परिचय
मानव जीवन संचालन हेतु खाद्य पदार्थ अनिवार्य होते हैं, अतः सही समय पर उपभोग हेतुइनका संरक्षण व समुचित उपभोग भी आवश्यक है। खाद्य पदार्थों को ताजा व गर्म रखने के लिए अनेक विकसित तकनिकों का उपयोग किया जा रहा है और माइक्रोवेव (सुक्ष्म तंरग) ऊर्जा द्वारा खाने को गर्म करना वर्तमान समय में काफी उपयोगी तकनीक है। माइक्रोवेव आवन का प्रचलन काफी तेजी बढ़ रहा है। इस नई व उत्तम विकसित तकनिक द्वारा खाद्यय पदार्थ अच्छी तरह से पकाये जा सकते हैं। यह तकनीक कई मायनों में फायदेमंद एवं उपयोगी सिद्ध हुई है।
माइक्रोवेव प्रसंस्करण तकनीक
माइक्रोवेव तरंगों द्वारा भोजन पकाने की तकनीक में कम तेल की खपत होती है, जिससे स्वस्थ व उत्तम गुणवत्ता के खाद्यय पदार्थ प्राप्त होते हैं। ठंड़े प्रदेश व जाड़ों के मौसम में जब खाना तुरंत ही ठंडा हो जाता है तो इन हालातों में हर बार भोजन के पहले गैस जलाकर या चूल्हों का प्रयोग कर खाने को गर्म किया जाता है। बार बार गैस चूल्हों पर खाना गर्म करने पर खाने का वास्तविक स्वाद खत्म हो जाता है व खाने का कुछ भाग जल भी जाता है। माइक्रोवेव इन सभी कमियों को दूर करती है। माइक्रोवेव ऑवन में खाना गर्म करने पर पूरा का पूरा खाना एक साथ गर्म होता है। इस तकनीक में सूक्ष्म उर्जा तरंगें एक समान रूप से पूरे भोजन के अंदरूनी भाग तक जाती हैं व ये तरंगे अपनी ऊर्जा व ऊष्मा भोजन के अणुओं को प्रदान कर उन्हें गर्म करती हैं। खाद्य पदार्थों को इस प्रकार सूक्ष्म तरंगों की ऊष्मा द्वारा गर्म करने पर उनके रंग, स्वाद गंध, ताजगी आदि गुणों पर कोई भी प्रतिकुल प्रभाव नहीं पड़ता है। आजकल लगभग हर बड़े-बड़े स्टार होटलों, घरों व अन्य कई जगहों तथा ऑफिस आदि में माइक्रोवेव ऑवन का प्रयोग बहुतायत में हो रहा है। इस तकनीक द्वारा खाने की गुणवत्ता पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि सामान्य विधि से खाने को गर्म करने पर कई बार खाद्य पदार्थों की बर्तन की सतह पर जलकर चिपकने की समस्या या फिर जरूरत से अधिक गर्म हो जाने की समस्या होती है। पारम्परिक विधि से पहले के पके खाद्य पदार्थों को पुनःगर्म करते वक्त उसे छूकर ही उसके तापक्रम का पता लगाना पड़ता है या फिर समय का अनुभव व अंदाजा लगाकर गर्मी का पता लगाया जाता है। जबकि माइक्रोवेव ओवन में समय को ऑटोमैटिक सेट करके ऑवन स्टार्ट भर करना होता है। तय किए गए निर्धारित समय के पश्चात माइक्रोवेव ओवन स्वतः ऑफ हो जाता हैं और भोजन आवश्यकतानुसार ही गर्म होता हैं। माइक्रोवेव द्वारा भोज्य पदार्थों को ऊष्मा प्रदान करने हेतु समय पर निर्भर करता है। फ्रिज से निकालकर ठंढे खाद्यय पदार्थों को ऊष्मा प्रदान करने हेतु सामान्य (रूप से गर्म भोजन की तुलना में ) से अधिक समय का निर्धारण करना होता है। समय के मान का निर्धारण सेकेंड मान मैं यथा 10, 20, 30,40, 50, 60, सेकेंड में किया जा सकता है अथवा मिनटमें भी किया जा सकता है। समय का निर्धारण पूर्ण रूप से भोज्य पदार्थों की स्थिति व उनके तापक्रम को ध्यान में रखकर किया जाता है।
सामान्यत: माइक्रोवेव की फ्रिक्वेंसी ( आवृत्ति ) 300 MHz से 300 GHz तक होती है। माइक्रोवेव वास्तव में विद्युत चुम्बकीय तरंगें होती हैं एवं इनके व्यवहार व गुण सामान्य प्रकाश की किरणों के समान ही होते हैं। ये भी प्रकाश की किरणों के रेस्टॉरन्ट, समान ही होते हैं। ये भी प्रकाश की किरणों की भाँति सरल रेखा में गमन करती हैं व इनकी भी गति प्रकाश की किरणों के बराबर 3×10 मीटर/सेकेंड हीं होती है। जब खाद्य पदार्थों को ऑवन में डाला जाता है और ओवन को ऑन किया जाता है तो उसमें उर्जा स्थानान्तरण की तीन घटनाएँ यथा परावर्तन, अवशोषण एवं ट्रान्समिशन होती हैं। सुक्ष्म तरंगों द्वारा खाद्य पदार्थों को उर्जा स्थानांतरित करने के दौरान तीन प्रक्रियाएँ होती हैं, जिनके द्वारा तरंगों की ऊष्मा खाद्य पदार्थों में अवशोषित होती है। सूक्ष्म तरगों के परावर्तन, अवशोषण व ट्रान्समिशन इन तीनों प्रक्रियाओं द्वारा ये तरंगें अपनी ऊष्मा ऊर्जा को खाद्य पदार्थों के अंदरूनी भार्गों तक आसानी से पहुँचाने में सफल रहती है। खाद्य पदार्थों में आयनिक गुण होते हैं, जो धनात्मक (+ve) एवं ऋणात्मक (-ve) ध्रुव बनाते हैं। ये ध्रुव माइक्रोवेव की आवृत्ति के ही अनुसार तेजी से गतिमान हो जाते हैं, जैसे ही इनपर माइक्रोबेव तरंगें पड़ती हैं। खाद्य पदार्थों में उपस्थित धनात्मक व ऋणात्मक ध्रुव खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाली सूक्ष्म तरंगों की आवृति में ही गतिमान रहते हैं, जिससे खाद्यय पदार्थों के आपसी अणुओं के मध्य अत्यधिक उष्मा पैदा (300 MHz से 300 GHz ) होती है। खाद्य पदार्थों के अणुओं के सूक्ष्म तरंगों का अनुसरण उसी आवृत्ति में करने के कारण ये तीव्र घर्षण पैदा करते हैं, जिसके फलस्वरूप खाद्य पदार्थों में ऊष्मा पैदा होती है और खाद्य पदार्थ गर्म हो जाते हैं। जिन खाद्य पदार्थों में जल की मात्रा अधिक होती हैं, तो उनमें उपस्थित जल (जो ध्रुवीय पोलर ) जिनमें धनात्मक (H+) व ऋणात्मक (0H-) ध्रुव उपस्थिति रहते हैं। ये (H+ व 0H-) ध्रुव जलीय खाद्यय पदार्थों पर सूक्ष्म तरंगों में गतिशील हो जाते हैं। ध्रुवों के अत्यधिक आवृति में गतिमान होने के कारण उनके अणुओं के मध्य घर्षण पैदा होता है और ठीक उसी प्रकार जलीय खाद्यय पदार्थों को ऊष्मा उर्जा प्राप्त होती है। इस तकनीक में पूरा का पूरा खाद्य पदार्थ समान रूप से गर्म करते वक्त बर्तनों की सतहों पर जलकर खाद्य पदार्थों के चिपकने ( स्केल फॉर्मेशन) की समस्या बिलकुल नहीं होती है।
पनीर पर शेल्फ लाइफ वृद्धि हेतु माइक्रोवेव प्रसंस्करण तकनीक
पनीर पर सूक्ष्म तरंगों द्वारा उपचारित किया गया। बंद कंटेनर पनीर के साथ साथ यीस्ट व मोल्ड की मात्रा में कमी पाई गई। पनीर के नमूनों को PP5 (पोलीप्रोपीलीन प्लास्टिक कन्टेनर) के कंटेनर में खोलकरर माइक्रोवेव द्वारा उपचारित किया गया। बंद कंटेनर में उपचारित करने पर पाया गया कि पनीर में उपस्थित माइक्रोबियल काउन्ट, यीस्ट व मोल्ड की मात्रा में कुछ खास अंतर नहीं पड़ा और पनीर 6-7 दिनों में खराब हो गए। पी.पी.5 के कंटेनर में पनीर को खुले में माइक्रोवेव द्वारा उपचारित करने पर उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए व पनीर की शेल्फ लाइफ बढ़कर 12-14 दिनों तक हो गई। एक दो नमूने तो 15 दिनों तक (रिफ्रिजेरेशन तायक्रम पर) खराब नहीं हुए। पनीर रेफ्रिजेरेशन तापक्रम पर सामान्यतः 7 दिनों तक अच्छा रहता है। माइक्रोवेव उपचार हेतु पैकेजिंग मैटेरियल के चयन के लिए पनीर के नमूनों को हाई डेन्सिटी पॉली इथिलीन के कंटेनर में रखा गया, पर हाई डेन्सिटी पॉली इथिलीन के पैकेट कई जगहों से पिघल गए। उन्हीं पनीर के नमूनों को PP5 के कंटेनर में खोलकर (ढ़क्कन हटाकर) माइक्रोवेव उपचारित करने पर टीपीसी (टोटल प्लेट काउन्ट), यीस्ट व मोल्ड तीनों में कमी आई। अतः माइक्रोवेव उपचार हेतु पी.पी.5 कंटेनर ही उपयुक्त पाए गए। खाद्यय संरक्षण व शेल्फ लाइफ वृद्धि हेतु माइक्रोवेव प्रसंस्करण तकनीक एक सफल व उपयोगी तकनीक सिद्ध होती जा रही है। पनीर के साथ साथ यह तकनीक अन्य डेरी उतपादों हेतु भी उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
लेखन: चित्रनायक, मंजुनाथ एम, पी, अर्नवाल, पी.एस.मिंज, अमिता वैराट एवं ए.के.सिंह
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
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