परिचय
टुनाओं (अल्बाकोर, बाइगेये, ब्लूफिन, स्किपजैक और यलोफिन) की बड़ी वाणिज्यिक प्रजातियों की विश्व में कुल पकड़ पिछले 50 वर्षों की अवधि में (0.4 से 4 मिलियन टन से अधिक) प्राय: दस गुनी बढ़ गई है। टुना की प्रजातियाँ अनेक देशों में भोजन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं। टुना पकड़ने के मुख्य राष्ट्र, मुख्य उत्पादकों के रुप में जापान और ताईवान के साथ एशिया में संकेन्द्रित हैं। यूरोप में, स्पेन टुना मछली मारने वाला बड़ा राष्ट्र है। टुना और टुना जैसी प्रजातियों का वैश्विक व्यापार सन् 2003 में यू.एस. $6.54 बिलियन के स्तर तक पहुँच गया था और मत्स्य की जिंसों में वैश्विक व्यापार के निबंधनों के अनुसार, टुना मूल्य और मात्रा के द्वारा आयातों का लगभग 8 प्रतिशत की गणना प्रदान करती है। एन.एफ.डी.बी. द्वारा मत्स्य-उत्पादन में वृधि के लिये पहचान किये गये क्षेत्रों में से, टुना और टुना जैसी प्रजातियों के रुप में गहरे समुद्र के कम उपयोग किये गये संसाधनों की फसल काटना, उनमें से एक है। वर्तमान समय में, टुना भारतीय ई.ई.जेड में कम उपयोग किये गये समुद्री भोजन के संसाधनों में से एक है और बोर्ड, टुना के लम्बे नियमित रुप से चलने वाले जहाजों जैसे संसाधन वाले विशिष्ट जहाजों पर कार्य करने के लिये बड़ी संख्या में व्यक्तियों को सुसज्जित करने के लिये भारी-भरकम प्रशिक्षण और शैक्षणिक कार्यक्रमों करने का प्रस्ताव रखता है, क्योंकि इन जलयानों के परिचालक पर्याप्त रुप से प्रशिक्षित देशी जन शक्ति के अभाव में विदेशी कर्मी दल पर निर्भर रहते चले आ रहे हैं।
भारतीय संदर्भ में, भारतीय ई.ई.जेड के लिये टुना और टुना जैसी प्रजातियों की लगभग 278000 मीट्रिक टन की अनुमानित फसल काटने योग्य संभावना के विरुद्ध, ई.ई.जेड से फसल काटने के विस्तृत क्षेत्र को छोड़कर, 1995-2004 की अवधि के दौरान लगभग 39992 टन की औसत उतराई अभिलिखित की गई थी। उक्त अवधि के दौरान, पश्चिमी समुद्रीतट ने टुना मछली की पकड़ का 75 प्रतिशत भाग प्रदानकिया था और शेष पकड़ पूर्वी समुद्री तट से आई थी। कुल मिलाकर की गई उतराई में से, छोटी टुना (यूथीन्नस एफिनिस) ने अधिकतम उतराईयों का रिकार्ड बनाया जो पश्चिमी समुद्रीतट पर पकड़ का 32 प्रतिशत और पूर्वी समुद्री तट पर 16 प्रतिशत रहा था। पश्चिमी और पूर्वी समुद्री तटों के लिये संचयी वार्षिक वृधि दरें (सी.ए.जी.आर.) 0.37 और -1.60 क्रमश: रही थीं। किन्तु, उद्योग के स्रोतों के अनुसार, पिछले 3-4 वर्षों की अवधि में सिंहावलोकन में परिवर्तन हो गया है और यह संभावना है कि सी.ए.जी.आर. में भी सुधार हुआ होगा।
लक्षद्वीप को छोड़कर, भारतवर्ष में टुना की कोई संगठित मात्स्यिकी नहीं है। टुना मछली मारने के समानार्थी, लक्षद्वीप द्वीप समूह यलोफिन के साथ स्किपजैक से भरपूर था। मछलियों की पकड़ में वृधि करने के लिये पायाओ जैसे सकल उपाय लक्षद्वीप में लागू किये गये थे और उन्होंने अच्छा कार्यनिष्पादन किया है। वैसे ही, लक्षद्वीप प्रशासन अपने जलों से टुना की पकड़ बढ़ाने के लिये मछली मारने वाले बड़े जलयान (38 फुट और 55 फुट वाले) शुरु कर रहा है। चारा खाने वाली मछलियों का शिकार करना भी लक्षद्वीप का खंभा और पंक्ति के द्वारा मछली मारने का एक प्रमुख घटक का निर्माण करता है और वह भविष्य में एक बाधा बन सकता है यदि उसका धारणीय तरीके से प्रबंध नहीं किया जाता है। लक्षद्वीप की टुना विस्तृत रुप से स्थानीय उपभोग के लिये, डिब्बाबंद करने के लिये मिनिकॉय में स्थित डिब्बाबंद संयंत्र को और द्वीपों तथा दक्षिणी भारत के कुछ भागों में ‘मासमिन’, एक स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करने के लिये जानी जाती है।
बंगाल की खाड़ी में, अंडमान और नीकोबार द्वीपसमूह भारतीय ई.ई.जेड में टुना मछली मारने के सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान करते हैं। किन्तु, क्षमता की कमी और द्वीपों में प्रचलित अगले तथा पिछले कमजोर संयोजनों की कमी के कारण, अंडमान और नीकोबार के जलों से टुना के संसाधन वृहद् रुप से बिना दोहन किये हुए रह जाते हैं। चूँकि महासागरीय टुनाएं आदत से प्रवासी होती हैं, तो वे टुनाएं अंडमान और निकोबार के जलों में भारतीय जहाजी बेड़े के द्वारा पकड़ी जाती हैं, उनकी पड़ोसी देशों के ई.ई,ज़ेड में फसल काटी जा सकती है।
टुना मात्स्यिकी के विकास करने के आसार
सन् 1977 में ई.ई.जेड की घोषणा के बाद, भारतवर्ष को 2.2 मिलियन वर्ग कि.मी. का क्षेत्रफल उपलब्ध होने का अनुमान लगाया गया है जिसमें शामिल है पश्चिमी समुद्रीतट पर 0.86 मिलियन वर्ग कि.मी., पूर्वी समुद्रीतट पर 0.56 मिलियन वर्ग कि.मी और अंडमान एवं नीकोबार द्वीपों के चारों और 0.60 मिलियन वर्ग कि.मी.। दोनों ही – अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में टुना और टुना जैसी प्रजातियाँ प्रचुर मात्रा में हैं।
भारतीय ई.ई.जेड में उपलब्ध अनेक समुद्री भोजनों में, टुना और टुना जैसे प्रजातियों का कम से कम संदोहन किया जाता है। एक बहुत रुढ़िवादी आधार पर भी, अगले 3-5 वर्षों में ई.ई.जेड से लगभग 7080,000 मीट्रिक टन टुना और टुना जैसी प्रजातियों की वार्षिक फसल काटी जा सकती है। इसका प्रायः उस दोगुनी 1 से अधिक वृधि में अर्थ लगाया जाता है जिसका वर्तमान में संदोहन किया जा रहा है। जबकि इन प्रजातियों के लिये सीमित घरेलू बाजार हो सकते हैं, फिर भी जापान जैसे देश में उत्तम गुणवत्ता की टुना की अतृप्य माँग है। शासिमी श्रेणी की टुना और टुनालॉयनों टिक्कों के बढ़ते हुए बाजार के साथ, भारतीय टुना के प्रबल आसार हैं। ‘शासिमी’ अब जापानियों का वांछनीय खाद्य का मद नहीं है। चीन में बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के साथ, अधिक से अधिक चीनी लोग अब शासिमी की ओर बढ़ रहे हैं जिसे सर्वश्रेष्ठता के बराबर एक स्वास्थ्य-भोजन माना जाता है। वास्तव में, शासिमी श्रेणी की टुना के लिये चीनियों की बढ़ती हुई माँग ने गुणवत्तापरक टुना की जापानियों की माँगों पर प्रभाव डालना पहले ही शुरु कर दिया है।
भारतवर्ष में टुना की मात्स्यिकी का विस्तार मात्स्यिकी के क्षेत्र-दोनों फसल और फसलोत्तर श्रेणियों में रोजगार के सिंहावलोकन पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा। एक धारणीय टुना मछली मारने वाले जहाजी बेड़े की तैनाती इस क्षेत्र में लगातार रोजगार के अवसर सुनिश्चित करेगी और प्रक्रिया में भी टुना के कुशल मछुआरों के एक वर्ग का सृजन करेगी। नाव का निर्माण करने वाला उद्योग तब एक बड़ा उछाल मारेगा यदि अतिरिक्त नावों का निर्माण किया जाना है और इस प्रकार अन्य सहायक इकाईयाँ, निर्माण करने की दिशाएं, टेढ़े काँटे इत्यादि भी उछाल मारेंगे। बढ़ी हुई टुना मछली की पकड़ की मात्राएं भी प्रसंस्करण करने वाले क्षेत्र के लिये अतिरिक्त कच्चे माल की माँग करेंगी जिसमें अभी कच्चे माल की कमी है और वह अपनी स्थापित क्षमता से परे परिचालन कर रही है।
टुना की मात्स्यिकी का विकास
3.1 देशी टुना मछली मारने के जहाजी बेड़े का विकास
भारतीय ई.ई.जेड में धारणीय टुना मछली मारने की एक पूर्वापेक्षा है एक पूर्ण रुप से भारतीय स्वामित्व वाला टुना मछली मारने के जहाजी बेड़े का विकास। 7 से 10 दिनों की श्रृंखला की क्षमता के साथ, टुना के एकसूत्र वाला लम्बी पंक्ति की एक मध्यवर्ती श्रृंखला का और 8-10 संख्या का कर्मीदल का एक आदर्श आकार वाला भारतीय बेड़ा ई.ई.जेड में तैनाती के लिये एक आदर्श होना प्रतीतहोता है। इससे आगे, बढ़ती हुई ईंधन की लागतों, कर्मीदलों की कमियों के साथ, छोटी नावों का परिचालन करना दूरदर्शी कदम होगा, क्योंकि वे बड़ी नावों की अपेक्षा अधिक मितव्ययिता की ओर अग्रसर होती हैं। छोटे स्तर की टुना मछलियों के मारने की नावों की आर्थिक व्यवहार्यता, वाहक नावों की तैनातीके माध्यम से इससे आगे सुधारी जा सकती है। संरक्षण की पर्याप्त सुविधाओं के साथ वाहक नावें 10-15 मछली मारने वाली नावों की जरुरत को पूरा कर सकती है और मछलियाँ मारने वाले क्षेत्रों और उतराई वाले बंदरगाहों के मध्य यात्रा करेंगीं।
उद्योग के विचार-विमर्शों के आधार पर, यह अनुमान लगाया गया है कि फाइबर से प्रबलित प्लास्टिक (एफ.आर.बी.) विलेपन के साथ या एक सूत्र वाला लम्बी पंक्तिके उपस्कर के साथ पूर्ण रुप से एफ.आर.पी. टुना का लम्बा लाइनर लकड़ी की जहाज बनाने की सामग्री का एक 18 मीटर ओ.ए.एल. की लागत लगभग 65-70 लाख होगी। इसी से मिलता-जुलता उपस्कर के साथ एक 16.5 मीटर ओ.ए.एल.एफ.आर.पी. टुना का लम्बे लाइनर की लागत लगभग रु.55 लाख होगी। इसके विपरीत, आर.एस.डब्ल्यू. की सुविधा और उपस्कर के घटक के साथ मिलते-जुलते आकार (18 मीटर ओ.ए.एल.) के स्टील का जहाज बनाने की सामग्री के एक जलयान की लागत लगभग 120 – 130 लाख होगी।
प्रस्तावित देशी टुना मछली मारने वाले जहाजी बेड़े में 15-18 मीटर ओ.ए.एल. के एफ.आर.पी. टुना लम्बी लाइनर की मध्यम श्रृंखला होगी और अगले 3-5 वर्षों में टुना के निर्यातों में वांछित लम्बी यात्राओं में लाने के लिये लगभग 300 ऐसे जलयानों की जरुरत होगी। यह मानते हुए कि लगभग 18 मीटर ओ.ए.एल. के प्रत्येक एफ.आर.पी. जलयान की लागत रु.75 लाख (उपस्कर के घटक और प्रथम वर्ष की आवर्ती लागत को शामिल करते हुए) होगी, तो 300 जलयानों का निर्माण करने के लिये रु.225 करोड़ की जरुरत पड़ेगी। यह सुझाव दिया गया है कि एन.एफ.डी.बी. साम्या की भागीदारी के रुप में (रु.56.25 से 74.25 करोड़ बदल कर) निर्माण की कुल लागत का 25-33 प्रतिशत अंशदान कर सकता है और लाभार्थी ऋण इत्यादि के माध्यम से बकाया शेष का प्रबंध कर सकेंगे। एक वर्ष की मोहलत के बाद, लाभार्थी बोर्ड को समान किश्तों में चुकौती करना प्रारम्भ कर सकेंगे।
एन.एफ.डी.बी., उद्योग की जरुरतों को ध्यान में रखते हुए, टुना मछली मारने वाले जलयानों की मध्यमवर्गीय श्रृंखला के उपयुक्त मूलस्वरुपों के विकास में मात्स्यिकी की प्रौद्योगिकी के केन्द्रीय संस्थान (सी.आई.एफ.टी.) की सहायता ले सकता है। यदि अनिवार्य हो तो, श्रीलंका की बहु-दिवसीय टुना मछली मारने वाली नावों की डिजायनों को अंगीकार करते हुए, भारतवर्ष में प्रतिकृति बनाने के लिये, उपयुक्त हल्के परिवर्तनों के साथ, यदि अनिवार्य हो, विचार भी किया जा सकता है।
टुना मछली मारने वाले जहाजी बेड़े के विकास में बोर्ड के हस्तक्षेपों को अनेक प्रकारों से सोचा जा सकता है। सबसे पहली पहुँच, मध्यमवर्गीय आकार की श्रृंखला (लगभग 18 मीटर ओ.ए.एल.) के टुना के लम्बे लाइनरों का निर्माण करना और आस्थगित भुगतान के आधार पर इच्छुक उद्यमियों / मछुआरों के समूहों को पट्टे पर देना हो सकता है। दूसरी पहुँच लाभार्थियों द्वारा जलयानों के निर्माण में साम्या की भागीदारी (25-33%) के माध्यम से हो सकती है। लाभार्थी पूर्व-सहमत समयावधि से ऊपर बोर्ड की साम्या का परिसमापन कर सकता है।
3.2 मानव संसाधन विकास
इस क्षेत्र में प्रशिक्षित जनशक्ति की भारी जरुरत को ध्यान में रखते हुए, टुना मछली मारने वाले राष्ट्रों जैसे जापान, ताईवान इत्यादि से मास्टर ट्रेनरों की नियुक्ति करना अनिवार्य हो जायेगा। प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम विस्तृत रुप से उपस्कर के प्रबंध करने (विशेष रुप से एक सूत्र वाला लम्बी पंक्ति वाले), चारे के उपयोग, मछलियों के जहाज पर प्रबंध करने और उसके संरक्षण, पकड़ी गई मछलियों की मात्रा के समुद्र-तट पर प्रबंध करने, श्रेणीकरण करने, पैकिंग करने और प्रसंस्करण करने (विशेष रुप से कमर/मांस के टुकड़ों और अन्य मूल्य-वर्धित रुपों के लिये) पर केन्द्रित होगा। देश में प्रशिक्षकों की समीक्षापूर्ण भारी संख्या रखना अनिवार्य हो जायेगा जिसे तब लम्बी अवधि में अन्य मछुआरों/समुद्र-तट पर आधारित परिचालकों को प्रशिक्षित करने के लिये लगाया जा सकता है। इस समीक्षापूर्ण भारी संख्या को प्राप्त करने के लिये, न्यूनतम दो वर्ष की अवधि के लिये कम से कम दो मास्टर प्रशिक्षक (पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र-तटों के लिये एक-एक) रखना अनिवार्य हो सकता है।
मात्स्यिकी नौचालन सम्बन्धी इंजीनियरिंग और प्रशिक्षण का केन्द्रीय संस्थान (सी.आई.एफ.एन.ई.टी.), कोच्चि, 18 महीनों का एक सहयोगी मछली मारने वाले जलयान का पाठ्यक्रम (एम.एफ.वी.सी.) आयोजित करता है। इस पाठ्य-क्रम के पूरा करने के बाद प्रशिक्षुओं से 24 उद्योग के स्रोतों ने संकेत दिया है कि 23 मीटर वाले मछली मारने वाले जलयान में आर.एस.डब्ल्यू. सुविधा के पूर्ण कमीशन (मूल्य) की लागत लगभग 30 लाख रुपये होगी।
महीने की समुद्री सेवा में जाने की अपेक्षा की जाती है जिसे या तो सरकारी मछली मारने वाले जलयान में (अर्थात् जो एफ.एस.आई. के हैं) या निजी स्वामित्व वाले मछली मारने वाले जलयान में पूरा किया जा सकता है। ये प्रशिक्षु उम्मीदवारों की एक आदर्श निधि भी बना सकते हैं जिन्हें टुना मछली मारने में प्रशिक्षित किया जा सकता है और उनमें से कुछ बाद में भी प्रशिक्षकों के रुप में सेवा कर सकते हैं।
बोर्ड प्रशिक्षण का कलेन्डर और पाठ्य-क्रम तैयार करने के लिये सी.आई.एफ.एन.ई.टी. और मछली मारने वाले उद्योग के संघ (ए.एफ.आई.) विशाखापटनम के साथ सहयोग कर सकता है। दोनों पूर्वी (विशाखापटनम, चेन्नई) और पश्चिमी समुद्री तटों (कोचीन, गोवा, पोरबंदर) में सी.आई.एफ.एन.ई.टी. और ए.एफ.आई. के परिसरों का प्रशिक्षण के लिये प्रयोग किया जा सकता है और सी.आई.एफ.एन.ई.टी. तथा ए.एफ.आई., एन.एफ.डी.बी. की ओर से प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वय कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में एन.एफ.डी.बी. की सहायता करने वाले अभिकरणों को उस लागत की प्रतिपूर्ति की जा सकती है जो समन्वयन इत्यादि के लिये खर्च की जायेगी। अन्य प्रशिक्षुओं को उद्योग द्वारा नियमित आधार पर प्रायोजित किया जा सकता है।
3.3 समुद्री तट पर आधारित बुनियादी ढाँचे का विकास
यदि टुना का साशिमी श्रेणी में विपणन किया जाना है तो फसल काटने और फसलोत्तर के सभी स्तरों पर स्वास्थ्य विज्ञान और स्वास्थ्य रक्षा के पर्याप्त स्तरों का रख-रखाव किया जाना परम महत्व का हो जाता है। इस संबंध में मछली मारने वाले बंदरगाहों मछली की उतराई वाले केन्द्रों का (एफ.एल.सियों.) का रख-रखाव समीक्षापूर्ण हो जाता है और उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। वर्तमान समय में, विशाखापटनम, चेन्नई, कोचीन और मुम्बई के मछली मारने वाले बंदरगाह टुना की भारी मात्रा में उतराई का प्रबंध करते हैं। अत: यह अनिवार्य हो जाता है कि इन बंदरगाहों और उनको भी जहाँ निकट भविष्य में (अर्थात् गोवा, पांडिचेरी, वनकबरा इत्यादि) टुना की उतराईयाँ प्रचुर मात्रा में बढ़ सकती हैं, उनको यह सुनिश्चित करने के लिये कि उनमें स्वास्थ्य विज्ञान और स्वास्थ्य सम्बन्धी अनुकूलतम स्तर और अन्य सुविधाएं हों, जो पकड़ की मात्रा के तेजी से प्रबंध करने के लिये, जो या तो प्रसंस्करण इकाई को भेजी जाती है या निर्यात के लिये पैक की जाती है इससे पहले अपेक्षित होती हैं, उनका नवीकरण किया जाना चाहिये। यदि संभव हो, तो संदूषण की जोखिमों को न्यूनतम करने के लिये और तेजी से प्रबंध करने के लिये सुकर बनाने के लिये इस बंदरगाहों में टुना की उतराई के लिये समर्पित घाटों के प्राविधान पर भी विचार किया जाना चाहिये। एन.एफ.डी.बी., मछली मारने वाले बन्दरगाहों और एफ.एल.सीओ. के स्तरोन्नयन के लिये एक मास्टरप्लान तैयार करने के लिये मात्स्यिकी के लिये समुद्र तटीय इंजीनियरिंग के केन्द्रीय संस्थान (सी.आई.सी.ई.एफ.), बेंगलूरु और ए.एफ.आई., विशाखापटनम से समन्वय कर सकता है जो टुना की मात्स्यिकी के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।
3.4 प्रसंस्करण करने की इकाईयों का स्तरोन्नयन
सबसे अधिक सामान्य रुपों जिनमें टुना और टुना जैसी प्रजातियों का निर्यात किया जाता है, उनमें शामिल होते हैं – प्रीमियम – श्रेणी वाली साशिमी टुना, तत्पश्चात् टुकड़े और कमर और अंत में डिब्बाबंद टुना। साशिमी ताजी, उच्च गुणवत्ता वाले टुना के कच्चे माँस से या मछलियों की पकड़ करने के तुरन्त बाद 40° से. से नीचे तापक्रमों पर जमाई गई टुना से तैयार की जाती है। परम्परागत ‘साशिमी’ ब्लूफिन, बाइगेये और यलोफिन टुनाओं की तीन प्रजातियों से तैयार की जाती है। टुना जो ‘साशिमी श्रेणी के लिये स्वीकार्य नहीं होती हैं, वे टुकड़े वाले बाजार में, सामान्यतया यूरोप और संयुक्त राष्ट्र में बेची जाती हैं। टुकड़े सामान्यतया बाइगेये, यलोफिन और अल्बाकोर टुनाओं से, अधिकांशत: ताजी परंतु जमि हुई से भी तैयार की जाती हैं।
ताजी और जमी हुई टुना और टुना पर आधारित उत्पादों (डिब्बाबंद टुना को छोड़कर) के लिये जापान विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक और बाजार है। अभी हाल ही के वर्षों में, साशिमी और टुकड़ों के रुप में टुना यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी बाजारों (और अब चीन में भी) धीरे-धीरे सामान्य होती चली जा रही है। मात्रा और मूल्य-दोनों के अनुसार डिब्बाबंद टुना के बड़े आयातकों में संयुक्त राष्ट्र और यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस हैं। स्किपजैक, यलोफिन और अल्बाकोर वे प्रजातियाँ हैं जो मुख्य रुप से डिब्बाबंद करने के लिये प्रयोग की जाती हैं। वे मछलियाँ जिन्हें सामान्यतया जमाया जाता है, काटा जाता है, पकाया जाता है और तब नमक के घोल या तेल में डिब्बाबंद किया जाता है।
साशिमी श्रेणी की टुना की इसकी गुणवत्ता और ताजगी से पहचान की जाती है और इसे प्रसंस्करण करने की जरुरत नहीं होती है। जबकि टुना के टुकड़े और कमर को सामान्य प्रसंस्करण करने की जरुरत होती है, अधिकतम प्रसंस्करण किया जाना डिब्बाबंदी के मामले में की जाती है। साशिमी श्रेणी की टुना के लिये, फसल काटने के अभ्यास और जहाज पर प्रबंध करने का अत्यधिक महत्व होता है जो 40°से. से नीचे के तापक्रमों में तुरंत जमाने के द्वारा अनुसरण किये जाते हैं। दूसरी प्रमुख जरुरत निर्यात बाजार हेतु छोड़े जाने से पहले मछली मारने वाले बंदरगाह पर ऐसी टुनाओं का स्वच्छतापूर्वक प्रबंधन किया जाना, होती है। अतः इस क्रिया-कलाप के लिये बोर्ड के हस्तक्षेप चयनित मछली मारने वाले बंदरगाहों में सुधार के सम्बन्ध में हो सकते हैं जहाँ साशिमी श्रेणी की गुणवत्ता वाली टुना उतारी जा सकती हैं और निर्यात की जा सकती हैं। एन.एफ.डी.बी. के अन्य हस्तक्षेप निर्यात बाजार के लिये टुकड़ों और कमर की तैयारी के लिये प्रसंस्करण करने की इकाइयों के स्तरोन्नयन और आधुनिकीकरण के लिये भी हो सकते हैं। और यदि संभव हो, तो मिनिकॉय, लक्षद्वीप में टुना के डिब्बाबंद संयंत्र की क्षमता की बढ़ोतरी के होंगे।
पंखवाली मछलियों और शंखमीनों के निर्यातों के लिये प्रसंस्करण करने के लिये समुद्रतटीय राज्यों में एक काफी बड़ा बुनियादी ढाँचा पहले से ही मौजूद है। प्रसंस्करण करने वाली विद्यमान इकाईयों में से कुछ इकाईयों की टुकड़े और मछलियों की कमर के प्रसंस्करण करने के लिये सुविधाएं बढ़ाने के लिये पहचान की जा सकती है। केवल इस उद्देश्य के लिये ही इकाईयों की स्थापना करने की जरुरत नहीं हो सकती है क्योंकि टुना के प्रसंस्करण करने के लिये (टुकड़ों और मछलियों की कमर के लिये) सघन साजसामग्री की जरुरत नहीं होती है। गुणवत्तापरक टुना की उपलब्धता बढ़ाने के लिये अन्य जरुरतों में से एक, वर्फ की होगी क्योंकि टुना की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये वर्फ की पर्याप्त मात्रा नाजुक होती है। जो मछली मारने वाली छोटी नावों के द्वारा पकड़ी जाती हैं। पैकिंग करने की अच्छी सामग्री की भी जरुरत है, विशेष रुप से पी.यू.एफ. पेटियों की जो विदेशी बाजारों में केवल टुना को ले जा सकती हैं।
मिनिकॉय में टुना के डिब्बाबंद कारखाने से उत्पादन इस समय कई वर्षों से स्थगित पड़ा हुआ है। इसके विपरीत, मालदीव जो मिलते-जुलते भौगोलिक स्थापनाओं में स्थित है और भारत की मुख्य भूमि की अपेक्षा द्वीपों के लक्षद्वीप समूह से अधिक निकट है, वे अपने टुना के डिब्बाबंद बुनियादी ढाँचे के साथ अच्छा कार्य किया है। मिनिकॉय में टुना के डिब्बाबंद संयंत्र के आधुनिकीकरण और स्तरोन्नयन से द्वीपों की अर्थव्यवस्था पर अनेक अप्रत्याशित प्रभाव हो सकते थे। बोर्ड, एकीकृत मात्स्यिकी परियोजना (आई.एफ.पी.), कोच्चि और निजी क्षेत्र के साथ, उन उत्पादों को ध्यान में रखते हुए जिनकी बाजार में माँग है, स्तरोन्नयन के लिये एक नीले नक्शा तैयार करने के लिये उनसे सहयोग कर सकता है।
3.5 अन्य हस्तक्षेप
कुछ अन्य हस्तक्षेप जो भारतवर्ष में टुना के प्रसंस्करण करने के विकास के लिये नाजुक हैं, उनमें ये शामिल हैं – एक अधिक अनुकूल सक्रिय विपणन का समर्थन / एम.पी.ई.डी.ए. द्वारा बाजार के संयोजनों का विकास, विशेष रुप से अपने विदेशी कार्यालयों के माध्यम से; उत्पादनों की वृधि के रुप में भारतीय टुना के लिये ख्यातिप्राप्त छवि का सृजन; घरेलू बाजार में टुना का लोकप्रिय बनाया जाना, किराये-भाड़े के प्रभारों पर सहायता; सहायता वालीदरों पर सूखी बर्फ की आपूर्ति, चारा खाने वाली मछलियों की आपूर्ति के लिये उद्योग को आर. एवं डी. की सहायता यदि उत्पादनों में वृधि की जानी है और धारणीय बनाया जाना है और समुद्र से दूर जलों में टुना की पिंजड़े की कृषि के लिये प्रौद्योगिकियों का विकास।
फार्म – टी.पी.-।
टुना प्रसंस्करण केन्द्रों की स्थापना हेतु आवेदन
क्र.सं. | आवेदक से माँगे गये विवरण |
आवेदक द्वारा प्रस्तुत की गई सूचना |
(1) |
(2) |
(3) |
1.0 |
आवेदक/ फर्म/ संस्थानों/ विभागों/ सहकारी समितियों/ स्वयं सहायता समूह/ एन.जी.ओ. का नाम और पता (साफ अक्षरों में) |
|
2.0 |
संसूचना हेतु पता (दूरभाष / मोबाईल संख्या) |
|
3.0 |
उस जमीन के विवरण जहाँ प्रसंस्करण क्रिया-कलाप किया जाना प्रस्तावित है: |
|
(क) राज्यः |
||
(ख) जिला: |
||
(ग) तालूक/ मंडल: |
||
(घ) राजस्व ग्राम: |
||
(च) सर्वे संख्या (संख्याएं): |
||
(छ) स्वामित्व (क्या पूर्ण स्वामित्व है पट्टे पर है): |
||
(ज) यदि पट्टे पर है, तो पट्टे की अवधि: |
||
(झ) भूमि का कुल क्षेत्रफल (हे. में) |
||
(ट) कुल निर्मित क्षेत्रफल (हे. में) |
||
(ठ) प्रस्तावित क्रिया-कलाप के विवरण (नक्शे की योजना/ डिजायन के विवरण और इंजीनियरिंग के कार्य (मदवार/ कार्य-वार विवरण) सी.आई.सी.ई.एफ./ सी.आई.एफ.टी./ आई.एफ.पी./ या राज्य/ केन्द्रीय सरकारी विभाग/ अभिकरणों द्वारा प्रमाणित किये जाने हैं। |
||
5.0 |
क्या आवेदक पूर्व में लिये गये ऋण/ सहायता के लिये वित्तीय संस्था/ राज्य सरकार की चुकौती का दोषी है?: |
|
6.0 |
इनपुट की लागतों के संबंध में अनुमान |
|
(क) विकसित किये जाने वाले उत्पाद और प्रसंस्करण की जाने वाली प्रजातियाँ: |
||
(ख) प्रसंस्करण करने की क्षमता: |
||
(ग) आवर्ती लागत |
||
कच्चा माल |
||
सहायक सामग्री |
||
पैकिंग करने की सामग्री |
||
पात्र |
||
(घ) प्राप्त करने के स्रोत : |
||
7.0 |
इस क्षेत्र में आवेदक/ अभिकरण का अनुभव और अब तक लिये गये प्रशिक्षण के विवरण: |
|
8.0 |
परिचालन के अर्थशास्त्र के संबंध में विवरण: |
|
9.0 |
क्या बैंक का ऋण लेने की सुविधा उठाने के लिये वित्तीय गठबंधन किया गया है, यदि ऐसा है तो कृपया विवरण दीजिए |
|
10.0 |
प्रसंस्करण के क्रिया-कलाप के परिचालन की संभावित तारीख |
|
11.0 |
विपणन करने का गठबंधन |
|
12.0 |
नवीकरण और दिन-प्रतिदिन की कृषि के परिचालनों के लिये नियुक्त श्रमिकों का स्रोत और संख्या |
आवेदक द्वारा घोषणा
मैं/हम ____________________________________________________सुपुत्र/सुपुत्री/धर्मपत्नी
श्री _______________________________पर कार्यरत_________________________________एतद्द्वारा घोषणा करता हूँ / करती हूँ । करते हैं कि ऊपर प्रस्तुत की गई सूचना मेरे / हमारे सर्वोत्तम ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य है। मुझे / हमें पूरी जानकारी है कि यदि यह पाया जाता है कि मेरे / हमारे द्वारा प्रस्तुत की गई सूचना गलत है या उन शर्तों में किसी प्रकार का विचलन / उल्लंघन है जिनके अंतर्गत एन.एफ.डी.बी. द्वारा मुझे / हमें सहायता प्रदान की गई है, तो इस शर्त के उल्लंघन के लिये, कोई कार्रवाई जो उचित हो, मेरे / हमारे विरुद्ध की जा सकती है।
दिनांक:
स्थान:
आवेदक (कों) का / के हस्ताक्षर
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित
दिनांक:
स्थान:
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण के प्राधिकृत प्रतिनिधि का हस्ताक्षर और मुहर
देशी टुना मछली मारने के जहाजी बेड़े के निर्माण हेतु आवेदन
क्र.सं. |
आवेदक से माँगे गये विवरण |
आवेदक द्वारा प्रस्तुत की गई सूचना |
(1) |
(2) |
(3) |
1.0 |
आवेदक संघ/ स्वयं सहायता समूह/ राज्य सरकारों के मात्स्यिकी विभाग/ स्थानीय स्वयंशासी निकाय/ नाव के स्वामियों के संघ का नाम और पता (साफ अक्षरों में) |
|
2.0 |
संसूचना हेतु पता (दूरभाष / मोबाईल संख्या) |
|
3.0 |
पोत निर्माण-प्रांगण के स्थान के विवरण |
|
(क) राज्य: |
||
(ख) जिला: |
||
(ग) तालुक / मंडल: |
||
(घ) राजस्व ग्राम: |
||
(च) प्रस्तावित निर्माण कार्यों के विवरण डिजायन के विवरण इिंजीनियरिंग कार्य सी.आई.एफ.टी. / ए.आई.एफ.आई. / एम.पी.ई.डी.ए. के द्वारा प्रमाणित किये जायं |
||
4.0 |
जहाजी बेड़े के निर्माण के लिये सहायता के संबंध में विवरण |
|
5.0 |
क्या पूर्व में लिये गये ऋण । सहायता के लिये आवेदक किसी वित्तीय संस्थान राज्य सरकार को किसी भुगतान की चूक के लिये दोषी है? |
|
6.0 |
इनपुट की लागतों के संबंध में अनुमान |
|
(क) जलयान के ढाँचे की सामग्री |
||
(ख) आर.एस.डब्ल्यू |
||
(ग) उपस्कर |
||
(घ) अन्य मद इत्यादि |
||
7.0 |
क्या बैंक से ऋण लेने के लिये कोई वित्तीय गठबंधन किया गया है? यदि ऐसा है, तो कृपया विवरण दीजिए |
|
8.0 |
क्रिया-कलापों के प्रारंभ करने की संभावित तारीख |
आवेदक द्वारा घोषणा
मैं/हम ___________________सुपुत्र/सुपुत्री/धर्मपत्नी श्री _______________________________________पर कार्यरत ____________________एतद्द्वारा
घोषणा करता हूँ / करती हूँ / करते हैं कि ऊपर प्रस्तुत की गई सूचना मेरे / हमारे सर्वोत्तम ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य है। मुझे / हमें पूरी जानकारी है कि यदि यह पाया जाता है कि मेरे / हमारे द्वारा प्रस्तुत की गई सूचना गलत है या उन शर्तों में किसी प्रकार का विचलन / उल्लंघन है जिनके अंतर्गत एन.एफ.डी.बी. द्वारा मुझे / हमें सहायता प्रदान की गई है, तो इस शर्त के उल्लंघन के लिये, कोई कार्रवाई जो उचित हो, मेरे / हमारे विरुद्ध की जा सकती है।
दिनांक:
स्थान:
आवेदक (कों) का / के हस्ताक्षर
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित
दिनांक:
स्थान:
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण के प्राधिकृत प्रतिनिधि का हस्ताक्षर और मुहर
राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड
उपभोग प्रमाण-पत्र प्रस्तुतीकरण का प्रारुप
क्र.सं. |
पत्रांक और दिनांक |
धनराशि |
प्रमाणित किया जाता है कि हाशिये में दिये गये राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड के पत्रांक के अन्तर्गत _______________ के पक्ष में वर्ष __________ की अवधि में संस्वीकृत रु. और पूर्वसंस्वीकृति में से खर्च न किये जाने के कारण बकाया रु. ______ में से रु. ______ उस उद्देश्य के लिये उपभोग की जा चुकी है जिस उद्देश्य के लिये यह संस्वीकृत की गई थी और बकाया रु. अनुपभुक्त रह गया है। उसे ______ की अवधि के दौरान देय अगली किश्त में समायोजित कर दिया जायेगा।
भौतिक प्रगतिः
प्रमाणित किया जाता है कि मैं स्वयं में संतुष्ट हूँ कि वे शर्ते जिन पर निधियाँ राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड द्वारा संस्वीकृत की गई थीं, वे विधिवत् पूरी की जा चुकी हैं / पूरी की जा रही हैं और यह देखने के लिये मैंने निम्नलिखित जाँच-पड़तालें की हैं कि यह धन वास्तव में उसी उद्देश्य के लिये उपभोग किया गया था जिस उद्देश्य के लिये यह संस्वीकृत किया गया था।
दिनांक:
स्थान:
कार्यान्वयन करने वाले अभिकरण के प्राधिकृत प्रतिनिधि का हस्ताक्षर और मुहर
भारतवर्ष में टुना मात्स्यिकी के विकास के लिये प्रस्तावित क्रिया-कलापों का साँचा
क्र.सं. |
प्रस्तावित क्रिया- कलाप |
घटक |
अपेक्षित इनपुट |
सहयोग करने वाला संस्थान / अभिकरण |
(1) |
(2) |
(3) |
(4) |
(5) |
1.0 |
देशी टुना मछली मारने के जहाजी बेड़े का विकास |
(1) 18 मीटर ओ.ए.एल.एफ.आर.पी. नाव (2) 16.5 मीटर ओ.ए.एल.एफ.आर.पी. नाव (3) प्रशीतित समुद्री जल का उपयोग (4) मछली मारने के उपस्कर |
| विभिन्न ओ.ए.एल. और जहाज निर्माण करने की सामग्री और अन्य आवश्यकताओं, जैसे आर.एस.डब्ल्यू., उपस्कर इत्यादि का नीला नक्शा |
(1) मात्स्यिकी प्रौद्योगिकी का केंद्रीय संस्थान, कोच्चि (2) भारतीय मात्स्यिकी उद्योग का संघ ए.आई.एफ.आई.) (3) समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एम.पी.ई.डी.ए.), कोच्चि |
2.0 |
मानव संसाधन |
(1) फसल और फसलोत्तर क्रिया-कलापों हेतु मास्टर ट्रेनर (2) प्रसंस्करण क्षेत्र हेतु विशेषज्ञ (3) मात्स्यिकी नौ-चालन संबंधी इंजीनियरिंग और प्रशिक्षण के केन्द्रीय संस्थान के प्रशिक्षु |
(1) विदेशों से मास्टर ट्रेनर और विशेषज्ञ की शर्तों और उनकी नियुक्ति को अंतिम रुप प्रदान किया जाना (2) प्रशिक्षुओं हेतु प्रशिक्षण का कैलेण्डर और पाठ्यक्रम को अंतिम रुप दिया जाना |
(1) मात्स्यिकी नौचालन विकास संबंधी इंजीनियरिंग और प्रशिक्षण का केन्द्रीय संस्थान, कोच्चि (2) ए.एफ.आई., विशाखापटनम (3) एम.पी.ई.डी.ए., कोच्चि (4) भारतीय मात्स्यिकी सर्वेक्षण (एफ.एस.आई.), मुम्बई |
3.0 |
समुद्र-तट पर आधारित बुनियादी ढाँचे का विकास |
(1) मछली मारने वाले बंदरगाहों में घाटों की मरम्मत और नवीकरण (2) मछली की उतराई वाले केन्द्रों की मरम्मत और पुनर्नवीकरण (एफ.एल.सी.) (3) श्रेणीकरण करने, पैकिंग करने इत्यादि के लिये सहायता की सुविधाओं की स्थापना |
समर्थन की सुविधाओं की स्थापना करने के लिये सहायता दिये जाने वाले घटकों को शामिल करते हुए मछली मारने वाले बंदरगाहों और एफ.एल.सी. के स्तरोन्नयन के लिये मास्टर प्लान को अंतिम रुप दिया जाना |
(1) मात्स्यिकी के लिये समुद्रतटीय इंजीनियरिंग का केन्द्रीय संस्थान (सी.आई.सी.ई.एफ.), बेंगलूरु (2) ए.एफ.आई., विशाखापटनम |
4.0 |
प्रसंस्करण करने वाली इकाईयों का स्तरोन्नयन |
(1) टुना और टुना जैसी प्रजातियों के मूल्य-वर्धन की अनुमति देने के लिये प्रसंस्करण की विद्यमान इकाईयों का स्तरोन्नयन (2) केवल टुना और टुना जैसी प्रजातियों की नई इकाईयों की स्थापना |
टुना और टुना जैसी प्रजातियों के प्रसंस्करण करने के लिये प्रसंस्करण की विद्यमान इकाईयों के स्तरोन्नयन/ नई इकाईयों की स्थापना लिये नीले नक्शे को के अंतिम रूप दिया जाना |
(1) एकीकृत मात्स्यिकी की परियोजना (आई.एफ.पी.), कोच्चि (2) प्रसंस्करण-क्षेत्र (3)समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एम.पी.ई.डी.ए.), कोच्चि |
5.0 |
अन्य हस्तक्षेप |
(1) विपणन के समर्थन संयोजनों का विकास 2) भारतीय टुना के लिये ख्यातिलब्ध प्रतिष्ठा का सृजन (3) माल-भाड़े के प्रभारों पर सहायता (4) मछलियों के चारे की आपूर्ति के लिये आर.एंड.डी. का समर्थन (5) मछली मारने वाले क्षेत्र की संभावना की सूचना की बारंबारता में वृधि (6) संभाव्य छिछले जलों की गतिविधियों पर दिशानिर्देश |
कालम सं. (3) में सूचीबद्ध प्रत्येक विशिष्ट क्रिया-कलापों / कार्यक्रमों को अंतिम रुप दिया जाना |
ये क्रिया-कलाप आर-पार काटने वाले प्रकृति के हैं और देश में अनेक संस्थानों / अभिकरणों से सहयोग और विदेशी संस्थानों / अभिकरणों से भी संयोजन की अपेक्षा की जायेगी। |
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
Source