परिचय
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसा अनुमान लगाया है कि वर्ष 4, दिल की विफलता तथा दिल का दौरा 2030 तक विश्व में लगभग 23,600,000 लोग हृदय रोग से प्रभावित होगें व मौत का प्रमुख कारण बना रहेगा। निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में हृदय रोगों के कारण मृत्यु दर में लगातार वृद्धि हो रही है।
हृदयरोग की परिभाषा
हृदय रोग वे सभी बीमारियाँ है जो हृदय प्रणाली को प्रभावित करती हैं। जिनमें मख्य रूप से हृदय रोग, मस्तिष्क और गुर्दो की वाहिका रोग एवं परिधीय धमनी रोग आते हैं।
हृदय रोग विविध कारणों से होता है लेकिन हाइपरकोस्ट्रौलेमिया एवं उच्च रक्तचाप प्रमुख हैं। रक्त में कोलोस्ट्रोल एवं एल.डी.एल. कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होने से हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है। इसके साथ-साथ बढ़ती उम्र के कारण शारीरिक बदलाव भी हृदय रोग का कारण है।
हृदय रोगों को मूलतः विभिन्न बीमारियों में विभाजित किया जा सकता है।
हृदय रोगों के प्रकार
- कोरोनरी धमनी की बीमारी
- क्रोडियोमायोपैथी- हृदय की मांस-पेशी के रोग
- उच्च रक्तचाप से ग्रस्त रोग
- दिल की विफलता तथा दिल का दौरा
- फेफड़े के हृदय रोग
- इन्फलेमटरी हृदय रोग
- परीधीय हृदय रोग
- जन्मजात हृदय रोग
जोखिमकारक(रिस्क फैक्टर)
हृदय की बीमारियों के लिए नीचे दिए गए कई कारक उत्तरदायी है।
- रक्त में कोलोस्ट्रोल की उच्च मात्रा
- उच्च रक्तचाप
- आयु
- लिंग
- मधुमेह
- मोटापा
- शारीरिक निष्क्रियता
- तंबाकू का इस्तेमाल
- अपौष्टिक आहार
- हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास
- वायु प्रदूषण
- गरीबी एवं अशिक्षा
उपचार
हृदय रोगों के उपचार के लिए कुछ दवाईयां बाजार में उपलब्ध है लेकिन इनके दुष्प्रभाव है जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं।
हृदय रोगों को रोकने का प्राकृतिक उपाय
हृदय रोग मुख्य रूप से एल.डी.एल. और खराब कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ने से होते हैं। विभिन्न प्रकार की रासायनिक दवाएं प्रभावी ढंग से कोलेस्ट्रोल का स्तर कम करती है। लेकिन ये महंगी होने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती है जिसकी वजह से कब्ज, सिर दर्द, आंत के रोग होने की आंशका बढ़ जाती है। इसलिए ऐसे प्राकृतिक खाद्य उत्पादों का वैज्ञानिक अन्वेषण पर ध्यान केन्द्रित करना अत्यंत आवश्यक हैं। जो न केवल सस्ते हो बल्कि उनका शरीर पर दुष्प्रभाव भी नहीं होना चाहिए।
पिछले कुछ दशकों में लैक्टिक एसिड़ पैदा करने वाले जीवाणु (एल.ए.बी.) की प्रोबायोटिक गतिविधियों का अध्ययन किया गया है। इन जीवाणुओं से विभिन्न प्रकार के किण्वित दुग्ध पदार्थ बनाए जाते हैं। किण्वित दुग्ध उत्पाद जैसे दही, लस्सी, योर्गट, श्रीखंड, पनीर इत्यादि सदियों से हमारे भोजन का अभिन्न अंग हैं। ये पदार्थ स्वादिष्ट होने के साथ सुपाच्य भी हैं तथा विभिन्न प्रकार के रोगों की रोकथाम के लिए लाभप्रद भी हैं किण्वित दुग्ध पदार्थों के सेवन से व्यक्ति स्वस्थ रहता है एवं उसकी आयु लम्बी होती है। इसका मुख्य कारण जीवाणुओं द्वारा किण्वित दुग्ध पदार्थ है जो रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं को कम करते हैं और लाभकारी जीवाणुओं की आंत में वृद्धि करते हैं। इन जीवाणुओंको प्रोबायोटिक जीवाणु कहते है। प्रोबायोटिक जीवाणु हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता, पाचन एवं पोषण शक्ति को बढ़ाते हैं। आधुनिक शोधकार्यों से यह साबित गया है कि प्रोबायोटिक जीवाणुओं द्वारा किण्वित दुग्ध पदार्थों को लगातार सेवन कई जानलेवा बीमारियों जैसे मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग, आंत का कैंसर से बचाव करते है तथा इनकी लागत कम होती है।
प्रोबायोटिक की परिभाषा
ये वे लैक्टिक जीवाणु हैं, जिनकी निर्धारित मात्रा में सेवन करने से हमारे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये जानलेवा रोगों की रोकथाम एवं इलाज में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे जामन के उदाहरण हैं लैक्टोबैसिलस केजाई, एल प्लानटेरम, एल. रेमनोसस, लैक्टोकोकस, लैक्टिस, बी.लोगम, बीफिडोबैटिरियम, एल बुलगेरिकस, एल फरमन्टम इत्यादि।
प्रोबायोटिक जीवाणुओं द्वारा किण्वित दुग्ध उत्पादों के स्वास्थ्य लाभः
- हृदय रोगों की रोकथाम
- मोटापा कम करना
- मधुमेह नियन्त्रण
- कैंसर से बचाव
- आंत का माइक्रोबियल संतुलन
- जठरात्र पथ में संक्रामक रोगों के लिए प्राकृतिक प्रतिरोध क्षमता में वृद्धि
- पाचन में सुधार
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
- लैक्टोज असहिष्णुता में सुधार
प्रोबायोटिक लैक्टिक बैक्टिरिया की चयन प्रक्रिया
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक सक्षम प्रोबायोटिक लैक्टिक बैक्टिरिया के चयन के लिए निम्न गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है।
- वह अम्ल एवं पित्त सहन करने वाला होना चाहिए।
- मनुष्य की आंत की सतह पर जमा होने में सक्षम होना चाहिए।
- रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं की संख्या कम करने वाला होना चाहिए।
- बीमारी पैदा करने वाला एवं एंटीबायोटिक प्रतिरोधी को दूसरों बैक्टिरिया में स्थानांतरित करने वाला नहीं होना चाहिए।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला होना चाहिए।
- हमारे लिए स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए।
- जेनेटिकली स्थिर होना चाहिए।
- खाद्य उत्पादों के साथ समन्वय रखने वाला होना चाहिए एवं सचयन के दौरान जीवित होना चाहिए।
- इनकी संख्या कम से कम 108 सी एफ यू/ग्रा0 होनी चाहिए।
तालिका 1 राष्ट्रीय जेरी संग्राहलय में उपलब्ध प्रोबायोटिक जामन एवं उनकी क्रियाशीलता
क्रम. | प्रोबायोटिक जीवाणु |
क्रियाकीलता |
दूध उत्पाद |
एल . कैजीआई (NCDC-298) |
रोगाणुरोधी |
श्री खण्ड |
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एल0 हेलवेटिकस (NCDC-006) NCDC-184, NCDC-292,NCDC-288) |
उच्च रक्तचाप, रोगाणुरोधी, इमयूनौमोडुलेटरी |
दही एवं किण्वित दुग्ध पदार्थ |
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एल0 रेमनोसस NCDC-243 |
विटामिन उत्पादन (फोलिक एसिड,राइबोफ्लेविन) |
दही |
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एल0 डलबरुकाई उपजाति बुलगरिकस (LB-2) |
कोलेस्ट्रोल को कम करना, कैंसर रोधी, रोगाणुरोधी |
दही एवं योगर्ट |
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एल0 एसीडोफिलस (NCDCLA-15) एल0 रैमनोसस (NCDCLA-16) |
दस्तरोधी |
व्हेय पेय |
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बीफीडो बैक्टिरियम बीफीडम NCD-231 |
रोगाणुरोधी |
दही एवं योगर्ट |
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लै. प्लानटेरम LT-7 |
कैंसर रोधी, रोगाणुरोधी |
दही |
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एस. पैराकेजाईNCDC-161, NCDC-393) |
डाइऐसीटाइल एवं एसीटॉइन उत्पादन |
दही |
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एल. प्लानटेरम ( CRD-2) एल. रैमनोसस ( CRD-4) एल. प्लाटेरम (CRD-7) एल. रैमनोसस (CRD-9) एल. रेमनोसस (CRD-11) |
कैंसर रौधी कोलेस्ट्रोल को कम रोगाणुरोधी |
दही बलूबेरी दही योगर्ट |
प्रोबायोटिक द्वारा कोलेस्ट्रोल को कम करने की प्रक्रिया
वसा कोलेस्ट्रोल की हृदय रोगों में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिक कोलेस्ट्रोल हृदय धमनियों में जमा हो जाता है। जिससे खून का प्रवाह प्रभावित होने से दिल का दौरा, आर्थिक रोस्केलौरीसीस एवं कोरोनिक हृदय रोग इत्यादि बिमारियां हो जाती है। विभिन्न शोधकार्यों ने यह दर्शाया है कि प्रोबायोटिक जीवाणु आंत में पित्त को तोड़कर उसके अवशोषण को रोकते हैं। शरीर में कोलेस्ट्रोल के उत्पादन को नियन्त्रित करते हैं साथ ही एवं दुग्ध पदार्थों में उपस्थित कोलेस्ट्रोल को अवशोषित कर, वसा की मात्रा कम कर देते हैं। ये लैक्टिक जीवाणु ऐसे एन्जाइम उत्पन्न करते है जो कोलेस्ट्रोल को दूसरे पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं जैसे कोलेस्ट्रोल रिडक्टेज एन्जाइम कोलेस्ट्रोल को कोपरोस्टोनोल में परिवर्तित कर देते हैं। कोपरोस्टेनोल आंत द्वारा अशोषित ना होकर शरीर से निकल जाता है जिससे रक्त में कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियन्त्रित रहती है। इस दिशा में हमारी प्रयोगशाला ने कुछ ऐसे लैक्टिक अम्लीय जीवाणु विकसित किए हैं जो किण्वित दुग्ध पदार्थों में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम करने में मददगार हैं।
प्रोबायोटिक जीवाणुओं द्वारा उच्च रक्तचाप का नियन्त्रण
अवरोधक रक्तचाप को नियन्त्रण करने का प्रमुख माध्यम है। ACE अवरोधक एंजियोटेनसिन- || के उत्पादन को कम करके एवं बरंडी काइनिन के टूटने को रोककर रक्तचाप का स्तर कम करते हैं। ACE अवरोधक पेप्टाइड मुख्य प्रोटीन में निष्क्रिय होते हैं परन्तु ये प्रोबायोटिक जीवाणुओं की किण्वन क्रिया से निकल जाते है इसलिए किण्वन बायोएक्टिव पेप्टाइड उत्पन्न करने के लिए एक प्रभावी प्रक्रिया है।
ACE अवरोधक पेप्टाइड विभिन्न किण्वित दुग्ध पदार्थों जैसे पनीर, चीज, किण्वत दूध, सौयादूध, दही एवं योगर्ट भी प्रोबायोटिक जीवाणुओं की क्रिया द्वारा उत्पन्न किए जा सकते हैं।
योगर्ट जीवाणुओं के साथ साथ, चीज स्टार्टर जीवाणु एवं प्रोबायोटिक जीवाणु भी दूध में किण्वन के दौरान विभिन्न बायोएक्टिव पेप्टाइड उत्पन्न कर सकते हैं। प्रोबायोटिक जीवाणु दूध में अपनी संख्या परौडियोलाइटिक गतिविधि द्वारा बढ़ाने में सक्षम हैं एवं लेक्टोज हाइड्रोलाइजिंग एन्जाइम द्वारा केजिन को तोड़ देते हैं।
किण्वन प्रक्रिया के दौरान प्रोबायोटिक के प्रोटिनेज एन्जाइम ACE अवरोधक पेप्टाइड को निकालने में सक्षम होते हैं। और इस प्रकार शरीर में उच्च रक्तचाप को नियन्त्रित करते हैं।
विभिन्न शोध से पता चला है कि लेक्टोबेसिलस हेलवेटीकस ACE अवरोधक ट्राईपेप्टाइड वेल-परो-परो (VPP) अवरोधक एवं इल–परो-परो (IPP) दूध के केजिन प्रोटीन से निकालने में सक्षम हैं।
प्रोबायोटिक का मोटापा नियन्त्रण में योगदान
आंत में जीवाणुओं की किण्वन प्रक्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स से लघु श्रृखंला फैटी एसिड (एसीटेट, प्रोपियोनेट, बुटाइरेट एवं लक्टेट) पैदा करते हैं। लघु श्रखंला फैटी एसिड से आंत में PH का स्तर कम होने से जीवाणुओं का वातावरण संयोजित रहता है।
प्रोबायोटिक जीवाणु पोलीएनसेचुरेटिड फैटी एसिड से कन्जुगेटिड लिनोलीनिक एसिड उत्पन्न करते हैं जो शरीर में एल डी एल कोलेस्ट्रोल एवं लीवर एन्जाइम को नियन्त्रित कर मोटापे को कम करते हैं।
निष्कर्ष
प्रोबायोटिक दुग्ध उत्पाद विभिन्न प्रकार की बीमारियों की रोकथाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रोबायोटिक पहले से ही पूरक एवं वैकल्पिक दवाई के रूप में कई प्रकार के रोगों जैसे आंत के संक्रमण, अल्सरेटिव कोलाइटिस, इरीटेबल बाउल सिंड्रोम इत्यादि के इलाज एवं रोकथाम के लिए प्रयोग किएजा रहे हैं। वैज्ञानिक प्रभावशाली प्रोबायोटिक दुग्ध उत्पाद बनाने के लिए प्रयासरत हैं जो विभिन्न प्रकार के रोगों की रोकथाम एवं ईलाज में कारगर सिद्ध होगें। हमारी प्रयोगशाला में हृदय एवं कैंसर की बीमारियों को प्रोबायोटिक किण्वित दुग्ध पदार्थों द्वारा नियन्त्रण करने के कार्य काफी तेजी से सकारात्मक परिणाम दे रहे हैं।
लेखन: चाँद राम, सुमन, विजय कुमार एवं नरेन्द्र कुमार
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
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