परिचय
झारखण्ड में पुष्प उत्पादन की असीम संभावनाएँ है। आरंभ में फूलों की खेती शौकिया तौर पर घर एवं बाग़ –बगीचा को सजाने के लिए की जाती थी। फूलों का उपयोग गुलदस्ता, माला बनाने, शादी विवाह के मौके पर सजावट, टेबुल डेकोरेशन एंव ड्राइंग रूप में प्लावर वेस में रखने इत्यादि विविध उपयोग के कारण फूलों की मांग काफी बढ़ गयी है। झारखण्ड से बाहर फूल भेजने की भी संभावना है। अतः पुष्प उत्पादन एक व्यापार का रूप ले रहा है। फूल उपभोक्ता एक ताजे रूप में पहुंचे एंव गुणवत्ता बरकार रहे इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए तोड़ाई उपरांत फूल के खराब होने की विविध कारणों को रोकना होगा।
पौधों की हार्वेस्टिंग
पौधे का जीवन चक्र होता है जिसमें पौधे बढ़ते हैं, फूल लगते है, पूरी तरह खिलने एवं परागगण के बाद फूल मुरझाने लगते हैं। अतः अगर पूर्ण खिले फूल की तोड़ाई करते हैं तो एक-दो के बाद फूल मुरझा जायंगे। इन्हें हम बाहर नहीं भेज सकते है। गेंदा, गुलाब, जरबेरा अथवा ग्लैडिओलस के पूर्ण खिले फूल तभी तोड़े जाते हैं, जब कुछ समय के लिए इनका उपयोग करना हो। माला बनाने, तरोरण द्वारा सजाने, गुलदस्ता बनाने अथवा उद्यान प्रदर्शनी में रखने के लिए पूर्ण विकसित फूल तोड़े जा सकते हैं लेकिन बिक्री के लिए ये उपयोगी नहीं होते। इन्हें कली की अवस्था में तोडा जाता है। गुलाब को टाइट बद स्टेज में जब पंखुड़ियों के रंग दिखाई पड़ने लगे तब काटा जाता है। ग्लैडियोलस स्पाइक पर जब आरंभ के एक-दो फ्लोरेट खिलना शुरू कर डे तक हार्वेस्टिंग की जाती है। इससे धीरे-धीरे अन्य कली खिलते रहेंगे तथा अधिक दिन तक फूल ताजे बने रहेंगें। जरबेरा के स्पाइक को तभी काटते हैं जब डिस्क फ्लोरेट के बाहरी २-3 कतार डंठल पर लम्ब बनावें।रजनीगन्धा के आधार वाले 1-२ जोड़ी वड जब खुल जाए तो आधार से काटकर स्पाइक की हार्वेस्टिंग करनी चाहिए। अन्थुरियम के जब स्पेथ खुल जाएँ तब सुबह में डंठल के साथ काटनी चाहिए। औरकीड के फूल खिलने के 3-4 दिन के बाद ही परिपक्त होते हैं इसलिए खिलने के 3-4 दिन बाद ही कटाई करनी चाहिए नहीं तो ये मुरझा जायेंगे। शाम के वक्त ही हार्वेस्टिंग करनी चाहिए। इनके फूल पौधे पर भी काफी दिन तक ताजे रहते हैं इसलिए इन्हें आवश्यकता होने पर ही कटाई करनी चाहिए। गुलदाऊदी के स्टैंडर्ड एवं स्प्रे किस्म की हार्भेस्टिंग 40-50% ब्लूम के ओपेन होने के बाद करते हैं।
फूलों की गुणवत्ता में गिरावट के कारण
फूल की गुणवत्ता में गिरावट आने का मुख्य कारण आंतरिक नमी में कमी होना है। तोड़ाई के उपरान्त ट्रांसपीरेशन क्रिया द्वारा कटे फूल से नमी निकलनी शुरू हो जाती है जबकि जमीन से फूलों को मिलने वाली नमी कटने के बाद नहीं मिल पाती। परिणामस्वरुप फूल मुरझाना शुरू कर देते हैं। ट्रांसपीरेशन की क्रिया औ तेज हो जाती है अगर वातावरण गर्म हो। इसलिए फूलों की तुड़ाई सुबह या शाम में ही करनी चाहिए। फूल के डंठल के आधार को कटाई के समय पानी में रखना चाहिए ताकि पानी की कमी की पूर्ति की जा सके। वातावरण को जम रखना भी आवश्यक है ताकि तापक्रम कम रहे। फूलों पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। अगर दूर भेजना हो तो रेफ्रीजरेटर वैन से भेजना चाहिए।
फूल में गिरावट का दूसरा मुख्य कारण श्वसन क्रिया द्वारा आंतरिक फूड मेटेरियल कार्बोहायड्रेट में कमी होना है। फूल जीवंत होते है, एलसी स्वांस की क्रिया जारी रहती है। इस क्रिया में फूलों में स्टोरड फुड मेटेरियल का विघटन होता है। अगर हार्भेस्टिंग के समय फूल में फुड मेटेरियल यानि कार्बोहाइड्रेट कम हो तो वह फूल शीघ्र खराब होगा। इसलिए हार्वेस्टिंग उस समय करना चाहिए जब स्टोरड सुगर अधिक से अधिक रहे। फूल उगाने के क्रम में उचित पोषक एवं डीसवडिंग क्रिया के द्वारा फूल में सुगर की मात्रा में बढ़ाया जा सकता है। वेस-लाइफ के लिए पानी 4% सुगर मिलाने से वेस-लाइफ बढ़ जाता है क्योंकि इससे पानी के साथ सुगर भी मिलते रहता है। फिजीयोलोजिकल वेट में 10% से अधिक कमी होने पर फूल बिक्री लायक नहीं रह जाते हैं।
फूलों में रेस्पिरेशन की क्रिया
रेस्पीरेशन की क्रिया उच्च तापक्रम पर अधिक होता है। कम तापक्रम पर रेस्पीरेशन कम होता है साथ ही साथी फफूंदी एवं बैक्टीरिया का ग्रोथ भी रुक जाता है। इसलिए गुलाब के फूलों को 4.4-7.२ डिग्री सेल्सियस पर कोल्डस्टोरेज में रखने से फूल काफी दिन का खराब नहीं होते हिं। कटे फूलों कोवातानुकूलित कमरों में रखना चाहिए। फूलों को 4 डिग्री सेल्सियस पर रेफ्रीजरेटर वाइन से ट्रांसपोर्ट करने से फूल खराब नहीं होंगे। रेस्पीरेशन रेट को कम करने के लिए कुछ केमिकल्स को वेश वाटर में डाला जाता है जो बैक्टीरिया एवं फुफंद को भी नियंत्रित करते हैं। इसमें दो तरह के घोल का इस्तेमाल करते हैं। एक घोल में पोटाशियम एलुमिनियम सल्फेट, फोरिक ऑक्साइड, सोडियम हाइपोक्लोराइड था चीनी मिलाकर बनाते है। एक घोल में मैंगनीज सल्फेट, हैड्रोजन सल्फेट तथा चीनी मिलाकर बनाते हैं। विकसित देशों में इनके टैबलेट मिलते हैं जिन्हें सिर्फ पानी में डालना होता है।
वेस लाइफ में कभी-कभी कट एंड के तरफ स्टेम में प्लगिंग हो जाता है जिसके कारण घोल ऊपर नहीं जा पाटा है। गम ऐसा पदार्थ बनने, फेनौलिक कंपाउंड के कारण या इंजाइम के करण भी स्टेम चौक हो सकता है। इंजाइम इन्हीवीटर अथवा घोल की अम्लीयता 3.0-4.0 करने से फूलों का वेस लाइफ बढ़ जाता है। एंजाइड और डी.एन.पी. तथा चेलेटिंग एजेंट जैसे 8-एच.क्यू.सी वेश पानी में डालने से फूलों को अधिक दिनों तक ताजा रखा जा सकता है। इसकी तरह फूलों को काटने के बाद साफ पानी में कट एंड को रखना चाहिए। प्रत्येक दिन 1-२ सेंटीमीटर नीचे के डंठल को पानी में ही काटकर हटा देना चाहिए। इससे क्लोगिंग नहीं होगा। हवा में निकालकर नहीं काटना चाहिए नहीं तो हवा आ जाने से पानी सोखने की क्षमता कम हो जाएगी। वेस वाटर में चीनी तथा 8-एच.क्यू.सी अथवा चीनी+कॉपरसल्फेट मिलाकर वेस लाइफ बढ़ाया जा सकता है।
सावधानी से करें फूलों की पैकेजिंग
फूलों को पैकेजिंग करते समय भी सावधानी बरतनी चाहिए। पैकेजिंग ऐसी होनी चाहिए जिससे ट्रांसपोर्टेशन के दौरान रेस्पीरेशन और सेल डिविजन कम हो। इससे स्टोरेज लाइफ तथा गुणवत्ता बनी रहेगी। पैकेजिंग ऐसा हो जो रफ हैंडलिंग को बर्दास्त कर सके। वाटरप्रूफ हो, नमी न सोखे, एयरटाइट हो तथा छोटे आकार का हो। अगर कंटेनर बड़ा होगा तो उसमें फूलों को रखने के बाद काफी जगह रहने से ट्रांसपोटेर्शन के दौरान हिलने-डोलने से फूलों को क्षति पहुँचेगी। अधिक खाली जगह रहने से ट्रांसपोर्टेशन भी अधिक होगा। इसलिए वाटरप्रूफ पैकेज रहने से फूलों पर पानी का छिड़काव कर नमी बरकरार रखी जा सकती है। सेलोफेन या पोलीथिन में लपेटन से नमी बनी रहेगी तथा गैस प्रूफ होने के कारण भीतर में कार्बनडाइऑक्साइड गैस की सांद्रता 5 से 15% रहेगी। इससे रेस्पिरेशन की प्रक्रिया कम हो जाएगी।
कट ब्लूम को पैक करने के लिए हार्ड कार्ड बोर्ड बौक्सेज को पैक करना चाहिए। डंठल सहित फूल रखने के लिए, पोलोथिन में लपेटने के बाद उपर के भाग को रबर बैंड से बाँध देना चाहिए। डंठल के कट एंड के तरफ भींगा हुआ रुई से कभर से नमी बनी रहेगी।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार