परिचय
हाल के बदलते परिवेश में सरसों उगाने वाले क्षेत्रों में स्तंभ गलन रोग आर्थिक रूप से चना में उपज को कम करने वाला एक महत्वपूर्ण रोग सिद्ध हो रहा है। इस रोग से ग्रसित खेतों में चने के उत्पादन में 5 – 70 प्रतिशत की कमी हो सकती है। यह रोग सरसों एवं सब्जियों के अलावा चने में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हरियाणा और राजस्थान में भारी बारिश के कारण से एक महत्वपूर्ण बीमारी के रूप में उभर रही है। यह रोग फसल के किसी भी अवस्था में प्रकट हो सकता है और आर्थिक नुकसान पहुँचा सकता है।
रोग के लक्षण
इस रोग के प्रारंभ में ग्रसित पौधें/टहनियां पीले पड़ने या मुरझाने लगते है जबकि बाकी पौधों के हिस्से हरे रंग के ही रहते है (क)। प्रारंभ में मिट्टी के पास वाले तनों पर पीले या भूरे रंग के धब्बे प्रकट होते है (ख)। इसके पश्चात् एक सफेद और रेशेदार फफूंद स्पष्ट रूप से टहनियों पर नजर आने लगता है (ग)। कवक विकसित होकर चले जाते हैं और फूलों का असमय झड़ना इसके संक्रमण का प्रमुख लक्षण हैं (घ)। इस रोग के अंतिम चरण में पूरे पौधों पर पीलापन, पत्तियों का गिरना और पौधों का मुरझाना आदि लक्षण दर्शित होते हैं और अंत में पौधों की मृत्यु हो जाती है। यह रोग मिट्टी जनित है। पौधों के तने पर सफेद माइसिलियम दिखाई देते हैं जो कि बाद में स्क्लेरोशिया के रूप में परिवर्तित होते हैं। बाद में जमीन पर गिर कर मिट्टी की ऊपरी सतह पर प्रारंभिक संक्रमण करते हैं और एपोथेशिया जैसी संरचना कर के बीजाणु उत्पन्न कर अगले मौसम में पौधों को संक्रमित कर के फसल नष्ट करते हैं (च)।
चना एक रबी फसल है जो कि चना – सरसों, चना – गेहूं फसल सह रोपण चक्र में उगायी जाती है और यह पाया गया है कि जब चना सरसों की फसल के पश्चात् बोया जाता है तो स्तंभ गलन रोग से होने वाली बीमारी ज्यादा गंभीर होती है। चना आमतौर पर कम वर्षा व कम नमी वाली मिट्टी में उगाया जाता है जो कि चना की खेती के लिए अनुकूल होता है। स्तंभ गलन रोग का संक्रमण फरवरी की महीने में अधिक होता है। घनी फसल, शुष्म जलवायु और नमी वातावरण कवक के विकास के लिए अनुकूल होती है। इस रोग का विकास एवं भयावहता बादलनुमा औसम में और अधिक तेजी से बढ़ती है तथा फसल को नष्ट कर देती है। इस अवस्था में फसल पर फफूंदनाशी का छिड़काव आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होता है।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- फसल चक्र के समय के साथ मिट्टी में स्तंभ गलन रोग के स्क्लेरोशिया सड़ जाते है और इसकी संख्या काफी कम हो जाती है। अत: स्तंभ रोग ग्रसित क्षेर्त्रों में गेहूं का फसल चक्र अपनाना चाहिए। पिछले वर्ष सरसों उगाये गए भूमि पर चना की फसल नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसका प्रकोप और बढ़ जाता है। उन खेतों में जहाँ इस रोग का प्रकोप काफी ज्यादा हो तीन साल तक चने तथा सरसों की खेती नहीं करनी चाहिए।
- गर्मी के मौसम में खेतों की गहरी जुताई करने से इसके स्क्लेरोशिया अदिक तापमान के कारण मर जाते है या अंकुरित नहीं होते है।
- खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए और बीजों की बुवाई जल जमाव रहित मिट्टी में करनी चाहिए।
- स्क्लेरोशिया को नष्ट करने के लिए किसी भी व्यापक स्पेक्ट्रम कवकरोधी जैसे कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी का पौधों एवं मिट्टी में छिड़काव करनी चाहिए।
बुवाई के समय
- इस रोग से बचने के लिए चने की प्रदेशीय संस्तुत प्रतिरोधी किस्में (G – 543, गौरव, पूसा – 261, जी. एल. 84012, जी. एल. 88223, जी. एल. के. 8824 और जी. एफ. 89 – 75, पूसा 2024, के ए के 2, पूसा 362, पूसा 256) का रोग ग्रसित क्षेत्रों में इस्तेमाल करना चाहिए।
- पौधों के बीच की उचित दूरी (30×10 सें. मी.) होनी चाहिए, जिससे की वायु का प्रवाह अच्छी तरह से हो सके और स्तंभ गलन रोग के फफूंद को उपयुक्त वातावरण न मिले।
- ट्राईकोडर्मा के उपलब्ध न होने पर स्तंभ गलन रोग रोकने के लिए कार्बेन्डाजिम या कार्बेन्डाजिम + थीरम (1 :1) के साथ बीजोपचार करना चाहिए।
- प्रदेशीय संस्तुत ट्राईकोडर्मा (@ 1 किग्रा./100 किग्रा) समृद्ध गोबर की खाद का उपयोग बुआई के समय करना चाहिए, जो स्केलेरोशीय को नष्ट करता है और उसके विकास को बधित करता है। संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद एवं पानी का उपयोग करना चाहिए।
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली