परिचय
आम भारत का मुख्य फल है जो विश्व में फलों के राजा के नाम विख्यात है। यह विटामिन ए, सी, कैल्सियम तथा फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है। देश में आम की लगभग 1000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। परंतु व्यापारिक स्तर पर अल्फासो, केसर, दशहरी, आम्रपाली, तोतापुरी, बनारसी और लंगड़ा प्रमुख हैं। आम का निर्यात कई समस्याओं के कारण पिछड़ा रहा है। जिनमें आम को प्रभावित करने वाले नाशीजीव कीट एवं रोग प्रमुख कर कारण है। इनके द्वारा आम के उत्पादन को लगभग 30 प्रतिशत हानि होती है। नाशीजीवों के नुकसान से बचाव के लिए टिकाऊ प्रबंधन तकनीकी राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, पूसा परिसर, नई दिल्ली द्वारा अवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी, गुजरात के सहयोग से विकसित की गई। यह तकनीकी किसानों के द्वारा बड़े पैमाने पर अपनाई जा रही है और इससे गुजरात को बागवान लाभान्वित हो रहे हैं। आम के बगीचे में नुकसान पहुँचाने वाले कीटों, रोगों और आई . पी. एम. का विवरण नीचे दिया जा रहा है।
प्रमुख नाशीजीव
आम का हॉपर कीट
यह आप प्रमुख कीट है इसके प्रकोप से आम के उत्पादन में भारी कमी होती है। यह साल भर बाग़ में रहते हैं, परंतु फूलों के आने के समय अधिक सक्रिय हो जाते हैं आमतौर से अधिक नम हवा इस कीट की लिए उपयुक्त होती है। इसके प्रौढ़ सुनहरी भूरे अथवा गहरे भूरे रंग और खूँटी के आकार के होते हैं। इसकी निम्फ भी भूरे रंग की होती है। इस कीट के निम्फ और प्रौढ़ दोनों ही पुष्पक्रम, फूलों और नये फलों की कोशिकाओं से रस चूसते हैं। इस कारण सभी प्रभावित भाग मुरझा जाते हैं और काली फफूंदी की परत जम जाती है जो फलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
थ्रिप्स
यह कीट आमतौर से अगस्त माह से नुकसान करना प्रारंभ करके दुसरा साल जून तक आम के पेड़ों पर बना रहता है। परंतु इसका प्रकोप सितंबर से नवंबर और आगामी अप्रैल के महीनों में अधिक होता है। मादा पत्तियों, फूलों एवं फलों पर अंडे देती है। यह कीट नई पत्तियों, शाखाओं, पुष्पक्रम व फलों पर सूक्ष्म घाव बनाकर रस चूस लेता है। इससे फलों की गुणवत्ता व पैदावार बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। इस कीट का जीवन चक्र 14 – 20 दिनों में पूरा होता है। थ्रिप्स से प्रभावित पत्तियां चांदी जैसे चमकने लगती है।
मिलीबग
यह कीट गंभीर रूप से फल को नुकसान करता है। इसके निम्फ और मादा दोनों शाखा, फल एवं फूलों की कोशिकाओं का द्रव चूसती है। जिससे प्रभावित फल थोड़े से झटके से नीचे गिर जाते हैं। इस कीट का प्रकोप बसंत ऋतु में अधिक होता है। यह कीट अपना जीवन चक्र एक साल में पूरा कर लेता है। इस कीट की मादा जमीन के अंदर अंडे देती है। इनमें से निम्फ निकल कर पेड़ों पर चढ़ जाते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं।
फल मक्खी
यह आम का एक प्रमुख कीट है। इस कीट का प्रकोप मार्च से शुरू हो जाता है। इसके प्रौढ़ लाल भूरे रंग के और पारदर्शी पंखों वाले होते हैं। जैसे ही फल पकने शुरू होते हैं प्रौढ़ मादा फूलों में ऊपरी परत के नीचे अंडे दे देती है। इससे फलों पर गहरे छेद हो जाते हैं तथा फल में कीड़े पनपने लगते हैं और फल सड़ कर गिर जाते हैं। इस कीट से प्रभावित फल खाने योग्य नहीं रहते। इस प्रकार फलों की गुणवत्ता एवं पैदावार दोनों ही प्रभावित होती हैं।
तना भेदक
यह कीट पुराने और उपेक्षित आम के बागों में पाया जाता है। इस कीट की मादा पेड़ की तने के दरारों में अंडे देती हैं। युवा सूंडी तने के मध्य में घुसकर ऊपर की तरफ चलते हुए सुरंग बनाकर नुकसान पहुँचाती है। इससे प्रभावित शाखाएं और तना सूखने लगते हैं। प्रौढ़ कीट भूरे रंग के भारी पंखों वाले होते हैं इस कीट का जीवन चक्र साल भर में पूरा होता है। अंतत: प्रभावित पेड़ सूख जाते हैं।
शाखा भेदक
यह आम का राष्ट्रव्यापी कीट है। इसकी मादा कोमल पत्तियों पर अंडे देती है। इन अण्डों में से सूंडियों निकल कर पत्तियों की मुख्य नस से होकर नई बढ़ती/उगती हूए शाखाओं को ग्रसित कर देती है। इस कारण शाखाओं की बढ़वार रूक जाती है और चरम डालियाँ एक सूखे हुए गुच्छे के रूप में परिवर्तित हो जाती है। सुंडी हल्के पीले नारंगी रंग की होती है। प्रौढ़ अवस्था में पंख हल्के भूरे स्लेटी रंग के होते हैं और इनमें छोटी – छोटी धारियां होती हैं और इनके पंखों का आकार 17.5 मिमी. तक पाया जाता है। यह कीट एक साल में चार पीढ़ियाँ पैदा करता है।
पर्ण चूर्ण
यह रोग एक प्रकार की फफूंद से होता है। इससे प्रभावित पत्तियों, पुष्पक्रम एवं फलों के ऊपरी सतह पर फफूंद चूर्ण, के रूप में दिखाई देती है। इस वजह से सभी प्रभावित भाग मुरझाने लगते हैं। शुरू की अवस्था में नए फल फफूंद जनित चूर्ण से पूरी तरह से ढक जाते हैं। पूर्ण विकसित प्रभावित फलों और धारियां बन जाती है जिससे फल फट जाते हैं। इस कारण से आम की ऊपज को भारी हानि होती है। इस रोग के बीजाणु हवा द्वारा फ़ैल कर स्वस्थ पौधों को प्रभावित करते हैं।
आम विकृति
यह रोग नर्सरी अवस्था में और पेड़ों में फूल आने के समय नुकसान पहुँचाता है। नर्सरी अवस्था से प्रभावित पौधे में वानस्पतिक वृद्धि असामान्य जो जाती है जिससे इंटर नोड मोती और आकार में छोटी हो जाती है। पेड़ों में फूल आने पर कलियाँ वानस्पतिक रूप से परिवर्तित हो जाती है और बड़ी संख्या में छोटी – छोटी पत्तियों एवं तनों के रूप में झाड़ू जैसा कदाचित खूटी है और इनका रंग हरा हो जाता है। इस फफूंद के बीजाणु सूक्ष्म और वृहत दोनों ही आकर के होते हैं और इनका फैलाव कलम करने के औजार अथवा निरोपण से हो सकता है।
एन्थ्राक्नोज
इस रोग से पौधे के लगभग सभी भाग जैसे कि नयी पत्तियां, शाखाएँ, पुष्पक्रम और फल प्रभावित होते हैं। जिसके कारण प्रभावित पत्तियां झुलसने, फूल मुरझाने और फल सड़ ने लगते हैं। प्रभावित पत्तियों पर छोटे छेद जैसे अंडाकार अथवा कोणीय, भूरे से काले रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये छोटे धब्बेदार दाग फूलों पर कालापन लिए बढ़ते जाते हैं और फूलों को गिराकर नष्ट कर देते हैं। इस रोग रोगजनक टहनियों और नयी शाखाओं पर काला रस पैदा करते हैं जो पके फलों के ऊपर हल्के पिचके हुए भूरे काले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। वर्ष और नम इस रोग के विकास के लिए अनुकूल होते हैं। इस रोग के बीजाणु वर्ष और सिंचाई के पानी के साथ फैलते हैं। इसके बीजाणु स्वस्थ आम के पौधों के भागों में घुसकर ऊत्तकों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार अगले मौसम तक ये रोगजनक जीवित रहते हैं।
आम के लिए आई. पी. एम. से संबंधित प्रभावी बिन्दु और आवश्यकता अनुसार कीटनाशकों के छिड़काव से सिफारिशें
माह | प्रबंधन तकनीक |
लक्ष्य नाशीजीव |
अक्टूबर |
कॉपर आक्सीक्लोराईड (4 ग्रा./ली. पानी) का छिड़काव |
तुषार टहनी रोग एवं अन्य पत्ती वाले रोग |
वार्टिसिलियम लेकैनी (109 स्पोर्स/मिली) का 2 ग्रा/ली. पानी की दर से तनों और पत्तियों पर छिड़काव |
हॉपर कीट, पत्ती – गाल, मिज एवं थ्रिप्स |
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इंडोक्सकार्ब (2.8 मिली/ ली. पानी) |
हॉपर कीट, पत्ती – गाल मिज, एवं थ्रिप्स |
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मेटाराइजीयिम एनिलोपाली ( 1 ग्राम. 109 स्पोर्स/मिली) 2 ग्रा./ली, पानी के साथ बगीचे की गुड़ाई के साथ भूमि पर छिड़काव |
फल मक्खी एवं भूमिजनित नाशीजीव |
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नवंबर |
बाबेरिया बेसियाना (109 स्पोर्स/मिली)का 2 ग्रा./ ली पानी की दर से पत्तियों पर छिड़काव |
हॉपर कीट एवं थ्रिप्स |
कार्बेन्डिजम (0.5 ग्रा/ली. पानी) का छिड़काव |
तुषार टहनी रोग एवं एन्थ्राक्नोज |
|
दिसंबर (कली बनने की शुरूआत) |
पेड़ों के मध्य में रोशनी के लिए शाखाओं की छंटाई एवं आर्थिक हानि स्तर होने पर लैंदा सैहालोथरिन (0.3 मिली/ली. पानी) का फूलों पर छिड़काव कॉपरआक्सीक्लोराइड का पेस्ट पानी में बनाकर (1:10) छंटाई की गई शाखाओं पर लगाएं कार्बेन्डाजिम (0.5 ग्रा./ली. पानी) का छिड़काव |
हॉपर कीट, बड माईट थ्रिप्स एवं पत्ती मोड़क तुषार टहनी रोग एवं एन्थ्राक्नोज |
जनवरी (पैनिकल आने के समय) |
छंटाई किए हुए पेड़ों पर कार्बेंन्डाजम (0.5 ग्रा./ली.) एवं प्रोफेनाफास (1 मिली/ली. पानी) फलों वाले वृक्षों पर इन्डोक्साकाब (2.8 मिली/1 ली. पानी) एवं सल्फर (3 ग्रा./ली. पानी) |
तुषार टहनी रोग एवं पत्ती खाने वाले सूंडी हॉपर कीट, थ्रिप्स बलोसम मिज एवं पर्ण चूर्ण रोग। |
फ़रवरी (50 प्रतिशत फूल आने पर) |
फल आने के बाद इमिडाक्लोरारिड (3 मिली/10 ली पानी) एवं हेक्सकोनाजोल (0.5 मिली/1 ली पानी) अथवा प्रोपाकोनाजोल (0.5 मिली/ली पानी) |
हॉपर कीट, थ्रिप्स बलोसम मिज एवं पर्ण चूर्ण रोग एन्थ्राक्नोज |
मार्च |
प्रोफेनोफास (1 मिली/ली पानी) एवं ट्राइडेमेफोन (1 मिली/ली. पानी) अथवा थियामेथेक्सम (3 मिली/10ली. पानी) एवं ट्राइडेमेफोन (1 मिली/ली पानी) गिरे फलों का नष्ट करना मार्च के अंत मेथायल यूजिनाल से सोखी हुई लकड़ी के ब्लॉक (2 इंच) को प्लास्टिक बोतल अथवा बाजार से निर्मित ट्रैप (10/हे.) में रखकर रस्सी से बांधकर 3 – 5 |
हॉपर कीट, थ्रिप्स बलोसम मिज तुषार टहनी रोग एवं एन्थ्राक्नोज फल मक्खी |
अप्रैल |
प्रोफेनोस सैपमेंथ्रिन (मिश्रण 1 मिली/ली पानी) एवं कार्बेन्डाजिम (0.5 ग्रा/ली पानी) |
हॉपर कीट, थ्रिप्स बलोस्म मिज एन्थ्राक्नोज तुषार टहनी रोग एवं फल मक्खी |
मई |
गिरे हुए फलों का एकत्र करके नष्ट करना मिथाएल यूजिनाल ट्रैप लगाना गर्म पानी में 48 सें. ग्रे. पर 1 घंटे तक तोड़े हुए फलों का उपचार |
फल मक्खी एन्थ्राक्नोज, तना शिरा गलन एवं स्कैब |
जून |
मई माह के पद्धतियों को अपनायें और गहरी जुताई (10 – 15 सें. मी.) कर |
फल मक्खी एन्थ्राक्नोज, तना शिरा गलन एवं स्कैब |
आम के उद्यान में आई. पी. एम. की आर्थिकी
पैरामीटर |
केसर |
अल्फासो |
||
आई.पी एम. |
गैर – आई. पी.एम |
आई.पी एम. |
गैर – आई. पी.एम |
|
लागत लाभ अनुपात |
1:4:55 |
1:2:36 |
1:4:90 |
1:2:32 |
कुल उत्पादन लागत (रू./हे.) |
25814 |
34518 |
33377 |
47231 |
कुल आमदनी (रू./हे.) |
117675 |
81525 |
163800 |
109800 |
शुद्ध लाभ (रू./हे.) |
91861 |
47007 |
130423 |
62569 |
औसत पैदावार (किग्रा./हे.) |
7845 |
4535 |
8190 |
5490 |
फलों की संख्या (प्रति वृक्ष) |
311 |
205 |
328 |
220 |
नाशीजीवों के छिड़काव की संख्या |
6 |
10 |
6 |
12 |
लेखन: डी.बी.आहूजा, आर.वी.सिंह, एस.पी. सक्सेना, हेमंत शर्मा, जी. बी. कलेरिया
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र
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