परिचय
रासायनिक आकस्मिक परिवर्तन की तुलना में गामा विकिरण द्वारा उपचार से कई लाभ होते हैं; जैसे कि इनका कोई जरूरी प्रभाव नहीं होता; बेधन में एकरूपता होती है, खपत में कम समय लगता है और कम समय में अधिक नमूनों को उपचारित किया जा सकता है । इसके अलावा गामा विकिरण द्वारा उपयोगी उत्परिवर्ती नमूनों की कहीं अधिक संख्या प्रदान की जा सकती है और इसमें शाकीय रूप से प्रवर्ध्दित पौधों में सुधार की भी कहीं अधिक क्षमता की संभावना है।
रजनीगंधा में अलंकारिक अथवा सजावटी शल्ककंद इसके अलावा जो कि जिओफाइटस का एक सर्वाधिक खूबसूरत और भिन्न समूह है, को प्राचीन काल से ही पसंद किया जाता है। यह अलंकारिक अथवा सजावटी कंद विपुल वानस्पतिक समूह से संबंधित हैं और एक बीजपत्री पौधों का एक बड़ा परिवार है। बागवानी के दृष्टिकोण से इनका उपयोग मुख्यत: व्यावसायिक पुष्प-उत्पादन के लिए किया जाता है। इसमें बाह्य और प्रबलित कर्तिक पुष्प तथा गमले में उगे पौधे शामिल हैं और भूदृश्य निर्माण के लिए इसमें निजी गार्डनिंग भी संभव है। शाकीय रूप से प्रवर्ध्दित प्रजातियों में नए जीन प्रारूपों के उत्पादन और प्राकृतिक आनुवंशिक संसाधन में वृद्धि करने हेतु आकस्मिक परिवर्तन का उत्प्रेरण एक महत्वपूर्ण तरीका है।
प्रयोगात्मक विधि
वर्तमान प्रयोग में रजनीगंधा की दो किस्मों यथा प्रज्ज्वल और फुले रजनी में तीन विभिन्न कंद अवस्थाएं यथा Bo– ताजा तोड़े गए शल्ककंद (उखाड़ने वाले दिन विकिरण के लिए उपयोग किए गए कंद); B1– उखाड़ने के तीन सप्ताह बाद (उखाड़ने के बाद शल्ककंदों को तीन सप्ताह तक कक्ष तापमान में भंडारित किया गया और तीसरे सप्ताह के अगले दिन विकिरण के लिए उपयोग किया गया); B2– उखाड़ने के छ: सप्ताह बाद (उखाड़ने के बाद शल्ककंदों को छ: सप्ताह तक कक्ष तापमान में भंडारित किया गया और छठे सप्ताह के अगले दिन विकिरण के लिए उपयोग किया गया) तथा बिना किसी विकिरण वाले नियंत्रित उपचार (G0-0Gy) के साथ-साथ गामा विकिरण की विभिन्न मात्राओं का उपयोग किया गया ताकि पुष्पीय पैरामीटरों (गुणों) के संबंध में उपयोगी आकस्मिक परिवर्तन को बड़ी संख्या में हासिल किया जा सके। कुल मिलाकर प्रज्ज्वल तथा फुल रजनी किस्मों की सभी तीन-कंदीय अवस्थाओं से 3888 कंदों पर विकिरण का उपयोग किया गया। इस प्रयोग से रजनीगंधा के लिए LD50 मात्रा उत्पन्न हुई। LD50 । वह मात्रा हैं, जिस पर आमतौर पर 50 प्रतिशत पौध सामग्री जीवित रहती है। इसे नई किस्मों को उत्पन्न करने के प्रयोजन हेतु इष्टतम विकिरण मात्रा अथवा खुराक के रूप में स्वीकार किया गया है। इससे कटिंग की एक स्वीकार्य संख्या जीवित बनी रहती है, जबकि बड़ी संख्या में आकस्मिक परिवर्तन हासिल होते हैं।
प्रयोगात्मक परिणाम
जमीन से उखाड़े गए कंदों की तीन सप्ताह की अवस्था (B1) में व्यावसायिक किस्म, प्रज्ज्वल 2.5 Gy से अधिक गामा विकिरण मात्रा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील पाई गई। अंतत: निष्कर्ष है कि प्रज्ज्वल तथा फुले रजनी दोनों किस्मों की कंदीय अवस्था में शाकीय तथा पुष्पीय पैरामीटरों (गुणों) पर गामा विकिरण की 7.5 Gy तथा 10.0 Gy मात्रा का कहीं अधिक प्रभाव प्रदर्शित हुआ, जबकि 2.5 Gy और 5.0 Gy का कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पाया गया। कंदीय अवस्था की प्रतिक्रया का क्रम क्रमश: B0>B2>B1 था। रजनीगंधा की इन दोनों किस्मों में पुष्पीय आकस्मिक परिवर्तन उत्प्रेरण के लिए इष्टतम मात्रा 7.5 Gy से 11.5 Gy होगी। इस अध्ययन में यह पाया गया कि रजनीगंधा की दोनों किस्मों यथा प्रज्ज्वल और फुले रजनी के ताजा तोड़े गए कंद स्व: जीवे तथा साथ ही स्व: पात्रे परिस्थिति में उत्परिवर्तजन उत्प्रेरण के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं। प्राइमरी गामा किरणित संख्या से नीचे वर्णित उत्परिवर्ती उत्पन्न किए गए जिनका रखरखाव vM1 पीढ़ी के गामा विकिरण प्रभाव को जानने के बाद किया गया।
उपयुक्त पौधों में विकिरण प्रभाव के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि व्यावसायिक किस्म प्रज्ज्वल से पुष्प की आकृति में दो पुष्पीय उत्परिवर्ती को उत्पन्न किया गया। एक उत्परिवर्ती में पंखुड़ी की आकृति दीर्घीकृत से गोलाकार आकृति में बदल गई। कनिश के सभी पुष्पकों में एक जैसी पंखुड़ी आकृति प्रदर्शित हुई। यह शल्ककंदों को उखाड़ने के छ: सप्ताह वाली B2 कंदीय अवस्था में पाई गई । 10 Gy की गामा विकिरण मात्रा पर दूसरी पुष्पीय आकृति वाले उत्परिवर्ती में पंखुड़ी की बढ़ी हुई लंबाई पाई गई। इसके साथ व्यावसायिक किस्म प्रज्ज्वल के सामान्य पुष्पको की तुलना में इसके पुष्पक काफी बड़े थे। इसे उखाड़ने के उपरांत 2.5 Gy की गामा विकिरण मात्रा वाली B1 कंदीय अवस्था में पाया गया।
इस उत्परिवर्ती को ताजा उखाड़े गए कंदों की B0 अवस्था पर 7.5 Gy गामा विकिरण मात्रा से उत्पन्न किया गया। कनिश की लंबाई स्पाइक 94 सेंमी. तक बढ़ी, जबकि सामान्य कनिश लगभग 70-74 सेंमी. की होती है। इससे लंबे एवं ऊँचे उत्परिवर्ती प्राप्त हुए।
पौधे में मिले इस रंगीन पुष्प उत्परिवर्ती का स्वरूप भी वैसा ही था जैसा हमने vM1 पीढ़ी में पाया था। इस उत्परिवर्ती को व्यावसायिक किस्म प्रज्ज्वल में ताजा उखाड़े गए कंदों की B0 अवस्था पर 7.5 Gy गामा विकिरण मात्रा से उत्पन्न किया गया। साथ ही इस उत्परिवर्ती को व्यावसायिक किस्म प्रज्ज्वल में ताजा उखाड़े गए कंदों की B0 अवस्था पर 7.5 Gy गामा विकिरण मात्रा से उत्पन्न किया गया। इस उत्परिवर्ती में, वैयक्तिक पुष्पक छोटे हो गए, जो कि समान स्थान अंतराल में व्यवस्थित हैं।
इसके अलावा एक ऐसा उत्परिवर्ती मिला जिसमें शबलित अथवा कर्बुर (वैरीगेटिड) पत्ती है। इस उत्परिवर्ती को व्यावसायिक किस्म फुले रंजनी में ताजा उखाड़े गए कंदों की B0 अवस्था पर 10 Gy गामा विकिरण मात्रा से उत्पन्न किया गया। इस उत्परिवर्ती में पत्ती के मध्य में सफेद रंग का बैंड बना। कंद से उभरने वाली सभी पत्तियों में एक जैसा पैटर्न प्रदर्शित हुआ। इस उत्परिवर्ती को मातृ कंद से अलग किया गया और गमले में स्थानांतरित करके इसका रखरखाव किया गया।
रजनीगंधा फसल
रजनीगंधा एक उष्णकटिबन्धीय और अर्ध-उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण कंदाकार पुष्पीय पौधों में से एक है। यह मुख्यत: मोनोकोट वंश का है और बारहमासी है। कर्तित पुष्प, खुले पुष्प, भूदृश्य गार्डनिंग के रूप में और साथ ही उच्च मूल्य वाले प्राकृतिक पुष्प तेल का निष्कर्षण करने हेतु अपनी लोकप्रियता के कारण रजनीगंधा का पुष्प उत्पादन में एक मुख्य स्थान है। इसकी लंबी तथा सीधी कनिश, जिनमें चमकीले सफेद पुष्पक होते हैं, के कारण पुष्प की सौम्य सुन्दरता अधिक प्रदर्शित होती है। रजनीगंधा के आनुवंशिक सुधार में अल्प आनुवंशिक विविधता, स्व: अनिषेच्य एवं बीज बंध्यता के कारण बाधा आती है। रजनीगंधा सहित अनेक शाकीय रूप से प्रवर्ध्दित पौधों में जटिल शरीर क्रिया विज्ञान तथा जटिल आनुवंशिकी पाई जाती है। नवीन व्यावसायिक किस्मों को दो तरीकों से तैयार किया जा सकता है। वर्तमान, दो किस्मों के बीच संकरण के परिणामस्वरूप अत्यधिक परिवर्ती संतति उत्पन्न होती है, जिससे अच्छी किस्मों का चयन किया जा सकता है। रजनीगंधा में बीज स्थापन एक कठिन प्रक्रिया होती है और यह आमतौर पर एकल प्रवृति की किस्मों में सिर्फ कुछ में ही पाई जाती है न कि सभी एक प्रवृति वाली किस्मों में। साथ ही यह एक अनियमित रीति में पाई जाती है। बीज अंकुरण भी अपेक्षाकृत कम होता है और बीज स्थापन दोहरी प्रवृति वाली किस्मों में नहीं होता। इसलिए उत्पादक को प्रजनन कार्यक्रम के लिए मादा पैतृक के रूप में सदैव रजनीगंधा की एकल प्रवृति के ही किस्मों का ही चयन करना है। रजनीगंधा में लैंगिक प्रजनन के तहत बीज से पुष्पन तक लगभग तीन फसलीय मौसमों का समय लगता है। इसके फलस्वरूप स्टॉक (मातृ) पौधों का गुणनीकरण करने में कई वर्ष का समय लगता है।
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
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