भूमिका
बच एरेसी (Araceae) कुल का एक पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम एकोरस केलमस’ है। संस्कृत में इसका नाम बच बोलना,शदग्रंथा-छ: गांठों वाला, उग्रगंधा, तीखी वैखण्ड, बसुन्बा चिरपिति सुगंध है। इसका तना (राइजोम) बहुशाखित व भूमिगत होता है। पत्तियां रेखाकार से भालाकार, नुकीली मोटी मध्य शिरा युक्त होती हैं। इसका पुष्पक्रम 4.8 से.मी. का स्पेडिक्स होता है। इसके फूल हरापन लिए पीले होते हैं तथा इसके फल लाल तथा गोल होते हैं। बच का पौधा संपूर्ण भारत वर्ष में मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार आदि प्रदेशों में पाया जाता है। मध्यप्रदेश में विंध्य पठारी प्रदेश, नर्मदा, सोन घाटी, सतपुड़ा मेकल प्रदेश आदि में यह बहुतायत में पाया जाता है। नदी-नालों के किनारे तथा दलदली एवं गीली जगह इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त होती है।
उपयोग
बच के राइजोम का तेल ग्रेस्ट्रिक, श्वास रोगों में, बदहजमी, दस्त, मूत्र एवं गर्भ रोगों में, हिस्टीरिया एवं खांसी इत्यादि रोगों में प्रयुक्त होता है। बच के राइजोम से बनाई जाने वाली प्रमुख औषधियां इस लेख के अंत में सारणी क्र.1 में दिर्शायी गई है।
जलवायु
जिन क्षेत्रों का तापमान 10° से 38° सेल्सियस तथा जहां वार्षिक वर्षा 70 से.मी. से 250 से.मी. तक होती हो, वे बच की खेती के लिए उपयुक्त होते हैं।
मिट्टी
बच की खेती के लिए बालूई दोमट मिट्टी, जहां सुनिश्चित सिंचाई व्यवस्था हो अथवा जहां पानी खड़ा रहता हो अधिक उपयुक्त होती है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था न हो, वहां बच की खेती नहीं करनी चाहिए।
भूमि की तैयारी
बच की खेती के लिए वर्षा से पहले भूमि की दो-तीन बार अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए। रोपाई से पहले भूमि की तैयारी धान की तैयारी की तरह की जानी चाहिए। भूमि को थोड़ी दलदली बनाया जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा।
बच की बिजाई अथवा संवर्धन
बच की खेती के लिए इसके राइजोम को लगाया जाता है। इसके लिए प्लांटिंग मेटेरियल प्राप्त करने हेतु इसके पुराने राइजोम को ऐसी मिट्टी में जहां लगातार नमी बनी रहती हो, दबाकर रखा जाता है। इनमें नये अंकुरण होने पर इन राइजोम को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर इनका रोपण किया जाता है।
रोपाई
काटे गए राइजोम के टुकड़ों को तैयार की गई भूमि में 30×30 से.मी. के अंतराल पर मिट्टी के लगभग 4 से.मी. अंदर बरसात शुरू होने से पहले अथवा बरसात शुरू होते ही जून माह में लगाया जाता है। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 1,11,000 पौधे लगाये जाते है। यदि भूमि गीली अथवा दलदली न हो तो रोपाई के तुरन्त बाद आवश्यक रूप से पानी देना चाहिए। बच की वृद्धि दर बहुत अच्छी होती है। तथा दूसरे दिन से ही पौधों में वृद्धि दिखाई पड़ने लगती है।
खाद
अच्छी फसल के लिए लगभग 15 ट्राली गोबर खाद अथवा कम्पोस्ट खाद प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई से पहले भूमि में मिला देनी चाहिए।
सिंचाई
बच की कृषि तकनीकि का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसके लिए पानी की अत्याधिक आवश्यकता है। वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बाकी दिनों में 2-3 दिन के अंतराल में सिंचाई होना वांछित होता है। विशेष रूप से नदी-नालों के किनारे की जमीनें जहां हमेशा दलदल रहता हो या जहां पानी भरा रहता हो तथा जहां कोई अन्य खेती न ली जा सकती हो, वहां इसकी खेती बहुत अधिक लाभदायक होती है।
निकाई-गुड़ाई
बच की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खरपतवार पर नियंत्रण तथा जमीन के वायु विनमय के लिए समय-समय पर निकाई एवं गुड़ाई आवश्यकतानुसार करते रहना चाहिए।
राइजोम का निकालना
8-9 माह की खेती के बाद मार्च-अप्रैल माह में जब बच के पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती है व सूखने लगती हैं तब इसके पौधे को जड़ समेत जमीन से खोदकर निकाल लेना चाहिए। यदि खेती बड़े स्तर पर की जा रही हो तो हल चलाकर भी राइजोम निकाले जा सकते हैं। पत्तियों को राइजोम से काटकर अलग कर लिया जाना चाहिए।
सुखाना
निकाले गए राइजोम को पानी में धोए बिना साफ करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर छायादार जगह में फैलाकर सुखाया जाता है। (जिससे इसमें उपस्थित तेल की मात्रा का हास न हो) तथा तद्नुसार बोरों में भरकर विक्रय हेतु भिजवाया जा सकता है।
सारांश रूप में जानकारी
- वानस्पतिक नाम : एकोरस केलमस.
- उपयोग : पेट विकारों, मूत्र रोगों, गर्भरोगों, खांसी, हिस्टीरिया, मानसिक तनाव, ट्रक्यूलाइजर,लिवर की बीमारियों से संबंधित दवाएं बनाने हेतु प्रयुक्त।
- उपयुक्त जलवायु : 10 से 38 डिग्री सेल्सियस तक तापमान, दलदली भूमि, पानी की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता।
- मिट्टी : बलुई दोमट मिट्टी, सिंचाई की व्यवस्था सहित।
- बिजाई की विधि: राइजोम द्वारा ।
- प्रयुक्त किया जाने वाला भाग : राइजोम
- बिजाई हेतु उपयुक्त समय : जून माह
- फसल की अवधि : लगभग 9 माह
- उपज : 40-41 क्विंटल सूखी राइजोम प्रति हेक्टेयर।
- लाभप्रदता : लगभग 1,00,000 रू0 प्रति हेक्टेयर
बच की खेती से संबंधित होने वाले आय-व्यय का ब्यौरा (प्रति एकड़)
क. कुल व्यय अथवा लागत
1. भूमि की तैयारी पर व्यय | – 2,000.00 |
2.रोपण सामग्री पर व्यय (45000 राइज़ोम (टुकड़े) 40 पैसा प्रति राइज़ोम की दर से ) |
– 18,000.00 |
3.खाद पर व्यय (6 टन गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद 250 रू0 प्रति टन की दर से) |
– 15,00.00 |
4.कीटनाशकों आदि पर व्यय |
-500.00 |
5. रोपण, निकाई-गुड़ाई तथा पौधा संरक्षण पर व्यय (30 मजदूर दिवस) |
– 1,500.00 |
6. फसल उखाड़ने तथा उपज की साफ-सफाई, पैकिंग तथा ढुलवाई आदि पर व्यय |
– 2,500.00 |
योग |
– 26,000.00 |
ख. खेती से प्राप्तियां |
|
1. 16 क्विंटल सूखी बच (2500 रू0 प्रति क्विंटल की दर से) |
40000.00 |
2. प्लांटिंग मेटेरियल के रूप में प्राप्तियां |
25000.00 |
योग |
65,000.00 |
ग. लाभ (प्रति एकड़) |
40,000.00 |
प्रसंस्कृत उत्पाद
उडनशील तेल (Volatile Oil)
बच के सूखे राईजोम को वाष्प आसवन करने से 1.5-3.5 प्रतिशत तक उड़नशील सुगंधित तेल निकाला जाता है। हल्के पीला रंग के इस तेल की सुगंध कुछ पचौली के तेल के सदृश्य है। वाष्प आसवन के पूर्व सूखे राईजोम को छोटे-छोटे टुकड़ों में डिस्इन्टीगेटर द्वारा किया जाता है जिससे सुगंधित तेल का उत्पादन ज्यादा लगभग 4.6 प्रतिशत तक हो जाता है। आसवन में समय ज्यादा लगभग 12-14 घंटा लगता है।
बच के सुगंधित तेल की कीमत 2005 में 1300-1400 /किलोग्राम था जो 2009-10 में 2300-2500/किलोग्राम हुआ। वैश्विक बाजार में बच के तेल की कीमत वर्तमान दर लगभग 6600/- किलोग्राम है। राज्य में आगामी खरीफ में बच की खेती अच्छी आय देने वाला फसल हो सकता है।
स्रोत- बिहार राज्य बागवानी मिशन, बिहार सरकार
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