भूमिका
किसान उत्पादक कंपनी, किसानों की सहकारी समितियों, स्वयंयं सहायता समूह जैसे सामूहिक विपणन के साधन अब पारंपरिक कृषि विपणन की कई चुनौतियों को प्रभावशाली ढंग संबोधित करने के लिए सामने आ रहे हैं। अकुशल विपणन प्रणाली की वजह से विभिन्न एजेंसियों द्वारा लगभग 60000 करोड़ रुपए की विशाल राशि का नुकसान होने का अनुमान है, जिसे बचाया जा सकता था। पैमाने और प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर इस के एक प्रमुख हिस्से को बचाया जा सकता है। दूध और अंडे के विपणन में पैमाने और प्रौद्योगिकी की भूमिका की सफलता की दो कहानियां हैं। सामूहिक -विपणन छोटे और सीमांत किसानों के लिए इसे सुनिश्चित करने का एक प्रभावी साधन है। इस अर्थ में, किसानों के संगठनों को समूह के व्यक्तिगत सदस्यों की ओर से विपणन गतिविधियों को संचालित करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
सफल कहानी -दक्षिण गुजरात में अमलसाद और गदत सहकारी-संघ
अमलसाद सहकारी-संघ को 1941 में पंजीकृत किया गया था। 8310 किसान इसके सदस्य हैं, जिनमें से 4273 सक्रिय सदस्य हैं। अमलसाद सहकारी-संघ दिल्ली, मुंबई, इंदौर जैसे बाजारों में उत्पादन के निपटान के लिए कमीशन एजेंटों के माध्यम से काम करता है। वास्तव में, अकेले दिल्ली में सहकारी-संघ के कुल चीकू के 90 प्रतिशत की बिक्री होती है। अमलसाद सहकारी-संघ एक अत्यंत प्रतिस्पर्धी बाजार है। अमलसाद बाजार में 10 से अधिक निजी व्यापारी हैं। लेकिन सहकारी-संघ बाजार में फलों के कुल आवक के 50 प्रतिशत, और 17 गांवों के उत्पादन के 95 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है, जो सहकारी-संघ द्वारा प्रबंधित किए जाते हैं। सहकारी-संघ की अपनी निजी चीकू पैकेजिंग मशीन है, जिसकी कीमत 14 लाख रुपए है। चीकू को मशीन द्वारा पैक और ट्रकों में लोड करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। सहकारी-संघ अपने मुख्य परिसर और विभिन्न दुकानों के माध्यम से सफाई, पैकिंग,ब्रांडिंग और विभिन्न खाद्य वस्तुओं को बेचने के व्यवसाय में भी शामिल है।
सफल कहानी -अमलसाद सहकारी-संघ में
हर दिन लगभग 200 किसान सदस्य इसके दो संग्रह केंद्रों पर समाज के लिए अपनी वर्गीकृत उपज लाते हैं, इनमें से एक संग्रह केंद्र अमलसाद में ही है।फलों की आकार, आकृति और फिटनेस के आधार पर ग्रेडिंग की जाती है। गुणवत्ता की जाँच के लिए चीकू के ढेर में से 10 किलो का एक नमूना तैयार किया जाता है। नमूने में शामिल फलों की संख्या का आकार गुणवत्ता निर्धारित करता है। फल की संख्या जितनी कम होगी,उसे उतनी ही बेहतर गुणवत्ता दी जाती है। यह प्रणाली स्थानीय रूप से जान्त्री गिनती के रूप में जानी जाती है। गुणवत्ता और बर्गीकरण के इन मापदंडों को मौसम के लिए तय किया जाता है, जो एक मौसम से दूसरे मौसम में बदल सकता है या टर्मिनल बाजार में मूल्य प्राप्ति,कृषि-जलवायु स्थिति, और एक सत्र में गुणवत्ता के सामान्य स्तर के व्यवहार के आधार पर मौसम के दौरान ही बदला जा सकता है।
सहकारी विपणन
पिछले पांच दशकों के दौरान प्रोत्साहित किए गए किसानों के सहकारी संगठनों का एक नेटवर्क है। इसमें राष्ट्रीय स्तर सहकारी-संघ (नैफेड, ट्राइफेड); राज्य स्तर के सामान्य और वस्तु विशिष्ट संगठन और प्राथमिक स्तर की विपणन और ऋण समितियां शामिल हैं। प्राथमिक स्तर की विपणन सहकारी समितियां आदान आपूर्ति के बजाय मुख्य रूप से उत्पादन विपणन में व्यस्त रहती हैं। गांव या समूह स्तर के पीएसीईएस उत्पादन की बजाय मुख्य रूप से ऋण और आदानों को संभालते हैं। फिर भी, कुछ राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र) में और कुछ वस्तुओं (दूध, तिलहन, गन्ना) के लिए, सहकारी समितियों ने भी उत्पादन के विपणन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई राज्यों में ये पीएसीएस एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) गतिविधियों के संचालन में प्रस्तुत की गई हैं।
बागवानी उत्पादकों की सहकारी विपणन और प्रसंस्करण सोसायटी लिमिटेड, (एचओपीसीओएमएस)
एचओपीसीओएमएस में 1959 स्थापित किया गया था। सोसायटी की सदस्यता चार श्रेणियों में विभाजित है, अर्थात् ए वर्ग के सदस्य, जो संचालन के क्षेत्र में बागवानी फसलों के उत्पादक हैं, बी वर्ग के सदस्य, जिन्हें सहयोगी के रूप में स्वीकार किया जाता है, इसमें सदस्य और सहकारी संस्थाएं शामिल हैं, सी वर्ग कर्नाटक सरकार के लिए निर्धारित है और डी वर्ग के सदस्यों में व्यापारी और कमीशन एजेंट शामिल हैं।
फलों और सब्जियों की खरीद
सोसयटी किसान (सदस्यों के साथ ही गैर-सदस्यों) और खुले बाजार दोनों से फल और सब्जियाँ खरीदती है। आसपास के स्थानों के उत्पादकों स्वयं अपनी उपज लाते हैं और मुखयालय पर या शाखाओं में उसकी आपूर्ति करते हैं। किसानों को फलों और सब्जियों की आपूर्ति के लिए समाज से एक मांगपत्र लेना होता है और सामान्य रूप से माँग की गई मात्रा से अधिक उत्पादन को स्वीकार नहीं किया जाएगा ।
खरीद केंद्रों पर आपूर्ति
इस समय, सोसायटी लगभग 85 प्रतिशत फल और सब्जियाँ सीधे किसानों से खरीदती है। टमाटर, गोभी, फूलगोभी, खीरा, कच्चा केला, अनार, पपीता और आम की लगभग पूरी मात्रा अब खेतों से खरीदी जा रही है। इसके अलावा, आवश्यकता (मांग) के आधार पर, स्थानीय बाजार और अन्य राज्यों से भी उत्पाद प्राप्त किए जाते हैं।
फलों और सब्जियों की ग्रेडिंग
एचओपीसीओएमएस फलों और सब्जियों को ए, बी और सी में वर्गीकृत नहीं करता है, हालांकि, सोसायटी दावा करती है कि यह उत्पादकों से केवल अच्छी गुणवत्ता के उत्पादन को स्वीकार कर फलों और सब्जियों की गुणवत्ता बनाए रखती है। यह क्षतिग्रस्त और रोगग्रस्त ओर चोटिल बस्तों को खारिज कर देती है।
उत्पादन का निपटान
- खुदरा दुकानों के माध्यम से बिक्री
- थोक खरीदारों को बिक्री
- एचओपीसीओएमएस शाखाओं को बिक्री
उत्पादन से संबंधित गतिविधियाँ
एचओपीसीओएमएस फलों और सब्जियों के उत्पादकों को उचित मूल्य पर सब्जियों के बीज, उर्वरक, पीपीसी (कवकनाशकों और कीटनाशकों) और उद्यान के औजार जैसी उत्पादन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करती है। यह देखा जा सकता है कि आदान एचओपीसीओएमएस की कुल बिक्री के 8-10 प्रतिशत होते हैं। इसके अलावा, यह भी ध्यान में रखा जा सकता है कि फलों और सब्जियों के उत्पादकों के लिए आपूर्ति किए गए आदानों के मूल्य में तीन गुना वृद्धि हुई है। यह कोलार, चिकबलपुर विजयपुर में उर्वरक और पीपीसी गोदामों के खुलने की वजह से हुआ है।
प्रसंस्करण गतिविधि
एचओपीसीओएमएस बंगलौर, मैसूर और मंगलौर शाखाओं में अंगरू , आम, संतरा, अपील आदि से रस बनाता है और इसे अपनी खुदरा दुकानों में 200 मिलीलीटर की बोतलों में बेचता है।
पिछले दो दशकों के दौरान, देश में स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) एक बड़ी संख्या में उभरे हैं। 1992 में स्वयं सहायता समूहों को बैंकिंग प्रणाली के लिए से जोड़ने के लिए एक देशव्यापी कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस समय, तीन प्रकार के, अर्थात् (क) बैंकों द्वारा का गठित और वित्त पोषित; (ख) अन्य एजेंसियों द्वारा गठित लेकिन बैंकों द्वारा वित्त पोषित; और (ग) गैर-सरकारी संगठनों का उपयोग करते हुए बैंकों द्वारा वित्त पोषित, स्वयं-सहायता समूह हैं। किसानों के लिए स्वयं-सहायता समूह कार्यक्रम का विस्तार के लिए इसे पीएसीएस से आंतरिक रूप से जोड़ने की आवश्यकता होगी, जो हाल के वर्षों में आसान नहीं हो सकता है। कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) और अन्य संगठनों क्लबों का गठन किया है, जो एक अच्छी पहल है।
स्वयं सहायता समूहों की सफलता की कुछ कहानियां
- स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) और एमएसीटीसीएस (पारस्परिक सहमति से जोड़ी गई सहकारी बचत और ऋण समितियों को) के माध्यम से आंध्र प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की सफलता की कहानी की पूरे भारत में व्यापक रूप से सराहना की गई है।
- 5,400,000 से अधिक महिलाओं ने खुद को 380 हजार समूहों में संगठित किया है।
- जमीनी स्तर पर भागीदारी परियोजनाओं के कार्यान्वयन की सुविधा के लिए राज्य में कृषक समूह भी गठित किये गए हैं।
- किसानों और कृषक परिवारों के ये गांव स्तर के संगठन अब आत्म स्थिरता के स्तर तक विकसित हुए हैं, अब वे लिए अधिक से अधिक जानकारी का उपयोग करने की मांग कर रहे हैं। वे सार्वजनिक क्षेत्र की योजनाओं, बाजार कीमतों, मौसम आदि के बारे में जानकारी की मांग कर रहे हैं।
- वे सौदेबाजी की बेहतर शक्ति पाने के लिए सामूहिक रूप से अपने उत्पादों का विपणन करते हैं।
- विभिन्न उद्यमों को शुरू करने के लिए कृषक महिलाओं के प्रदर्शन, उपलब्ध संसाधनों और क्षेत्र में विपणन संभावनाओं के आधार पर कृषि में महिलाओं के मिशन मोड एनएटीपी सशक्तिकरण के अंतर्गत, 540 कृषक महिलाओं को 36 स्वयं- सहायता समूहों में बांटा गया था।
- स्वयं सहायता समूहों की कृषक महिलाओं की क्षमता निर्माण के लिए उद्यमों में प्रशिक्षण आयोजित किए गए।
- स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को विभिन्न उपकरणों को संभालने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया।
- कौशल प्रशिक्षण और परियोजना प्रबंधन पर उन्मुखीकरण के माध्यम से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सशक्त किया गया है।
- स्वयं सहायता समूह के सभी सदस्यों ने अपनी रुचि के अनुसार उद्यम शुरू किए हैं। महिलाओं ने उद्यमों से आय अर्जित करना शुरू कर दिया है
सामूहिक विपणन के लाभ
- इससे निर्माता के मुनाफे में वृद्धि होती है।
- यह विपणन लागत को कम करता है।
- यह विपणन प्रणाली की वितरण दक्षता को प्रोत्साहित करता है।
- यह निर्माता को रोजगार प्रदान करता है।
- प्रत्यक्ष विपणन उपभोक्ता की संतुष्टि को बढ़ाता है।
- यह उत्पादकों को बेहतर विपणन तकनीक प्रदान करता है।
- यह मांग आधारित उत्पादन के लिए उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच सीधे संपर्क को प्रोत्साहित करता है।
- यह किसानों को उनकी उपज की खुदरा बिक्री के लिए प्रोत्साहित करता है।
स्रोत: राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय,भारत सरकार का संगठनSource