परिचय
आजकल रासायनिक खादों के प्रयोग से मृदा की प्राकृतिक उर्वरा-शक्ति दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि रासायनिक खादों एवं विभिन्न कृषि रसायनों (कीटनाशक, फुफंद नाशक एवं खरपतवार नाशक) के प्रयोग से मृदा, जल वायु एवं मानव सभी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। जो मानव शरीर में किसी न किसी रूप में जाकर विभिन्न रोगों (विकृतियों) को जन्म दे रहा है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि इन रासायनिक खादों के विकल्प के रूप में जाकर जैविक खाद का प्रयोग किया जाए। जीवाणु खाद में दलहनी फसलों के लिए मुख्य रूप राइजोबियम कल्चर” अनाज और सब्जी वाली फसलों के लिए “एजोटोबैक्टर कल्चर” मक्का, सरसों राई और चारे वाली फसलों के लिए “एजोस्पिरिलम कल्चर” और धान फसल के लिए “नील हरित शैवाल( ब्लू ग्रीन एल्गी) कल्चर एवं जैविक खाद में मुख्य रूप से वर्मी कम्पोस्ट एवं एनरिच्ड का प्रयोग किया जाए।
जीवाणु खाद
राइजोबियम कल्चर
दलहनी फसलों की जड़ों में गुलाबी रंग का गाँठ बनता है। इन गाठों में ही राईजोबियम नामक जीवाणु रहता है जो वायुमंडलीय नेत्रजन गैस को भूमि में स्थापित करता है, जिन्हें पौधों द्वारा आसानी से शोषित कर लिया जाता है। राईजोबियम कल्चर के प्रयोग से भूमि में लगभग 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नेत्रजन खाद का लाभ होता है। इसके अलावा उपज में लगभग 10% की वृद्धि होती है। इस कल्चर खाद का प्रयोग मुंग, उरद, अरहर, सोयाबीन, मटर, चना, मूंगफली मसूर एवं वरसीम के फसल में करते हैं। अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग राईजोबियम कल्चर का प्रयोग किया जाता है।
एजोटोबैक्टर कल्चर
यह सूक्ष्म जीवाणु भी राइजोबियम जीवाणु की तरह ही वायुमंडलीय नेत्रजन को भूमि में स्थापित करता है। इसकी कुछ प्रजातियां जैसे= एजोटोबैक्टर, बिजरिको, क्रुकोकम,एजिलिस इत्यादि विभिन्न फसलों में वायुमंडलीय नेत्रजन उपलब्ध करने में सक्षम होते हैं। ये जीवाणु जड़ों में किसी प्रकार का गांठ नहीं बनाते हैं। ये जीवाणु मिट्टी में पौधों के जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप में पाए जाते हैं तथा नेत्रजन गैस को अमोनियम में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। इस जीवाणु खाद के प्रयोग से 10-20 किलोग्राम नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की प्राप्ति होती है तथा अनाज वाली फसलों में 10-20% एवं सब्जियों में 10% तक की उपज में वृद्धि पायी गयी है। ये जीवाणु खाद बीजों के अंकुरण में भी सहायता करते अहिं। एवं इनके प्रयोग से जड़ों में होनेवाली फुफुन्द रोग से भी बचाव होता है। इस कल्चर का प्रयोग गेंहूँ, जौ, मक्का, बैंगन, टमाटर, आलू एवं तिलहनी फसलों में करते हैं।
एजोस्पिरिलम कल्चर
इसके जीवाणु पौधों के जड़ों पर समूह बनाकर रहते हैं तथा पौधों को वायुमंडलीय नेत्रजन उपलब्ध कराते हैं। इस कल्चर का प्रयोग ज्वार, बाजरा, मडुआ, मक्का, घास एवं चारे वाली फसलों के पैदावार बढ़ाने के लिए करते हैं। इस जीवाणु खाद एक प्रयोग से 15:20 किलोग्राम नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त इसके जीवाणु कई प्रकार के पादप हार्मोंन्स छोड़ते हैं। जो पौधों के लिए आवश्यक है। एजोस्पिरिलम जड़ों के विस्तार एवं फैलाव में सहायक होते हैं। जिसके पोषक तत्वों, खनिजों एवं जल के अवशोषण क्रिया में वृद्धि होती है। जिन फसलों में अधिक पानी की मात्रा दी जाती है वहाँ ये विशेष लाभकारी होते हैं।
जीवाणु खाद से बीज उपचारित करने की विधि
सभी प्रकार के जीवाणु खाद से बीज उपचारित करने का तरीका एक जैसा ही है। एक पैकेट (100 ग्राम) कल्चर आधा एकड़ जमीन में बोये जाने वाले बीजों को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है।
सावधानियां
- साफ एवं भुरभुरी दोमट मिट्टी ही प्रयोग में लायें
- जव शैवाल (काई) खाद का खेत में छिड़काव का तो खेत में कम से कम 3-4 सेंटीमीटर पानी अवश्य रखें।
- यह ध्यान रखें कि शैवाल खाद को रसायनिक उर्वरक या अन्य रसायनों के सीधे सम्पर्क में न आने दें।
- शैवाल खाद बनाते समय ट्रे में नेत्रजनधारी उर्वरक का प्रयोग नहीं करें।
- शैवाल खाद को सूखे स्थान में रखें।
जैविक खाद
जैविक खाद का अभिप्राय उन सभी कार्बनिक पदार्थों से है जो कि सड़ने या गलने पर जीवांश पदार्थ या कार्बनिक पदार्थ पैदा करती है। इसे हम कम्पोस्ट खाद भी कहते हैं। इनमें मुख्यतः वनस्पति सामग्री और पशुओं का बिछावन, गोबर एवं मल मूत्र होता है। इसलिए इनमें वे सभी पोषक तत्व उपस्थित रहते हैं जो कि पौधों में वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं। जैविक फसल के लिए बहुत ही उत्तम खाद मानी जाती है।
जैविक खाद या कम्पोस्ट खाद को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- फास्फो कम्पोस्ट
- इनरिच्ड कम्पोस्ट
- वर्मी कम्पोस्ट
फास्फो कम्पोस्ट
इस खाद में फास्फोरस (स्फुर) की मात्रा अन्य कम्पोस्ट खादों की अपेक्षा ज्यादा होती है। फास्फो कम्पोस्ट में 3-7% फास्फोरस (स्फुर) होता है जबकि साधारण कम्पोस्ट में अधिकतम 1.0% तक पाया जाता है।
फास्फो कम्पोस्ट बनाने की विधि
यह विधि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन द्वारा विकसित एवं अनुशंसित है। इस विधि द्वारा फास्फो कम्पोस्ट का बनाने का तरीका बहुत ही आसान एवं सरल है।
- सबसे पहले 2 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा, 1 मीटर गहरा गड्ढा बनाएं। आवश्यकतानुसार एक या एक से अधिक गड्ढे बना सकते हैं। यह गड्ढा कच्चा या पक्का किसी भी तरह का हो सकता है।
2. सामग्री-खरपतवार, कूड़ा-कचरा, फसलों के अवशेष, जलकुम्भी, थेथर, पुटुस, करंज या अन्य जंगली पौधों की मुलायम पत्तियां, पुआल इत्यादि। इन सबी सामग्रियों को निम्न अनुपात में सूखे वजन के अनुसार मिलाकर गड्ढों को भरें-
कार्बिनक कचरा | गोबर |
मिट्टी |
कम्पोस्ट |
8 |
1 |
0.5 |
0.5 |
3. खाद बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री से कई परत बनाकर एक सही साथ भरें तथा 80-100% नमी (पानी मिलाकर) बनाएं रखें।
4. उपलब्ध सामग्री से भरे गड्ढों में 2.5 किलोग्राम नेत्रजन प्रतिटन के हिसाब से यूरिया तथा 12.5 किलोग्राम राक फास्फेट या सिंगल सुपर फास्फेट डालें।
5. गोबर, मिट्टी, एवं रॉक फास्फेट तथा यूरिया को एक बर्तन या ड्रम में डालकर 80-100 लीटर पानी से घोल बनाएं। इस घोल को गड्ढे में 15-20 सेंटीमीटर मोटी अवशिष्ट (सामग्री) का परत बनाकर उसके ऊपर छिड़काव करें। यह क्रिया गड्ढे भरने तक करें। जब तक उसकी उंचाई जमीन के सतह से 30 सेंटीमीटर ऊँची न हो जाए।
6. उपरोक्त विधि से गड्ढे को भरकर ऊपर से बारीक मिट्टी की पतली परत (5 सेंटीमीटर से गड्ढे को ढँक दें और अंत में गोबर से लेपकर गड्ढे को बंद का दें।
7. अवशिष्ट (सामग्री) की पलटाई 15,30 तथा 45 दिनों के अंतराल पर करें तथा उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालकर नमी बनाएं रखें।
8. 3-4 महीने बाद देखेंगे कि उत्तम कोटि की भुरभुरी खाद तैयार हो गई है। इस खाद को सूखे वजन के अनुसार इसका प्रयोग फसलों की बुआई के समय सुपर फास्फेट खाद की जगह पर कर सकते हैं इस फास्फो कम्पोस्ट खाद का प्रयोग सभी प्रकार के फसलों में किया जाता है।
केंचुआ खाद
ग्रामीण रोजगार एवं आर्थिक सुधार का सुलभ विकल्प
रासायनिक खाद के निरंतर प्रयोग से मिट्टी की संरचना एवं बनावट में काफी बदलाव आया है जिसके कारण मिट्टी काफी सख्त हो गयी है और सारे छिद्र बंद हो गये हैं परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष वर्षा के पानी की अधिकाँश मात्रा जमीन के अंदर जाकर रनऑफ़ के रूप में बह जाती है। इस बहाव के कारण मृदा क्षारण के साथ उर्वरा शक्ति का ह्रास हो रहा है।
अतः इस कठिन परिस्थिति में हमारे पास एक ही विकल्प है कि जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि किसान जैविक खाद के रूप में अधिकतर गोबर का प्रयोग करते हैं जिसमें पौधों को मिलने वाले सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद नहीं होते हैं। कम्पोस्ट बनाने की पुरानी विधि में काफी समय एवं पर्यावरण भी दूषित होता है। पिछले कुछ वर्षों से कम्पोस्ट बनाने की नई विधि विकसित की गई है जिसमें केंचुआ का प्रयोग किया जाता है। जिसे केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।
वर्मी कम्पोस्ट क्या है?
केंचुआ मिट्टी में पाए जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है। ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नालिका से गुजरते हैं। जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाता है और अपन शरीर से छोटी-छोटी कास्टिंग्स के रूप में निकालते हैं। इसी कम्पोस्ट को केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है। केंचुआ के उपयोग से व्यापरिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना संभव है। इस विधि द्वारा कम्पोस्ट मात्र 45 -75 दिन में तैयार हो जाता है। यह खाद बहुत ही प्रभावशाली होती है तथा इसमें पौधों के लिए सभी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं तथा पौधे इनको तुरंत ग्रहण कर लेते हैं।
केंचुआ खाद में प्रयोग होनेवाली प्रजातियाँ
विश्व में विभिन्न ऐसी प्रजातियाँ भागों में 4500 प्रजातियां बताई जा चुकी हैं आज केंचुआ की कुछ ऐसी प्रजातियाँ विकसित कर ली गई है जिनको पाकर किसान प्रतिदिन को कूड़ा-करकट को एक अच्छी खाद में बदल सकते हैं। दो प्रजातियाँ सबसे उपयोगी पाया गया जिनका नाम ऐसिनिया फोटिडा (लाल केंचुआ) तथा युड्रिल युजीनी (भूरा गुलाबी केंचुआ) है।
उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्र
केंचुआ खाद एक उच्च पौष्टिक तत्ववाली खाद होती है। जिसमें सभी तीन प्रमुख पोषक तत्व नेत्रजन (1.0-2.0%) फास्फोरस (1.0-1.5 %) तथा पोटाश (1.5 -2.0%) के अतिरिक्त लोहा, तांबा, मैगनीज, जस्ता आदि सूक्ष्म पोषक एवं एंजाइम उचित मात्रा में उपलब्ध रहता है इसमें उपलब्ध केंचुआ के अंडे (जोंकती) द्वारा खेतों में केंचुआ का जन्म प्रसार होता रहता है तथा जो केंचुएं रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं से मर जाते हैं उनकी पूर्ति करता है।
केंचुआ खाद बनाने की विधि
केंचुआ खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल तथा सस्ती है। इससे बेरोजगार नवयुवक काफी पैसा कमा सकते हैं। केंचुआ धूप सहन नहीं कर सकते हैं अतः सबसे पहले 5 फुट चौड़े एवं 20 फुट लंबा बांस की लकड़ की छप्पर खड़ा करते हैं। अत: इसकी ऊंचाई इतनी होनी चाहिए ताकि आदमी आराम से पानी दे सकें।
औद्योगिक स्तर पर केंचुआ खाद तैयार करने की निम्नलिखित दो विधियां है-
- विंडरोज
2. मॉड्युलर विधि
चूँकि मॉड्युलर विधि में एक बना हुआ बक्सा खरीदने की जरूरत पड़ती है अतः विधि खर्चीला होने के कारण आम किसानों के लिए उपयोगी नहीं है। विंडरोज विधि किफायती होने के कारण अधिक लोकप्रिय है जिसका वर्णन नीचे दिया गया है-
चरण 1. – शेड के नीचे जमीन को समतल बनाकर इसे भिंगाकर सड़नेवाला पदार्थ रखा जाता है।
चरण 2. पहली सतह को धीरे-धीरे सड़ने वाली पदार्थ जैसे नारियल का छिलका केले का पत्ता या छोटे टुकड़ों में कटा बांस से तैयार किया जाता है। इसकी सतह की मोटाई लगभग 3 से 4 इंच होनी आवश्यक है। इस सतह को बेड कहा जाता है क्योंकि कठिन समय पर केंचुआ इसे घर के रूप में इस्तेमाल करता है।
चरण 3. दूसरी सतह भी करीब 3 से 4 इंच मोटा होती है जो बेडिंग पदार्थ के ऊपर डाली जाता है इस सतह में मुख्यतः आधा सड़ा हुआ गोबर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सड़ने के समय पदार्थ में ज्यादा गर्मी पैदा न हो अगर पदार्थ में नमी की कमी हो तो सतह में पानी का छिड़काव करना आवश्यक है।
चरण 4. दूसरी सतह के ऊपर हल्का से केंचुआ को रखा जाता है। एक वर्ग मीटर के लिए 250 केंचुआ की जरूरत है। केंचुआ को छोड़ने के पश्चात बहुत जल्दी सतह के नीचे घुस जाता है क्योंकि ये पाने को बाहर में खुला रखना पसंद नहीं करता है।
चरण 5. छोटे टुकड़ों में कटा हुआ या सुखा जैविक पदार्थ को गोबर में (50:50) मिलाकर अंतिम सतह के रूप में दिया जाता है। यह सतह करीबन 4-5 इंच मोटा होता है। इस ढेर की ऊंचाई करीब 1-1.5 फुट हो जाती है।
चरण 6. अंतिम सतह को जुट के कपड़े से ढँक दिया जाता है। पूरी ढेर को ढंकना आवश्यक है। फटा हुआ जुट का बोरा इस काम में इस्तेमाल किया जा सकता है। बोरा के ऊपर नियमित रूप से पानी का छिड़काव आवश्यक है। नमी 70 से 80% बना रहना चाहिए।
चरण ७. जब केंचुआ खाद बन जाए तो इसमें पानी का छिड़काव बंद कर देना चाहिए तथा उसे सूखने देना चाहिए। ऊपर गोबर की एक पतली परत देना चाहिए। सारे केंचुआ इस परत में आ जाते हैं। तत्पश्चात इन केंचुओं को ऊपर की परत समेत इकट्ठा कर लेते हैं।
चरण 8. ऊपर के दो स्तरों को केंचुआ खाद के रूप में इकट्ठा कर लिया जाता है। बेड को सुरक्षित रखा जाता है या पुराने बेड के ऊपर दूसरी खेत की तैयारी पहले चरण से शुरू करते हैं।
केंचुआ खाद प्रयोग करने का तरीका
- जमीन की अंतिम जुताई के समय केंचुआ खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दिया जाता है।
- बिचड़ा पौधा लगाने से पहले गड्ढे में कम से कम कम 30 ग्राम अथवा एक बड़ा मुट्ठी केंचुआ खाद डालना चाहिए।
- बीज लगाने से पहले पंक्तियों में इसे अच्छी तरह डाला जाना चाहिए।
- मिट्टी चढ़ाने के समय भी लगभग हर पौधों में एक मुट्ठी या 30 से 40 ग्राम केंचुआ डालना चाहिए।
अच्छे परिणाम के लिए केंचुआ खाद का प्रयोग जड़ों के आस-पास करने के बाद इसे मिट्टी से अच्छी तरह ढंक देना चाहिए।
केंचुआ खाद के प्रयोग हेतु अनुशंसित मात्रा
- 25 किलोग्राम से 3 किलोग्राम प्रति डिसमिल अर्थात 250 किलो ग्राम से 300 किलोग्राम प्रति एकड़।
- प्रति वर्ष के ही जमीन केंचुआ खाद का लगातार प्रयोग करने से इसकी प्रयोग की मात्रा 20% की कमी की जा सकती है एवं दो वर्ष बाद 40% की कमी की जा सकती है।
केंचुआ खाद के प्रयोग से लाभ
- केंचुआ खाद मिट्टी की संरचना एवं बनावट को सुधारता है।
- केंचुआ खाद मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे सिंचाई में पानी कम लगाता है।
- इसमें उपलब्ध पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है जिसके कारण पौधों में कम रोग लगते हैं, एवं कीटनाशक के प्रयोग में तथा खर्च में कमी आती है।
- यह मिट्टी को हल्का करता है एवं पौधे का संतुलित विकास करता है।
- इसके प्रयोग से सब्जियों, फलों एवं अनाज की गुणवत्ता में सुधार आता है।
- इसका प्रयोग से पौधों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है। इसका द्वारा उत्पादित सब्जी एवं फल रासायनिक खाद के उपज की तुरंत में अधिक दिनों तक सुरक्षित रहता है।
- इसमें खरपतवार का बीज नहीं होने के कारण क्षेत्र में खरपतवार नहीं उगते हैं। जिससे निकाई,गुड़ाई का खर्च कम होता है।
- इसमें केंचुआ के मल का अंडा रहता है, जिससे केंचुओं का जन्म एवं प्रसार होता रहता है।
केंचुआ खाद रखने का तरीका
इस खाद को छाया में सुखाकर नमी को कम कर दिया जाता है तत्पश्चात खाद को बोरा में एक साल की अवधि तक रखा जाता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
Source