोपण।
तैयार पौधे फरवरी-मार्च में प्रतिरोपित कर दिए जाते है।
लगाने की दूरी
5 x 5 मी.
2 मी. x 2 मी.
खाद एवं उर्वरक
प्रति पौधा 20 ग्रा. यूरिया एवं 40 ग्रा. सि.सु.फा. लगाने के समय।
10 टन गोबर की खाद खेती की तैयारी करते समय मिला दें।
सिंचाई
अच्छे विकास के लिए शीत ऋतु में 2-3 बार व ग्रीष्म ऋतु में 4-5 बार।
शीत ऋतु में 15 दिन के अंतराल पर तथा ग्रीष्म ऋतु में 7 दिन पर।
तुड़ाई/खुदाई
कटाई अप्रैल-मई में करना चाहिए। छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर तेज धूप में सुखाना चाहिए।
एक से डेढ़ वर्ष में पत्तियाँ कटाई योग्य हो जाती है। सामान्यत: अक्टूबर-फरवरी में पत्तियाँ एकत्र की जाती है।
उपयोगी भाग एवं उपज
पत्तों एवं शखाओं का चूर्ण, रस एवं सत्व। एक हें. में 40 क्विंटल हरी गियोल। शुष्ट बेल का उत्पादक 8 क्विंटल/हेक्टेयर।
पत्ती तथा जड़। 1250 किग्रा. सुखी पत्ती/हें./3 महीना।
उपयोग
पीलिया, यकृत विकास, कब्ज, मधुमेह, अधिक प्यास लगना, ज्वर, उल्टी, जननेद्रिय एवं मुत्रोंद्रिय के रोग, खाँसी, दमा, चक्कर, चर्म रोग, पेचिश एवं गठिया रोगों में।
उददीपक, क्षुधावर्धक, मृदुरेचक, मूत्रवर्धक, खाँसी, पित्त दोष, नेत्र रोग में उपयोगी, ह्रदय तथा परिसंचरण, तंत्र को उददीपित करने एवं मधुमेह के उपचार में।
तुलसी
बेल
मिटटी एवं जलवायु
उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में। मध्यम तापक्रम दोमट एवं बलुई दोमट, पी.एच. मान 5-8, जलधारण क्षमता अच्छी।
ज्यादा वर्षा तथा ज्यादा सुखें वाले क्षेत्र को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष में 5 से 8 पी.एच.मान वाली किसी भी प्रकार की भूमि जैसे वारानी, परती, उसर तथा कंकरीली आदि में।
उन्नत प्रभेद
जी.ए.यू. 2, आई.सी. 381185, आई. सी. 436153, सि-आंगना, आई.सी. 75730, सिम-सौम्य, विकारसुध, कुशमोहक।
मिर्जापुरी, फैजाबादी, कागजी गोंडा, कागजी इटावा, रामपुरी, पंत शिवानी, पंत उर्वर्शी, नरेंद्र बेल 4, 5, 6, 7, 9, 16, 17 ।
बीज दर
एक हेक्टेयर के लिए 600-700 ग्राम बीज।
100 पौधे/हें.
लगाने का समय
मई-जून में नर्सरी में तैयार क्यारियों में बीज को बोते है। बीज बोने के बाद हल्की सिंचाई कर दी जाती है। 30-40 दिन के बाद तुलसी के पौधे मुख्य खेत में रोपाई के योग्य हो जाते है।
जून-जुलाई।
लगाने की दूरी
40 x 40 सें.मी. दूरी पर।
पौधे की रोपाई 30 x 30 फीट की दूरी पर।
खाद एवं उर्वरक
40 टन कम्पोस्ट, 30 किग्रा. यूरिया, 40 किग्रा. फ़ॉस्फेट, 30 किग्रा. पोटाश। पौधें की बुआई के समय 30 किग्रा. नेत्रजन, 40 किग्रा. स्फुर व 30 किग्रा. पोटाश/हें. 25 दिन के बाद 20 किग्रा. नेत्रजन।
एक पौधे के लिए 500 ग्राम नाईट्रोजन, 250 ग्राम फ़ॉस्फोरस तथा 500 ग्राम पोटाश तथा 50 किग्रा. कम्पोस्ट खाद।
सिंचाई
फसल की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है।
मई-जून में नई पत्तियाँ आने पर एक बार सिंचाई काफी उपयोगी।
तुड़ाई/खुदाई
पौध रोपण के 80-90 दिन के बाद।
चार से आठ साल की आयु में बेल के पौधें पर फूल एवं फल आते हैं।
उपयोगी भाग एवं उपज
जड़, पत्ती, बीज, पंचांग 50-60 किग्रा. तेल/हें. ।
पत्ती, छाल, मूल, कच्चे फल एवं पके फल। 10 से 15 वर्ष की आयु के एक पौधे से प्रतिवर्ष 100 से 200 फल प्राप्त होते है जो 50 वर्ष की आयु पूरा कर लेने पर 800 से 1000 फल तक हो सकता है।
उपयोग
दुर्गन्धनाशक, पित्त-कफनाशक, ह्रदयहितकर, विषकर, वीर्य वर्द्धक, स्मष्टतिवर्धक, अतिसार, चर्मरोग, कष्टमि, मुंहासे-खुजली, दाद, गर्भ रोग, प्रसव-पीड़ा कणशूल, उल्टी, मधुमेह, वात विकास, रंग अंधत्व, बेहोशी के उपचार में। सर्दी की औषधियों के निर्माण, खाँसी एवं कफ की दवा बनाने, क्न्फैंक्सनरी उद्योग, सौन्दर्य प्रसाधनों, माउथ-वाश एवं टूथ पेस्ट आदि के निर्माण में, फफूंद-जीवाणु एवं कीटाणुनाशक।
दस्त व पेचिश रोगों में, मधुमेह में, स्मरण शक्ति बढ़ाने में, बवासीर के उपचार में, खून साफ करने में, पीलिया एवं आँखों के संक्रमण की रोकथाम के लिए, शरीर से दुर्गध दूर करने में, कब्ज से राहत में, ह्रदय एवं मस्तिक टॉनिक।
नीम
सदाबहार
मिटटी एवं जलवायु
शुष्क जलवायु न्यूनतम वर्षा वाले क्षेत्रों में, उसर या परती भूमि पर, रेतीली भूमि, दोमट भूमि में, पथरीली भूमि में।
उष्ण समशीतोष्ण क्षेत्र, अधिकतम तापमान 35-40 डिग्री एवं न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक। हल्की रेतीली मृदा से लेकर बलुई दोमट भूमि। उपयुक्त वृद्धि हेतु जल निकास उचित।
उन्नत प्रभेद
क्राइडा, हैदराबाद द्वारा उन्नत किस्म का विकास किया गया है।
आई.सी.49581, आई.सी. 120837, आई.सी. 415024
बीज दर
1100 पौधे/हें.
नर्सरी में 500 ग्राम तथा सीधी बुआई के लिए 2.5 किग्रा.
लगाने का समय
बीजों की जीवन क्षमता 1-10 दिन तक होती है। अत: फल एकत्र करने के 5-6 दिन के अंदर बोनी कर दें। बीजों से एक सप्ताह में अंकुरण होना शुरू हो जाता है जो कि लगभग 18-20 दिन में पूरा हो जाता है। पौधों के अंकुरित होने के एक माह के बाद उन्हें पॉलीथिन के पैकेटों में रोपित कर दें। एक माह बाद जुलाई-अगस्त में पहले से तैयार खेत में इन पौधों का रोपण करें।
जून-जुलाई।
लगाने की दूरी
3 x 3 मीटर की दूरी पर।
कतार से कतार की दूरी 40 सें.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखे।
खाद एवं उर्वरक
500:500:200 ग्राम एन.पी.के. प्रति वृक्ष लगाने के समय।
15 टन कम्पोस्ट, 50 किग्रा. यूरिया, 30 किग्रा. सि.सु.फा. तथा 30 किग्रा. पोटाश।
सिंचाई
रोपने के प्रथम वर्ष पौधे की सिंचाई करने से पौधे की अच्छी वृद्धि।
ग्रीष्मकाल में 20-25 दिन के अंतर से करने में उपज में वृद्धि होती है तथा कटाईयों की संख्या बढ़ जाती है।
तुड़ाई/खुदाई
6 वर्ष बाद आवश्यकतानुसार
रोपने के 4 माह बाद, भूमि से 7 सें.मी. की ऊँचाई से पौधे की कटाई करें व पत्तियों को छाया में सुखायें।
उपयोगी भाग एवं उपज
फूल, बीज का छाल, कोपल। 40-50 किग्रा. फल प्रति वृक्ष 5 वर्ष बाद।
सुखी पत्तियाँ, सूखा तना एवं सुखी जड़ें। 2-4 टन सुखी पत्ती, 1.5 टन सूखा तना, 1 टन सूखे जड़ सिंचित अवस्था में। असिंचित अवस्था में उपज लगभग आधी होती है।
उपयोग
कुष्ठ, चर्मरोग, रक्त शोधन, कफ व पित्त को शांत करने, फोड़े-फुंसी, घाव आदि में, रोगाणुआ के आक्रमण, कीटाणु नाशक, ज्वर में एवं सिफलिस में।
कैंसर प्रतिरोधी, उच्च रक्तचाप प्रतिरोधी, मधुमेह, आंव, मलेरिया, चर्मरोग, कैंसर में, मूत्रवर्धक, दस्तरोधक, चोटों को ठीक करने हेतु।
बाबची
चन्द्रसूर
मिटटी एवं जलवायु
सभी प्रकार की भूमि, परन्तु जल जमाव नहीं। सभी प्रकार की जलवायु। यह खरीफ की फसल है जो रबी में पकती है।
समशीतोष्ण जलवायु। औसत वार्षिक वर्षा 70 से 115 सें.मी. । उत्तम जल निकास वाली बलुई कछारी मिटटी पी.एच.मान सामान्य।
उन्नत प्रभेद
आई.सी. 111238, आई.सी. 111249, आई.सी. 111251, आई.सी.111256, प्रताप।
जी.ए.1
बीज दर
8-10 किग्रा./हें.
5 किलोग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर।
लगाने का समय
15 जून से 15 जुलाई तक।
सितम्बर से अक्टूबर।
लगाने की दूरी
कतारों के बीच 80 सें.मी. का अंतर रखें।
कतारों से कतारों के बीच का अंतर 20-30 सें.मी. । गहराई 1 से 1.5 सें.मी. ।
खाद एवं उर्वरक
सिंचित फसल में 20:30:20 किलो ग्राम नेत्रजन, स्फुर व पोटाश/हें. बुआई के समय तथा 20 किलो ग्राम नेत्रजन/हें. प्रथम सिंचाई के समय।
खाद एवं उर्वरक 15-20 टन/हें. गोबर की सड़ी खाद। बुआई के समय 50:50:30 किलोग्राम नेत्रजन, स्फुर एवं पोटाश उर्वरक देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
सिंचाई
वर्षा खत्म होने के बाद 20-30 दिन के अंतर से।
बुआई के तुरंत बाद अंकुरण हेतु सिंचाई करें एवं द्वितीय सिंचाई 30 दिन बाद करें। फलियों में दूध भरने की अवस्था पर एक सिंचाई और करें।
तुड़ाई/खुदाई
फसल 200-210 दोनों में पक कर तैयार हो जाती है। जब अधिकांश फल पूर्ण रूप से पक जाये तब फसल काटनी चाहिए। फसल काट कर थ्रेसिंग कर बीज अलग करना चाहिए।
100-110 दिन के बाद जब पत्तियाँ पीली पड़ने लगे और बीज का रंग लाल हो जाये।
उपयोगी भाग एवं उपज
जड़े, पत्ते, फल, बीज तथा तेल 10 क्विं. बीज प्रति हें. ।
बीज 10-15 क्विं. बी./हें.
उपयोग
दांतों से संबंधित बीमारियों में, डायरिया में, विभिन्न चर्मरोग, कुष्ठ रोग, उल्टी आना, अस्थमा, पेशाब में जलन, पेशाब आने में तकलीफ होना, ब्रोंकाइटिस, पाईल्स, एनीमिया, रेचक के रूप में, पेट के कीड़ों को निकालने में, ह्रदय रोग, अल्सर खून से संबंधित बीमारियों, स्केबीज, सफेद दागों के उपचार में तथा रिंग वार्म की समस्या को दूर करने में।
पाचन संबंधी रोग, नेत्र रोग, मूत्रशुद्धि पेचिस, विभिन्न स्त्री रोग, प्रसवोत्तर शारीरिक क्षति पूर्ति हेतु, अस्थमा निरोधक, खूनी बवासीर, सिफलिस में, शारीरिक सुदृढ़ता हेतु, प्रसव के उपरांत महिलाओं में दूध न उतरने की समस्या के निवारण हेतु एवं दुधारू पशुओं को दुग्ध बढ़ाने हेतु।
खस
पामारोजा
मिटटी एवं जलवायु
उष्ण एवं उपोष्ण। बलुई से दोमट कछारी मृदा।
साल भर सुवितरित वर्षा, तापमान 30 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड, वायुमंडलीय आर्द्रता 80 प्रतिशत से अधिक। बलुई दोमट भूमि, जल निकास की समुचित व्यवस्था।
उन्नत प्रभेद
एच.वाई.बी. 8, एन. सी. 66404, एन. सी. 66416, पूसा हाइब्रिड 8, कानपुर हाइब्रिड 8, कानपुर हाइब्रिड 40, के एस.1, सुगंध, धरिणी, गुलाबी, केशरी, सिम-वृद्धि, ओ. डी.भी. 3।
आई डब्लू 31245, पी.आर.सी. 1, आर.एच. 49, तृष्णा, तृप्ता, कम्पोजिट 12, जे.आर. 68, सी.आई. 80।
बीज दर
15-20 किग्रा./हे. या 80000 स्लिप/हें.
बीज द्वारा रोपाई के लिए 3-5 किग्रा. बीज को 4-5 गुणा मिटटी में मिला कर 10-15 सें.मी. ऊँची क्यारियों में वो देते है।
लगाने का समय
जून से जुलाई
नर्सरी का उचित समय मई-जून होता है।
लगाने की दूरी
50 सें.मी. ।
40-45 दिन पुराने पौध को उखाड़ कर 60 x 30 सें.मी. ।
खाद एवं उर्वरक
10-12 टन/हें. गोबर की खाद, खेत तैयार करते समय 80:50:50 की मात्रा में नेत्रजन, स्फुर व पोटाश देते है। नेत्रजन की आधी मात्रा बोनी के समय तथा आधी मात्रा 3 माह के बाद देते है।
20:60:40 यूरिया: सि.सु.फा: पोटाश प्रति हेक्टेयर।
सिंचाई
रोपण के बाद सिंचाई करना चाहिए।
आवश्यकतानुसार
तुड़ाई/खुदाई
18 माह के बाद जड़ों की खुदाई शुष्क मौसम में की जाती है। 15 सें.मी. की ऊँचाई से तना काट कर अलग कर दिया जाता है फिर हल्की सिंचाई द्वारा जड़े निकालने में आसानी होती है। खुदाई करने के बाद जड़ों को साफ़ करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर 1-2 दिन छाया में सूखा कर जल आसवन करके तेल निकालते है।
सिंचित क्षेत्रों में वर्ष में तीन कटाई क्रमश: सितम्बर-अक्टूबर, फरवरी-मार्च एवं मई-जून में ली जा सकती है एवं असिंचित क्षेत्रों में दो कटाई ली जा सकती है। जब पुष्पक्रम का रंग हल्का बादामी हो जाये उस समय फसल को 9-10 इंच जमीन के ऊपर से काट लिया जाता है तथा आसवन द्वारा तेल निकाला जाता है।
उपयोगी भाग एवं उपज
जड़ 3-5 टन ताज़ी जड़/हेक्टेयर।
पत्तियाँ व पुष्पक्रम। 50-55 किग्रा. तेल/हेक्टेयर सिंचित अवस्था में।
उपयोगी
सुगंधित तेल, इत्र, साबुन, शरबत, पानमसाला, खाने की तम्बाकू तथा सौन्दर्य प्रसाधनों में। जड़, पत्तियाँ तथा तना, क्रमश: कूलर, चटाई पंखे एवं झोपड़ी बनाने में। हमारी पत्तियों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में।
अगरबत्ती, सुगंधित साबुन, ऋंगार व प्रसाधन सामग्री के निर्माण तथा तम्बाकू को सुगंधित करने में, मच्छर भगाने वाले रिपेलैंट्स में, तेल की मालिश घुटनों तथा शरीर के अन्य जोड़ों के दर्द में।