भूमिका
श्री निकोलस बरजो, ग्राम – कल्हाटोली, प्रखंड – कोलेबिरा, जिला – सिमडेगा के रहने वाले एक शिक्षित बेरोजगार हैं। इनका जन्म एक आदिवासी किसान परिवार में हुआ था। निकोलस ने उच्चत्तर माध्यमिक तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद रोजगार/नौकरी के लिए बहुत प्रयास किया, पर सफलता नहीं मिली।
किसान परिवार से होने के कारण शुरू से ही खेती के प्रति उनका लगाव था। वे पारंपरिक विधि से सभी फसलों की खेती किया करते थे, किन्तु मेहनत करने पर भी उत्पादन बहुत कम होता था। जिसके कारण परिवार का भरण-पोषण करने में भी कठिनाई होती थी। एक दिन उन्होंने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, सिमडेगा के द्वारा चलाये जा रहे कृषक प्रक्षेत्र पाठशाला कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें यह बतलाया गया कि वैज्ञानिक विधि अपनाकर उत्पादन में वृद्धि किया जा सकता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें भारत सरकार द्वारा सम्पोषित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना अंतर्गत आयोजित संकुल प्रत्यक्षण के माध्यम से उरद कही खेती के बारे में बताया गया। जिससे वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी खेत में उरद का प्रत्यक्षण करने का विचार किया।
अनुदान पर मिली सहायता से कर रहे कमाल
आत्मा – सिमडेगा के कार्यालय में जाकर उन्होंने परियोजना निदेशक से भेंट की और प्रत्यक्षण के बारे में विस्तृत जानकारी ली। परियोजना निदेशक आत्मा, सिमडेगा से उरद की खेती करने की इच्छा व्यक्त करने पर श्री निकोलस को शत प्रतिशत अनुदान पर 0.2 हें. क्षेत्र के लिए उरद के 4.0 किलो उन्नत बीज (T9) तथा 1.0 हें. क्षेत्र के लिए अन्य उपादान जैसे – चूना – 3 क्विं., बोरेक्स – 10 किलो, यूरिया – 10 किलो, बीजोपचार हेतु कार्बेन्डाजिम (बेवीस्टीन) उपलब्ध कराया गया। निकोलस को 0.8 हें. क्षेत्र के लिए 16.0 किलो उन्नत किस्म का उरद बीज भी पचास प्रतिशत अनुदान पर दिया गया। अधिक उत्पादन के लिए जीवाणु खाद जैसे राईजोबियम कल्चर 100 ग्राम x 5 पैकेट, पी.एस.बी. के 100 ग्राम x 5 पैकेट, शतप्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराया गया तथा प्रशिक्षण के दौरान राईजोबियम कल्चर के उपयोग हेतु जानकारी दी गई, जिसका श्री निकोलस ने अक्षरश: पालन कर बीज की बुआई की।
बुआई के पूर्व खेत में चूना 3.0 क्विं. तथा एक ट्रैक्टर सड़ा हुआ गोबर का खाद भी मिलाया। बीज की बुआई 30 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति तथा 10 सें. मी. बीज से बीज की दूरी बनाते हुए की।
बीज का संतोषप्रद अंकुरण हुआ। निकोलस ने दो बार निकाई-गुड़ाई की। पहली निकाई-गुड़ाई बुआई के 20-25 दिनों के बाद तथा दूसरी बुआई के 40-45 दिनों बाद।
फसल को कीट तथा व्याधि से बचाने के लिए आत्मा, सिमडेगा के अंतर्गत पदस्थापित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना तथा आत्मा के तकनीकी विशेषज्ञ समय-समय पर फसल का निरीक्षण करते रहे और फेरोमोन ट्रेप + ल्यूर तथा फसल पर लगने वाले भुआ पिल्लू से बचाव के लिए डायक्लोभॉस तरल कीटनाशी, कवक जनित रोगों से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम, मेनकोजेब तथा विषाणु जनित रोगों के लिए मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव किया गया।
इस सफल किसान से अन्य लोग भी ले रहे खेती करने की प्रेरणा
श्री निकोलस के फसल के देखकर आस-पास के पंचायत एवं प्रखंडों के किसान उरद की खेती देखने आने लगे और फसल देखकर इसे लगाने की तकनीकी के बारे में निकोलस जी से जानकारी प्राप्त करने लगे।
फसल की कटाई परियोजना निदेशक आत्मा, सिमडेगा एवं उनके विशेषज्ञों की उपस्थिति में हुई। प्रक्षेत्र दिवस-सह-किसान गोष्ठी का कार्यक्रम श्री निकोलस के खेत पर हुआ। कटनी के पश्चात कुल दाना का उपज 22.50 क्विं./हें. हुआ। डंठल तथा भूसा का व्यवहार निकोलस ने खाद रूप में लिया।
15 क्विं. बीज अपने गाँव तथा आस-पास के गाँवों के किसानों को बेचा। शेष दाना का उपयोग दाल के रूप में किया। खाने के बाद जो बचा, आवश्यकतानुसार समय-समय पर उसकी बिक्री भी की।
आज श्री निकोलस बारजो अपने गाँव ही नहीं बल्कि पूरे प्रखंड में कृषकों के लिए प्रेरणा श्रोत बने हुए हैं और वैज्ञानिक विधि द्वारा उरद की खेती करने के लिए अन्य कृषकों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इनकी सफलता को देखकर इनके गाँव के पुरुष एवं महिला कृषकों ने अगले खरीफ में वैज्ञानिक विधि से उरद की खेती करने का निश्चय किया है।
उरद की खेती ने निकोलस को खेती की ओर आकर्षित किया। निकोलस जी ने आत्मा, सिमडेगा के सहयोग से फसलों के साथ-साथ गौ पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन आदि का प्रशिक्षण प्राप्त कर अपनी आजीविका को नया आयाम दिया है। अन्य गाँवों के किसान आज श्री निकोलस की सलाह पर खेती कर रहे हैं।
उन्नत तकनीकी से उरद की खेती कर श्री निकोलस ने आज जिला के प्रगतिशील किसानों की सूची में खुद को शामिल कर लिया है। वे कहते हैं राष्ट्रीय खाद्य मिशन द्वारा संचालित विभिन्न फसलों से संबंधित कार्यक्रम आज किसानों के लिए रोजगार तथा धनोपार्जन का माध्यम साबित हो रहा है। निकोलस आज वैज्ञानिक विधि से उरद की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ाने में जुटे हैं। आमदनी बढ़ी तो निकोलस की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ी। आज निकोलस जहाँ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहे हैं, वहीं उन्नत कृषि यंत्रों जैसे सिंचाई पंप, पाइप आदि के सहारे एक साथ कई फसलें उगा रहे हैं।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
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