किसान भाई यह रोग बैक्टीरिया के कारण से धान की फसल को बहुत अधिक मात्रा में प्रभावित कर देती है इस रोग के कारण पत्ती पर धारी बन जाती है जिससे धान के पौधे में फोटोसिंथेसिस ना होने के कारण से पौधा नष्ट हो जाता है यह समस्या पूरे भारत में बहुत ही मात्रा में बढ़ती जा रही है इसके लिए किसान भाई रोग प्रतिरोधक प्रजातियों का चयन करना चाहिए जिससे फसल का पैदावार बढ़ जाए और लाभ भी मिलता रहे। हमारे किसान भाई इस रोग की पहचाना न कर पाने से रोग पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे है।
रोग का लक्षण या पहचान–
- धान की संक्रमित पत्तियों पर पीले रंग की धारियां बन जाती है।
- पौधे पर बने धारिया आपस में मिलकर पत्ती की सतह को ढक लेती हैं जिससे पत्ती मुरझाने लगता है ।
- पत्ती पर बने धारिया पीले से नारंगी से भूरे रंग में परिवर्तित हो जाती है।
- पत्तियों पर जल अवशोषित पतली धब्बेदार धारिया शिराओं व नसों के बीच दिखाई पड़ती है।
रोग का प्रबंधन–
- गर्मियों के समय में खाली होने पर खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए।
- रोग प्रतिरोधक वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए।
- रोग रहित नर्सरी का प्रयोग करनी चाहिए।
- नर्सरी में बीज शोधन के उपरांत ही बुवाई करनी चाहिए।
- नर्सरी रोपड़ के समय धान के पौधे की चोटी को काटने से बचाना चाहिये।
- धान के खेत में संक्रमित क्षेत्रों से पानी का आवागमन बंद कर देना चाहिए जिससे दूसरे खेतों को यारों प्रभावित ना कर पाए।
- रोग के लक्षण दिखाई देने पर उर्वरकों का प्रयोग बंद कर दें तथा खेत से बचा हुआ पानी निकाल दे।
रासायनिक नियंत्रण–
- नर्सरी में बुवाई से पूर्व बीज का उपचार बविस्टिन 10 ग्राम + 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन की मात्रा को 10 लीटर पानी के घोल में मिलाकर 10 से 12 घंटे भीगा देनी चाहिए।
- नर्सरी में बुवाई से पूर्व बीज का उपचार 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन प्रति 12 किलोग्राम बीज की मात्रा को 20 लीटर पानी के घोल में मिलाकर 10 से 12 घंटे भीगा देनी चाहिए।
- स्ट्रेप्टोसायक्लीन 28 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करनी चाहिए।