भूमिका
श्री त्रिपुरारी सिंह, पिता श्री गणेश नारायण सिंह, गढ़वा ग्राम-बलीगढ़, प्रखंड-केतार, जिला-गढ़वा, राज्य झारखंड के रहने वाले हैं। इनका जन्म 15 फरवरी 1980 में हुआ। शैक्षणिक योग्यता- इंटरमीडिएट। एक गरीब कृषक परिवार में जन्म होने के नाते घर की हालत नाजुक थी एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। शादी-विवाह उपरान्त परिवार बढने के कारण खेत को भाई-भाई में बंटवारा कर दिया गया। श्री त्रिपुरारी सिंह के तीन नन्हे-नन्हे बच्चे हैं एवं साथ में उनके वृद्ध माता पिता भी हैं। तभी श्री त्रिपुरारी सिंह ने खेती कार्य स्वयं करने का निर्णय लिया। गेहूँ, धान के अलावे नकदी फसल, सब्जी, दलहन फसल इत्यादि का खेती भी करना प्रारम्भ किया।
कृषि विभाग के कार्यक्रम में मिली धान के खेती की जानकारी
उनके इस कार्य में उनकी पत्नी का सहयोग मिला। चूँकि वह भी एक कुशल कृषक की बेटी थी। वे उक्त फसलों की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने से जुट गए। इसी बीच आत्मा गढ़वा द्वारा बलीगढ़ ग्राम में एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसमें प्रखंड तकनीकी प्रबंधक श्री अजय कुमार साहू के अलावा जिला परामर्शी श्री जितेन्द्र कुमार उपाध्याय (NFSM, गढ़वा) प्रशिक्षण दे रहे थे। बी.टी.एम. द्वारा प्रशिक्षण के क्रम में श्री विधि द्वारा धान उत्पादन के बारे में भी विस्तृत रूप से बताया गया। प्रशिक्षणोंपरांत श्री त्रिपुरारी सिंह उनसे मिले तो वे उनकी उत्सुकता रखकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत अरहर प्रत्यक्षण के लिए उनके नाम पर उपादान उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। उनके परिवार के लोग वैज्ञानिक विधि से खेती करने में इच्छुक नहीं थे, उनका कहना था कि जमीन की बर्बादी होगी एवं उत्पादन कम होगी। परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी। तत्क्षण दूरभाष पर बात कराके परिवार के लोगों को समझाया गया।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत मिली मदद
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (दलहन) अंतर्गत प्रत्यक्षण हेतु अरहर बीज (नरेंद्र-1) 20 किलो ग्राम, डोलोमाईट 03 क्विंटल/हें., मोनोक्रोटोफ़ॉस 1.0 लीटर/हें., बोरेक्स 10 किलोग्राम/हें., एन.पी.वी. 250 मिलीलीटर/हें., ट्राइकोडरमा: 500 ग्राम/हें., राईजीवियम कल्चर तथा पी.एस.बी. 500 ग्राम/हें. उपलब्ध कराया गया। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के मापदण्ड के अनुसार प्रत्यक्षण हेतु बीज तथा समेकित पोषक तत्व तथा समेकित कीट-व्याधि प्रबंधन हेतु कीट एवं व्याधि के रोकथाम हेतु पूरे 1.0 हें. क्षेत्र का उपादान लाभुक को मुहैया कराया जाता है। बुआई के समय कृषक द्वारा पंक्ति में डी.ए.पी. 60 किलो/हें.. तथा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश 20 किलो/हें. बीज दर से मिलाकर कुंड में लगातार गिराकर उसके बाद उपचारित बीज की बुआई की गई।
ट्राइकोडरमा, राईजोवीयम कल्चर तथा पी.एस.बी. से बीज उपचार के कारण बीज का अंकुरण अच्छा हुआ तथा फसल का विकास अच्छा हुआ। पंक्ति से पंक्ति 75 सें.मी. तथा पौधा से पौधा 25 सें.मी. की दूरी बनाए रखते हुए बुआई किया।
वैज्ञानिक विधि से बोना शुरू किया तो अगल-बगल के पड़ोसियों द्वारा मजाक किया जाने लगा कि भविष्य में जमीन बेकार हो जाएगा और उत्पादन कम होगा। लेकिन त्रिपुरारी जी ने किसी की भी नही सुनी। त्रिपुरारी जी द्वारा दो बार निकाई-गुड़ाई किया गया। पहला बुआई के 30-35 दिनों बाद तथा दूसरी बुआई 50-55 दिनों के बाद। रा.खा.सु.मि. के विशेषज्ञ समय-समय पर फसल की निरीक्षण कर परामर्श देते रहे। कीटनाशी का छिड़काव जैसे मोनोक्रोटोफ़ॉस तथा एन.पी.वी. का प्रयोग निदेशानुसार किया गया जिससे फसल को फली छेदक तथा दूसरे कीट द्वारा बचाया गया। डोलोमाईट तथा बोरेक्स के उपयोग से पौधे की वृद्धि अच्छी हुई तथा पौधे स्वस्थ पाये गये तथा फली की लम्बाई 2.5 इंच तक हुई थी।
फसल लगभग 240 दिन में तैयार हो गया। फसल कटनी के बाद कुल दानों का उपज 25 क्विं. प्राप्त हुआ। गाँव एवं अगल-बगल गाँव के कई अन्य किसान लगभग 5 क्विं. दाना को बदल कर बीज हेतु रखे। लगभग 2 क्विं. दाना को दाल खाने हेतु रखे। शेष दाना को बेच कर अच्छी आमदनी प्राप्त किए।
जीवन स्थिति में हुआ सुधार
पहले वे जैसे-तैसे गुजारा करते थे अब वे खाने के अलावा अपनी आमदनी से बहुत कुछ बचा भी लिया करते है। इस तरह उनकी घर की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई। त्रिपुरारी जी अपने बच्चों का शिक्षा एवं परिवार के स्वास्थ पर भी विशेष ध्यान देने लगे। अनुमंडल स्तर पर उन्हें एक प्रगतिशील कृषक के रूप में चिन्हित कर पारितोषित भी दिया गया। उनकी सफलता को देखकर सभी ग्रामीण लोग बहुत खुश हुए, एवं अपने-अपने खेतों में वैज्ञानिक विधि से खेती करने का निर्णय लिया। श्री त्रिपुरारी सिंह रा.खा.सु.मि. का हार्दिक रूप से शुक्रगुजार हैं। साथ ही साथ वे और किसानों को प्रोत्साहन करने का काम भी कर रहे हैं।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
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