किसान भाई यह रोग धान की फसल ज्यादा प्रभावित होता है, यह बहुत बड़ी समस्या है जिसके कारण से हर वर्ष बहुत ज्यादा धान की पैदावार में कमी आता है और फसल नष्ट हो जाती है हमारे किसान भाई इस रोग की पहचाना न कर पाने से रोग पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे है।
रोग का लक्षण या पहचान-
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- यह रोग पुष्पन या उसके बाद व्यवस्था में आता है प्रभावित बालियों में दाने बड़े मखमली गेंद के आकार में बदल जाते हैं।
- धान की बाली के दाने पीले और काले रंग के आवरण से ढक जाते हैं, जिनको हाथ से छूने पर हाथ में पीले, काले अथवा हरे रंग के पाउडर जैसे रोग के स्पोर लग जाते हैं।
- बालियों में संक्रमित दाने चमकीले नारंगी रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।
- यह रोग हवा द्वारा स्वस्थ फूलों को संक्रमित करते हैं, उसके बाद में पीले से काले रंग बदल जाते हैं।
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रोग का प्रबंधन–
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- धान के संक्रमित बालियों को इकट्ठा करके जला दें ।
- बीज को बीज उपचार के बाद नर्सरी में बुवाई करें।
- रोग रहित बीजों का प्रयोग करनी चाहिए।
- अगेती फसल में यह रोग पिछेती फसल की तुलना में कम लगता है।
- फसल की कटाई के समय प्रभावित दानों को अलग कर लेना चाहिए।
- खेत की मेड़ों और सिंचाई की नालियों को खरपतवार रहित बना देना चाहिए ताकि रोग के कारक को दूसरा खेतो में जा पाये।
- नाइट्रोजन उर्वरक को अधिक प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
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रासायनिक नियंत्रण–
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- नर्सरी में बुवाई से पूर्व बीज का उपचार बविस्टिन 10 ग्राम + 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन की मात्रा को 10 लीटर पानी के घोल में मिलाकर 10 से 12 घंटे भीगा देनी चाहिए।
- नर्सरी में बुवाई से पूर्व बीज का उपचार 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लीन प्रति 12 किलोग्राम बीज की मात्रा को 20 लीटर पानी के घोल में मिलाकर 10 से 12 घंटे भीगा देनी चाहिए।
- कार्बेंडाजिम 50% 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देनी चाहिए।
- कापर ऑक्सिक्लोराइड 50% 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर 10% फूल आने की अवस्था में छिड़काव करना चाहिए।
- प्रोपिकॉनाज़ोल 25% 600 ml प्रति हेक्टेयर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर 40-50% फूल आने की अवस्था में छिड़काव करना चाहिए।
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