परिचय
अजोला जल सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाली जलीय फर्न है। यह छोटे-छोटे समूह में सघन हरित गुच्छे की तरह तैरती एवं फैलती है। भारत में इसकी प्रजाति अजोला पिन्नाटा एवं एनाबियाना काफी उपयुक्त पाई गई है। यह अधिक गर्मी सहन करने वाली किस्म है। इसकी खेती काफी वृहद रूप से चीन, वियतनाम और फिलीपीन्स में की जाती है। दक्षिण भारत में खासकर तमिलनाडु और केरल एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली, अजमेर और जयपुर में काफी क्षेत्रों में इसका उत्पादन किया जा रहा है। अजोला कम लागत का, पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है। शुष्क भार के आधार पर इसमें 25-35 प्रतिशत प्रोटीन, 10-12 प्रतिशत खनिज पदार्थ एवं 7-10 प्रतिशत अमीनो अम्ल पाए जाते हैं। यह शीघ्र वृद्धि वाली किस्म है। बुआई के पश्चात इसका उत्पादन 8-10 दिनों के अंदर प्राप्त होना शुरू हो जाता है।
अज़ोला में ज्यादातर सभी आवश्यक अमीनो अम्ल,मेंगनी प्रोवोमोरिक्स, बायो पॉलीमर्स तथा बीटा केरोटीन पाए जाते हैं। इन्हीं जैव रसायनों से भरपूर होने के कारण यह पशुओं के लिये एक आदर्श जैविक पूरक आहार कहा जा सकता है। पशु, अजोला को आसानी से पचा सकते हैं, क्योंकि इसमें रेशा तथा लिग्निन कम मात्रा में पाया जाता है। अजोला को पूरक आहार के रूप में भी प्रयोग करने पर 15-20 प्रतिशत कुल दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। देश के विभिन्न प्रदेशों एवं क्षेत्रों में चारे एवं पोषक तत्वों की कमी को पूर्ण करने के लिये अजोला उत्पादन को वृहद स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह जल के स्थिर स्रोतों में प्राकृतिक रूप से भी उगाया जा रहा है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना ग्रामीण जैवसंसाधनों का उपयोग कर किसानों एवं लघु उद्यमियों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान की शुरुआत की गई थी। इस परियोजना के अंतर्गत दो मुख्य घटकों पर ध्यान देने की बात स्वीकार की गई।
अजोला का चुनाव खासकर इसलिए किया गया क्योंकि इसका पशुओं के लिए एक संतुलित आहार के रूप में प्रयोग किया गया है। इसमें प्रोटीन की प्रचुर मात्रा, खनिज पदार्थ एवं अमीनो अम्ल भी पाए जाते हैं। अजोला खिलाने से न केवल पशु स्वस्थ एवं निरोग रहता है बल्कि दूध की उत्पादकता में भी 10-15 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है। इसके अलावा शारीरिक विकास में भी यह काफी सहायक सिद्ध हुआ है। तीनों चयनित केन्द्रों पर अजोला के प्रदर्शन की एक-एक इकाई विकसित की गई है।
सारणी 1. अजोला का रासायनिक संघटन (शुष्क भार आधार पर)
क्र.स. |
पोषक तत्व |
मात्रा (प्रतिशत) |
1. |
प्रोटीन |
22.5 |
2. |
रेशा |
12.5 |
3. |
वसा |
03.2 |
4. |
कार्बोहाइड्रेट |
50.0 |
|
खनिज लवण |
|
5. |
कैल्शियम |
1.16 |
6. |
फॉस्फोरस |
1.29 |
7. |
मैग्नीशियम |
0.35 |
सूक्ष्म तत्व |
||
1. |
मैंगनीज |
174.42 |
2. |
जिंक/जस्ता |
87.59 |
3. |
कॉपर/तांबा |
16.74 |
उत्पादन विधि
- कृत्रिम रूप से अजोला के उत्पादन हेतु 15-20 सें.मी. गहरे पानी के गड्ढे की आवश्यकता होती है।
- गड्ढे का आकार 4 मीटर लंबा, 1.5 मीटर चौड़ा तथा 20 सेंमी. गहरा उपयुक्त होता है।
- इसके बाद गड्ढे की सतह पर प्लास्टिक शीट बिछा देते हैं, जिससे आसपास लगे पेड़ों की जड़े गड्ढे में न जाएं। प्लास्टिक के लगे होने से गड्ढे में रिसाव द्वारा बाहर का पानी नहीं पहुंचता तथा गड्ढे का तापमान भी नियंत्रित रहता है।
- गड्ढे में प्लास्टिक शीट इस प्रकार से बिछानी चाहिए, जिससे उसमें परत न पड़े।
- लगभग 10-15 कि.ग्रा. छनी हुई मिट्टी समान रूप से पॉलीथीन के ऊपर डाल देते हैं।
- इसके बाद 5 कि.ग्रा. गोबर, 20 ग्राम अजोफर्ट या एस.एस.पी. का 10 लीटर पानी में घोल बनाते हैं तथा इस घोल को गड्ढे में डालते हैं। इसके बाद और अधिक पानी को गड्ढे में डालते हैं, जिससे पानी का स्तर 8 सें.मी. हो जाए।
- लगभग 1-2 कि.ग्रा. ताजा रोगमुक्त अजोला का बीज गड्ढे में डालते हैं।
- अजोला 7-10 दिनों में पूर्ण वृद्धि प्राप्त कर गड्ढे में भर जाता है। इस प्रकार लगभग | 4 वर्ग मीटर के गड्ढे से 2 कि.ग्रा. अजोला प्रतिदिन प्राप्त कर सकते हैं।
- प्रत्येक 7 दिनों के अंतराल पर गोबर 2 कि.ग्रा., अजोफॉस 25 ग्राम, 20 ग्राम अजोफर्ट को 2 लीटर पानी में घोलकर गड्ढे में डालते रहना चाहिए, जिससे अजोला का उत्पादन अधिक एवं टिकाऊ बना रहता है।
पोषक अजोला
अजोला, अजोसी कुल का एक सदस्य है, जो कि मूलतः पानी में उगने वाला फर्न है। यह नम, आर्द्र एवं गर्म जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है। अजोला अपनी वृद्धि के लिए वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग करता है, जो कि पौधे में संरक्षित रहती है। परिणामस्वरूप यह प्रोटीन से भरपूर होता है। सारणी-1 से यह ज्ञात होता है कि अजोला में खनिज तत्वों जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैंगनीज, जस्ता तथा तांबा आदि की मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए तथा विटामिन बी, काफी मात्रा में पाया जाता है। साथ ही साथ इसमें सभी । आवश्यक अमीनो अम्ल पर्याप्त मात्रा में होते हैं। दुधारू पशुओं जैसे-गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि के आहार में सस्ते जैविक पूरक राशन के रूप में अजोला का उपयोग कर प्रोटीन तथा हरे चारे की कमी को पूरा किया जा सकता है।
सारणी 2. अजोला से प्रति इकाई लाभ/लागत का ब्यौरा
उत्पाद | मात्रा |
लाभ/लागत (रुपये) |
लागत |
||
क्यारी बनाने की मजदूरी |
1 मजदूर 285/- रुपये |
285/- रुपये |
छाया करने के लिए ग्रीन नेट, छप्पर आदि |
20 वर्ग मीटर (दर 16 प्रति मीटर) |
320/- रुपये |
प्लास्टिक शीट (काले रंग की) |
25 मीटर (दर 18 रुपये प्रति मीटर) |
450/- रुपये |
गोबर ताजा |
25 कि.ग्रा. (दर 2 प्रति कि.ग्रा.) |
50/- रुपये |
अजोला बीज |
5 कि.ग्रा. (50 रुपये प्रति कि.ग्रा.) |
250/- रुपये |
कुल लागत |
– |
1355/- रुपये |
अजोला से लाभ |
प्रतिदिन कुल उत्पादन (5 क्यारियों से), 2.5 कि.ग्रा. |
125 रुपये प्रतिदिन की कमाई (37,500 रुपये का शुद्ध लाभ प्रतिवर्ष) |
हरे चारे की बचत |
15X3 |
45 रुपये की बचत प्रतिदिन |
छनाई
अजोला को एक सें.मी. वर्गाकार छिद्रयुक्त प्लास्टिक की छलनी के द्वारा निकाला जाता है। निकालते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसमें मिट्टी व गोबर का घोल न आ पाए।
कटाई
- अजोला 8-10 दिनों में तैयार हो जाता है। इसे प्लास्टिक की छलनी से जिसके सुराख एक सें.मी. आकार के हों, निकालना चाहिए ताकि पानी गड्ढे में ही रहे।
- आधी बाल्टी पानी में अजोला को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। उसके बाद ही इसका प्रयोग दुधारू पशुओं के लिए किया जाना चाहिए, ताकि गोबर की गंध खत्म हो जाए, फिर पशु इसे स्वाद से खाते हैं।
- 5×1.5 मीटर के गड्ढे से लगभग डेढ़ से दो कि.ग्रा. अजोला प्रतिदिन प्राप्त किया जा सकता है।
उपयोग में सावधानियां
- पौधा परिपक्व स्थिति में न आए, इसका ध्यान रखते हैं।
- गड्ढे में जल का तापमान 30° सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए। अधिक तापमान होने पर छप्पर या अन्य साधनों से तापमान को नियंत्रित रखना चाहिए।
- जैव पदार्थ को प्रतिदिन या एक दिन के अंतराल पर निकाल लेना चाहिए, जिससे अजोला अधिक घना न हो। अजोला के गड्ढे में जल का पी-एच प्रतिदिन देखते रहना चाहिए, जिससे कि पी-एच मान 5.5 से 7.5 हो।
- बीज को कवकनाशी तथा कीटनाशी के द्वारा शोधित करना चाहिए।
- तीन माह के अंतराल पर अजोला की मिट्टी एवं पानी को बदल देना चाहिए। इसके उपरांत गड्ढे में पॉलीथीन को निकाल कर साफ कर लेना चाहिए एवं उसमें नई मिट्टी एवं वर्मीकम्पोस्ट 10-15 कि.ग्रा. पुनः शीट पर समान रूप से फैलाकर फिर से गोबर का घोल बनाकर डाल दें और साफ अजोला डालें, जिससे अजोला का उत्पादन समान रूप से मिलता रहे।
- बीच-बीच में साफ पानी का स्तर कम होने पर अजोला के गड्ढे में पानी डालकर इसका स्तर 5-6 इंच तक बनाए रखना चाहिए।
- अजोला गड्ढे से निकाली गई मिट्टी एवं पानी को फेंकने की बजाए अपने बाग एवं खेतों में डालें, जिससे वो एक जैविक खाद के रूप में मिट्टी को मिलेगी एवं इसके पौष्टिक तत्व से जमीन को उपजाऊ बनाया जा सके।
- कीटनाशक का प्रयोग किए गए गड्ढे से निकाले गये जैव पदार्थ को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- अजोला को पशु आहार में 10-30 प्रतिशत (उपलब्धता के आधार पर) के बीच देना चाहिए। इसे सिर्फ पूरक के रूप में उपयोग करना चाहिए।
उत्पादन प्रशिक्षण
अजोला की उत्पादन विधि का प्रशिक्षण ग्रामीण महिलाओं, कृषकों, पशुपालकों, मछली पालकों, मुर्गीपालकों, बेरोजगार युवाओं कों के.वी.के. के माध्यम से प्रदान किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य जागरूक एवं प्रगतिशील किसानों को करके सीखने की विधि अपनाकर प्रशिक्षित करना है, ताकि वे आगे प्रशिक्षार्थी के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा सके। कृषि विज्ञान केन्द्र, पाली द्वारा पिछले 4 वर्षों में विभिन्न केन्द्रों पर 55 प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें 833 कृषक किसानों एवं 542 महिलाओं ने भाग लिया एवं लाभान्वित हुए। इस तरह 1375 किसानों एवं ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। इस प्रशिक्षण के फलस्वरूप कई किसानों ने अपने प्रक्षेत्र पर अजोला को लगाया एवं इसका उपयोग वे गाय, बकरी, भेड़, शूकर, मछली, मुर्गी एवं घोड़ों को खिलाने में कर रहे हैं। यह पाया गया कि इसको पशु चाव से खाते हैं।
लाभ-लागत विश्लेषण
अजोला की लागत देखें तो बहुत ही कम खर्चे में अधिक मुनाफा है, क्योंकि इसमें कोई ज्यादा पैसे लगाने की जरूरत नहीं होती है। किसान अपने घर एवं प्रक्षेत्र में छायादार जगह पर इसका उत्पादन कर सकते हैं, क्योंकि इसमें सिर्फ एक प्लास्टिक शीट की जरूरत पड़ती है, क्यारी में बिछाने के लिए। अजोला से देखा जाये तो प्रतिवर्ष लगभग 37,500 रुपये का शुद्ध लाभ मिल सकता है।
इस प्रकार लाभ-लागत का विवरण सारणी-2 में दिया गया है।
सारणी 3. अजोला को पशुओं को खिलाने से उनके उत्पादन में वृद्धि एवं लाभ
पशु |
मात्रा |
वृद्धि शरीर भार प्रतिशत/उत्पादन |
गाय |
1.5 कि.ग्रा. प्रति दिन |
15 प्रतिशत |
भैंस |
1.5 कि.ग्रा. प्रति दिन |
12 प्रतिशत |
बकरी |
1.0 कि.ग्रा. प्रति दिन |
15.9 प्रतिशत |
भेड़ |
1.0 कि.ग्रा. प्रति दिन |
16.0 प्रतिशत |
मुर्गी |
150 ग्राम प्रति दिन |
12.5 प्रतिशत |
शूकर |
2.0 कि.ग्रा. प्रति दिन |
20.0 प्रतिशत |
घोड़ा |
1.5 कि.ग्रा. प्रति दिन |
11.5 प्रतिशत |
लाभ
- अजोला को गाय, भैंस, मुर्गी, भेड़, बकरी बड़े चाव से खाते हैं एयर आसानी से पचते हैं, जिसके फलस्वरूप दुग्ध उत्पादन में 10-15 प्रतिशत वृद्धि पायी गयी है एवं एक माह लगातार नियमित रूप से खिलाने से बकरी, शूकर, मुर्गी के वजन में लगभग 25-30 प्रतिशत तक वृद्धि पायी गयी है।
- अजोला का प्रयोग नील-हरित शैवाल (साइनोबैक्टीरिया) के साथ धान के खेत में करने से धान के उत्पादन तथा उत्पादकता में 25-30 प्रतिशत की वृद्धि पायी गयी।
- इसके साथ-साथ अजोला की उत्पादन विधि इतनी आसान व सरल है कि घर की महिलायें भी इसका उत्पादन कर सकती हैं। गोपशुओं एवं छोटे जानवरों जैसे बकरी, मुर्गी, बत्तख, शूकर के लिए इसका उपयोग कर कम समय में उनका औसत वजन बढ़ाकर अच्छी आमदनी की प्राप्ति कर सकते हैं।
- धान के खेत में अजोला का प्रयोग एक जैविक खाद के रूप में पाया गया है, जिसके फलस्वरूप मृदा में जैविक कार्बन की वृद्धि हुई एवं मिट्टी की उर्वरता बढ़ी है। यह कृषि को दीर्धकालीन एवं शुद्ध वातावरण बनाने में सहायक सिद्ध हुआ है।
पशु आहार में लाभ
अजोला संपूर्ण पोषक तत्वों का खजाना है, जिससे पशुओं के सभी पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। पशुओं को नियमित अजोला खिलाने से उनके उत्पादन में वृद्धि होने के साथ-साथ उनके शरीर में भी वृद्धि होती है तथा पशु स्वस्थ रहते हैं। सबसे अधिक फायदा गाय में पाया गया है, क्योंकि गाय चमड़ा, कपड़े, मिट्टी आदि नहीं खाती। इसका मुख्य कारण गाय को संतुलित चारा नहीं खिलाने पर उसके शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे वह चमड़ा, चप्पल, कपड़े व पॉलीथीन को खाती है। सर्वे में देखा गया कि जिस गाय को प्रतिदिन अजोला खिलाया वह इन सबको नहीं खाती है। का पशुओं व जानवरों के शरीर पर प्रभाव सारणी-3 में दिया गया है।
लेखन: हेमलता सैनी और मोती लाल मीणा
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
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