मुख्य क्षतिकारक
राष्ट्रीय महत्व के क्षतिकारक
- केला धड़ विभिल
- केला कार्म विभिल
- केला पत्ती एवं फल स्कियार्रिंग बीटल
- केला लाही
- केला पत्ती खाने वाला कैटरपीलर
- केला लेसवींग बग
सूत्रकृमि
- बरोइंग सूत्रकृमि (रैडोफोलस सिमिलीस)
- जड़ क्षतिकारक सूत्रकृमि (प्राटाईलेंचस कॉफेई)
- स्पाईरल सूत्रकृमि (हेलीकोटीलेंचस मल्टीसिंक्ट्स)
- रूट नॉट सूत्रकृमि (मेलिडोजिन इनकोगनीय)
अपतृण (खरपतवार)
- परपुल नट सेज/नट घास
- बरमुंडा घास/हरियाली
- कोटेदार पीगवीड
- रैंगवीड
- स्लेंडर पीगवीड
- कौमन पर्सलेन
- ट्राईडेस्क
क्षेत्रीय/कम महव के क्षतिकारक
क्षतिकारक कीट
- केला पत्ती थ्रिप्स
- केला रस्ट थ्रिप्स
- केला पुष्प थ्रिप्स
- बैग वर्म
सूत्रकृमि (नेमाटोड )
- स्पाईरल सूत्रकृमि (हेलीकोटीलेंचस डाईहिस्टेरा))
- रूट नॉट सूत्रकृमि (मेलोयाडोजिन जावानिका )
- सिस्ट सूत्रकृमि (हेटेरोडेरा ओराईजीकोला
अपतृण (खरपतवार)
- जल घास/बार्नयार्ड घास
- गुज घास
- ताम्र पत्ती
- प्रिकली चाफ फ्लावर
- मैक्सिकन कांटेदार पॉपी
- उजला कॉकस काम्ब
- फील्ड बाईन्ड वीड
- अमरैंथस
- ग्राइप
- टच मी नॉट
- कॉकलेबर
राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय महत्व की व्याधियां
कवक व्याधियाँ
- वील्ट
- माइकोस्फेरेला लीफ स्पॉट रोग
- पीला सिगाटोका ‘काला सिगाकोटा
- ऐनथ्रैकनोज
जीवाणु-व्याधियां
१. टीप ओभर या बैक्टेरियल साफ्ट रौट
विषाणुक व्याधियाँ
- केला बंची टॉप
- केला ब्रैक्ट मोजैक
- केला स्ट्रीक
- इंफेकसियस क्लोरोसिस
कीट अनुश्रवण
कृषि पारिस्थितिक पद्धति विश्लेषण (आयेसा)
आयेसा के आधारभूत अवयव निम्न प्रकार हैं।
- विभिन्न अवस्थाओं पर पौधे का स्वास्थ्य
- कीट एवं परभक्षी की जनसंख्या का विश्लेषण
- मृदा अवस्था
- मौसमी कारक
सर्वेक्षण/क्षेत्र –भ्रमण
क्षेत्र –भ्रमण द्वारा सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य विशेष प्रभावित क्षेत्र में कीट एवं व्याधि के प्रारंभिक विकास का अनुश्रवण करना है किसी खास अंतराल पर कृषकों को क्षेत्र –भ्रमण करने हेतु प्रोत्साहित करना आवश्यक है। अगर आर्थिक न्यूनतम स्तर से प्रकोप आगे बढ़ जाता है तो फसल सुरक्षा हेतु उपचार अपनाना चाहिए।
भ्रमण सर्वेक्षण – केला उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण सर्वेक्षण प्रारंभ करें प्रत्येक बगीचे में 20-25 पौधों का गहन अध्ययन करें। लक्षण एवं बर्बादी को अंकित करें।
क्षेत्र –भ्रमण – राज्य सरकार की उद्यान विभाग को हर संभव् प्रयास करना चाहिए कि वे अपने विभिन्न मिडिया, प्रचार एवं प्रसार की सहायता से कृषकों को कीट एवं व्याधि के संबंध में सूचित करते रहें।
जाल द्वारा कीट अनुश्रवण
केला के कीट के प्रकोप के आगमन को अनुश्रवण करने हेतु फेरामोन/स्यूडोस्टेम जाल को जगह=जगह पर स्थापित करना चाहिए। इसके लिए राज्य सरकार के उद्यान विभाग को क्षेत्र-भ्रमण की खोज के आधार पर तथा नये स्थानों पर जाल लगाना चाहिए। इस प्रक्रिया को कृषकों के बीच में लोकप्रिय बनाने हेतु राज्य सरकार के उद्यान विभाग द्वारा इसे प्रचारित एवं प्रसारित किया जाना चाहिए।
स्यूडोस्टेम जाल; केला के बगीचा एन 350 पौधों पर 20 स्यूडोस्टेम जाल रखना चाहिए। एक सप्ताह पर बदल दें। इसी प्रकार पौधा के स्टम्प पर डीस्क रखकर प्रयास किया जा सकता है। यह प्रक्रिया फसल कटाई के पश्चात की जाती है। स्यूडोस्टेम को जमीन की सतह से 1 फीट की ऊंचाई पर कट दें एवं काटे गए भाग पर स्यूडोस्टेम डिस्क रख दें। डिस्क के बगल में कुछ कंकड़-पत्थर रख दें। जिससे विभील को डीस्क मेंजाने का रास्ता हो जाए। यह जाल केला कार्म विभील एवं केला स्टेम विभील दोनों पर नियंत्रण रखा है। यह प्रक्रिया कीटों के अनुश्रवण एवं कीटों के फंसाने दोनों का कार्य करता है।
फेरामोन जाल ; फेरामोन चारा केला कार्म विभील को फंसाने एवं कीटों के अनुश्रवण दोनों कार्य करता है। कम जाल घनत्व यानि 4 जाल प्रति हेक्टेयर बिछाने से फॉर्म बर्बादी कम होती ही एवं केला उत्पादन में वृद्धि होती है। प्रारंभ के जाल को क्षेत्रीय सीमा से 10 मीटर पर एवं 20 मीटर अलग-अलग लगाना चाहिए। फिर प्रत्येक माह जाल को 20 मीटर जाल के चिन्हित क्षेत्र में इधर-उधर घुमाते रहना चाहिए।
आर्थिक न्यूनतम स्तर (इटीएल)
सर्वेक्षण क्षेत्र-भ्रमण के प्रतिफल के आधार पर प्रसार कार्यकर्त्ता विभिन्न कीटों के आर्थिक न्यूनतम स्तर की गनना कर सकते हैं तदनुसार कृषकों को कीट प्रबन्धन प्रकिया प्रारंभ करने हेतु सलाह दे सकते है मुख्य कीटों का इटीएल का अध्ययन अभी पूर्णतः नहीं किया गया है। फिर भी निम्न दर्शाये गये माप से नियंत्रण उपचार में सहायता मिल सकता है।
कीट /पेस्ट | इटीएल |
केला धड़ विभिल |
5% प्रभावित पौधे |
केला कार्म विभिल |
5 विभिल/ट्रैप |
समेकित कीट प्रबन्धन रणनीतियां
कृषीय प्रक्रिया
- गहरी जुताई कर मिट्टी की कीड़ों, रोगाणु एवं सूत्रकृमि को सूर्य की रोशनी में गर्मी लगने हेतु छोड़ दें।
- केला के बाद केला का फसलोत्पादन न करें, फसल चक्र अपनावें।
- अनाक्रमित क्षेत्र से ही स्वास्थ्य का चयन करें।
- छिलना एवं काटना
- सकर उपचार
- फसल को तीन महीने तक खरपतवार रहित रखें।
- सूत्रकृमि के नियंत्रण हेतु ट्रैप फसल का उपयोग करें।
- कटनी के पश्चात बचे हुए पौध-अवशेष को हटा दें और बर्बाद कर दें
- कार्म को उखाड़े तथा कॉर्म एवं अस्थायी धड़ को टुकड़ों में काट दें, जिससे ग्रब्स मारे जा सकें।
यांत्रिक प्रबन्धन प्रक्रिया
- फेरोमोन या जाल स्थापित करें।
- फंसे हए विभील को मार दें।
- विभिल जनसंख्या नियंत्रित करने हेतु पुराने एवं सूखे पत्तों को हटा दें।
रसायनिक नियंत्रण केला धड़ विभिल
- पौधा रोपाई के पश्चात्त 6वें एवं 7वें महीने में 2 मिलि०/प्रतिलीटर पानी की दर से मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशक को स्डूस्टेम पर लगा दें।
- अगर 7वें महीने के पश्चात बर्बादी दिखाई दें तो मोनोक्रोटोफॉस(150 मिली०-350 मिलि० पानी) मने घोल का 2 मिलि० प्रति पौधा इंजेक्शन धड़ के दो जगहों पर 30** कोण पर दें। पहला इंजेक्शन जमीन से 2 फीट की उंचाई पर तथा दूसरा 4 फीट की ऊंचाई पर दें।
केला कॉर्म विभिल
पौधा रोपाई के 3सरें, 5वें एवं 7वें महीने में कार्बोफ्यूरान 20 ग्राम/पौधा मिट्टी में उपयोग करें।
केला पत्ती खानेवाला कैटरपीलर
इंडोसल्फान 1.5 मिलि०/लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें।
सूत्रकृमि प्रबन्धन
मांदावासी सूत्रकृमि
कृषीय प्रक्रिया
- केला की कटाई के पश्चात्त खेत में तीन माह के लिए परती छोड़ देने से मांद में रहनेवाले सूत्रकृमि की संख्या घट जाती है, जबकि पांच महीने तक पानी देकर खेत को प्रति रखने से न केवल मांदवासी सूत्रकृमि नष्ट होते हैं, बल्कि फ्युजैरियम स्पेसीज भी नष्ट हो जाता है।
- नीम, महुआ, अरंडी, करंज आदि की खल्ली का प्रयोग सूत्रकृमि के नियंत्रण में काफी प्रभावी होता है।
- बुआई के समय एवं बुआई के चार माह पश्चात दो बार नीम खल्ली का 400 ग्रा०/पौधा का प्रयोग करने से आअर० सिमिलिस की संख्या घट जाती है तथा केला गुच्छ का भार भी बढ़ता है।
- धान, ईख, मूंग, रुई या हल्दी के सतत केला का फसल-चक्र अपनाने से सूत्रकृमि का कम होते हैं तथा फसलोत्पादन में भी वृद्धि होती है।
- ग्लाई रिसिडिया मैकुलाटा, रिसिनस कोम्यूनिस, क्रोटालैरिया जुंसिया, ग्लाईकोसमीस पेंटाफाइला, एजाडीरैक्टा इंडिका, पिनाटा, कैल्पानसीओ, पाइपर बेटली एवं मोरिंगा ओलीफेरा के पत्तियों का अर्क आर० सिमिलिस सूत्रकृमि के लिए जानलेवा होता है।
- भारत में क्रोटालैरिया जुंसिया का केला के साथ अंर्तफसल लेने से अर्क आर० सिमिलिस ओए नियंत्रण रहता है तथा केला का अच्छा विकास एवं उत्पादन होता है।
भौतिक प्रक्रिया
बुआई सामग्री के निर्जीव भाग/चोट लगे भाग को काटकर एक आकार में बना लें एवं इसे 50-55 सेंटीग्रेड गर्म पानी में 30 मिनट तक रखने से पौध सूत्रकृमि रहित हो जाता है।
जैविक नियंत्रण प्रक्रिया
- जैविक एजेंट जैसे: पेसीलोमाइंसिस लिलासिनस, भीए माइक्रोराईजा, ग्लोमस फैसिकुलेटम एवं बैक्टेरियम, पासच्युरिया पिनेट्रांस का मिट्टी एवं जड़ में प्रयोग सूत्रकृमि की संख्या को कम करने में सहायक होता है।
- 200 ग्राम/प्रति पौध नीम की खल्ली का प्रयोग जी मोसी के साथ मिलाकर करना से केला के जड़ एवं मिट्टी में सूत्र कृमि की संख्या घटाने में अधिक असरदार साबित हुआ है।
परपोषी पौध प्रत्तिरोधता
प्रभेद पिजैंग बटुआयु, पिजैंग जारी बुआया, पिजैंग इडोर कुडा, पराहा मैसूर, हाईब्रिड एस एच-3142, कुद्ली (ए ए) पेडालीमूनजील (एए बी), कुनान (एएबी० आईरीयबकाई पुभन (एबी), पीजांग सेरीबू (ए ए) टोंगाट (ए ए) भेनुटू कुनान (एबी), एनैकोमबन, येलाकीबल, आईरांकाई पुमन, करप्यूराभैली एवं –कोडन सूत्रकृमि प्रकोप के लिए मध्यवर्ती प्रतिरोधी पाए गए हैं।
रसायनिक नियंत्रण प्रकिया
- सकर को एक आकार में बनाकर कार्बोफ्यूरॉन 2 ग्राम (ए० आइ० ) प्रति सकर की दर से प्रयोग करने से आर० सिमिलीस का नियंत्रण होता है तथा फसलोत्पादन में वृद्धि भी पायी जात्ती है।
- सकर का बुआई के पूर्व नीम तेल 1% एवं 2% में 10 मिनट तक उपचार से सूत्रकृमि की संख्या में काफी कमी हो जाती है।
- कार्बोफ्यूरॉन -1 ग्राम (ए० आई०)/प्रति पौधा बुआई के समय एवं पुनः तीन माह के अंतराल पर दो बार और उपचारित करना श्रेयकर है।
- बुआई के पिरव सकर को मोनोक्रोटोphau 5% घोल में 30 मिनट के लिए रखने एवं छाया में 72 घंटे सुखाना पूरी तरह से संक्रमण मुक्त करता है।
जड़ क्षतिकारक सूत्रकृमि
- चूँकि पी० कॉफ़ी एवं आर० सिमिलिस दोनों के जीवनचक्र, खाने की प्रवृति, जड़ पर प्रदर्शित लक्षण में काफी समानता है, इसलिए जो नियंत्रण आर० सिमिलिस के लिए अनुशंसित है वह पी० कॉफ़ी के लिए (केवल प्रभेद-प्रतिरोधिता को छोड़कर) के लली भी है।
- बुआई के समय पर एक बार कार्बोफ्यूरॉन-50 ग्राम/पौधा की दर से प्रयोग एवं दो बार तीन महीने के अंतराल पर प्रयोग सूत्रकृमि की जनसंख्या घटाने में काफी असरदार पाया गया है।
- प्रभेद जैसे: कुनान, भेनुटू कुनान, टोंगर, पे कुनान, येन कुनान, नाटू पुमन, करप्यूराभैली, चेरापूंजी एवं हाईब्रिड 74, एच-21, एच०-55 एच० 59 , एच०-89 एच० 109 आदि पी० कॉफ़ी सूत्रकृमि के लिए सहनशील/प्रतिरोधी पाये गये हैं।
चक्राकार सूत्रकृमि
- आर० सिमलिस को नियमित करने के लिए अपनाए गये रसायनिक एवं भौतिक उपचार एच, मल्टीसिनकट्स एवं डायहीस्टेरा के लिए भी असरदार है केवल कुछ प्रभेदों को छोड़कर।
- केला हाईब्रिड 74, एच-94, एच०-100, एच० 106, एच०-109 एवं प्रभेद ने भैनान, सिरुमलाई, पेयान, ग्रास माइकेल, करप्यूराभैली, रोबस्टा रसथाली, कुलान, भेनुटू कुनान-एच० मल्टी सिंक्ट्स के लिए सहनशील/प्रतिरोधी प्रभेद हैं।
- उत्तरी-पूर्वी राज्यों के लिए पाटापुरिया मेंधी, काथिया एवं ऐथियोकोल प्रभेद एच० मल्टी सिंक्ट्स के लिए सहनशील/प्रतिरोधी प्रभेद हैं।
जड़ गांठ सूत्रकृमि
- सूत्रकृमि का नियंत्रण या तो गर्म पानी द्वारा सकर को उपचारित कर किया जा सकता है या बुआई के पूर्व रसायनिक उपचार से किया जा सकता है, जो आर० सिमलिस के उपचार हेतु पूर्व में वर्णित है।
- प्रभेद जैसे अलास्वी, डाकाडकन, इनामबक, पास्तिलान, पुगपोगान, मियामउली, पाडलागा, सिंकर, भेंटी कोहाल, पटकारा, मेंदी एवं कोथिया सूत्रकृमि एम० इनकोगनीय के प्रति सहनशील/प्रतिरोधी पाए गये हैं।
सिस्ट सूत्रकृमि
आर० सिमलिस के लिए अपनाये गये अनुशंसित प्रबंधन को सिस्ट सूत्रकृमि के लिए अपनाया जा सकता है:
रोग-व्याधि प्रबन्धन
मुरझाना (वील्ट)
- प्रभेद रसथाली, कर्प्युराभैली, मोंथान, कदाली, रसदाली, ने पुभान, वीरूपक्शी, आदि वील्ट के रपति अति संवेदनशील है, एने प्रभेदों की बाई नहीं करनी चाहिए।
- 2-3 चक्र में एक या दो बार धान या गन्ना के फसलोत्पादन के पश्चात ही केला की बाई करना श्रेयस्कर है।
- संवेदनशील/प्रतिरोधी प्रभेद जैसे: रोबस्टर, नेन्द्रन एवं पुभा का चयन करें एवं विशेष उचित क्षेत्र में लगावें।
- स्वस्थ उत्पादन से ही स्वस्थ सकर लेकर बुआई करें।
- साफ/असंक्रमित क्षेत्र में संक्रमित सकर लाकर लगाने पर नियंत्रण रखें।
- सकर के जड़ एवं बाहरी परतों को साफ करें। सकर को ३० मिनट तक कार्बेन्डाजाईम (0.2%) और मोनोक्रोटोफॉस/बेभीस्टीन 2.0 ग्राम+ मोनोक्रोटोफॉस-14 मि०ली० एक लीटर पानी के घोल में डुबो दें, तत्पश्चात बुआई करें।
- संक्रमित पौध को जड़ से निकालकर बर्बाद कर दें, या जला दें।
- निवेश द्रव्य (ईनोकुल्म) को दूसरे क्षेत्र से प्रसारित होने से रोकने के लिए संक्रमित क्षेत्र में उपयोग किए यागे उपकरणों को अच्छी प्रकार साफ कर लें।
- वर्षा के मौसम में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
- बुआई के पश्चात 5वें एवं 9वें महीने में घनकन्द (कार्म) में 50 मिग्र० कार्बेन्डाजीम को कैप्सूल एन अन्तःस्थापित कर दें। बुआई के पांच माह के पश्चात द्विमासिक अंतराल पर अस्थायी जड़ के चारों तरफ कार्बेन्डाजाईम 2% घोल से सराबोर कर दें। या 2% कार्बेन्डाजाईम घोल(20 ग्राम/प्रति लिटर पानी) का 3 मि० ली० सुई घनकन्द में दें।
- ट्राईकोडर्मा स्पेसीज, स्यूडोमोनास फ्लूओरसेंस एवं बैसिलस सब्टीलिस के 15 ग्राम पाउडर का चार बार प्रयोग करें। पहला बुआई के समय गड्ढो में एवं पौधा के चारों तरफ एवं बाकी बुआई के 3रे, 5वें एवं 7 वें महीने में प्रयोग करें।
सिगाटोका लीफ स्पॉट
- लीफ स्पॉट से प्रभावित पत्तियों को निकाल दें एवं बर्बाद कर दें।
- अंतरकृषीय कार्य जैसे सकर को समय पर हटा देना, खरपतवार नियंत्रण, जल निकास व्यवस्था में सुधार तथा उचित उर्वरक प्रयोग व्याधि के प्रकोप को नियंत्रित रखता है।
- व्यवस्थापरक (सिस्टेमेटिक) कवक नाशक जैसे- प्रोपीकोनाजोल 0.05% या कार्बेन्डाजीम +कालीसीन )0.1% एवं टीपॉल के कुछ बूंद के साथ मिलाकर घोल का छिड़काव अधिक व्याधि प्रकोप अवस्था में करने से व्याधि पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
एन्थ्रेकनोज
इस व्याधि के नियंत्रण हेतु छिलका में आघात से बचाव, अच्छी कृषि प्रणाली अपनाने,पौधों से मरी हुई पत्तियों को हटाने, फलों का रेफ्रीजरेशन, फलों का पॉली एथिलीन थैले में परिवहन एवं 15 दिवसीय अंतराल पर 2% क्लोरोथालोनील या 0.15% प्रोक्लोरोज या 0.1% कार्बेन्डाजीम का चार बार छिड़काव श्रेयकर होता है।
घनकन्द (कार्म) सड़ न/सर-सड़न/टीप ओभर
- साधारनतया या व्याधि नये पौधों में होती ही। इस व्याधि द्वारा कैवेंडिस (एएए) तथा डीलोयाड (एए) समूह के केला में सड़न पैदा होता है यह व्याधि अधिकतर एलुभीयल मिट्टी एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में प्रचलित है।
- ब्लीचिंग पाउडर 2 ग्राम/प्रति लीटर या एमिशॉन 1 ग्राम/प्रति लीटर की दर से निर्मित घोल द्वारा 10-15 दिनों के अंतराल पर पौधों के चारों तरफ की मिट्टी को व्याधि नियंत्रण हेतु सरोबोर कर दें।
वाइरल व्याधि : निम्नलिखित निरोधक रणनीति द्वारा संक्रमित क्षेत्र से असंक्रमित क्षेत्र में व्याधि फैलाव को कम किया जा सकता है।
- व्याधि रहित मजबूत पौध का चयन कर बुआई करें।
- प्रजनन हेतु प्रयोग किए गये पुराने पौधे को सुचाकांकित (इंडेक्स) कर देना चाहिए।
- केला उत्पादक को वायरस-रहित पौध को ही उत्पादित का उपलब्ध कराना चाहिए।
- अगर वायरस प्रभावित पौधों पर उसके लक्षण प्रदर्शित हो, तो उसे जल्द उखाड़कर बर्बाद कर देना चाहिए।
- केला उत्पादन वाले तथा उसके आस-पाद के क्षेत्र को खरपतवार रहित कर देना चाहिए, क्योंकि खरपतवार अनेकों प्रकार के वायरस को आश्रय देते हैं।
- कीट रोगानुवाह्क के नियंत्रण हेतु लगातार अंतराल पर सिस्टेमेटिक कीटनाशक का छिड़काव करते रहें।
- केला के नये बैक्ट मोजैक व्याधि के नियंत्रण हेतु अगर आवश्यक हो, तो कानूनी रूप से अन्तर्राजीय परिवहन पर रोक होनी चाहिए, वर्तमान में यह व्याधि दक्षिण राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटका एवं आंध्रप्रदेश राज्यों में काफी प्रचलित है। अन्य राज्यों में इस व्याधि का ज्यादा प्रकोप नहीं।
खरपतवार नियंत्रण
कृषीय प्रक्रिया
- खेत तैयार करते समय गहरी अनेकों बार जुताई, खरपतवार को एकत्र कर सुखा देना श्रेस्यकर है।
- केला विकास के प्रारंभिक अवधि कम अवधि वाले फसल जैसे दलहन की खेती लाभप्रद है।
- केला के कतार की बीच वाली जगह को केला को कटे पत्ते, तना या काले पोलिथीन शीट से ढक देना चाहिए।
- प्रारंभ के 6, महीनों में एक माह के अन्तराल पर मजूदरों द्वारा कोड़ाई करना खरपतवार पर नियंत्रण रखता है।
रसायनिक प्रकिया
- खरपतवार निकलने के पूर्व एलाचलोर -9 लीटर (ए० आई०) प्रति हेक्टेयर का प्रयोग एवं निकलने के पश्चात ग्रामोजोन -1.8 ली०/हेक्टेयर या ग्लाईफोस्फेट 1.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से एक पत्री खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- 1-2 माह पुराने पौधों में एक पत्री खरपतवार के नियंत्रण हेतु ड्युरॉन 3 किलोग्राम/हेक्टेयर-12 लीटर पानी में घोल तैयार कर छिड़काव करने की अनुशंसा की जाती है।
- जब पौधे 1-2 महीने के हो जाएं, तो ड्यूरॉन 3 केजी/हेक्टेयर 1200 लीटर पानी में घोल का छिड़काव करें। छः महीने के बाद जब द्विपत्री खरपतवार 2-3 इंच लंबे हो जाएं तो ग्लाईफोस्फेट/ग्रामोलीन 1.5 लीटर/हेक्टेयर 1200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
केला की फसल के लिए चरणबद्ध समेकित कीट प्रबन्धन प्रक्रिया
कीट/व्याधि |
अवस्था |
अनुशंसित कीट प्रबन्धन प्रक्रिया |
केला धड़ |
5वां माह |
विभिल के अनुश्रवण हेतु 30 से. मी० लम्बाई वाले कटे हुए स्युडोस्टेम स्थापित करें। |
विभिल |
6वां माह |
मोनोक्रोटोफॉस (2 मि०ली०/लीटर) से स्युडोस्टेम को सराबोर कर दें। |
7वां माह |
अगर कीड़ा खाने से बर्बादी नजर आये तो मोनोक्रोटोफॉस(150 मि०ली० 350 मि० ली० पानी) का 2 मि०ली०/प्रति पौध के दर से दो जगह 30 कोण पर स्टेम इंजेक्टर स एफ्ला जमीन से २ की ऊंचाई पर दूसरा ४ की ऊंचाई पर सुई दें। |
|
कटाई के पश्चात |
स्युडोस्टेम को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर फसल को बचे भाग को नष्ट कर दें। विभिल को नो नष्ट करने एवं फसल के बचे भाग को सुखाने के लिए सकर को जड़ से निकाल दें। एवं छोटे टुकड़ों में काटकर जमीन की अंदर गाड़ दें। |
|
केला कार्म विभिल |
बुआई के पूर्व |
स्वस्थ एवं असंक्रमित सकर का चयन करें। |
बुआई के समय |
सकर को काट-छांट कर साफ कर लें, फिर 30 मिनट तक गर्म पानी (5050 सेंटीग्रेड) से उपचारित करें। विभिल के अण्डों एवं ग्रब्स को नष्ट करने हेतु सकर को 05% मोनोक्रोटोफॉस घोल में 30 मिनट तक डुबो कर रखें एवं 72 घंटों तक छाया में सुखा लें। |
|
तीसरा महीना |
कस्मोल्युर ट्रैप-4 संख्या/हेक्टेयर या स्टमप ट्रैप पर लम्बाई के कटे हुए स्यूडोस्टेम और डिस्क स्थापित करें। |
|
तीसरा महीना, पांचवां, सातवाँ महीना |
प्रति पौध २० ग्राम की दर से कार्बोफ्यूरॉन से मिट्टी उपचार करें। |
|
केला, पत्ती खाने वाला कैटरपीलर |
तीसरा महीना- पांचवां महीना |
अण्डों को हाथ से चुनकर बर्बाद कर दें। |
सूत्रकृमि |
बुआई के पूर्व |
स्वस्थ एवं संक्रमण रहित सकर का चयन करें। |
बुआई के समय |
सकर को साफ कर गर्म पानी से उपचारित करें। |
|
तीसरा महीना |
40 ग्रा०/पौध की दर से कार्बोफ्यूरान का प्रयोग करें। |
|
6वां-7वां महीना |
500 ग्राम/पौध नीम खल्ली का प्रयोग करें। |
|
सामान्य |
बुआई के पूर्व |
वील्ट एवं वायरस रहित सकर का ध्यान करें |
व्याधियां |
बुआई के समय |
सकर को कार्बेन्डाजीम(0.2%) में 30-45 मिनट तक डुबो कर रखें। |
बुआई के पश्चात |
बायोकंट्रोल एजेंट ट्राईकोडर्मा स्पेसीज 15 ग्राम/प्रति गड्ढा की दर से उपयोग करें। |
|
वील्ट एवं वायरल बीमारियाँ |
बुआई के पूर्व |
व्याधि रहित बलशाली सकर का चयन कर बुआई करें। |
बुआई के पश्चात |
जब व्याधि के लक्षण दिखाई दे, पौध को जड़ से निकालकर जला दें। |
|
खरपतवार |
बुआई के पूर्व |
गहरी जुताई एवं खरपतवार की निकौनी कर साफ फसलोत्पादन करें। |
बुआई के पश्चात |
दलहन जैसे काउपीआ का फसलोत्पादन करें। |
|
बुआई के 2 माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में 3 कि०ग्राम/हेक्टेयर डियोरॉन का छिड़काव करें। दलहनी हरी खाद का प्रयोग करें। |
|
बुआई के 3रा-5वां माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में ग्लाईफोस्ट ग्रामोजोन 1.5 लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। |
|
बुआई के 6 माह पश्चात |
1200 लीटर पानी में ग्लाईफोस्ट ग्रामोजोन 1.5 लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। यांत्रिक निकाई एवं कोड़ाई करे। पत्तों के कारण ज्यादा छाया हो जाने से खरपतवार पर स्वयं नियंत्रण हो जाता है। |
कीटनाशक प्रयोग में सुरक्षा की सीमाएं
क्र.सं. |
कीटनाशक का नाम |
कीटनाशक अधिनियम 1971 के अनुसार वर्गीकरण |
विषाक्तता त्रिभुज का रंग |
जोखिम के अनुसार डब्ल्यू एचओ वर्गीकरण |
प्रथम उपचार के उपाय |
विष प्रभाव के लक्षण |
विष प्रभाव के उपचार |
प्रतीक्षा अवधि (दिनों की सं.) |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
6 |
7 |
8 |
9 |
कीटनाशक – आर्गनोफॉस्फोट कीटनाशक |
||||||||
१ |
इंडोसल्फान |
अत्यंत विषैला |
पीला |
श्रेणी 2 माध्यम नुकसानदेह |
प्रभावित व्यक्ति प्रदूषित क्षेत्र सेअलग हटा दें। (क) चमड़ी से सम्पर्क स्थिति में प्रदूषित कपड़े को जल्द उतार दें और साबुन तथा अधिक पानी से धो दें। (ख) आँख में प्रदुषण आँख को साफ एवं ठंडे पानी से अनुकों बार आंख को धोंएं। (ग) श्वास संसर्ग व्यक्ति को खुली हवा में रखे, गला और छाती के आस- पास के कपड़े ढीले कर दें। (घ) खाना संसर्ग – अगर व्यक्ति होश में है तो गले में ऊँगली डालकर उल्टी कराएं\ दूध, शराब एवं चर्बी वाले पदार्थ न दें। यदि व्यक्ति बेहोश है तो ध्यान दें कि उसकी श्वसन प्रणाली साफ एवं बिना किसी रुकावट के हो व्यक्ति के सिर थोड़ा नीचा रखकर चेहरे को एक किनारे घुमा दें सांस लेने में कष्ट हो तो मुख से या नाक सांस दें। चिकित्सीय सहायता पीड़ित को तुरंत कीटनाशक के डब्बे, लेबल के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं। |
उल्टी, बैचैनी, मिचली बेहोशी, तेज धड़कन श्वास-क्रिया में ह्रास तथा मृत्यु |
– 2-4 लीटर नल के जल से पेट का प्रक्षालन करे 130 ग्राम सोडियम सल्फेट को एक कप पानी में मिलाकर कैथारसीस करावें। -बेचैनी एवं धड़कन को कम करने हेतु बार्बिच्युरेट्स की उपयुक्त मात्रा लगातार दें। -श्वसनक्रिया का नजदीक से ध्यान रखें। अगर आवश्यक हो तो कृत्रिम श्वास देने की व्यवस्था करें। -तेल, तेलिय पदार्थ, तेलीय दस्तकारक एडरनालीन का प्रयोग न करे। -उत्तेजकपदार्थ का प्रयोग न करें। -प्रत्येक चार घंटों पर इंट्राभेनस कैल्सियम ग्लूकोनेट (10%-10 मिली०-एम्पुल) दें। |
|
आर्गेनोफस्फेट कीटनाशक |
||||||||
2 3. |
क्वीनॉल फॉस फौसफामीनडॉन |
अत्यधिक जहरीला अत्यधिक जहरीला |
पीला चमकीला लाल |
श्रेणी 2 सामान्य जोखिम भरा श्रेणी 1 अत्यंत नुकसानदेह |
हल्का-भूख न लगना, सरदर्द चक्कर आना, कमजोरी, बेचैनी जुबान लड़खड़ाना एवं पलकें कांपना, अल्पदृष्टि, देखने में कष्ट होना। सामान्य- मितली, लार बहना आंसू बहना, पेट में मरोड़, उल्टी पसीना आना, नाड़ी की गति धीमी मांसपेशियाँ कांपना, अल्पदृष्टि तीव्र- दस्त, पलको की कोई प्रतिक्रिया नहीं बिलकुल स्थिर, सांस लेने में तकलीफ फेफड़ा फूलना, रंग नीला पड़ना, अवरोध नियन्त्रण में कमी, मूर्च्छा, बेहोशी एवं हृदय अवरुद्ध होना। |
-ओ०पी० के विष के अत्यधिक प्रभाव दिखने पर एट्रोपिन इंजेक्शन (वयस्कों के लिए 2-4 मि०ग्राम) बच्चों के लिए 0.5-10 मि०ग्राम) की अनुशंसा की जाती है। 5-10 मिनट के अंतराल पर उपरोक्त को दुहरावें जब तक कि दवा का असर न दिखें शीघ्रता शीघ्रता अति आवश्यक एंट्रोपीन इंजेक्शन 1-4 मि.ग्रा. 1 जब विष के लक्षण पुनः दिखाई दे तो 2 मि.ग्रा. दोबारा दें। ( 15-16 मिनट अंतराल) अत्यधिक लार बहना अच्छा संकेत और एट्रोपीन की आवश्यकता है। -हवा आने के रास्ते खुले रखें, चूसें, ऑक्सीजन प्रयोग करें, इंडोट्रैकियल टूयूब डालें । टैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। -मुंह में विष चले जाने की दशा में यदि यदि उल्टी न हो रही तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट का प्रक्षालन करें, , चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। एट्रोपिन के अलावा 2-पीएएम (2- पाईरिडीन एल्डोक्जाएम मेथीओडाटाड दें। 1 ग्रा. एवं शिशुओं के लिए 0.25 ग्रा. इंट्राविनस धीमीगति में 5 मिनट की अवधि में और निर्देश के अनुसार समय-समय पर इसका दुहराव करें एक से अधिक इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है। मोरफिन, थियोफायलिन एमीनोफायलीन बारबीचुरेट्स देने से बचें, फेनेथायाजीन दें। -नीला पड़ गये रोगी को एट्रोपीन न दें। पहले कृत्रिम सांस दें फिर एट्रोपिन दें। |
||
कार्बामेट्स |
||||||||
4 |
कार्बाराइल |
उच्च रूप से विषैला |
पीला |
श्रेणी 2 सामान्य नुकसान |
पुतलियों का संकुचन, लार निकलना, जोर से पसीना अवसाद, मांसपेशियों में तालमेल न होना मतली उल्टी, दस्त, पेडू में दर्द छाती में में कड़ापन |
1-4 एम० जी० एट्रोपीन इंजेक्शन जब विष के लक्षण दुबारा दिखें तो 2 फिर से दुहरावें एम जी (15-60 मिनट अंतराल पर) अधिक लार निकलना अच्छा चिन्ह, एट्रोपीन की और आवश्यकता है। हवा आनेवाले मार्ग खुलें रखें, प्रश्वास की क्रिया करें। , ऑक्सीजन प्रयोग करें इंट्रोटैकियल टूयूब डालें ट्रैकियोटॉमी करें और आवश्यकतानुसार कृत्रिम सांस दें। यदि उल्टी न आती हो तो 5% सोडियम बाईकार्बोनेट से पेट प्रक्षालन करें, चमड़ी में सम्पर्क के लिए साबुन और पानी से धोएं ( आँख नमक पानी से धोएं) सम्पर्क में आए स्थानों में धोते समय रबर के दस्ताने पहन लें। -ऑक्सीजन – मॉरफीन यदि आवश्यक हो। -थियोफायलीन एवं एमीनोफायलीन तथा बार्बोच्युरेट्स से बचें। पीएएम एवं अन्यऑक्सीजाईम हानिकारक नहीं है, वास्तव में रूटीन इस्तेमाल के निर्देश दिए गए हैं नीले पड़ गये रोगी को एट्रोपिन न दें। पहले कृत्रिम श्वास दे फिर इसके बाद एट्रोपिन दें। |
||
कवकनाशक |
||||||||
|
कॉपर आक्सीक्लोराइड मैनकोजेब सेविडोल |
कम जहरीला |
नीला हरा |
श्रेणी 3 कम जोखिम सामान्य उपयोग में अल्प नुकसानदेह |
सिरदर्द .तेज, धड़कन उल्टी, चेहरा लाल होना। नाक, गला, आंख और चमड़ी में खुजली |
कोई विशिष्ट प्रतिकारक नहीं। चिकित्सा अनिवार्य रूप से लक्षण पर निर्भर है। |
कीटनाशक उपयोग के लिए मौलिक सावधानियाँ
कीटनाशक क्रय
- एक बार प्रयोग के लिए जितनी मात्रा की आवश्यकता है उतनी ही मात्रा में कीटनाशक का क्रय करें, जैसे-100,250, 500 या 1000 ग्राम/ मिली०
- रिसते हुए डिब्बों, खुला, बिना मोहर, फटे बैग में कीटनाशक का क्रय न करें।
- बिना अनुमोदित लेबल वाले कीटनाशक का चयन न करें।
भण्डारण
- घर के अंदर कीटनाशक का भण्डारण न करें।
- मौलिक मोहरबंद डब्बे का ही प्रयोग करें।
- कीटनाशक को किसी दुसरे पात्र में स्थानांतरित न करें।
- खाद्य सामग्री या चारा के साथ कीटनाशक को न रखें।
- कीटनाशक को बच्चों या पशुओं के पहुँच के बाहर रखे।
- वर्षा या धुप में कीटनाशक के साथ न रखें।
हस्तलन
- खाद्य पदार्थों के साथ कीटनाशक को न लावें तथा परिवहन न करें।
- अधिक कीटनाशक की मात्रा को सर पर, कंधों पर , पीठ पर रखकर स्थानांतरित न करें।
छिड़काव हेतु घोल निर्माण में सावधानियाँ
- केवल शुद्ध जल का प्रयोग करें।
- निर्माण अवधि में अपना नाक, आँख, मुंह, कान तथा हाथ का बचाव करें।
- घोल निर्माण करते समय हाथ का दस्ताना, चेहरे का मुखौटा, नकाब तथा सर को ढकते हुए टोपी का प्रयोग करें। इस अवधि में कीटनाशक हेतु उपयोग किये गये पॉलिथीन का उपर्युक्त कार्य हेतु इस्तेमाल न करें।
- घोल निर्माण करते समय डिब्बे पर अंकित सावधानियाँ को पढ़कर अच्छी प्रकार समझ लें, तदनुसार कार्रवाई करें।
- छिड़काव किये जाने वाली मात्रा में ही घोल का निर्माण करें।
- दानेदार कीटनाशक को जल के साथ मिश्रण न बनावें।
- मोहरबंद पात्र के सान्द्र कीटनाशक को हाथ के सम्पर्क में न आने दें। छिड़काव मशीन के टैंक को न सूंघें।
- छिड़काव मशीन के टैंक में कीटनाशक ढालते समय बाहर न गिरने दें।
- छिड़काव मिश्रण तैयार करते समय खाना, पीना, चबाना, या धूम्रपान करना मना है।
उपकरण
- सही प्रकार के उपकरण का ही चयन करें।
- रिसनेवाले या दोषपूर्ण उपकरण का प्रयोग न करें।
- उचित प्रकार को नोजल का ही प्रयोग न करें।
- रुकावट पैदा होने और नोजल को मुंह से न फूंकें तथा साफ करें। इस कार्य टूथ-ब्रश एवं स्वच्छजल का ही प्रयोग करें।
- अपतृण/खरपतवार नाशक तथा कीट प्रयोग हेतु एक ही छिड़काव मशीन का उपयोग न करें।
कीटनाशक छिड़काव हेतु सावधानियाँ
- केवल सिफारिश की गयी मात्रा तथा सांद्रता के घोल का ही प्रयोग करें।
- कीटनाशक का छिड़काव गर्म टिन की अवधि एवं तेज वायु गति के समय न करें।
- वर्षोपरांत या वर्षा के पूर्व (अनुमानित) कीटनाशक का छिड़काव न करें।
- वायुगति दिशा के विरुद्ध कीटनाशक का छिड़काव न करें।
- इमलसीफियवुल कासंट्रेट फार्मुलेशन का प्रयोग बैटरी चालित यू एल भी स्प्रेयर से न करें।
- छिड़काव के पश्चात स्प्रेयर, बाल्टी आदि को साबुन पानी से साफ कर लें।
- बाल्टी या अन्य पात्र जिसका उपयोग छिड़काव में किया गया है, उसका घरेलू कार्य हेतु पुनः उपयोग न करें।
- छिड़काव के तुरंत बाद उपचारित क्षेत्र में जानवर या मजदूर का प्रवेश वर्जित कर दें।
निपटान
- बचे हुए छिड़काव घोल को तालाब, जलाशय या पानी के पाइप के सम्पर्क में न आने दें।
- उपयोग किये गये बर्तन, डब्बे को पत्थर से पिचकाकर जल स्रोत से दूर मिट्टी में काफी गहराई में गाड़ दें।
- खाली डब्बे का उपयोग खाद्य भंडारण हेतु न करें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
Source