परिचय
भारत में ऊंटनी के दूध को महत्व देने के लिए कई शोध किये गए हैं। इनमें एफ.एस.एस.ए.आई. (फूड सेफ्टी एंड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी) के प्रयोगों से प्रमाणित हुआ है कि ऊंटनी के दूध को मानव आहार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। ऊंटनी के दूध में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। एफ.एस.एस.ए.आई. के अनुसार ऊंटनी के दूध में 3 प्रतिशत वसा और 4.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
शुष्क और अर्धशुष्क भूभागों के विकास में उष्ट्र प्रजाति के महत्व को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा 1984 में बीकानेर (राजस्थान) में स्थापित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र देश का एक महत्वपर्ण अनसंधान केंद्र होने के नाते उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास के दायित्व से परिचित था। इस दिशा में भाकअनप–राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र द्वारा सैंकडों नमूने एफ.एस.एस.ए.आई. को भेजे गए। जहां काफी रिसर्च के बाद ऊंटनी के दूध को मानकता प्रदान की गई।
ऊंटनी के दूध के बारे में भ्रांतियां
गौरतलब बात यह है कि ऊंटनी के दूध के विषय में कई भ्रांतियां फैली थीं। ऊंटनी के दूध को अन्य पशुओं के दूध के साथ मिलाकर बेचने पर जेल जाने का प्रकरण भी सामने आया था। परन्तु एफ.एस.एस.ए.आई. द्वारा ऊंटनी के दूध को मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताने के बाद इसकी बिक्री खुलेआम की जा सकेगी। भविष्य में उष्ट्र पालन एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभरकर सामने आएगा।
उष्ट्र दूध का प्रयोग राजस्थान, गुजरात व हरियाणा प्रान्त में काफी समय से लोगों द्वारा चाय, खीर और घेवर में किया जा रहा है। अतः ऊंटनी के दूध को प्रोत्साहन देने के लिए कैमल मिल्क पार्लर’ 2006 में और वर्ष 2008 में कैमल डेयरी मुहिम प्रारंभ हुई। एक शोध द्वारा ज्ञात हुआ कि ऊंटनी का दूध मधुमेह और क्षय रोगों के प्रबंधन में कारगर सिद्ध हुआ और साथ ही पीलिया, फैटी लीवर, ड्रॉप्सी, एड्स जैसी खतरनाक रोगों में भी यह इम्यूनो सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में मददगार साबित हुआ है।
लेखन: सोनिया चौहान खेती