परिचय
हिमालय की गोद में बसे लेह – लद्दाख क्षेत्र को कोल्ड डेजर्ट हिमालय यानी शीत – शुष्क रेगिस्तान क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र अपने उदात्य खूबसूरत पर्वतीय श्रृंखला के कारण प्रसिद्ध है। यह ठंडा – शुष्क बर्फीला क्षेत्र, मुख्यत: भारत के जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश राज्यों के उत्तर – पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र में समशीतोष्ण और शुष्क जलवायु का मिश्रण होता है। भारत के कुल कोल्ड – डेजेर्ट क्षेत्र (45,110 किमी) का 87.4 प्रतिशत हिस्सा लेह – लद्दाख क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है और शेष 12.6 प्रतिशत का शेष क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के लाहौल – स्पीति के अंतर्गत आता है। इस शीत – शुष्क क्षेत्र को साथ में इंडस, नूब्रा, चांगथांग, जंसकार, सुरू, एवं लाहौल और स्पीति घाटी है। इस क्षेत्र महीने बर्फ आच्छादित रहता है और सर्दियों में यहाँ का न्यूनतम तापमान – 400०C तक पहुँच जाता है। इस क्षेत्र में बहुत ही कम वर्षा (80 – 300 मिमी) होती है और वह भी मुख्यत: बर्फ के रूप में होती है। यहाँ का शुष्क वातावरण, उच्च अल्ट्रा – वाइलेट विकिरण उच्च – वायुवेग, पेड़ – पौधों का बहुत कम घनत्व, रेतीले – मोटे मिट्टी की बनावट वाले बहुरंगीन चट्टानी पहाड़ों के कारण यहाँ की भौगिलिक स्थिति अत्यधिक नाजुक और किसी भी पौधे व प्रजातियों के अस्तित्व और उसके पनपने के लिए बहुत ही कठिन है। इसी कारण यहाँ की ज्यादातर भूमि कृषि व जंगल रहित, पेड़ – पौधों के बिना, बंजर है।
ऐसी विषम भौगोलिक परिस्थितियों व ठंडे – शुष्क, रेतीले –मोटे बनावट वाले मिट्टी की मामूली उपजाऊ वाली भूमि में बढ़ने की अनूठी विशेषता रखनेवाला पौधा सीबकथोर्न पौधा इस प्रदेश में नैसर्गिक रूप में पाया जाता है। लेह – बेरी व ट्सेटालूल्लू के नाम से मशहूर यह झाड़ीनूमा पौधा सूखा प्रतिरोधी है चरम तापमान – 430० C से 400० C का सामना कर सकता है। इन दोनों विशेषताओं के कारण ही इस झुंडनुमा पौधे को शीत – रेगिस्तान में स्थापित होने के लिए एक आर्दश पौधे की श्रेणी में स्थान दिया जा सकता है । ठंड और सूखा प्रतिरोध के अलावा यह झाड़ीनुमा पौधा उन पौधा प्रजातियों में से हैं जो कि बंजर भूमि में आसानी से विकसित हो सकता है।
प्राचीन काल से ही लेह बेरी यानी सीबकथोर्न पौधे को हिमालय क्षेत्र में विशेष उपयोगी वृक्ष के रूप में जाना जाता है। सीबकथोर्न पौधे के फल को वंडर बेरी लेह बेरी और लद्दाख सोना भी कहा जाता है। सीबकथोर्न पौधों में पीले, नारंगी व लाल रंग के जामुननुमा बेरी जैसे फल आते हैं, जो अगस्त – सितंबर में पकते हैं। सीबकथोर्न बेरीज में सीमित तापमान के बावजूद सर्दियों के महीनों में झाड़ी पर बरकरार रहने की एक विशिष्ट विशेषता है। यह फल सबसे अधिक पौष्टिक फलों में से एक है। इनमें विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। (तालिका – 1) । इसमें प्रो – विटामिन E, विटामिन C, विटामिन A, विटामिन – बी1, बी2 और फ्लेवोनोइड और ओमेगा तेलों की मात्रा अन्य फलों और सब्जियों जैसे नारंगी, गाजर और टमाटर की तुलना में काफी अधिक है। इनमें विटामिन- सी की मात्रा 300 – 2000 मिलीग्राम/100 ग्राम बेरीज है, जो कि कई अन्य समृद्ध फलों जैसे आवंला, नारंगी, कीवी फलों से अधिक है। इसलिए इसे सुपरफ्रूट के रूप में बताया गया है। इसे प्रकार लेह में पाए जाते हैं बेरी में विटामिनों का भंडार है जहाँ अन्य विटामिन युक्त फलों की उपलब्धता सीमित है। इस पौधे के बेरीज में विटामिन – E (162 – 255 मिलीग्राम /100 ग्राम बेरीज), विटामिन – K (100 – 200 मिलीग्राम/100 ग्राम), विटामिन – A (11 मिलीग्राम/100 ग्राम) पाया जाता है। इसके अलावा इसमें विभिन्न प्रकार के अमीनो एसीड और विटामिन अधिक मात्रा में फ्लूवोनोइडस, प्लांट स्तेरोल्स, कार्टोनोइड्स, लिपिड्स, तेल और शूगर है। इन बेरीज में मुख्य मिनरल जैसे Fe, Mnj, Cu, Zn, Ca और Mg होते हैं सीबकथोर्न के तेलों को ग्रीन और ओर्गानिक फ़ूड की मान्यता मिली है। इसके अलावा लद्दाखी की स्थानीय टीबेटियां चिकित्सा पद्धति आमचीस में इसका औषधीय गुणों के कारण अनके रोगों के उपचार में लाया जाता है। कोस्मेटिक प्रोडेक्टस में भी इसका भरपूर प्रचलन है। सीबकथोर्न – पौधे के पोषक, औषधीय गुणों एवं खाद्य तत्वों के महत्व के साथ – साथ इस पौधे के वृक्षारोपण व भूमि उपयोग में अनेक फायदे है जो इस भूमि को हरा – भरा करने की क्षमता रखता है।
तालिका 1 – लद्दाख क्षेत्र के सीबकथोर्न फलों में प्राप्त रासायनिक विशेषताएं
रासायनिक गुण | |
कुल घुलनशील ठोस पदार्थ |
14.3 (o B) |
अम्लता (मैलिक एसिड के रूप में) |
2.54 |
रस का पीएच |
2.15 |
कुल चीनी (प्रतिशत) |
1.03 |
नमी (प्रतिशत) |
74.58 |
राख (प्रतिशत) |
1.8 |
कच्चा प्रोटीन |
2.64 |
कच्चा फाइबर |
3.45 |
कुल कार्बोहाइड्रेट |
20.56 |
कैरोटिन |
12839.67 |
विटामिन सी (मि. ग्रा./100 ग्रा.) |
424.80 |
विटामिन बी (मि. ग्रा./100 ग्रा.) |
2.664 |
विटामिन बी (मि. ग्रा./100 ग्रा.) |
6.227 |
पेक्टिन (लासा) |
0.48 |
वसा (प्रतिशत) |
1.54 |
एनर्जी (क्कल/100 ग्रा) |
106.66 |
खनिज (मि. ग्रा./कि. ग्रा.) |
|
सोडियम |
41.28 |
पोटाशियम |
1499.96 |
कैल्शियम |
383.0 |
लोहा |
11.68 |
मैग्नीशियम |
47.7 |
जिंक |
0.94 |
फॉस्फोरस (प्रतिशत) |
0.02 |
भूमि संरक्षण में सीबकथोर्न पौधे का महत्व
भूमि की उर्वरता में बढ़ावा
सीबकथोर्न पौधों की एक व्यापक जड़ प्रणाली है। इसकी जड़ों में जीनस – फ्रैंकिया जीवाणु के सहजीवी शामिल है। यह सहजीवी वायूमंडलीय नाइट्रोजन को प्राप्त कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है। इससे भूमि की उर्वरता और नमी बेहतर होती है। यह अनुपम लगाया है कि सीबकथोर्न पौधा हर साल प्रति हेक्टेयर 180 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन – फिक्स करता है। यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन ठीक करने के साथ – साथ मिट्टी को बांधकर रखता है।जो मिट्टी को बांधकर रखता है जो मिट्टी के क्षरण को नियंत्रित और बंजर होने से रोकने में सहायक है। यह जमीन के कटाव एवं ढलान से मिट्टी को कटने से बचाता है। यह झाड़ीनुमा पौधा मिट्टी को क्षरण को नियंत्रित कर सतह के बहाव व भूमि भूस्खलन को नियंत्रित करने में विशेष सहायक है। यह पौधा बंजर भूमि – रिक्लेमेषन के लिए विशेष क्षमता रखता है। बंजर और चरम तापमानों में पनपने की खूबी वाले इस सीबकथोर्न पौधे का हर हिस्सा उपयोगी है- फल, पत्ती, टहनी, जड़ और कांटा – परंपरागत रूप से चिकित्सा, पोषण संबंधी खुराक, लकड़ी और भवन की बाढ़ बांधने, ईंधन व चारे आदि के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। कई प्रजाति के पक्षी कुछ समय के लिए भोजन हेतु इस जामुननुमा बेरी जैसे फसल का भोजन करते हैं। दूसरी ओर इसकी पत्तीयाँ भेड़, बकरी, ठंडे रेगिस्तान वाले जानवरों जैसे डबल – ऊँची पीठवाले ऊंट, गधे आदि मवेशियों के लिए प्रोटीन युक्त चारा के रूप में उपयोग में आती है। सीबकथोर्न झाडी वन्य जीवों के लिए आवास प्रदान करती है और जंगली वृक्षों से वनस्पतियों और जीवों के लिए सुरक्षात्मक आश्रय प्रदान करता है। इस क्षेत्र के नाजुक परिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने में सहायक व ठंडे शुष्क क्षेत्र के लिए यह एक बहुउपयोगी पौधा है।
सीकबथोर्न की उपयुक्तता
सीबकथोर्न पौधा विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में पनपता है, परंतु अच्छी सूखी मिट्टी इसके लिए आदर्श मानी गई है। उत्तम निकास, गहन, अच्छी तरह से सूखी, पर्याप्त जैविक पदार्थ के साथ रेतीले लोम/ दोमट. पीएच 5.0 से 7.0 तक इसके लिए बेहतर है। यह पौधा सूखे की स्थिति बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन यह विशेष रूप से फूल और फलों के विकास के चरण में नमी संवेदनशील है। मिट्टी की नमी के लिए यहाँ मलचिंग के उपयोग कर सकते हैं।
लद्दाख के कोल्ड डेजर्ट पहाड़ी क्षेत्रों के स्थानीय लोगों के जीवन में लेह बेरी लगाने से कृषकों एवं स्थानीय लोगों को आर्थिक मदद मिल सकती है। टिकाऊ आजीविका के लिए कुछ विकल्प जैसे एग्रो – प्रोडक्ट्स जिसमें पेय, जेम जेली, सीबकथोर्न ऑइल, हर्बल चाय, सॉफ्ट जेल कैप्सूल, यूवी सुरक्षा तेल, बेकरी उत्पाद, पशु चारा आदि जैसे कई अन्य उत्पादों के विकास और व्यवसायीकरण कर, बाजार में बेचने से – कृषकों के जीवन में आर्थिक सम्पन्नता व अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है। सीधे आजीविका से जुड़ी सीबकथोर्न की खेती से लेह के लोगों के आत्मनिर्भर होने और विकास का आधार बनता है। क्षेत्रीय लोगों और महिलाओं को स्वयं – सहायता समूहों में सम्मिलित कर, लेह – बेरी पौधों की खेती – प्रशिक्षण, उत्पाद डिजाईन और पैकेजिंग में प्रशिक्षण देखर स्थानीय युवाओं और किसों की मदद की जा सकती है। सरकारी व गैर – सरकारी संगठन, अनुसंधान एवं विकास संगठन और सरकार की पहल से इस क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए टिकाऊ आजीविका पैदा करने, भूमि संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और उच्च ऊंचाई वाले पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन की स्थिति में भूमि नियोजन के द्वारा यह वंडर बेरी भारत के ठंडे रेगिस्तान प्रदेश के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने में एक अभिन्न और विशेष भूमिका निभा सकता है।
लेखन: जया निरंजने सूर्या, विकास, आर. पी. यादव, अरविन्द कुमार एस. के. सिंहस्रोत
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग,भारत सरकार
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