परजीवी एवं परपोषी
प्रयोगशाला में पोषित भोजनदायी कीड़ें : सी सेफ्लोनिका, हैलीकोवर्पा आर्मिजेरा
परजीवी: टी. किलोनिस , टी. जेपोनिकम, किलोनिस ब्लाक्बरनी
परभक्षी: क्राय्सोपर्ला कार्निया
जैव नियंत्रक संग्रह का विकास (एंटोमोपैथोजनस)
सूक्ष्मजीवियों का सुरक्षा कोष, ट्रैकोडर्मा विरिडी, टी. हारजियेनम, टी. पेलुटीफेरम ग्लायोक्लेडीयम डेलीक्यूसेंस, पेनिसिलियम फ्यूनिक्यूलोसम, कीटोमियम ग्लबोसम, ब्यूवेरिया बेसियाना, मेतारहीजियम एनिसोपली, नोमुरिया रिले, बेसिलस थ्रुजैनेसिस, स्यूडोमोनास फ्लूरोसेंस को विकसित एवं प्रतिपादित किया गया
ट्रैकोडर्मा विरिडी, टी. हारजियेनम, ब्यूवेरिया बेसियाना, मेतारहीजियम एनिसोपली के बहुत्पादन के मूलरूप विकसित किये गए।
आई पी एम कार्यकर्मों के लिए जैव घटक उत्पादन गतिविधियाँ
विभिन्न सहयोगी संस्थानों एवं आई पी एम परीक्षणों में सूक्षम जीवियों की आपूर्ति हेतु सूक्षम जीवेयों का उत्पादन लघु पैमाने पर प्रयोगशाला में ही किया जाता है।
जैव घटकों का कीटों के निमित मूल्यांकन
बी. बेसियाना संवर्धन प्रजाति की विशिष्टता का सत्यापन केंद्र में किया गया. निम्न पर्यवेक्षण केंद्र में किये गए: सी आई सी आर, नागपुर स्ट्रेन व्हाईट फ्लाई के निमित प्रभावकारी पाया गया। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना स्ट्रेन बैंगन के फोम्फोसिस फ्रूट रोट के निमित प्रभावी पाया गया परन्तु हेलिकोवेर्पा अर्मिजेरा के प्रति ज्यादा प्रभावी नहीं था, जबकि इस केंद्र का स्ट्रेन हेलिकोवेर्पा अर्मिजेरा के प्रति बहुत अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ।
ट्राईकोडर्मा के 30 अधिक पृथ्कों की जांच
10, 13, 26, 28 एवं 29 पृथक ऍफ़ ओसिपोरुम ऍफ़ प्रजाति वसिंफेक्टाम के प्रति प्रभावी पाए गए।
10, 12, 21, 22, 23, 25 एवं 26 पृथक फ्युसरियम सिसेरी के प्रति प्रभावी पाए गए।
1,14,18,1 9, 20 एवं 26 पृथक स्केलोर्शिं रोल्सइए के प्रति प्रभावी पाए गए।
धान में मकड़ों के संरक्षण के लिए स्ट्रा बण्डल तकनीक का विकास
धान में मकड़ों के संवर्धन और संरक्षण के लिए पुआल बंडलों का इस्तेमाल करके एक व्यावहारिक तकनीक विकसित की गयी ( लंबाई में 3 फीट और व्यास में 10 इंच)। इन बंडलों को मकड़ों एवं मित्र कीटों के साथ आवेशित करने हेतु ज्वर के खेतों में रखा गया। आवेशित होने के 15 दिन बाद इन बंडलों को 20 दिन पहले प्रतिरोपित अंकुर धान के खेतों में बम्बू छड़ियों के साथ लम्बवत 20 बण्डल प्रति हेक्टेयर इस तरह से स्थापित किया जाये कि बण्डल का निचला हिस्सा पानी के स्तर से 6 इंच ऊपर रह सके. गैर आई पी एम कि तुलना में इस तकनीक के प्रयोग से मकड़ों कि संख्या में 15.3 लाख प्रति हेक्टेयर मकड़ों कि वृद्धि हुई जो कि पहले 4.9 लाख प्रति हेक्टेयर थी।
मिली बग (फिनेकोसस सोलेनोप्सिस ) पर दो नए परजीवियों को रिकोर्ड किया गया
जुलाई और अगस्त 2008 के दौरान पूसा कैम्पस व आस पास के इलाकों में किये गए सर्वेक्षण में दो परजीवियों एनसिस बम्बावालेई मिली बग पर व पार्थेनियम पर फिनोकोकस सोलेनोप्सिस में ह्य्मेनोप्तेरोउस परजीवी के कोकून कि उपस्थिति के संकेत मिले। इसकी परजीव्त्ता कि सीमा 20 से 70% थी। उसी वर्ष परभणी (महारष्ट्र) की पांच अन्य तहसीलों में किये सर्वेक्षण में एक अन्य ह्य्मेनोप्तेरोउस परजीवी अन्फ़सिअतिवेन्त्रिस गिरौल्ट की उपस्थिति कपास व पार्थेनियम में मिली बग पर पायी गयी। दोनों परजीवियों ने कपास में मिली बग के पर्याक्रमण को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया है व उत्तर और मध्य क्षेत्र के कपास के बढ़ते क्षेत्रों में इन पर्जीवेयों की उपस्थिति दर्ज की गयी है।
जैव नियंत्रण प्रयोगशाला और कंसल्टेंसी की स्थापना
50 टन वार्षिक से अधिक ट्राईकोडरमा व स्यूडोमोनास के उत्पादन के लिए एक जैव नियंत्रण प्रयोगशाला श्री राम सोलवेंट प्राईवेट लिमिटेड , जसपुर (उत्तरांचल) में स्थापित की गयी। राजकीय जैव नियंत्रण प्रयोगशाला, सिरसा, हरियाणा में स्थापित की गयी जो की कोर्सायरा , ट्राईकोडरमा, ट्राईकोग्रामा, बेवेरिया बेसियाना और मेटारहिजियम के बहु उत्पादन के किये परामर्श प्रदान करती है।
फेरोमोन
एच अर्मिजेरा में वेरिएबल लोडिंग (1, 5 और 10 एम् जी ) और अनुपात (9 7: 3, 9 3: 7 and 90: 10 जेड -11 और जेड -9 – हेक्सदेसेनल ) पर सेक्स फेरोमोन की उपस्थिति की पुष्टि की गयी। एक अनुपात में की गयी कीट निगरानी से कीट की संख्या का केवल कुछ भाग का अनुमान होता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है की कीटों की प्रभावी निगरानी के लिए अधिक मात्रा में इनका उपयोग किया जाये।
प्रशिक्षण
10 दिन के ग्यारह प्रशिक्षण (एक प्रशिक्षण प्रति वर्ष) सार्वजानिक एवं निजी उद्यमियों के लिए जैव नियंत्रकों के बहु उत्पादन तकनीक के लिए आयोजित किये गए। इस प्रशिक्षण का उद्धेश्य वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं, उद्यमियों, युवाओं को जैव नियंत्रकों के बहु उत्पादन की सटीक जानकारी देना था जो कि जैव नियंत्रकों के उत्पादन में अपनी इकाइयाँ स्थापित करना चाहते थे एवं 200 से अधिक लोगों ने इस प्रशिक्षण से लाभ लिया था।
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली
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