कृषि वानिकी
कृषि वैज्ञानिक के अथक परिश्रम एवं किसानों के निरंतर प्रयास से भारत वर्ष में हरित क्रांति का सपना साकार हुआ। हरित क्रांति की इस ज्वार में एक ओर तो वनों का विनाश हुआ तथा दूसरी और कृषि उत्पादन क्षमता में अपार वृद्धि हेतु रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशी दवाओं का प्रयोग भी विभिन्न रूप में किया गया जिस कारण पर्यावरण प्रदूषण एवं मृदाक्षरण की समस्याएं पैदा हो गई। जनसंख्या में अधिकाधिक वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण एवं अन्य बहुआयामी कारणों से वनों का विनाश गंभीर स्तर तक हो गया। कुछ मिलाकर भूक्षरण एवं जल की कमी के कारण कृषि उत्पादन प्रभावित होने लगा है। मृदा एवं जल संरक्षण क समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है, जिस कारण प्रत्येक वर्ष कृषि योग्य वनों के ह्रास के कारण वनोत्पाद जैसे: चारा, जलावन, काष्ट, फल, तैलीय बीज एवं अन्य लघु वन उत्पाद की गंभीर कमी के कारण आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
कृषिवानिकी भूमि और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का सामूहिक रूप है जिसमें अनाज, चारा आदि के लिए फसलें उगाई जाती है तथा वृक्षों, झाड़ियों तथा फलदार वृक्षों को लगाकर वनोत्पाद के द्वारा किसानों का आर्थिक विकास किया जाता है, जिसके साथ-साथ मृदा एवं जल संरक्षण भी होने लगता है जो टिकाऊ कृषि के लिए नितांत आवश्यक है। कृषिवानिकी में स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तथा कृषि का अनुसार वृक्षों को लगाया जाता है।
कृषि वानिकी के मुख्य उद्देश्य
कृषि वानिकी के निम्नलिखित दो मुख्य उद्देश्य है।
(क) सामाजिक एवं पर्यावरणीय उद्देश्य: कृषि वानिकी में लगाए गये वृक्षों द्वारा न केवल वन उत्पाद का लाभ समाज को प्राप्त होता है बल्कि हरियाली वाले क्षेत्रफल में बढ़ोतरी के फलस्वरूप बिगड़े हुए पर्यावरण परिवेश में सुधार भी संभव है। पर्यावरण परिवेश में सुधार के फलस्वरूप क्षेत्र विशेष में बाढ़, सूखा, अति एवं अनावृष्टि, भूक्षरण एवं मृदा तथा जल संरक्षण जैसी समस्याओं में भी टिकाऊ हो जाता है। जिसका दूरगामी सामाजिक लाभ प्राप्त होता है।
(ख) आर्थिक उद्देश्य: आज का किसान आर्थिक समस्याओं में घिरा होता है। खासकर पठारी क्षेत्र में आर्थिक समस्याएं अपार हैं। मुख्यत: शुष्क खेती पर निर्भर किसानों के लिए साल भर का भोजन जुटाना कठिन हो जाता है। कृषि से प्राप्त आय में निरंतर कमी किसानों के विकास में दिनों-दिन बाधक होती जा रही है। पूंजी की कमी के कारण किसान उन्नत तकनीक पर आधारित कृषि नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यदि बंजर भूमि एवं खेतों की मेढ़ तथा खेतों के भीतर कृषि वानिकी के अंतर्गत वृक्षारोपण किया जाए तो वृक्षोत्पाद निश्चय ही किसानों के आर्थिक विकास में प्रबल योगदान कर सकते हैं। जलावन, चारा, तैलिए बीज, प्राकृतिक रंग, गोंद लासा, कंद, रेशा, औषधि, इमारती लकड़ी, बल्लियाँ कुटीर उद्योग हेतु कच्चे माल आदि की पैदावार से बहुत हद तक किसानों का आर्थिक विकास किया जा सकता है।
कृषिवानिकी प्रणाली के प्रमुख भेद
(क) वन चारागाह: परती भूमि पर घास तथा चारा वाले वृक्षों का रोपण।
(ख) कृषि चारागाह: चारे वाले प्रजातियों का कृषि के साथ रोपण।
(ग) कृषि-वन: खेतों के भीतर एवं मेड पर कतारों में वृक्षारोपण।
(घ) कृषि-उद्यानिकी: खेतों की मेड पर अथवा भीतरी कतारों में फलदार वृक्षों का रोपण।
(ङ) वन-उद्यानिकी : वन वृक्षों के साथ फलदार वृक्षों का रोपण।
(च) वन-कृषि रेशम अथवा लाह: खेतों में अथवा उनकी मेढ़ पर कतार में रेशम कीट या लाह पालन हेतु उपयुक्त वृक्षों का रोपण।
(छ) बागवानी-वन-कृषि मधुमक्खी: बागवानी में कृषि एवं वन वृक्षों का रोपण जिससे मधुमक्खी पालन हो सके।
(ज) वानिकी मत्स्य पालन: तालाबों में मेढ़ पर वृक्षारोपण।
उपरोक्त मुख्य कृषि झावानिकी प्रभेद इस बात के सूचक है कि कृषिवानिकी के वन उत्पाद, तथा लाह, रेशम, मधु जैसे बहुमूल्य वस्तुओं के उत्पादन द्वारा आर्थिक विकास की असीम क्षमता है।
कृषिवानिकी यहाँ करें
(क) खेतों में: खेतों के भीतर कतारों में अथवा खेतों की मेड पर क्षेत्र विशेष की आवश्यकतानुसार चयनित वृक्षों का रोपण कर उस क्षेत्र के समस्याओं का निदान किया जाना चाहिए।
(ख) बंजर एवं परती भूमि पर: टांड, बंजर एवं परती भूमि पर वृक्षारोपण द्वारा भूक्षरण, जल एवं मृदा संरक्षण जैसी समस्याओं का निदान संभव है। साथ-साथ रोपित वृक्षों से प्राप्त होने वाली आय का उदाहरण स्वरूप ब्यौरा तालिका में दर्शाया गया है।
(ग) तालाब किनारे वृक्षारोपण: इसके द्वारा तालाब का भूस्खलन से संरक्षण होता है साथ ही कुछ विशेष प्रकार की मछली जैसे ग्रास कॉर्प के पालन हेतु आवश्यक चारे की भी आपूर्ति हो जाती है।
(घ) सड़क किनारे क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुसार चयनित वृक्षों का रोपण बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। सामुदायिक भूमि जैसे पंचायत भवन के अहाते, स्कूल की जमीन आदि पर भी वृक्षारोपण अत्यंत लाभकारी है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
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