रजनीगंधा कन्दीय पौधों में एक मुख्या आभूषक पौधा है| भारत में रजनीगंधा की खेती मुख्या रूप से पश्चिम बंगाल , तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक में की जाती है| उत्तर भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश में , हरयाणा , पंजाब ,हिमाचल प्रदेश में सफलतापूर्वक की जा रही है|
रजनीगंधा की किस्में
1.) मैक्सिकन सिंगल
2.) डबल सुवासिनी
3.) वैभव
4.) श्रृंगार प्रज्जवल, आदि।
नर्सरी तैयार करना
कन्दों द्वारा प्रवर्धन किया जाता है।
सस्य क्रियाएं
2-3 बार गहरी जुताई करके खेत को समान क्यारियों में बांट लेते हैं तथा सिंचाई एवं जल निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए।
बुवाई/रोपण
मैदानों में फरवरी-मार्च तथा पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल-मई में।
उर्वरक व खाद
15-20 टन सड़ी गोबर की खाद व 120ः80ः60 नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा प्रति हैक्टर देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
2-3 बार खुरपी द्वारा
फूलों की कटाई
जब पुष्प दन्डिका में 1-2 पंखुड़ियां पूरी खिल जाती हैं तो उन्हें काट लेते हैं।
तुड़ाई उपरांत प्रौद्योगिकी
1.) खिले फूलों को पॉलीथीन की थैलियों में पैक करें।
2.) कटे फूलों का वर्गीकरण कर गत्ते के बक्सों में पैक करें।
3.) 40 से. तापमान व 80-90 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता पर भण्डारित करें।
रजनीगंधा की खेती में उपज
10 से 12 टन खिले फूल तथा 5 से 7.5 लाख पुष्प डंडियां प्रति हैक्टर/वर्ष
रजनीगंधा के रोग एवं नियंत्रण
1. कंद विगलन
लक्षण
यह रोग धब्बों की तरह दिखाई पड़ता है जो झुलसा एवं तना विगलन रोग करता है। यह कवक पहले जड़ों को आक्रमित करता है जो बाद में कंद एवं पत्रवृंत पर फैल जाता है जो विगलन की शुरूआत करता है।
नियंत्रण
मिट्टी को थीराम (0.2 प्रतिशत), बाविस्टीन (0.5 प्रतिशत), ब्रासिकोल (0.1 प्रतिशत) या जीनेब (0.3 प्रतिशत) से 20 दिनों के अन्तराल में उपचारित करें।
2. ब्लोसम ब्लाइट
लक्षण
फूलों की पंखुड़ियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं जो बाद में गहरे रंग के हो जाते हैं और ऊतकों को सुखा देते हैं। कलियां पेड़ से गिर
जाती हैं।
नियंत्रण
बेनोमिल (0.2 प्रतिशत) या थायोफानेट मिथाइल (0.2 प्रतिशत) से उपचारित करें।
3.अल्टरनारिया पर्ण चित्ती
लक्षण
हल्की वलय मध्य शिरा और कभी-कभी पत्तियों की मारजीन पर दिखता है। फूलों पर गोलाकार धब्बे दिखते हैं। पत्तियां और फूल सूखकर गिर जाते हैं।
नियंत्रण
मानकोजेब (0.2 प्रतिशत) या इप्रोडिऑन (0.2 प्रतिशत) 10 दिन के अन्तराल पर उपचारित करें।
रजनीगंधा के कीट एवं नियंत्रण
1. घास का फुदका (ग्रास हॉपर)
लक्षण
ये कीट हरे रंग के फुदकने वाले कीट होते हैं। इसके शिशु व वयस्क पौधों की कोमल पत्तियों व कलियों को खाते हैं।
नियंत्रण
इसके नियंत्रण के लिए नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या कार्बोरिल 50 डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम/लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.लि./4 लिटर या एमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. 1 ग्राम/2 लिटर का छिड़काव करें।
2. पत्ती भक्षक भृंग (वीतिल)
लक्षण
इस कीट के शिशु पौधों की जड़ों को खाते हैं तथा बाद में सुरंग बनाकर कन्दों में प्रवेश कर जाते हैं। वयस्क कीट अंधेरा होने पर सक्रिय हो जाते हैं तथा पौधों की कोपलों व पत्तियों को खाते हैं।
नियंत्रण
शिशुओं के नियंत्रण के लिए कन्दों के रोपन से पूर्व खेत में सिंचाई के साथ क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 लिटर/हैक्टर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए। वयस्कों की रोकथाम के लिए एन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या कार्बेरिल 2 ग्राम/लिटर पानी का छिड़काव करें।
3. चेपा (एफिड)
चेपा के शिशु व वयस्क दोनों ही पौधों के बढ़ते अंगों से रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं। चेपा की रोकथाम के लिए गुलाब के अंतर्गत दी गई विधि अपनाएं।
4. थ्रिप्स
थ्रिप्स पत्तियों व फूलों से खुरचकर रस निकालते हैं तथा इसे पीते हैं। ये बंचीटॉप बीमारी को फैलाने में भी मदद करते हैं। थ्रिप्स की रोकथाम गुलाब के अन्तर्गत दिए गए तरीके से करें।
स्रोत-
भारतीय कृषि अनुसंधान संसथान, नई दिल्ली-110012