गन्ना एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है। विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती इन्ही विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने आप में सुरक्षित व लाभ की खेती है।
प्रदेश में प्रमुख गन्ना उत्पादक जिले नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बुरहानपुर, बैतूल व दतिया जिले हैं।वर्तमान में कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 50 प्रतिशत रकवा नरसिंहपुर जिले में है। जिसमे उत्पादकता वृद्वि की असीम संभावनाएं , तकनीक व कुशल सस्य प्रबंधन के माध्यम से ही संभव है। साथ ही दिनो-दिन प्रदेश में सिंचाई क्षेत्रफल में वृद्वि के कारण नये गैर-परम्परागत क्षेत्रफलों में भी गन्ना की खेती की जा सकती है।
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी
- दोमट भूमि जिसमें पानी का निकास अच्छा हो गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है।
- भूमि का पी.एच. मान 6.5 तक 8.0 के मध्य होना चाहिए।
- भूमि की तैयारी के लिए ग्रीष्म ऋतु (मार्च-अप्रैल) में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई की जाती है।
- अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में 1 से 2 आड़ी खड़ी जुताई कर पाटा चलाकर खेत समतल करते है, रिजर की सहायता से 4 फीट की दूरी पर नालिया बनाते है।
- बसंतकालीन गन्ना जो फरवरी – मार्च में लगाया जाता है, नालियों का अंतर 3 फीट का रखा जाता है।
गन्ने की उन्नत किस्में ( Sugarcane varieties )
- शीघ्र पकने वाली (10 से 12 माह)- सी.ओ.-671, सी.ओ.-7314, सीओ.- 94008, को.जे.एस. जवाहर 86-141
- मध्यम पकने वाली (12 से 14 माह) – सी.ओ.-86032, सी.ओ.जे.एन. 86-600, सी.ओ.-9900
- गुड़ बनाने के लिये – सी.ओ.-671, सी.ओ. जवाहर 86-141 एवं सीओ. 7318
बुआई का समय
- गन्ने की बोनी का सर्वोत्तम समय अक्टूबर- नवम्बर है।
- अक्टूबर-नवम्बर में गन्ना लगाने से 30-40 प्रतिशत अधिक उपज मिलती है।
- बंसतकालीन गन्ना फरवरी- मार्च में लगाना चाहिये।
बीजदर
100 से 125 क्विंटल गन्ना (1 से 1.25 लाख आंखे) प्रति हे लगाये
बीजोपचार
- कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में गन्ने के टुकड़ो को 15 से 20 मिनट तक डुबाय
- जिन क्षेत्रो में चेपा एव पपड़ी कीटो का प्रकोप हो वहाॅ इस घोल में 5 मि.ली. क्लोरपायरीफाॅस (20 ई.सी.) प्रति लीटर पानी में मिलाऐं।
बुआई की विधि
- उपचारित टुकड़ों को मडो पर बिछा दे व नालियो में पानी लगा दे।
- मिट्टी गलने के बाद ऊपर रखे हुए टुकड़ों को उठाकर पैर की सहायता से नाली में दबा दे टुकड़े नालियों में (गीली कुड़ विधि) इस तरह रखे कि आॅखे बाजू में रहें। दूसरे दिन खुले हुए टुकड़ो को मिट्टी से ढके।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
- 10 से 15 टन गाबे र की खाद/कम्पोस्ट का अवश्य प्रयोग करे।
- गन्ने में 300 कि.ग्रा. नत्रजन (650 कि.ग्रा. यूरिया), 80 कि.ग्रा. स्फुर (500कि.ग्रा. सुपरफास्फेट) एवं 60 कि.ग्रा. (100 कि.ग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश)प्रति हे देना चाहिये।
- स्फुर एव पोटाश की पूरी मात्रा बोने के पूर्व गरेडो में दे।
- नत्रजन की मात्रा अक्टूबर में बोई गई फसल के लिए चार भागों में बाट कर अंकुरण के समय, कल्ले निकलते समय, हल्की मिट्टी चढ़ाते व भारी मिट्टी चढाते समय दे।
खाद की बचत हेतु
- यूरिया खाद पर 100 कि.ग्रा. प्रति हे. नीम की खली या महुआ या करंज की खली के बारीक पाउडर से यूरिया को रगड़कर परत बनाकर प्रयोग करे।
- 5 कि.ग्रा. एसिटोबेक्टर एवं 5 कि.ग्रा. पी.एस.बी./ हे. जैव उर्वरक का प्रयागे करे।
गन्ने का सिंचाई प्रबंधन
- भूमि के अनुसार गन्ने को 25-30 सिंचाई की आवश्यकता होती हैं।
- शरदकाल में 15 दिन एवं गर्मी में 10 दिन के अंतर से सर्पाकार विधि से सिंचाई करना चाहिए।
- गर्मी के मौसम में पानी की कमी होने पर एक कतार छोड़कर सिंचाई करे।
- गन्ने की सूखी पत्तियाॅ नालियों में बिछाए , इससे नमी का संरक्षण होगा।
- टपक सिंचाई पद्धति से सिंचाई करने पर लगभग 30 प्रतिशत पानी की बचत होती हैं।
खरपतवार नियंत्रण
- बुआई के लगभग 4 माह तक खरपतवारों की रोकथाम आवश्यक है, इसके लिए 3 से 4 निंदाई आवश्यक हैं।
एट्राजिन
- गन्ने में खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिये एट्राजिन 1 से 1.25 किलोसक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर गन्ने की बुआई के 3 दिन के अन्दर छिड़काव करे।
मेट्रीब्यूजिन
- मेट्रीब्यूजिन 750 ग्राम सक्रीय तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से 5 से 10 प्रतिशत गन्ना उगने पर किया जाये। या 2, 4 डी 750 ग्राम सक्रीय तत्व प्रति हैक्टेयर 32 से 35 दिन की फसल अवस्था पर छिड़काव करे।
- छिड़काव के समय खेत में नमी आवश्यक हैं।
- खरपतवार नाशी रसायनों की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी मे प्रति हे. के हिसाब से घोल बनाकर समान रुप से छिड़काव करना चाहिए।
मिट्टी चढ़ाना
- गन्ने को गिरने से बचाने के लिए रिजर की सहायता से मिट्टी चढ़ानी चाहिए।
- गन्ने में पूरे कल्ले फूटने के उपरान्त ही पहली मिट्टी चढा़एं।
- अक्टूबर से नवंबर माह में बोई फसल में प्रथम बार मिट्टी मई माह में चढ़ाना चाहिए।
- गन्ना में वर्षा पूर्व भरपूर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है जिससे जड़ों की पकड़ढ़ीली ना हो एवं वर्षा मे नये कल्ले न फूटे।
बंधाई
- गन्ने न गिरे इसके लिए गन्ने की कतारों को व गन्ने के झुण्ड़ो को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए। यह कार्य अगस्त के अंत में या सिंतबर माह में करना चाहिए।
जड़ी प्रबंधन
- बीजू फसल के बराबर जड़ी फसल लेने के लिए जड़ी प्रबंधन आवश्यक है।
- खेत में गन्ने के ठूठ रह गये हो तो उन्हे मिट्टी की सतह से तेज धार वाले औजार से काटें।
- कटाई के बाद खेत में सिंचाई करे|
- ठूढो पर 625 ग्राम कार्बेन्डाजिम और 1 लीटर क्लारे पायरीफाॅस 20 ई.सी. 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़के।
- खेत में बतर आने पर गरेडो के दोनो ओर हल चलाकर गरेड़ों को तोड़े।
- इससे पुरानी गरेड टूटेगी और नई जड़ो का विकास होगा तथा मिट्टी में वायु का संचार बढेगा।
- खाद व उर्वरक मुख्य (बीज) फसल के बराबर ही देना चाहिए।
- फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोकर देना चाहिए। खेत में जहाॅ खाली जगह हो वहाॅ उसी किस्म के गन्ने के एक आॅख के टुकड़े लगा दे|
- इसके लिए खाली जगह में मिट्टी खोद कर गहराई पर टुकड़े दबा दे तथा सिंचाई करे।
कीट नियंत्रण
- अग्रतना छेदक के प्रकोप के नियंत्रण हेतु फोरेट 10 जी दानेदार 15 किग्रा. प्रति हे. या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत दानेदार दवा 25 कि.ग्रा. प्रति हे. को जड़ो के पास प्रयागे करे|
- जुलाई से अगस्त में यदि पायरिल्ला कीट की संख्या 5 से 10 कीट प्रति पत्ती हो तो जैविक नियंत्रण हेतु इपीनिया परजीवा कीट के 4000 से 5000 जीवित ककून प्रति हे. की दर से खेत में छोडे।
- पायरिल्ला एवं सफेद मक्खी नियंत्रण के लिए क्विनालफाॅस 25 ई.सी.1500-2000 एम.एल. दवा 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. के हिसाब से छिड़काव करे|
- शीघ्र तना छेदक का प्रकोप होने पर कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत दानेदार दवा 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से जड़ो के पास प्रयागे करे।
रोग नियंत्रण
- उकठा रोग – प्रतिरोधी जातियाॅ लगाये जैसे – सी.ओ.जे.एन. 86-141, सी.ओ.जे.एन. 86-600
- गन्ना बुवाई पूर्व कार्बेन्डाजिम फफंदू नाशक से बीजोपचार करे।
- लाल सड़न-लाल सड़न अवरोधी व सहनसील किस्मे जैसे – सी.ओं जे.एन. 86-141 को लगाये|
प्रबंधन
- बुवाई से पूर्व बीज का उपचार कार्बेन्डाजिम फफॅूदनाशक से अवश्य करे।
- स्वस्थ बीज (रोगरहित) का चयन करे।
- गर्म हवा संयंत्र के द्वारा बीज का उपचार करे।
उपज
गन्ना की फसल से 1200-1400 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती हैं।
Source-
- कृषि विज्ञान केन्द्र